लेव तोल्स्तोय के महान उपन्यास ‘युद्ध और शान्ति’ की पीडीएफ फाइल PDF File of Great Novel of Leo Tolstoy - War and Peace
लेव तोल्स्तोय के महान उपन्यास ‘युद्ध और शान्ति’ की पीडीएफ फाइल PDF File of Great Novel of Leo Tolstoy - War and Peace
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‘युद्ध और शान्ति’ के चार खण्डों का लेखन तोल्स्तोय ने 1863 से 1869 के बीच किया। 1865 में इसके प्रकाशन की शुरुआत हुई।
‘युद्ध और शान्ति’ विश्व का महानतम उपन्यास ही नहीं बल्कि साहित्यिक इतिहास की एक परिघटना है। ऐसी संजटिल, ऐतिहासिक–मनोवैज्ञानिक बहुसंस्तरीय महाकाव्यात्मक कलात्मक संरचना के बारे में, एक हद तक सरलीकरण का खतरा मोल लेते हुए कहा जा सकता है कि इसमें तीन तरह की सामग्री का दक्ष संश्लेषण किया गया है-
(i) नेपोलियानिक युद्धों और रूसी जनता के एकजुट दुर्द्धर्ष प्रतिरोध का ब्योरा (ii) औपन्यासिक चरित्रों का अन्तरंग एवं बहिरंग जीवन, परिवेश और जीवन–दर्शन, तथा (iii) इतिहास–दर्शन विषयक तोल्स्तोय के विचारों को निरूपित करने वाले निबन्धों की एक श्रृंखला। इनके सहायक पहलुओं के रूप में परिवार, विवाह, स्त्रियों की स्थिति, कुलीनों के निस्सार, जनविमुख, पाखण्डपूर्ण जीवन आदि पर तोल्स्तोय के विचार और मौजूद स्थिति की प्रखर आलोचना भी कहानी के साथ गुँथी–बुनी प्रस्तुत होती चलती है। विस्तृत ऐतिहासिक विवरण और मनोवैज्ञानिक गहराइयों के साथ ही इतिहास–दर्शन विषयक अपने विचारों की निबन्धात्मक प्रस्तुति को जिस दक्षता के साथ उपन्यास में पिरोया गया है, वह अद्वितीय और विस्मित कर देने वाला है।
उपन्यास के ऐतिहासिक घटना–क्रम का ढाँचा 1805 का अभियान, उसकी परिणति के तौर पर ऑस्टरलित्ज के युद्ध में नेपोलियन की विजय और फिर 1812 में रूस पर नेपोलियन का आक्रमण है। मान्य धारणा के विरुद्ध, तोल्स्तोय ने नेपोलियन को एक अप्रभावी, उन्मादी होने की हद तक अहम्मन्य और विदूषक के रूप में तथा जार अलेक्सान्द्र प्रथम को एक मुहावरेबाज के रूप में चित्रित किया है जिसको हरदम यही चिन्ता सताती रहती है कि इतिहासकार उसे किस रूप में प्रस्तुत करेंगे। अतीत में अप्रतिष्ठा का शिकार हो चुके, प्रसिद्ध रूसी जनरल मिखाइल कुतुजोव को उन्होंने एक ऐसे धैर्यवान बुजुर्ग के रूप में चित्रित किया है जो मानवेच्छा और मानव–निर्मित योजनाओं की सीमाओं को समझता है। उपन्यास के युद्ध–दृश्य विशेष उल्लेखनीय हैं जिनमें मुठभेड़ों को विशुद्ध अराजकता के रूप में चित्रित किया गया है। जनरल ‘‘सभी आकस्मिक या सम्भाव्य घटनाओं के पूर्वानुमान’’ की कल्पना कर सकते हैं, लेकिन युद्ध वास्तव में ‘‘करोड़ों विविध इत्तफाकों’’ का नतीजा होता है, जिसका फैसला ऐन वक्त पर, ऐसी परिस्थितियों द्वारा होता है जिनका पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता। तोल्स्तोय की मान्यता थी कि जीवन की ही तरह युद्ध में भी, किसी प्रणाली, व्यवस्था या मॉडल को लागू करना मानव–व्यवहार की अनगिन जटिलताओं का लेखा–जोखा तैयार करने जैसा काम होगा जो असम्भव है।
