लेव तोल्स्तोय के महान उपन्यास ‘युद्ध और शान्ति’ की पीडीएफ फाइल PDF File of Great Novel of Leo Tolstoy - War and Peace

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लेनिन ने लिखा था कि तोल्स्तोय “इतनी अधिक संख्या में महान समस्याओं को उठाने में सफल रहे और कलात्मक शक्ति की ऐसी ऊँचाइयों तक ऊपर उठने में सफल रहे कि उनका कृतित्व विश्व साहित्य के महानतम की कोटि में शामिल हो गया।"

आम तौर पर, तोल्स्तोय को उनके दो वृहद और महान उपन्यासों-‘युद्ध और शान्ति’ तथा ‘आन्ना कारेनिना’ के लिए जाना जाता है। इनकी गणना निर्विवाद रूप सेअब तक लिखे गये दुनिया के सर्वोत्कृष्ट उपन्यासों में की जाती है। कुछ लोग उनके तीसरे प्रसिद्ध उपन्यास ‘पुनरुत्थान’ को भी इसी कोटि में शामिल करते हैं। उनकी एक और चर्चित कृति ‘इवान इलिच की मौत’ की गणना उपन्यासिका के सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में की जाती है। अपने अन्तिम तीस वर्षों के दौरान एक धार्मिक और नैतिक शिक्षक के रूप में उन्हें विश्वस्तरीय ख्याति मिली। बुराई का प्रतिरोध न करने के उनके सिद्धान्त का गाँधी पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। दुनिया आज तोल्स्तोय की धार्मिक मान्यताओं को भुला चुकी हैलेकिन साहित्यकार तोल्स्तोय की ख्याति आज भी अक्षुण्ण है और विश्व–साहित्य की क्लासिकी सम्पदा में अद्वितीय अभिवृद्धि करने वाले महान साहित्य–सर्जक के रूप में उन्हें शताब्दियों बाद ही नहीं बल्कि सहस्राब्दियों बाद भी याद किया जायेगा।

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युद्ध और शान्ति’ के चार खण्डों का लेखन तोल्स्तोय ने 1863 से 1869 के बीच किया। 1865 में इसके प्रकाशन की शुरुआत हुई।

युद्ध और शान्ति’ विश्व का महानतम उपन्यास ही नहीं बल्कि साहित्यिक इतिहास की एक परिघटना है। ऐसी संजटिलऐतिहासिक–मनोवैज्ञानिक बहुसंस्तरीय महाकाव्यात्मक कलात्मक संरचना के बारे मेंएक हद तक सरलीकरण का खतरा मोल लेते हुए कहा जा सकता है कि इसमें तीन तरह की सामग्री का दक्ष संश्लेषण किया गया है-

(i) नेपोलियानिक युद्धों और रूसी जनता के एकजुट दुर्द्धर्ष प्रतिरोध का ब्योरा (ii) औपन्यासिक चरित्रों का अन्तरंग एवं बहिरंग जीवनपरिवेश और जीवन–दर्शनतथा (iii) इतिहास–दर्शन विषयक तोल्स्तोय के विचारों को निरूपित करने वाले निबन्धों की एक श्रृंखला। इनके सहायक पहलुओं के रूप में परिवारविवाहस्त्रियों की स्थितिकुलीनों के निस्सारजनविमुखपाखण्डपूर्ण जीवन आदि पर तोल्स्तोय के विचार और मौजूद स्थिति की प्रखर आलोचना भी कहानी के साथ गुँथी–बुनी प्रस्तुत होती चलती है। विस्तृत ऐतिहासिक विवरण और मनोवैज्ञानिक गहराइयों के साथ ही इतिहास–दर्शन विषयक अपने विचारों की निबन्धात्मक प्रस्तुति को जिस दक्षता के साथ उपन्यास में पिरोया गया हैवह अद्वितीय और विस्मित कर देने वाला है।

