कहानी - वह मेरा दोस्त था / माइकल पिकार्डी Story - I Had a Black Man / Michael Picardie
कहानी - वह मेरा दोस्त था
माइकल पिकार्डी (अनुवाद - आनन्द स्वरूप वर्मा)
शहर लन्दन में वह बिल्कुल तनहा थी।
सुबह तकरीबन सात बजे उसने अपने ड्राइंग-रूम की खिड़की पर टँगे फूलदार
परदों को ऊपर उठाया। भोर की मटमैली रोशनी में उसने गौर किया -मुँह से निकलती साँस
बाहर आकर भाप की शक्ल अख्तियार कर रही थी।
एक बार फिर उसने खत को पढ़ा। वह पूरी तरह से जानती थी कि वह यानी
मार्था एक मामूली किस्म की लड़की है, जिसका चेहरा माँसल नहीं है, शरीर
दुबला है और जिसके पास अक्ल भी मामूली किस्म की है। खत में उसके जज्बातों को तरजीह
दी गयी थी और सच्चाई का बयान नहीं किया गया था, बल्कि दिली तौर
पर एक न हो पाने की मजबूरी का जिक्र था। वह उदास हो गयी।
उस रात वह अकेले प्यानो सुनने गयी थी। वह प्रोग्राम में शामिल थी,
पर
कुछ सुन नहीं पा रही थी। प्यानो बजाने वाले की थिरकती उंगलियों के पीछे उसे वे
शब्द दिखलाई दे रहे थे, जो पहली ही निगाह में होने वाले प्यार के सिलसिले में कुछ मायने रखते
हैं-मसलन खूबसूरती, नजाकत, रोमानियत या सूरज की रोशनी से भी तेज कुछ शब्द। उसे इन शब्दों से
नफरत हो रही थी-प्रोग्राम बोर कर रहा था।
उसे अपने बीते दिन याद आये। उसकी माँ गुजर चुकी थी और पिता चौहत्तर
के करीब पहुँच रहे थे। वह जब पैदा हुई थी, तभी वे लोग काफी बूढ़े हो चले थे। वह
एक ऐसी गुजरी हुई दास्तान थी, जिससे उसके पिता उपनिवेशों में लम्बे
अरसे तक नौकरी करने के बाद इंगलैंड की अपनी वापसी को खुशगवार करना चाहते थे।
बागवानी और पुस्तकों के उनके शौक में इजाफा करने वाली वह कोई चीज थी- गुलाब,
इमर्सन,
फौज
का इतिहास या मामूली-सी पेंशन के मानिन्द।
मार्था उस दिन काम पर नहीं गयी। दूसरे दिन भी नहीं। फोन पर उसने
दफ्तर इत्तिला कर दी कि उसे ठंड लग गयी है। बाद में उसकी एक सहेली हिल्दा मैनिंग का फोन आया था, जिसमें हिल्दा ने उससे होटल में आने के
लिए कहा था-साथ खाने के लिए, कुछ गपशप करने के लिए पर, उसने
इनकार कर दिया-तबीयत ठीक नहीं है।
लेकिन वह बाहर निकली, फिन्चले रोड पार करते हुए हैम्पस्टेड
हीथ तक गयी। झाड़ियों से ढँके टीले पर ओक के कुछ पौधे उगे थे-वहाँ उसने गिलहरियों
को चारा डाला। इसके बाद ट्यूब में बैठकर शहर तक आ गयी और इंगलैंड के तट के नीचे
उतरते हुए नदी के करीब पहुँची। सेंट मैग्नस चर्च के पिछवाड़े वाले बन्दरगाह पर
धुँधलका छाया हुआ था। पानी में तैरते हुए बत्तखों को उसने बचा हुआ चारा खिला दिया।
उसे लगा उसकी जिन्दगी भी इसी पानी की तरह बह रही है। उसने अपने को रोका - ऐसा
सोचने से।
अँधेरा घना हो रहा था। ऊपर टैम्स स्ट्रीट को पार करती हुई लन्दन
