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नज़्म - हाथों का तराना / अली सरदार जाफ़री

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नज़्म - हाथों का तराना अली सरदार जाफ़री (29 नवम्‍बर 1913 - 1 अगस्‍त 2000)  इन हाथों की ताज़ीम करो इन हाथों की तकरीम करो दुनिया के चलाने वाले हैं इन हाथों को तस्लीम करो तारीख़ के और मशीनों के पहियों की रवानी इन से है तहज़ीब की और तमद्दुन की भरपूर जवानी इन से है दुनिया का फ़साना इन से है , इंसाँ की कहानी इन से है इन हाथों की ताज़ीम करो सदियों से गुज़र कर आए हैं , ये नेक और बद को जानते हैं ये दोस्त हैं सारे आलम के , पर दुश्मन को पहचानते हैं ख़ुद शक्ति का अवतार हैं , ये कब ग़ैर की शक्ति मानते हैं इन हाथों को ताज़ीम करो एक ज़ख़्म हमारे हाथों के , ये फूल जो हैं गुल-दानों में सूखे हुए प्यासे चुल्लू थे , जो जाम हैं अब मय-ख़ानों में टूटी हुई सौ अंगड़ाइयों की मेहराबें हैं ऐवानों में इन हाथों की ताज़ीम करो राहों की सुनहरी रौशनियाँ , बिजली के जो फैले दामन में फ़ानूस हसीं ऐवानों के , जो रंग-ओ-नूर के ख़िर्मन में ये ह

कविता - एक मिनट का मौन / एम्मानुएल ओरटिज़ Poem - A Moment of Silence / Emmanuel Ortiz

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कविता - एक मिनट का मौन / एम्मानुएल ओरटिज़ अनुवाद : असद ज़ैदी For English version please scroll down  इससे पहले कि मैं यह कविता पढ़ना शुरू करूँ, मेरी गुज़ारिश है कि हम सब एक मिनट का मौन रखें, ग्यारह सितम्बर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन में मरे लोगों की याद में । और फिर एक मिनट का मौन उन सब के लिए जिन्हें प्रतिशोध में सताया गया, क़ैद किया गया, जो लापता हो गए जिन्हें यातनाएँ दी गईं, जिनके साथ बलात्कार हुए एक मिनट का मौन, अफ़गानिस्तान के मज़लूमों और अमरीकी मज़लूमों के लिए और अगर आप इज़ाजत दें तो एक पूरे दिन का मौन हज़ारों फिलस्तीनियों के लिए जिन्हें उनके वतन पर दशकों से काबिज़ इस्त्राइली फ़ौजों ने अमरीकी सरपरस्ती में मार डाला छह महीने का मौन उन पन्द्रह लाख इराकियों के लिए, उन इराकी बच्चों के लिए, जिन्हें मार डाला ग्यारह साल लम्बी घेराबन्दी, भूख और अमरीकी बमबारी ने इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ दो महीने का मौन दक्षिण अफ़्रीका के अश्वेतों के लिए जिन्हें नस्लवादी शासन ने अपने ही मुल्क में अजनबी बना दिया। नौ महीने का मौन हिरोशिमा और नागासाकी के मृतकों के लिए, जहाँ मौत बरसी, चमड़ी, ज़म