उपन्यास के ऐतिहासिक घटना–क्रम का ढाँचा 1805 का अभियानउसकी परिणति के तौर पर ऑस्टरलित्ज के युद्ध में नेपोलियन की विजय और फिर 1812 में रूस पर नेपोलियन का आक्रमण है। मान्य धारणा के विरुद्धतोल्स्तोय ने नेपोलियन को एक अप्रभावीउन्मादी होने की हद तक अहम्मन्य और विदूषक के रूप में तथा जार अलेक्सान्द्र प्रथम को एक मुहावरेबाज के रूप में चित्रित किया है जिसको हरदम यही चिन्ता सताती रहती है कि इतिहासकार उसे किस रूप में प्रस्तुत करेंगे। अतीत में अप्रतिष्ठा का शिकार हो चुकेप्रसिद्ध रूसी जनरल मिखाइल कुतुजोव को उन्होंने एक ऐसे धैर्यवान बुजुर्ग के रूप में चित्रित किया है जो मानवेच्छा और मानव–निर्मित योजनाओं की सीमाओं को समझता है। उपन्यास के युद्ध–दृश्य विशेष उल्लेखनीय हैं जिनमें मुठभेड़ों को विशुद्ध अराजकता के रूप में चित्रित किया गया है। जनरल ‘‘सभी आकस्मिक या सम्भाव्य घटनाओं के पूर्वानुमान’’ की कल्पना कर सकते हैंलेकिन युद्ध वास्तव में ‘‘करोड़ों विविध इत्तफाकों’’ का नतीजा होता हैजिसका फैसला ऐन वक्त परऐसी परिस्थितियों द्वारा होता है जिनका पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता। तोल्स्तोय की मान्यता थी कि जीवन की ही तरह युद्ध में भीकिसी प्रणालीव्यवस्था या मॉडल को लागू करना मानव–व्यवहार की अनगिन जटिलताओं का लेखा–जोखा तैयार करने जैसा काम होगा जो असम्भव है।

उपन्यास के दूसरे अर्द्धांश से इतिहास–दर्शन विषयक तोल्स्तोय के जिन निबन्धों की बीच–बीच में पिरोई गई कड़ियों की शुरुआत होती हैउनमें भी इतिहास के सामान्य नियमों को सूत्रबद्ध करने की कोशिशों का वे मजाक उड़ाते हैं और सभी ऐतिहासिक विवरणों के अविवेकी सामान्यीकरणों के रूप में प्रस्तुत अभिधारणाओं को खारिज करते हैं। तोल्स्तोय के विचार सेयुद्ध की ही तरह इतिहास भी मूलत:आकस्मिकता का उत्पाद हैइसकी कोई दिशा नहीं होतीकोई ‘पैटर्न’ नहीं होता। ऐतिहासिक घटनाओं के कारणों में अनन्त वैविध्य होता है और वे चिरन्तन अज्ञेय होते हैं और इसलिएअतीत की व्याख्या का दावा करने वाला ऐतिहासिक लेखन अनिवार्यत: उसका मिथ्याकरण करता है। ऐतिहासिक आख्यानों की आकृति–संरचना घटनाओं की वास्तविक प्रक्रिया को नहींबल्कि साहित्यिक मानदण्डों को परावर्तित करती है। तोल्स्तोय के इतिहास–विषयक इन ‘‘निबन्धों’’ के अनुसारइतिहासकार इसी से निकटता से जुड़ी अनेकों गलतियाँ करते हैं। प्राय: वे मानकर चलते हैं कि इतिहास का निर्माण महान लोगों के विचारों और योजनाओं के अनुसार होता हैचाहे वे सेनापति होंराजनीतिक नेता हों या बुद्धिजीवी होंऔर यह कि बड़े निर्णयों के लिए स्थिति पैदा करने वाले नाटकीय क्षणों द्वारा इसकी दिशा तय होती है। जबकि इतिहास ऐसे आम लोगों के असंख्य छोटे–छोटे निर्णयों के कुल योग द्वारा निर्मित होता है जिनके क्रियाकलाप इतने उल्लेखनीय नहीं होते कि दस्तावेजों में दर्ज हो सकें। सामान्य की प्रभावोत्पादकता और प्रणाली–निर्माण की निरर्थकता में तोल्स्तोय के इस विश्वास ने उन्हें अपने समय के तमाम क्रान्तिकारी जनवादी विचारकों के खिलाफ खड़ा कर दिया। एक ओर इतिहास–निर्माण में सामान्य जन की भूमिका का प्रतिपादन और उसकी परिणतियों के किसी सामान्य समीकरण की तलाश तथा दूसरी ओरइतिहास के किसी भी आम नियम को सचेतन सैद्धान्तिक धरातल पर खारिज करना-यह भी तोल्स्तोय के उस मूल दार्शनिक अन्तरविरोध की ही इतिहास–दर्शन के धरातल पर अभिव्यक्ति है जिसका उल्लेख हम पूर्व में कर चुके हैं।