ब्रिज के पास वह पहुँच गयी। पास ही में मर्दों का एक पेशाबघर था, जिसमें
से पेशाब की गन्ध चारों तरफ हवा में फैल रही थी।
लौटते वक्त वह अब तक सुने सारे साजों को याद करती रही। सारा रास्ता
वीरान था, एकदम वीरान। उसकी तबीयत हुई कि पुल चरमराकर टूट जाए और वह उसी के
नीचे दबकर मर जाए। उस रात उसने सपने में देखा कि वह एक गहरी सुरंग में समाई जा रही
है-ऐसी सुरंग जिसमें सूरज कभी नहीं उगा।
दूसरे दिन नाश्ते के समय उसने रात का सपना याद करना चाहा। उसने अपने
चेहरे को आहिस्ता से छुआ और मुलायम खाल के ऊपर उभरी हड्डियाँ महसूस कीं। ऐसा लगा
गोया उसके छूने की गवाही हड्डियों ने दर्ज कर ली हो। उसने आँखें बन्द कर लीं और
कल्पना में ही कुछ तस्वीरें बनाने लगी-सोना, संगमरमर,
गरजते
हुए शेर, टिमटिमाते तारे और न जाने क्या-क्या, पर कुछ भी न बन
सका। हाँ, चूल्हे पर चाय की केतली रखते समय एक चमकती हुई तस्वीर उभरी थी,
जो
चन्द लम्हों में ही गुम हो गयी यह तस्वीर तेज रोशनी से भरे सूरज की थी।
हिल्दा मैनिंग का ख्याल था कि आदमी की तरक्की का राज केवल उसकी
काबिलियत ही नहीं है, बल्कि उसकी जान-पहचान का दायरा कितना बड़ा है, यह खास मायने
रखता है। मिसाल के तौर पर उसका मंगेतर जर्मी डांम इश्तिहार बाँटने वाली कम्पनी में
अफसर महज इसलिए है, क्योंकि आक्सफोर्ड में पढ़ते समय उसके ताल्लुकात अच्छे-अच्छे लोगों
से हो गये थे। उसके घर वालों की भी समूचे लन्दन में काफी पहुँच है। मुमकिन है यह
कुछ बढ़ाकर कह रही हो, पर यह सही है कि जर्मी को हांगकांग, त्रिनिदाद,
नाइजीरिया
और जोहानसबर्ग में बड़े-बड़े ओहदों पर काम करने
के मौके दिये गये। जोनाथन समेथर ने खुद जर्मी को जोहानसबर्ग के लिए बुलावा दिया था
और अपने चाचा की एजेंसी संभालने का काम सुपुर्द किया था।
जोनाथन को एक ऐसी लड़की की जरूरत थी, जिसकी अंग्रेजी
अच्छी हो और जो सेक्रेटरी का काम संभाल सके। इस सिलसिले में जर्मी से उसने मदद
चाही थी। हिल्दा की चूँकि शादी हो रही है. इसलिए उसने चाहा कि मार्था को इस काम के
लिए राजी करा ले। मार्था एकदम अकेली थी और उसे यहाँ बेहद बोरियत भी महसूस हो रही
थी। उसे जरूरत है तब्दीली की, बदले हुए आबोहवा की, एक
नये माहौल की। हरदम उदास-उदास रहना उसके लिए अच्छा नहीं है। उसने सोचा कि एक दिन
मार्था से कहकर वह उसे इस नई नौकरी के लिए राजी कर लेगी। शुक्रवार की शाम उसने
हिन्दुस्तानी रेस्तराँ 'दि राजा' में मार्था को बुलाया। यहाँ वे अक्सर गपशप किया करती थीं। “मार्था
यदि बुरा न मानो तो एक बात कहूँ-यह जगह तुम्हें रास नहीं आ रही है। दरअसल तुम्हें
जरूरत है सूरज की रोशनी की-धूप की। इंगलैंड तुम्हें बोरियत के सिवा कुछ नहीं दे पा
रहा है। कुछ समय के लिए तुम साउथ की ओर हो आओ।" हिल
रुकी-मुस्कराते हुए बेयरे की तरफ उसने देखा और चिकनकरी का कड़वापन दूर करने के लिए
