फासीवाद पर दो बेहद प्रासंगिक कविताएं Two relevant poems on fascism


फासीवाद पर दो बेहद प्रासंगिक कविताएं

1. तुम्हें चुनना होगा (गौहर रजा) 

जिन्होंने नफरत फैलाई, कत्ल किए
और खुद खत्म हो गए,
नफरत से याद किए जाते हैं।
जिन्होंने मुहब्बत का सबक दिया और कदम बढ़ाए,
वो जिंदा हैं,
मुहब्बत से याद किए जाते हैं।
जिन्होंने सही वक्त का इंतज़ार किया
और शक करते रहे,
वे आखिर तक हाथ पर हाथ धरे बैठे थे,
शक के कमजोर किलों में क़ातिलों का इंतज़ार
उनकी किस्मत बन गया।
रास्ते अलग-अलग और साफ हैं।
तुम्हें चुनना होगा
नफरत, शक और मुहब्बत के बीच।
तुम्हारी आवाज़ बुलंद और साफ होनी चाहिए,
और कदम सही दिशा में।



2. एस.ए.* सैनिक का गीत (बेर्टोल्ट ब्रेष्ट)

भूख से बेहाल मैं सो गया

लिये पेट में दर्द।
कि तभी सुनाई पड़ी आवाज़ें
उठ, जर्मनी जाग!

फिर दिखी लोगों की भीड़ मार्च करते हुएः

थर्ड राइख़** की ओर, उन्हें कहते सुना मैंने।
मैंने सोचा मेरे पास जीने को कुछ है नहीं
तो मैं भी क्यों न चल दूँ इनके साथ।

और मार्च करते हुए मेरे साथ था शामिल

जो था उनमें सबसे मोटा
और जब मैं चिल्लाया ‘रोटी दो काम दो’
तो मोटा भी चिल्लाया।

टुकड़ी के नेता के पैरों पर थे बूट

जबकि मेरे पैर थे गीले
मगर हम दोनों मार्च कर रहे थे
कदम मिलाकर जोशीले।
मैंने सोचा बायाँ रास्ता ले जायेगा आगे
उसने कहा मैं था ग़लत
मैंने माना उसका आदेश
और आँखें मूँदे चलता रहा पीछे।

और जो थे भूख से कमज़ोर

पीले-ज़र्द चेहरे लिये चलते रहे
भरे पेटवालों से क़दम मिलाकर
थर्ड राइख़ की ओर।

अब मैं जानता हूँ वहाँ खड़ा है मेरा भाई

भूख ही है जो हमें जोड़ती है
जबकि मैं मार्च करता हूँ उनके साथ
जो दुश्मन हैं मेरे और मेरे भाई के भी।

और अब मर रहा है मेरा भाई

मेरे ही हाथों ने मारा उसे
गोकि जानता हूँ मैं कि गर कुचला गया है वो
तो नहीं बचूँगा मैं भी।


*एस.ए. – जर्मनी में नाज़ी पार्टी द्वारा खड़ी किये गये फासिस्ट बल का संक्षिप्त नाम। उग्र फासिस्ट प्रचार के ज़रिये इसमें काफ़ी संख्या में बेरोज़गार नौजवानों और मज़दूरों को भर्ती किया गया था। इसका मुख्य काम था यहूदियों और विरोधी पार्टियों, ख़ासकर कम्युनिस्टों पर हमले करना और आतंक फैलाना।
**थर्ड राइख़ – 1933 से 1945 के बीच नाज़ी पार्टी शासित जर्मनी को ही थर्ड राइख़ कहा जाता था।



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