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Showing posts from November, 2021

कृषि क़ानून विवाद के पहले दौर में खेतिहर पूँजीपति वर्ग की औद्योगिक-वित्‍तीय बड़े पूँजीपति वर्ग पर जीत: मज़दूर वर्ग के लिए इसके निहितार्थ

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कृषि क़ानून विवाद के पहले दौर में खेतिहर पूँजीपति वर्ग की औद्योगिक-वित्‍तीय बड़े पूँजीपति वर्ग पर जीत: मज़दूर वर्ग के लिए इसके निहितार्थ अभिनव सिन्‍हा  For English, Marathi and Punjabi version, please scroll down  धनी कुलक और किसान, यानी पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के खेतिहर पूँजीपति वर्ग ने पहले दौर में भारत के औद्योगिक-वित्‍तीय बड़े पूँजीपति वर्ग पर तात्‍कालिक जीत हासिल की है। मोदी सरकार के इस क़दम के कारण क्‍या हैं? आइए देखते हैं: कल मेघालय के राज्‍यपाल सत्‍यपाल मलिक ने मीडिया के ज़रिये मोदी सरकार को यह सन्‍देश दिया था कि उत्‍तर प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनावों में भाजपा की पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में करारी हार होने वाली है। आरएसएस का ज़मीनी तंत्र भी भाजपा के नेतृत्‍व को ऐसी ही रिपोर्टें दे रहा था। सामान्‍य तौर पर उत्‍तर प्रदेश और ख़ासकर पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में रोज़गार, खाद्य सुरक्षा और ग़रीबी के मोर्चे पर भाजपा सरकार की ख़राब हालत देखते हुए भाजपा को उत्‍तर प्रदेश की गद्दी छिनने का भय सता रहा है। अगर ऐसा होता है तो 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के जीतने की सम्‍भावना भ

‘जय भीम’ फिल्‍म की समीक्षा Review of Film 'Jai Bheem'

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 ‘जय भीम’: उत्पीड़ितों के ख़ून में डूबी व्‍यवस्‍था की न्‍यायप्रियता स्‍थापित करने वाली फ़‍िल्‍म आनन्‍द सिंह  For English version please scroll down  तमिल फ़‍िल्‍म ‘जय भीम’ को देखकर भॉंति-भॉंति के उदारवादी, अस्‍मितावादी व सामाजिक जनवादी समीक्षक और बुद्धिजीवी लोटपोट हुए जा रहे हैं। आज के फ़‍ासिस्‍ट दौर में जब भारत के पूँजीवादी लोकतंत्र में विधायिका और कार्यपालिका ही नहीं बल्कि न्‍यायपालिका सहित व्‍यवस्‍था की सभी संस्‍थाएँ पूँजी और सत्‍ता के इशारे पर जनता की छाती पर मौत का ताण्‍डव कर रही हैं और जब इस व्‍यवस्‍था का क्रूर जनविरोधी चेहरा दिन के उजाले के समान सबके सामने आ चुका है, ‘जय भीम’ जैसी फ़‍िल्‍में हमारे समीक्षकों और बुद्धिजीवियों को दलितों-आदिवासियों-अल्‍पसंख्‍ यकों-शोषितों-उत्पीड़ितों के ख़ून से लथपथ व्‍यवस्‍था की न्‍यायप्रियता पर भरोसा बनाये रखने का एक कारण देती हैं। ऐसी फ़‍िल्‍में देखकर उनका यह यक़ीन पुख्‍़ता हो जाता है कि दरअसल दोष इस व्‍यवस्‍था का नहीं है बल्कि कुछ लोगों का है जो अपनी ताक़त का दुरुपयोग करके कमज़ोर तबकों पर ज़ुल्‍म ढाते हैं। इसलिए फ़‍िल्‍म देखकर वे आश्‍वस्‍त हो जा