एक गिलास पानी माँगा। पानी पीने के बाद उसने मार्था को जोनाथन की स्कीम समझायी,
उस
पर सोचने के लिए कहा।
लगभग छह हफ्तों तक मार्था इस पर सोचती रही-अलग-अलग कोणों से। घर से
छह हजार मील दूर एक अनजान जगह-न जाने कैसे रहते होंगे, वहाँ के
लोग-शायद खौफनाक लोग। फिर उसे दूर तक फैला आसमान और तपता हुआ सूरज दिखलाई दिया।
उसे बेपनाह शोरगुल सुनाई दिया। लन्दन की सड़क पर दौड़ने वाली
सवारियों का शोरगुल किसी लिजलिजे कीड़े से रेंगता हुआ अहसास के हर लम्हों को छू
रहा था, नसों को खींच रहा था और दिल की धड़कन बन्द करने पर आमादा लग रहा था।
उसने तय कर लिया-लन्दन छोड़ना है। सात महीने बाद सारी तैयारियाँ पूरी हो गयीं,
पिता
से उसने अलविदा कहा, शहर के किनारे झाड़-झंखाड़-भरे पुराने पत्थरों से घिरे कब्रगाह में
जाकर माँ की कब्र के सामने उसने घुटने टेके और फिर कामेट जेट में सवार हो गयी। जो
उसे एक नये देश-जोहानसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) की ओर उड़ा ले
गया।
जोनाथन स्मेथर और उसके चाचा भले लोग थे। उन्होंने मार्था के लिए
आलीशान इमारत की छत पर का हवादार कमरा दे दिया, जहाँ खुलकर धूप
आती थी। मार्था को पहले ऐसा लगा गोया किसी काँच के मकान में उसे रख दिया गया हो।
यह मकान उस पहाड़ी पर था, जो
समुद्र की सतह से छह हजार फुट की ऊँचाई पर थी और छत पर से दूर तक फैला हुआ समुद्र
साफ-साफ दिखाई पड़ता था। जोनाथन के साथ पहले दिन जब वह ऊपर आयी थी तो उसके मुँह से
बेसाख्ता निकल गया था, 'ओह आसमान के इत्ते करीब।' और दोनों ठठाकर हँस पड़े थे।
सूरज! सूरज! बादल-भरे दिन बीत चुके थे और तूफान के बाद वाला खुलापन
समूचे माहौल में था। दूसरे दिन जोनाथन की बीवी के साथ खरीदारी करने वह बाजार गयी
थी- स्वीमिंग सूट, स्ट्रा हैट और जाने क्या-क्या उसने खरीदा था। उसने महसूस किया था कि
शायद जिन्दगी में पहली बार वह इतनी खुश रही होगी।
हर इतवार को जोनाथन कार में उसे अपने चाचा के यहाँ ले जाता। वहाँ
बगीचे में किकुयू लॉन था और डेहलिया की कतारों से घिरा एक स्वीमिंग पूल भी था।
रातें खूबसूरत होती थीं और मोनोलिया, हनीसकल, मिमोसा आदि की
खुशबुओं से भरी रहती थीं। उसकी नंगी बाँहों और गालों पर की मुद्दत से जमी तपिश को
सर्द हवा राहत पहुँचाती। हर शनिवार को बगीचे में एक मजलिस जमती, जिसमें
काले नौकर दौड़-दौड़कर सबको 'केप तासेनबर्ग' शराब पहुँचाते।
रात में पूल के पानी के बीच चाँद टुकड़ों-टुकड़ों में काँपता रहता।
रात में वह नंगे सोती और एक वहशियाना इत्मीनान उसे ढाँपे रहता और उसे
लगता कि जिन्दगी अब किसी सुरीली लय के उतार-चढ़ाव के साथ ही बही जा रही है।
आफिस की और लड़कियों के बीच वह हैरत की चीज थी। उसकी आवाज, बोलने
