कितना सच, कितना झूठ - मोदी के कारण 2100 कंपनियों ने 83 हजार करोड़ के कर्ज वापस कर दिये!!


कितना सच, कितना झूठ - मोदी के कारण 2100 कंपनियों ने 83 हजार करोड़ के कर्ज वापस कर दिये!! 
आधार से 57 हजार करोड़ और नोटबंदी से 3 लाख करोड़ की बचत के झूठ प्रचार के बाद अब मीडिया और व्हाट्सप्प पर भक्तों का एक नया शिगूफ़ा शुरू हुआ है कि मोदी के दिवालिया कानून वाले मास्टरस्ट्रोक से डरकर 2100 कंपनियों ने 83 हजार करोड़ के कर्ज वापस कर दिये हैं। इसमें टाटा द्वारा भूषण स्टील की खरीद से प्राप्त 35 हजार करोड़ और उत्तम गालवा के लिए मित्तल से प्राप्त 7 हजार करोड़ की विशेष चर्चा है।
यह इस गलत समझ पर आधारित है कि पहले कोई डूबा कर्ज वापस नहीं होता था, जबकि पहले भी कुछ मामलों में बैंक द्वारा बकाया ब्याज और मूल रकम में बड़ी छूट की राहत दिये जाने पर कर्जदार एकमुश्त समझौता (One Time Settlement) कर शेष रकम वापस करते आए हैं या दिवालिया कंपनी की बिक्री से कर्ज की रकम का एक हिस्सा वापस होने के मामले होते थे। भूषण स्टील का मामला लेते हैं - इस पर 56 हजार करोड़ का कर्ज था जिसमें ना जोड़ा गया कुछ सालों का ब्याज जोड़ दें तो यह रकम और भी बड़ी हो जाती है। अब टाटा को यह कंपनी 35 हजार करोड़ में पूर्ण कर्जमुक्त होकर मिल गई है - 25 हजार करोड़ या और ज्यादा का फायदा! साथ में लगा-लगाया इस्पात कारख़ाना! असल में जो हुआ है - टाटा को बैंकों से 25-30 हजार करोड़ रुपए की रियायत मिली है, और बैंक की इतनी रकम आखिर बट्टे खाते में चली गई। लेकिन इसमें दो और खास बाते हुईं:
1. भूषण वाले सिंघलों ने जो लूटा था वह उनके पास ही रह गया, उनकी संपत्ति कुर्क कर वसूली के बजाय। उन्होने जो निजी गारंटी दी थी, या कोई संपत्ति बैंक के पास गिरवी रखी थी, उसे बैंक ने छोड़ दिया, ना ही छोटे-मोटे कर्जदारों जैसे किसानों की तरह उन पर जुर्माना लगा या कैद की सजा हुई। छोटे कर्जदार का मामला होता तो बैंक निजी संपत्ति भी नीलाम करता - कर्जदार और जामिन दोनों की। अब वे मारे गए कर्ज से नया कारोबार खड़ा कर लेंगे और नए बैंक कर्ज लेंगे। 
2. टाटा जो पैसा जमा कर रहा है वह भी इन्हीं बैंकों से नया कर्ज लेकर - नए कर्ज से पुराने को चुकता दिखाया जा रहा है। 
असल में बैंकों द्वारा निजी पूँजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाले ये समझौते या सौदे पहले भी होते ही थे पर शीर्ष बैंक प्रबंधकों को भ्रष्टाचार-रिश्वतख़ोरी के मामले मे फँसने की आशंका लगी रहती थी। अब नए कानून में इन सौदों को करने में उच्च बैंक प्रबंधन को सताने वाला यह डर भी समाप्त कर दिया गया है तो अब ये और ज्यादा होने वाले हैं।
यह तय मानिए कि इन डूबे कर्जों की असली वसूली देश की आम जनता से ही की जा रही है - पेट्रोल-डीजल पर इतने बढ़े टैक्स हों, या जीएसटी के द्वारा अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि, या शिक्षा-स्वास्थ्य को महंगा करना, बैंकों द्वारा छोटे खाताधारकों पर नए-नए भारी शुल्क लगाना, या जनकल्याण कार्यक्रमों पर खर्च में कटौती - ये सब इन कर्जों की वसूली के असली स्रोत हैं जिनके बल पर कर्ज मार लेने वाले पूँजीपतियों को छूट और राहत दी जा रही है। मेहनतकश जनता से की गई इसी लूट से ही यह सरकार 4 साल में बैंकों को घाटे की भरपाई के नाम पर लगभग 3 लाख करोड़ की रकम दे चुकी है।
वर्ग विभाजित पूंजीवादी व्यवस्था में सरमायेदारों और गरीब लोगों के लिए अलग क़ानूनों, नियम-कायदों के भेद को भी समझना जरूरी है। छोटे कर्जदार की संपत्ति कुर्क होती है, मूल-ब्याज के साथ जुर्माना भी लगाया जाता है और कभी-कभी कैद भी, सरमायेदार को हर तरह से राहत दी जाती है ताकि वे अपना 'विकास' जारी रख सकें!

Comments

  1. आपको राइट आफ रकम की वसूली का बैंक का नियम पता नहीं,, ये रकमऋण खाते में दाल फिर इनकम में डाला जाता है ये बसूली भी हुई और अतिरिक्त इनकम
    भी।ये झूँठा प्रचार न करे,, मैं एक बैंकर के नाते सच लिख रहा हूँ।पार्टी विशेष की खातिर गलत न लिखें।

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