मोदी सरकार एक बार फिर उद्योगपतियों को कई हजार करोड़ बांटने जा रही है
यह रॉफेल से बड़ा घोटाला है..........
गिरीश मालवीय
दो दिन पहले अजीत डोभाल उद्योगपतियों से
सहानुभूति प्रदर्शित करते पाए गए,......प्रधानमंत्री मोदी तो साफ साफ बोले थे कि
हिन्दुस्तान को बनाने में उद्योगपतियों की भी भूमिका है और उन्हें चोर लुटेरा कहना
या अपमानित करना पूर्णतया गलत है'
आखिरकार भाजपा को पूंजीपतियों से इतनी मोहब्बत
क्यो है कि उनके लिए देश की जनता के बजाए बड़े पूंजीपति घराने क्यो महत्वपूर्ण है?
सरकार का तो प्रथम कर्तव्य ही है जनता के कल्याण के लिए कार्य करना और
विधानसभा से लेकर संसद तक में उनके हितों का खयाल रखना लेकिन मोदी सरकार इतनी
अनोखी सरकार है कि उसे लगता है कि जनता जाए भाड़ में बस हमारे अडानी अम्बानी को जरा
सी भी तकलीफ न होने पाए!
इसका सबसे बड़ा उदाहरण कल सामने आया है लेकिन इस
बात को समझने के लिए आपको पूरा मामला समझना होगा
अडानी पावर, टाटा पावर और एसार
पावर यह तीनों कम्पनियाँ वर्ष 2010 समझौते के अंतर्गत गुजरात राज्य में बिजली
दे रही थी ये समझौता गुजरात सरकार और इन बिजली कंपनियों के बीच हुआ था। समझौते के
मुताबिक, बिजली कंपनियों को अगले 25 साल तक
राज्य में बिजली देनी थी और उस बीच वो कीमत एक तय सीमा से ज़्यादा नहीं बढ़ा सकती थी
लेकिन अडानी ओर टाटा पावर कुछ ही समय बाद इस
समझौते से पीछे हट गयी दोनों कंपनियों की दलील थी कि इंडोनेशिया ने नए नियमों के
तहत कोयले के दाम बढ़ा दिए थे. जिसकी वजह से उनका खर्च बढ़ गया है, इसलिए
वे भी बिजली टैरिफ बढ़ाना चाहते है मामला धीरे धीरे सुप्रीम कोर्ट तक पुहंच गया
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 में
अपने आदेश में अदाणी और टाटा पावर की परियोजनाओं को कोयले की बढ़ी लागत का भार
ग्राहकों पर डालने की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया
अब यहाँ से मोदी सरकार ने अपने मित्र पूंजीपतियों
को बचाने के लिए चाल चलना शुरू की इस मामले में अडानी, टाटा और एस्सार
ग्रुप के घाटे वाले पावर प्रॉजेक्ट्स को जल्द ही राहत पैकेज देने के लिए सुप्रीम
कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की अगुवाई में पैनल बनाया गया
खुद मोदी सरकार बिजली उपभोक्ताओं को महंगी बिजली
दिलवाने के निजी पॉवर कंपनियों अडानी पावर, टाटा पावर और एसार
पावर के पक्ष में खड़ी हो गयी सरकार ने कहा कि कि ये तीनों कम्पनियाँ घाटे में चल
रही हैं इसलिए इन्हें बिजली के दाम बढ़ाने की अनुमति दे दी जाए जबकि इसी बात पर
तीनों कम्पनियां सुप्रीम कोर्ट में हार गयी थी
गुजरात सरकार ने जस्टिस (रिटायर्ड) आर के अग्रवाल
की अगुवाई वाले तीन सदस्यीय पैनल को 45 दिनों में अपने सुझाव देने को कहा
लेकिन बड़ा मसला तो अब यह खड़ा हो गया था कि ये
पावर प्रोजेक्ट तो सारे बन्द पड़े थे और इनको बड़ी मात्रा में बैंकों ने भारी कर्ज
दे रखे थे जो पूरी तरह से डूबने की कगार पर थे भारतीय स्टेट बैंक उन बैंकों के समूह
का हिस्सा है जिसने इन बिजली कंपनियों को कर्ज दे रखे है उसने लोन वसूलने के लिए
अपनी अलग याचिका लगाई याचिका में कहा गया कि बैंकों के इस समूह ने 31 मार्च,
2017 तक तीनों कंपनियों में से अदानी पावर को 19,127 करोड़,
एस्सार पावर को 4,214 करोड़ और टाटा मुंद्रा को 10,159 करोड़
रूपए का कर्ज अपने संयंत्र चलाने के लिये दिया है
स्टेट बैंक की याचिका के अनुसार इसके बाद इन
कंपनियों सहित सभी हितधारकों ने वित्त मंत्री अरूण जेटली से मुलाकात की उसके बाद
यह मामला कैसा पलटा यह कल हमारे मित्र मुकेश असीम ने बताया ...... 'एसबीआई
ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दाखिल किया है कि या तो गुजरात में अदानी, टाटा व
एस्सार के 3 विद्युत संयंत्रों को बिजली के तय दाम बढ़ाने दिये
जायें नहीं तो एसबीआई को अनुमति दी जाये कि वो इन्हें दिये कर्ज का एक हिस्सा माफ़
कर दे!'....
'एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को कहा है कि ये तीनों
कंपनियाँ बेचारी घाटे में हैं इसलिए इन्हें दरें बढ़ाने दिया जाये नहीं तो एसबीआई
को तीनों का कर्ज माफ़ करने दिया जाये। अगर एसबीआई को यह अनुमति मिल गई तो अन्य
बैंक भी निश्चित रूप से ऐसा ही करेंगे'
साफ दिख रहा है कि मोदी सरकार एसबीआई पर दबाव डालकर
इन उद्योगपतियों के कर्जे सीधे सीधे माफ कर देना चाहती हैं. यदि इस तरह का मनमाना
फैसला लिया जाता है फैसला एक नजीर साबित होगा भारतीय स्टेट बैंक, जिसका
एनपीए 1.86 लाख करोड़ रुपये है, उसने 56,000 करोड
रुपये से भी अधिक अलग अलग पावर कम्पनियों मे जनवरी 2014 से सितंबर 2017
के बीच लोन, बॉण्ड, व शेयर के रूप मे
लगा दिए हैं यदि पॉवर सेक्टर के पूरे लोन की बात की जाए तो भारत की पावर कम्पनियो
को जनवरी 2014 से सितम्बर 2017 के बीच 3.79 लाख
करोड से भी अधिक का कर्ज विभिन्न बैंको या देशी विदेशी वित्तीय संस्थानों की ओर से
मिला हुआ है
यदि एसबीआई को यह कर्ज माफ कर देने की अनुमति दी
गयीं तो भारत की बैंकिंग व्यवस्था को तबाह होने से कोई बचा नही पायेगा, अब ऐसे
उद्योगपतियों को चोर लुटेरे यदि बोला जाता है तो बताइए क्या गलत बोला जाता है और
मोदी सरकार इनके साथ खड़ी होकर क्या संदेश देना चाहती है ?
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