उपन्यास के दूसरे अर्द्धांश से इतिहास–दर्शन विषयक तोल्स्तोय के जिन निबन्धों की बीच–बीच में पिरोई गई कड़ियों की शुरुआत होती है, उनमें भी इतिहास के सामान्य नियमों को सूत्रबद्ध करने की कोशिशों का वे मजाक उड़ाते हैं और सभी ऐतिहासिक विवरणों के अविवेकी सामान्यीकरणों के रूप में प्रस्तुत अभिधारणाओं को खारिज करते हैं। तोल्स्तोय के विचार से, युद्ध की ही तरह इतिहास भी मूलत:, आकस्मिकता का उत्पाद है, इसकी कोई दिशा नहीं होती, कोई ‘पैटर्न’ नहीं होता। ऐतिहासिक घटनाओं के कारणों में अनन्त वैविध्य होता है और वे चिरन्तन अज्ञेय होते हैं और इसलिए, अतीत की व्याख्या का दावा करने वाला ऐतिहासिक लेखन अनिवार्यत: उसका मिथ्याकरण करता है। ऐतिहासिक आख्यानों की आकृति–संरचना घटनाओं की वास्तविक प्रक्रिया को नहीं, बल्कि साहित्यिक मानदण्डों को परावर्तित करती है। तोल्स्तोय के इतिहास–विषयक इन ‘‘निबन्धों’’ के अनुसार, इतिहासकार इसी से निकटता से जुड़ी अनेकों गलतियाँ करते हैं। प्राय: वे मानकर चलते हैं कि इतिहास का निर्माण महान लोगों के विचारों और योजनाओं के अनुसार होता है, चाहे वे सेनापति हों, राजनीतिक नेता हों या बुद्धिजीवी हों, और यह कि बड़े निर्णयों के लिए स्थिति पैदा करने वाले नाटकीय क्षणों द्वारा इसकी दिशा तय होती है। जबकि इतिहास ऐसे आम लोगों के असंख्य छोटे–छोटे निर्णयों के कुल योग द्वारा निर्मित होता है जिनके क्रियाकलाप इतने उल्लेखनीय नहीं होते कि दस्तावेजों में दर्ज हो सकें। सामान्य की प्रभावोत्पादकता और प्रणाली–निर्माण की निरर्थकता में तोल्स्तोय के इस विश्वास ने उन्हें अपने समय के तमाम क्रान्तिकारी जनवादी विचारकों के खिलाफ खड़ा कर दिया। एक ओर इतिहास–निर्माण में सामान्य जन की भूमिका का प्रतिपादन और उसकी परिणतियों के किसी सामान्य समीकरण की तलाश तथा दूसरी ओर, इतिहास के किसी भी आम नियम को सचेतन सैद्धान्तिक धरातल पर खारिज करना-यह भी तोल्स्तोय के उस मूल दार्शनिक अन्तरविरोध की ही इतिहास–दर्शन के धरातल पर अभिव्यक्ति है जिसका उल्लेख हम पूर्व में कर चुके हैं।
समग्रता में, कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता और आवश्यकता के बारे में, तथा इतिहास की चालक शक्ति के बारे में तोल्स्तोय के विचार सारत: भाग्यवादी या दैवाधीनवादी हैं। स्वतंत्रता को वे तर्कणा से स्वतंत्र एक सहजवृत्तिक जीवन–शक्ति के रूप में देखते हैं। लेकिन इसके साथ ही, वे जीवन की प्रक्रियाओं के बोध, व्याख्या और विशदीकरण के लिए