का लहजा, तौर-तरीका और धूप से हल्का गुलाबी होता हुआ गोरा शरीर अंग्रेजियत से
दूर होता जा रहा था और यह बात उसे अन्दर खुश कर देने के लिए काफी थी।
जाड़ा आ गया और सफेद की बजाय ताँबिए रंग की धूप मकान की खिड़की से
कमरे में आने लगी। मई से सितम्बर के बीच तकरीबन पाँच महीनों तक बादल नहीं नजर आये
और सारा आकाश नीले सागर की मानिन्द दिखने लगा। सूरज की गर्मी भी कम थी और रातें
पहले की अपेक्षा ज्यादा सर्द होने लगीं। शुरू-शुरू की खातिरदारी का जोश भी जोनाथन
का ठण्डा पड़ चुका था। स्वीमिंग पूल पर मिलने वाले नौजवान भी अब पिकनिक वगैरह पर
नहीं आते। ऐसे में वह अक्सर शीशे में अपना चेहरा देखती - वह सत्ताईस की हो गयी थी।
वह हैरत भरी निगाहों से चारों तरफ देखती कि अफ्रीका किधर है? बिस्तर
पर लेटे-लेटे खिड़की के रास्ते वह गगनचुम्बी इमारतों को देखती-उसे लगता कि ये इमारतें उसके सवाल का जवाब आसमान से पूछने का उसे इशारा कर रही हैं।
कभी-कभार वह प्यानो सुनने जाती। सिटी हॉल में उसे सब ठीक ही लगता,
पर
वे चीजें कहाँ थीं, जिन्हें वह तलाश रही थी-चीते, शेर, हाथी
के सिर जैसी नदियाँ-लिपोपो, जांबेसी, कांगो और भारी
ड्रम बजाता हुआ काला आदमी ?
आफिस का चपरासी पच्चीस साल की उम्र का एक अफ्रीकी था। आफिस का कोई भी
आदमी उसका पूरा नाम नहीं जानता था। बंटू जाति की तरक्की के लिए कायम विभाग से उसे
एक पास बुक दी गयी थी, जिसमें उसका नाम दर्ज था। यह उसका कीमती दस्तावेज था, जिस
पर महीने में एक बार मैथ साहब का दस्तखत होता था। उसे कुछ लोग ‘एमोस'
कहकर
बुलाते थे और कुछ लोग 'ए छोकरे' से ही काम चला लेते थे।
किताबें पढ़ने की उसकी आदत देखकर मार्था की उसमें दिलचस्पी पैदा हुई।
वह किताबें या तो लंच के दौरान पढ़ा करता था या उस समय जब कोई काम न हो। ऐसे में
वह मेन हॉल के पीछे वाले कमरे में, जहाँ चाय बना करती या साइक्लोस्टाइल का
काम होता - वह किताबें लेकर घुस जाता और खड़े-खड़े पढ़ता रहा। मार्था को हैरत होती
कि उसको बैठने के लिए एक कुर्सी भी नहीं दी गयी थी। वह या तो पूछताछ की खिड़की पर
खड़ा रहता, टिकटें चिपकाता रहता, डाक छाँटता या कप-प्लेटें धोता रहा।
एक दिन लंच के दौरान मार्था ने उसे बुलाया और मिस ग्रोव्लर की खाली
पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहा। आफिस में कोई नहीं था और वह समझ नहीं पा रही थी कि
भला कोई इस पर एतराज क्यों करेगा, पर एमोस बैठा नहीं, बल्कि
मुस्कराते हुए उसने शुक्रिया अदा की।
दो दिनों बाद वह इटालियन एस्प्रेसो बार में घुसने ही जा रही थी कि
उसकी निगाह सड़क की पटरी पर पड़े पत्थर पर रुक गयी-एमोस बैठा किताब पढ़ रहा था और
किताब के कवर पर बड़े-बड़े हरफों में लिखा 'ग्रेट
एक्सपेक्टेशन्स' चमक रहा था। दूसरे अफ्रीकी फुरसत के समय सड़क के किनारे बैठकर गोली
