मेरी देशभक्ति का मेनिफेस्टो
मेरी देशभक्ति का मेनिफेस्टो
कविता कृष्णपल्लवी
(एक "शरीफ़" गुबरैला इनबॉक्स
पधारा! अन्य गुबरैलों की तरह उसने गालियों की झड़ी नहीं लगाई। उसने मुझे "भटकी
हुई और बहका दी गयी" बताया और प्यार से धमकाया कि मैं देशद्रोह का रास्ता
छोड़कर देशभक्तों के खेमे में आ जाऊँ, नहीं तो अंजाम बुरा
होगा। उसे तो मैंने "आदर-सत्कार" करके विदा कर दिया , पर उसीसमय यह आईडिया आया कि मुझे अपनी देशभक्ति के बारे में चंद शब्द
लिखने चाहिए!)
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मेरी देशभक्ति का मेनिफेस्टो
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मैं एक भारतीय हूँ। मैं इस देश से प्यार
करती हूँ!
मैं इस देश से प्यार करती हूँ,
यानी इस देश के लोगों से प्यार करती हूँ।
मैं इस देश के सभी लोगों से प्यार नहीं
करती। मैं इस देश में अपनी मेहनत से फसल पैदा करने वाले,
कारखानों में काम करने वाले, खदानों में काम
करने वाले, बाँध, सड़क और बिल्डिंगें
बनाने वाले, स्कूलों-कालेजों में पढ़ने-पढ़ाने वाले और ऐसे तमाम
आम लोगों से और उनके बच्चों से प्यार करती हूँ!
मैं उन थोड़े से लुटेरों से प्यार नहीं करती
जो कारखानों, फार्मों, व्यावसायिक
प्रतिष्ठानों, बैंकों आदि के मालिक हैं और मज़दूरों और आम
मध्यवर्गीय लोगों की हड्डियाँ निचोड़ते हैं! मैं दलालों, कालाबाजारियों,
पूँजीपतियों के टुकड़ों पर पलने वाले और उनकी सेवा करने वाले
पूँजीवादी पार्टियों के नेताओं, शासन की मशीनरी को चलाने
वाले नौकरशाहों, धार्मिक कट्टरपंथी फासिस्टों, जातिवादी कट्टरपंथी बर्बरों और दंगाइयों से ज़रा भी प्यार नहीं करती। मैं
पूँजीवादी मीडिया के उन भाड़े के टट्टुओं से भी प्यार नहीं करती जो चंद सिक्कों पर
बिककर सत्ता और थैली के भोंपू बन जाते हैं और अवाम को धर्म, जाति,
क्षेत्र आदि के आधार पर बाँटने के लिए झूठ का घटाटोप फैलाते हैं!
सिर्फ़ यही नहीं, कि मैं इन तमाम लोगों से प्यार नहीं करती,
बल्कि मैं इनसे तहेदिल से नफ़रत करती हूँ! एक देश के भीतर ही इनका
देश मेरे देश से अलग है।
मेरी देशभक्ति मुझे बताती है कि इस देश को
सुन्दर,
खुशहाल, मानवीय और न्यायपूर्ण बनाने के लिए
तथा गैर-बराबरी और अन्याय के सभी रूपों को ख़तम करने के लिए इस देश के भीतर ही
शोषक-उत्पीड़क सत्ताधारियों के विरुद्ध एक लम्बी और फैसलाकुन लड़ाई लड़नी होगी! सीमा
के आर-पार तनाव इसलिए भड़काए जाते हैं और सारी लडाइयाँ इसलिए होती हैं कि न भारत और
न ही पाकिस्तान की जनता अपने -अपने देश के लुटेरे पूँजीपतियों से, उनके लग्गू-भग्गुओं से और साम्राज्यवादियों से लड़ने के लिए संगठित न हो
सके।
मैं भारत के आम लोगों से ही नहीं,
पाकिस्तान और चीन और अमेरिका और रूस आदि देशों के आम मेहनतक़श लोगों
से, यानी पूरी दुनिया की आम जनता से प्यार करती हूँ! मैं
भारत के लुटेरों-चोरों और हुक्मरानों से ही नहीं, पाकिस्तान
के, और पूरी दुनिया के चोरों-लुटेरों-हुक्मरानों से तहे-दिल
से नफ़रत करती हूँ!
मैं इन अर्थों में एक देशभक्त हूँ ,
पर नोट कीजिए, मैं राष्ट्रवादी कत्तई नहीं हूँ!
मेरे लेखे, राष्ट्रवाद और देशभक्ति दो अलहदा चीज़ें हैं!
*
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(समझे भाई भगतजी! नहीं, तुम काहे को समझोगे! समझने की ताकत ही होती दिमाग में, तो वह खिसककर घुटने में क्यों आ जाता और तुम भक्त क्यों होते ?)
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