सतत् चेष्टारत रहते हैं। वे आवश्यकता और स्वतंत्रता के द्वंद्वात्मक अन्तर्सम्बन्धों की पड़ताल करते हैं तथा असंख्य व्यक्तियों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्तियों का सामान्यीकरण करते हैं। इन अर्थ–सन्दर्भों में, वे अपने समकालीन सुप्रसिद्ध इतिहासकार ए. तियेर से (और त्येरी, मिन्ये और गिज़ो जैसे पुन:स्थापनकाल के अन्य फ्रांसीसी इतिहासकारों से भी) आगे थे। वर्ग संघर्ष के ऐतिहासिक यथार्थ को स्वीकारते हुए भी तियेर अपवाद व्यक्तियों की कथित तौर पर स्वतंत्र कार्रवाइयों को इतिहास की चालक शक्ति मानते थे।
तोल्स्तोय के सूत्रबद्ध इतिहास–दर्शन से उनका कलात्मक व्यवहार अलग है। यदि इतिहास–विकास के कुछ व्यापक सामान्य नियम नहीं होते तो उनके पात्रों द्वारा न तो जीवन के अर्थ के तलाश की चेतना का कोई अर्थ होता, न ही सामाजिक–नैतिक आचरण के किसी आम नियम की जरूरत होती और न ही तोल्स्तोय के उपन्यासों में समकालीन जीवन के समस्त अन्तरविरोधों का सटीक परावर्तन ही सम्भव हो पाता। तोल्स्तोय के कलात्मक प्रयोग स्वयं यहाँ उनके सचेतन इतिहास–दर्शन के विरुद्ध जा खड़े होते हैं। जो सामने आता है वह इतिहास के नियमों की विजय है और यथार्थवाद की भी विजय है।
युद्ध और शान्ति तोल्स्तोय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करता है। राष्ट्रीय–सामुदायिक ऐक्य की भावना के साथ ही उनका ‘यूटोपियावाद’ भी उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ के भूस्वामी कुलीन परिवारों के जीवन की पुनर्रचना में स्पष्ट है। वे सेण्ट पीटर्सबुर्ग के दरबार और हाई सोसाइटी के लोगों के मिथ्याभासी जीवन और राष्ट्र की कठिन परीक्षा की घड़ी में आम जन से उनके कटाव को रूसी समाज के संकट का मुख्य कारण मानते हैं। दूसरी ओर, आम लोगों के तात्विक जीवन के एक अंग के तौर पर उन्होंने रोस्तोव की देशभक्ति को चित्रित किया है। ‘युद्ध और शान्ति’ में तोल्स्तोय व्यक्ति के रूप में मनुष्य के आत्मचेतस् होने की पहली मंजिल वर्ग, जाति और सामाजिक मण्डलियों से उसका आत्म–विमोचन मानते हैं, जैसा कि दरबार और शेरर की बैठक के प्रति अन्द्रेई बोल्कोंस्की और पियेर बेजुखोव की उदासीनता के जरिए दिखलाया गया है। मनुष्य के आत्मचेतस् होने की दूसरी मंजिल वह होती है जब वह अपनी वैयक्तिक चेतना को, व्यक्ति से परे, व्यापकतर विश्व के साथ एक कर देता है, आम जन के सत्य के साथ अभिन्न हो जाता है, उसे आत्मसात कर लेता है। बोल्कोंस्की और बेजुखोव की आध्यात्मिक खोजें अन्तरविरोधों से भरपूर हैं, लेकिन दोनों नायक अपनी अहम्मन्यता और वर्ग–पार्थक्य को तोड़ने की ओर आगे बढ़ते हैं और गर्वपूर्ण मनोगतता से उबरकर अन्यों के साथ, और सामान्य जनता के साथ, अपनी सम्पृक्तता के अहसास की दिशा में विकसित होते हैं। ‘आन्ना कारेनिना’ के पात्र लेविन और ‘पुनरुत्थान’ के नेख्लुदोव के साथ भी तोल्स्तोय ने यही होते हुए दिखलाया है।
