कविता - सारी कथाएँ तो फिर भी नहीं कही जातीं / शशि प्रकाश

कविता - सारी कथाएँ तो फिर भी नहीं कही जातीं

शशि प्रकाश

इतना अधिक आशावादी क्या होना

कि निराशाएँ कभी पास फटकें ही नहीं

और उदास हवाएँ आसपास से होकर

गुज़रने से सहम जायें।

आशा की ऐसी अलौकिक आभा लेकर भी

कोई क्या करेगा कि कोई दुखी उदास हृदय

ख़ुद को उसके सामने खोलकर रख देने में

सकुचा जाये।

जैसे कि इतना उबाऊ उल्लास लेकर भी

भला क्या करेंगे कि

अल्कोहल सने समवेत ठहाकों के बिना

शामें सूनी-सूनी सी लगने लगें।

*

आशावादी भाषण तब सबसे अधिक

खोखले और बनावटी लगते हैं

जब कुछ न कहने की ज़रूरत हो,

या हिचकता हुआ पास सरक आया हाथ

महज़ एक स्पर्श की माँग कर रहा हो।

गिरजाघर की वेदी पर जलती मोमबत्तियाँ

जितनी भी जगमग करती हों,

हर अगले दिन बुझी हुई मोमबत्तियों के झुण्ड से

अधिक उदास करने वाले दृश्य

बहुत कम होते हैं।

*

 

जीवन और भविष्य का आशावादी सिनेमा

पुदोव्किन के 'लिंकेज मोंताज' की तरह नहीं,

बल्कि आइजेंस्ताइन के 'कोलीज़न मोंताज'

की तरह होता है।

लेकिन सिर्फ़ इतना ही नहीं, उसमें

ज़रूरी होते हैं बहुत सारे मौन अन्तराल

और मद्धम गतियों के दृश्य

एक विशाल भूदृश्य के बीच,

विरुद्धों की एकता और टकराव को साधते हुए,

हो सके तो बीथोवेन का भी

अतिक्रमण करते हुए और

उपमाओं और प्रतीकों की

भोड़ी स्थूलताओं के साथ-साथ

'लिरिकल' होने के अतिरेक से भी बचते हुए।

भले ही ऐसा युगों बाद होता हो लेकिन कईबार

प्रत्यक्ष कथनों से दुनिया की सबसे मार्मिक और

गहरी कविताएँ बन जाया करती हैं

हालाँकि यह भी सच है कि पारदर्शिता के

विश्वसनीय आकर्षण के बावजूद

कविता में पारभासिता का रहस्य ही

हमें खींचता है और अज्ञात प्रदेशों की

यात्रा के लिए उकसाता है।

*

जीवन में अगर थोड़ी कविता हो द्वंद्वात्मक,

तो मायूसियों और उम्मीदों का टकराव

उन्नत धरातल की नयी काव्यात्मक और

दार्शनिक उम्मीदों को जन्म देता है

सच्ची कला और सच्चे जीवन में।

लेकिन कई बार ऐसा नहीं भी होता है

जैसे मानव इतिहास में भी प्रतिक्रियावादी

उत्क्रमण हुआ करते हैं

अल्पकालिक या दीर्घकालिक,

भले ही हमेशा के लिए नहीं।

*

अपने दुखों पर हमेशा बह निकलने को तैयार

और शोकसभाओं में सप्रयास बहाये जाने वाले

आँसुओं जितनी कुरूप और डरावनी चीज़ें

दुनिया में बहुत कम ही पायी जाती हैं।

दुनिया के सबसे अच्छे, मज़बूत और सुन्दर

लोगों की आँखों में सिर्फ़ जीवन और

कथाओं के मार्मिक प्रसंगों पर,

या किसी बच्चे की किसी मामूली सी चिन्ता

या मामूली से दुख पर आँसू

छलकते देखे गये है।

ऐसे लोग ही या तो दिल की अतल गहराइयों से

प्यार करते हैं,

या प्यार में सबसे अधिक दुख उठाते हैं,

या वांछित प्यार की प्रतीक्षा और खोज में

पूरा जीवन बिता देते हैं।

कुछ जीवन तो ऐसे होते ही हैं

जिनके नाट्य में ग्रीक त्रासदियाँ ख़ुद को

नये अवतार में ढालती हैं

कुण्डलाकार रास्ते से यात्रा करके

नये युग में पहुँचने के बाद।

वरना हेगेल बाबा की बात में से

अगर बात निकालें तो

इतिहास में उदात्तता भी अगर दुहराई जाये

तो वह प्रहसन ही होगी।

*

और जहाँ तक आँसुओं के छलकने के

कतिपय गम्भीर प्रसंगों की बात है,

उन सबके पीछे कुछ गहन-गोपन कथाएँ होती हैं

जो कभी प्रकाश में नहीं आतीं।

सारी कथाएँ तो कभी नहीं कही जाती हैं।

**





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