समग्रता मेंकहा जा सकता है कि स्वतंत्रता और आवश्यकता के बारे मेंतथा इतिहास की चालक शक्ति के बारे में तोल्स्तोय के विचार सारत: भाग्यवादी या दैवाधीनवादी हैं। स्वतंत्रता को वे तर्कणा से स्वतंत्र एक सहजवृत्तिक जीवन–शक्ति के रूप में देखते हैं। लेकिन इसके साथ हीवे जीवन की प्रक्रियाओं के बोधव्याख्या और विशदीकरण के लिए सतत् चेष्टारत रहते हैं। वे आवश्यकता और स्वतंत्रता के द्वंद्वात्मक अन्तर्सम्बन्धों की पड़ताल करते हैं तथा असंख्य व्यक्तियों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्तियों का सामान्यीकरण करते हैं। इन अर्थ–सन्दर्भों मेंवे अपने समकालीन सुप्रसिद्ध इतिहासकार ए. तियेर से (और त्येरीमिन्ये और गिज़ो जैसे पुन:स्थापनकाल के अन्य फ्रांसीसी इतिहासकारों से भी) आगे थे। वर्ग संघर्ष के ऐतिहासिक यथार्थ को स्वीकारते हुए भी तियेर अपवाद व्यक्तियों की कथित तौर पर स्वतंत्र कार्रवाइयों को इतिहास की चालक शक्ति मानते थे।

तोल्स्तोय के सूत्रबद्ध इतिहास–दर्शन से उनका कलात्मक व्यवहार अलग है। यदि इतिहास–विकास के कुछ व्यापक सामान्य नियम नहीं होते तो उनके पात्रों द्वारा न तो जीवन के अर्थ के तलाश की चेतना का कोई अर्थ होतान ही सामाजिक–नैतिक आचरण के किसी आम नियम की जरूरत होती और न ही तोल्स्तोय के उपन्यासों में समकालीन जीवन के समस्त अन्तरविरोधों का सटीक परावर्तन ही सम्भव हो पाता। तोल्स्तोय के कलात्मक प्रयोग स्वयं यहाँ उनके सचेतन इतिहास–दर्शन के विरुद्ध जा खड़े होते हैं। जो सामने आता है वह इतिहास के नियमों की विजय है और यथार्थवाद की भी विजय है।

युद्ध और शान्ति तोल्स्तोय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करता है। राष्ट्रीय–सामुदायिक ऐक्य की भावना के साथ ही उनका ‘यूटोपियावाद’ भी उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ के भूस्वामी कुलीन परिवारों के जीवन की पुनर्रचना में स्पष्ट है। वे सेण्ट पीटर्सबुर्ग के दरबार और हाई सोसाइटी के लोगों के मिथ्याभासी जीवन और राष्ट्र की कठिन परीक्षा की घड़ी में आम जन से उनके कटाव को रूसी समाज के संकट का मुख्य कारण मानते हैं। दूसरी ओरआम लोगों के तात्विक जीवन के एक अंग के तौर पर उन्होंने रोस्तोव की देशभक्ति को चित्रित किया है। ‘युद्ध और शान्ति’ में तोल्स्तोय व्यक्ति के रूप में मनुष्य के आत्मचेतस् होने की पहली मंजिल वर्गजाति और सामाजिक मण्डलियों से उसका आत्म–विमोचन मानते हैंजैसा कि दरबार और शेरर की बैठक के प्रति अन्द्रेई बोल्कोंस्की और पियेर बेजुखोव की उदासीनता के जरिए दिखलाया गया है। मनुष्य के आत्मचेतस् होने की दूसरी मंजिल वह होती है जब वह अपनी वैयक्तिक चेतना कोव्यक्ति से परेव्यापकतर विश्व के साथ एक कर देता हैआम जन के सत्य के साथ अभिन्न हो जाता हैउसे आत्मसात कर लेता है। बोल्कोंस्की और बेजुखोव की आध्यात्मिक खोजें अन्तरविरोधों से भरपूर हैंलेकिन दोनों नायक अपनी अहम्मन्यता और वर्ग–पार्थक्य को तोड़ने की ओर आगे बढ़ते हैं और गर्वपूर्ण मनोगतता से उबरकर अन्यों के साथऔर सामान्य जनता के साथअपनी सम्पृक्तता के अहसास की दिशा में विकसित होते हैं। ‘आन्ना कारेनिना’ के पात्र लेविन और ‘पुनरुत्थान’ के नेख्लुदोव के साथ भी तोल्स्तोय ने यही होते हुए दिखलाया है।