‘युद्ध और शान्ति’ में तोल्स्तोय ने ‘‘देशभक्ति की गुप्त ऊष्मा’’ को राष्ट्रीय रूसी अभिलाक्षणिकता के रूप में रेखांकित करते हुए, आम सैनिकों के साहस, विनम्र आत्मसम्मान और न्याय में मौन–अविचल आस्था का प्रभावी चित्रण किया है। जिन ऐतिहासिक चरित्रों को तोल्स्तोय ने कलात्मक स्वतंत्रता के साथ चित्रित किया है, उनका उपन्यास में केन्द्रीय स्थान नहीं है। केन्द्र में तोल्स्तोय की दार्शनिक चिन्ताओं–खोजों के निमित्त–पात्र हैं या फिर उन आम जनों के प्रतिनिधि चरित्र हैं जिन्हें तोल्स्तोय किसी राष्ट्र के नियति–निर्धारक और भाग्य–विधाता मानते हैं।
चरित्रों के जटिल अन्तर्सम्बन्धों के विकास के विस्तृत, प्रभावशाली निरूपण के साथ ही रूसी भूदृश्य का अतुलनीय चित्रण ‘युद्ध और शान्ति’ की महाकाव्यात्मक शैली की विशिष्टता है। क्लासिकी महाकाव्य के आधार के रूप में काम करने वाली, भाग्य और भवितव्य की अवधारणाओं की जगह तोल्स्तोय ने स्वत:स्फूर्त गति और जीवन के प्रवाह की अवधारणाओं को स्थापित किया है। नायक के परम्परागत विचार को तोल्स्तोय अस्वीकार करते हैं : उनका नायक स्वयं जीवन है, व्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों ही, एक सजीव ‘‘भीड़।’’ वे जीवन के विमन्द प्रवाह का, इसकी खुशियों और दुखों–उदासियों का, जन्म, प्यार और मृत्यु के शाश्वत क्षणों का तथा जीवन के सतत् पुनर्नवा होते रहने का आख्यान प्रस्तुत करते हैं।
‘युद्ध और शान्ति’ में जीवन की बाह्य घटनाओं की अपेक्षा मनुष्य के आन्तरिक जीवन पर अधिक जोर है। तोल्स्तोय के नायक लगातार जटिल अन्तर्संघर्षों, अप्रत्याशित मोहभंगों और अन्वेषणों तथा नई अर्न्दृष्टियों और नई शंकाओं से गुजरते रहते हैं। लेखक सत्य और न्याय के लिए संघर्ष पर आधारित, सतत प्रवहमान मनस्तात्विक प्रक्रिया का, एक तरह का विभ्रम रचता है। जीवन के जड़त्व, एक नकारात्मक परिवेश के लोकाचार और आत्म–पराजय की क्षणिक मन:स्थितियों के बावजूद, अन्वेषण की प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती है।
यथार्थवाद की धारा को इक्कीसवीं सदी में भी आगे जाने के लिए तोल्स्तोय से अभी काफी कुछ लेना है और पहले का भी उनका काफी कर्ज है जो चुकाना है। समकालीन जीवन के संश्लिष्ट यथार्थ की वस्तुगत प्रस्तुति के द्वारा ही, भविष्य और वर्तमान के वास्तविक पात्रों को उनके वास्तविक स्थान पर दिखाकर ही, विगत के कर्ज को उतारा जा सकता है।
ऊपर दिया गया संक्षिप्त परिचय कात्यायनी, सत्यम द्वारा लिखित इस विस्तृत परिचय से लिया गया है जिसका शीर्षक है - तोल्स्तोय : रूसी क्रान्ति के दर्पण
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