आदित्य कमल की कविताएं - पोज दीजिए व आजकल मौसम सुहाना है


पोज दीजिए
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कुछ पोज दीजिए, ज़रा चेहरा बनाइए
कुछ और ना मिले तो, झाड़ू ही लगाइए।

बस साफ-सफाई यूँ ही चलती रहे हुज़ूर
मिलजुल के खजाने को साफ़ करते जाइए।

ऐसे भी मुल्क आपके ही बाप का तो है 
खुद चरिए और बाल-बच्चों को चराइए !

बैंकों में सेंध मार करके माल बांधिए
उड़ भागिए परदेश,सबको मुँह बिराइए।

गुंडों को खुला छोड़िए, वो काम करेंगे
पीटिए, पिटवाइए ; गाली दिवाइए।

ट्विटर पे रोज़ पाँच - सात ट्वीट मारिए
कुछ झूठ फेंकिए, कुछ जुमले उछालिए।

चारा हो या कि टू जी या कि चाय आपकी
सब एक ही हैं बाबू, बस मजे उड़ाइए।

ठगबाजी और रंगबाजी से जन-जन को मूंडिए
जनता पे यूँ, 'जनता का शासन' चलाइए।

कुछ और कहने-सुनने के काबिल कहाँ रहे
बस मन की बात कीजिए और मन लगाइए !



आजकल मौसम सुहाना है
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तुम्हारे वास्ते तो आजकल मौसम सुहाना है
हमारी बस्तियाँ उजड़ीं, बिखरता आशियाना है।

सुना है जब से तू आया है 'अपना देश' बदला है
हमारे घर में आख़िर क्यूँ वही किस्सा पुराना है !

यूँ जी.डी.पी के चढ़ते ग्राफ में उलझा नहीं मुझको
मुझे मालूम है कि किस तरफ बढ़ता खजाना है।

इधर चौरास्ते पर रोज़ जमघट, भीड़ लगती है
है आँखों को तलाशी काम की, जो बे ठिकाना है।

तुम्हारी ख़ून की होली-दीवाली, ईद नफ़रत की
असल में आजकल ये ही तेरा कौमी-तराना है।

समूची दुनिया में कैसी मची ये अफरा-तफरी है
कहीं बारूद के टीले, कहीं पर तोपखाना है।

तुम्हारी कथनी-करनी का फरक क्या शातिराना है
कि तू तो जंग में भी अम्न का लेता बहाना है !

हमारा शहर अब जगता है हर दिन मातमी धुन पर
वही दस्तूर सब जालिम व क़ातिल, वहशियाना है।

तू कितना ज़ुल्म कर सकता है, ये मैं भी ज़रा देखूँ
हमें तू आजमा, हमको भी तुझको आजमाना है।



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