युद्ध और शान्ति’ में तोल्स्तोय ने ‘‘देशभक्ति की गुप्त ऊष्मा’’ को राष्ट्रीय रूसी अभिलाक्षणिकता के रूप में रेखांकित करते हुएआम सैनिकों के साहसविनम्र आत्मसम्मान और न्याय में मौन–अविचल आस्था का प्रभावी चित्रण किया है। जिन ऐतिहासिक चरित्रों को तोल्स्तोय ने कलात्मक स्वतंत्रता के साथ चित्रित किया हैउनका उपन्यास में केन्द्रीय स्थान नहीं है। केन्द्र में तोल्स्तोय की दार्शनिक चिन्ताओं–खोजों के निमित्त–पात्र हैं या फिर उन आम जनों के प्रतिनिधि चरित्र हैं जिन्हें तोल्स्तोय किसी राष्ट्र के नियति–निर्धारक और भाग्य–विधाता मानते हैं।

चरित्रों के जटिल अन्तर्सम्बन्धों के विकास के विस्तृतप्रभावशाली निरूपण के साथ ही रूसी भूदृश्य का अतुलनीय चित्रण ‘युद्ध और शान्ति’ की महाकाव्यात्मक शैली की विशिष्टता है। क्लासिकी महाकाव्य के आधार के रूप में काम करने वालीभाग्य और भवितव्य की अवधारणाओं की जगह तोल्स्तोय ने स्वत:स्फूर्त गति और जीवन के प्रवाह की अवधारणाओं को स्थापित किया है। नायक के परम्परागत विचार को तोल्स्तोय अस्वीकार करते हैं : उनका नायक स्वयं जीवन हैव्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों हीएक सजीव ‘‘भीड़।’’ वे जीवन के विमन्द प्रवाह काइसकी खुशियों और दुखों–उदासियों काजन्मप्यार और मृत्यु के शाश्वत क्षणों का तथा जीवन के सतत् पुनर्नवा होते रहने का आख्यान प्रस्तुत करते हैं।

युद्ध और शान्ति’ में जीवन की बाह्य घटनाओं की अपेक्षा मनुष्य के आन्तरिक जीवन पर अधिक जोर है। तोल्स्तोय के नायक लगातार जटिल अन्तर्संघर्षोंअप्रत्याशित मोहभंगों और अन्वेषणों तथा नई अर्न्दृष्टियों और नई शंकाओं से गुजरते रहते हैं। लेखक सत्य और न्याय के लिए संघर्ष पर आधारितसतत प्रवहमान मनस्तात्विक प्रक्रिया काएक तरह का विभ्रम रचता है। जीवन के जड़त्वएक नकारात्मक परिवेश के लोकाचार और आत्म–पराजय की क्षणिक मन:स्थितियों के बावजूदअन्वेषण की प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती है।

