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भीष्म साहनी की कहानी त्रास

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भीष्म साहनी की कहानी  त्रास ऐक्सिडेंट पलक मारते हो गया. और ऐक्सिडेंट की जमीन भी पलक मारते तैयार हुई. पर मैं गलत कह रहा हूँ. उसकी जमीन मेरे मन में वर्षों से तैयार हो रही थी. हाँ , जो कुछ हुआ वह जरूर पलक मारते हो गया. दिल्‍ली में प्रत्‍येक मोटर चलानेवाला आदमी साइकिल चलानेवालों से नफरत करता है. दिल्‍ली के हर आदमी के मस्तिष्‍क में घृणा पलती रहती है और एक-न-एक दिन किसी-न-किसी रूप में फट पड़ती है. दिल्ली की सड़कों पर सारे वक्‍त घृणा का व्‍यापार चलता रहता है. बसों में धक्‍के खाकर चढ़नेवाले , भाग-भगकर सड़कें लाँघनेवाले , भोंपू बजाती मोटरों में सफर करनेवाले सभी किसी-न-किसी पर चिल्‍लाते , गालियाँ बकते , मुड़-मुड़कर एक-दूसरे को दाँत दिखाते जाते हैं. घृणा एक धुंध की तरह सड़कों पर तैरती रहती है. पिछले जमाने की घृणा कितनी सरल हुआ करती थी , लगभग प्‍यार जैसी सरल. क्‍योंकि वह घृणा किसी व्‍यक्ति विशेष के प्रति हुआ करती थी. पर अनजान लोगों के प्रति यह अमूर्त घृणा , मस्तिष्‍क से जो निकल-निकलकर सारा वक्‍त वातावरण में अपना जहर घोलती रहती है. वह साइकिल पर था और मैं मोटर चला रहा था. न जाने वह आदमी कौन