खेला करते, 'सफेद रोटी के टुकड़े कुतरते या गटर में पैर लटकाये पेप्सीकोला पीते।
उनके लिए लंच के दौरान न कोई रेस्तराँ था, न क्लब। यहाँ तक कि पार्क की बेंचों पर
भी 'केवल गोरों के लिए' लिखा था। यह बात उसे अन्दर ही अन्दर
कहीं मथ रही थी।
उसने जोनाथन स्मेथर से पूछा कि आफिस में एमोस के लिए कोई सीट क्यों
नहीं दी गयी है? कुछ भी हो, पर उसका भी काम किसी मायने में न तो
मिस ग्रोव्लर से और न मिस मैकेंजी से कम है।
जोनाथन ने आक्सफोर्ड की आजमाई हुई जबान में कुछ यूँ उसे समझाना शुरू किया
जैसे किसी बच्चे को समझाया जा रहा हो-ऐसे बच्चे को जो बाथरूम में खाने की और खाने
के कमरे में नहाने की जिद कर रहा हो, "ऐसा है कि.. .कि...यह
बड़ा मुश्किल है-भला ऐसा कैसे मुमकिन हो सकता है। मैं खुद इन बातों से इत्तफाक
करता हूँ, लेकिन बराबरी की बात और है और साथ बैठाने की... आप बखूबी जानती होंगी
कि मिस ग्रोव्लर और मिस मैकेंजी को कैसा लगेगा?" उसने आवाज साफ
की, एक नई सिगरेट सुलगायी और शनिवार रात में अपनी बीवी के साथ सिनेमा
देखने के लिए मार्था से कहा। उसने गौर किया कि मार्था अभी कुछ और कहना चाहती है।
वह फिर बोल उठा, “देखो मार्था, हमें इसमें भला क्या एतराज हो सकता है।
आफिस में उसे एक सीट जरूर मिलनी चाहिए, लेकिन..." मार्था की समझ
में यह 'लेकिन' नहीं आ सका।
उस शाम उसने एक दूसरे तरह की घुटन महसूस की। इंगलैंड में छोटी-छोटी
बातों में यूँ ही बराबरी का दर्जा सबको हासिल था। सियासी मामलों या और कई चीजों को
अगर नजरअन्दाज भी कर दें तो। पर यहाँ तो बात ही दूसरी थी। एक दिन किताब पढ़ते समय
एमोस उसके पास कुछ पूछने आया। उसकी समझ बहुत तेज थी। मार्था को यह जानकर और भी
ताज्जुब हुआ कि उसने फीस न जुटा पाने की वजह से पन्द्रह साल की उम्र में ही पढ़ाई
छोड़ दी थी। अब अक्सर वह चाय का प्याला लिए छोटे-से कमरे में घुस जाती और तकरीबन
रोज ही उससे कुछ बातें करती। मिस ग्रोव्लर और मिस मैकेंजी जहाँ रोज-रोज फैशन,
कपड़े,
पिकनिक,
फिल्म
आदि की बातें करतीं, एमोस अहम् मसलों पर संजीदा ढंग से बातें करता। उसके पास तमाम ऐसे
टापिक थे, जो मार्था को पसन्द थे।
डिकेन्स के इंगलैंड के बारे में बतलाते समय मार्था कैसे इतने फर्राटे
से बोल रही थी, वह खुद भी नहीं समझ सकी। इंगलैंड दस हजार मील की दूरी से कितना
साफ-सुथरा और दिल खोलकर बयान करने के काबिल लग रहा था। खास तौर से उस वक्त जब
जोहानसबर्ग के दफ्तर में काम करने वाले किसी अफ्रीकी लड़के को समझाना हो। अफ्रीका
और ब्रिटेन दोनों के हजारों रुख एक साथ दिखलाई पड़ थे, गोया धूप में
रखे दो शीशे अपना-अपना अक्स छोड़ रहे हों।
मार्था ने एमोस के दिमाग में यह बात बैठानी शुरू की कि कोरसपोंडेंस