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आधुनिक इतिहास में यदि किसी विचारक-लेखक की ख्याति उसकी ज़िन्दगी में ही पूरी दुनिया में फैल चुकी थी और जीते-जी ही यदि वह एक मिथक बन गया था, तो वे निस्सन्देह लेव तोल्स्तोय ही थे।
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के साहित्यिक परिदृश्य पर जिस तरह बाल्ज़ाक छाये हुए थे, उसी तरह उत्तरार्द्ध के साहित्यिक परिदृश्य पर तोल्स्तोय का प्रभाव-साम्राज्य फैला हुआ था। मानव जीवन की समस्त त्रासदियों-विडम्बनाओं का तर्कपरक, इतिहाससंगत और वस्तुगत निरूपण और व्याख्या करते-करते तोल्स्तोय हालाँकि ऐतिहासिक विकृतियों से मुक्त एक "सच्चे" ईसाई धर्म में, और आत्म-परिष्करण के जरिए आधुनिक सभ्यता की सभी बुराइयों का समाधान प्रस्तुत करते हैं, लेकिन कलात्मक-दार्शनिक चिन्तन के इस अन्तरविरोध के बावजूद वे, मुख्य पहलू की दृष्टि से, एक महान मानवतावादी चिन्तक और महान यथार्थवादी कलाकार थे। अपने ‘लेजिटिमिस्ट' राजनीतिक विचारों के बावजूद बाल्ज़ाक ने ह्रासमान वर्गों की नियति और “भविष्य के वास्तविक लोगों" की स्थिति को अपनी रचनाओं में दर्शाया जिसे फ्रेडरिक एंगेल्स ने “यथार्थवाद की सबसे महती विजयों में से एक, प्रिय बाल्ज़ाक के भव्यतम गुणों में से एक” बताया था। ठीक इसी तरह, तोल्स्तोय ने अपने देशकाल के यथार्थ का जितने सजीव-सटीक ढंग से, और उत्पीड़ित-दमित आम आबादी के प्रति जिस गहरे सरोकार के साथ, अपनी कृतियों में कलात्मक पुनर्सृजन किया, उसका प्रभाव पाठक के मन-मस्तिष्क पर छा जाता है और तोल्स्तोय स्वयं अपने द्वारा प्रस्तुत धार्मिक यूटोपियाई समाधान से इतर समाधान के बारे में सोचने के लिए पाठक को प्रेरित कर देते हैं। दरअसल, जैसाकि लेनिन ने इंगित किया था, तोल्स्तोय के अन्तरविरोध तत्कालीन रूसी समाज के अन्तरविरोधों को प्रतिबिम्बित कर रहे थे और जब संघर्षों ने जनता की चेतना को उन्नत कर दिया तो तोल्स्तोय की कृतियों को पढ़कर उसने वस्तुतः अपनी कमजोरियों के बारे में जानना सीख लिया। आम तौर पर, तोल्स्तोय को उनके दो वृहद और महान उपन्यासों-'युद्ध और शान्ति' तथा 'आन्ना कारेनिना' के लिए जाना जाता है। इनकी गणना निर्विवाद रूप से, अब तक लिखे गये दुनिया के सर्वोत्कृष्ट उपन्यासों में की जाती है। कुछ लोग उनके तीसरे प्रसिद्ध उपन्यास 'पुनरुत्थान' को भी इसी कोटि में शामिल करते हैं। उनकी एक और चर्चित कृति 'इवान इलिच की मौत' की गणना उपन्यासिका के सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में की जाती है। अपने अन्तिम तीस वर्षों के दौरान एक धार्मिक और नैतिक शिक्षक के रूप में उन्हें विश्वस्तरीय ख्याति मिली। बुराई का प्रतिरोध न करने के उनके सिद्धान्त का गाँधी पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। दुनिया आज तोल्स्तोय की धार्मिक मान्यताओं को भुला चुकी है, लेकिन साहित्यकार तोल्स्तोय की ख्याति आज भी अक्षुण्ण है और विश्व - साहित्य की क्लासिकी सम्पदा में अद्वितीय अभिवृद्धि करने वाले महान साहित्य सर्जक के रूप में उन्हें शताब्दियों बाद ही नहीं बल्कि सहस्राब्दियों बाद भी याद किया जायेगा।
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तोल्स्तोय के निधन के बाद लिखे गये अपने लेख में लेनिन ने लिखा था कि तोल्स्तोय “इतनी अधिक संख्या में महान समस्याओं को उठाने में सफल रहे और कलात्मक शक्ति की ऐसी ऊँचाइयों तक ऊपर उठने में सफल रहे कि उनका कृतित्व विश्व साहित्य के महानतम की कोटि में शामिल हो गया।"
तोल्स्तोय ने यूरोपीय मानवतावाद और विश्व साहित्य में यथार्थवादी धारा के विकास को बहुत बड़े पैमाने पर प्रभावित किया। रोम्या रोलॉ, फ्रांस्वा मौरियाक, रोझा मारतन दि गार ( फ्रांस), अर्नेस्ट हेमिंग्वे, थॉमस वुल्फ़ (अमेरिका), जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, जॉन गाल्सवर्दी (ब्रिटेन), थॉमस मान, आना ज़ेगर्स (जर्मनी), यूहान ओग्यूस्त स्ट्रिण्डबर्ग (स्वीडन), रेनर मारिया रिल्के (आस्ट्रिया), लाओ श (चीन) और तोकुतोमी रोका (जापान) आदि दर्जनों प्रसिद्ध लेखकों को तोल्स्तोय ने विचार और कलात्मक यथार्थवादी शैली के धरातल पर प्रभावित किया।
तोल्स्तोय का कृतित्व रूस में और पूरी दुनिया में, यथार्थवाद के विकास की एक नयी मंज़िल का द्योतक है। यह उन्नीसवीं शताब्दी के परम्परागत उपन्यास और बीसवीं शताब्दी के साहित्य को जोड़ने वाली कड़ी है। तोल्स्तोय के यथार्थवाद की अद्वितीय स्वयंस्फूर्तता और प्रत्यक्षता सामाजिक अन्तरविरोधों को उद्घाटित करने वाले कुशाग्र उपकरणों का काम करती हैं। तत्काल प्रभावित करने वाली भावनात्मक अपील और जीवन के रग- रेशे की सजीव प्रस्तुति के साथ सूक्ष्म-सटीक, अन्तर्भेदी बौद्धिक शक्ति और गम्भीर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का सम्मिलन तोल्स्तोय की कला की अभिलाक्षणिक विशिष्टता है। विश्व और मानव जीवन को संचालित करने वाले नियमों की समाकलित समझ तक पहुँचने के लिए तोल्स्तोय का सप्राण- ओजस्वी यथार्थवाद विश्लेषण और संश्लेषण में कुशल द्वन्द्वात्मक समन्वय स्थापित करता है।
तोल्स्तीय के यथार्थवाद ने रूसी राष्ट्रीय परम्पराओं से खाद-पानी लिया था और फिर उसे समृद्ध करते हुए अपना कर्ज मय ब्याज के उतार दिया था। पर राष्ट्रीय से कहीं अधिक इसका दायरा और स्कोप सार्वभौमिक है।
स्थापित विचारों और पूर्वाग्रहों में तोल्स्तोय को कोई विश्वास नहीं था। कुछ भी उनके लिए सन्देह से परे नहीं था, प्रश्नोपरि कुछ भी नहीं था। उन्होंने जीवन के हर पहलू की, नये सिरे से और अपने ढंग से जाँच-पड़ताल की। हर तरह के साहित्यिक 'स्टीरियोटाइपों' को अस्वीकार करते हुए उन्होंने जो खुद देखा, समझा और सहजानुभूत बोध से अर्जित किया उसी को रचना के यथार्थ में ढाला। लोगों के आन्तरिक जीवन, स्वप्नों- आकांक्षाओं और अन्तरात्मा की टीसों को जान लेने की उनकी क्षमता असाधारण थी। दैनन्दिन जीवन और इतिहास से लिये गये दृश्यों की वैविध्यमय पुनर्रचना के मामले में वे अद्वितीय थे।

यथार्थवाद की धारा को इक्कीसवीं सदी में भी आगे जाने के लिए तोल्स्तोय से अभी काफी कुछ लेना है और पहले का भी उनका काफी कर्ज है जो चुकाना है। समकालीन जीवन के संश्लिष्ट यथार्थ की वस्तुगत प्रस्तुति के द्वारा ही, भविष्य और वर्तमान के वास्तविक पात्रों को उनके वास्तविक स्थान पर दिखाकर ही, विगत के कर्ज को उतारा जा सकता है।


ऊपर दिया गया संक्षिप्‍त परिचय कात्यायनी, सत्यम द्वारा लिखित इस विस्‍तृत परिचय से लिया गया है जिसका शीर्षक है - तोल्स्तोय : रूसी क्रान्ति के दर्पण

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