कोर्स से वह अपनी पढ़ाई पूरी करे। उसे पक्का यकीन था कि यदि वह एमोस की मदद कर दे
तो साल-भर के अन्दर वह सीनियर स्कूल सर्टीफिकेट का इम्तहान पास कर सकता है। और
इसके बाद वह इंगलैंड चला जाए-फिर रोज-रोज की हिकारत भरी निगाहों
से छुटकारा, एक नई जिन्दगी की शुरुआत। वह उसे इंगलैंड जरूर दिखलाएगी।
उसकी हड़बड़ी से एमोस को हैरानी होती। उसने सुझाया कि एमोस हर दूसरे
दिन शाम को उससे पढ़ लिया करे। लेकिन वे मिलेंगे कहाँ? - एमोस ने कहा। वह
दस मील दूर ऑरलैंडो में रहता था और रात में बिना परमिट के गोरों का उधर जाना मना
था।
भीड़-भरे रास्तों से वे ट्राम टर्मिनस की ओर बढ़े। वह मार्था से कुछ
कह रहा था, पर वह सड़क पर गुजरते लोगों की निगाहें पढ़ने लगी थी। उसने फिर
दुहराया कि मार्केट स्ट्रीट के पास काले लोगों के बस स्टाप तक उसे जाना होगा। कुछ
सोचते हुए मार्था ने कहा कि ठीक है, अगले मोड़ पर मिल लेंगे। फिर वे अलग हो
गये।
मोड़ पर मार्था की ट्राम पहले पहुँच गयी थी। उसके बाद गोरों वाली छह
ट्रामें गुजरी और लगभग बीस मिनट बाद काले लोगों की ट्राम हिल ब्रो के स्टाप पर
रुकी। वह कूदकर उतरा और मुस्कराता हुआ मार्था के साथ हो लिया।
रास्ते में मार्था ने रुककर खाने के लिए कुछ सामान लिया। एमोस बाहर
खड़ा इन्तजार करता रहा। वे सिटी हाइट तक पहुँचे, जहाँ दो लिफ्टें
थीं-एक गोरों के लिए और दूसरी कालों के लिए। एमोस अपनी लिफ्ट की तरफ बढ़ ही रहा था
कि मार्था ने नाराजगी भरे अन्दाज में उसे गोरों की लिफ्ट में ढकेल दिया और ऊपर
पहुँच गये। उसने मन-ही-मन भगवान का शुक्रिया अदा किया कि कोई दूसरा गोरा उस लिफ्ट
में मौजूद नहीं था। वह इंगलैंड के बारे में-डिकेन्स, शेक्सपीयर,
शेली,
कीट्स
के बारे में बड़ी देर तक सोचता रहा।
एक महीना बीत गया। वे उन दिनों ग्रामर पढ़ रहे थे। बारहवें पाठ का
अन्तिम दौर चल रहा था कि तभी एक रात दस बजे के
करीब दरवाजे पर किसी की दस्तक सुनाई पड़ी। मार्था को हैरत हुई कि इतनी रात को कौन
आ गया। उसने दरवाजा खोला-ट्विड की कमीज पहने और हैट लगाये एक आदमी खड़ा था। उसका
लाल चेहरा काफी बड़ा था और मुँह से ब्रांडी की महक आ रही थी। अपनी नीली आँखों को
गोल करते हुए उसने पूछा, “आपका नाम मार्था हार्ट है?"
मार्था ने 'हा' कहा।
"मैं एक पुलिस अफसर हूँ," उसने अपना
आइडेंटिटी कार्ड दिखलाया। “मैं आपके फ्लैट की तलाशी लेना चाहता
हूँ और आपसे कुछ बातें भी करनी हैं। दरवाजे के सामने पार्टीशन की वजह से अन्दर की
बैठक दिखलाई नहीं पड़ रही थी।”
मार्था का खून सूख गया। बड़ी मुश्किल से वह बोल पायी-“आप
चाहते क्या हैं?"
आप इत्मीनान रखें-मेरे साथ अन्दर आएँ..." कहते हुए मार्था
को एक तरफ खिसका कर वह कमरे में दाखिल हो गया।
दीवान पर बिछाये गये मैक्सिकन कम्बल के ऊपर एमोस बुत की तरह बैठा
रहा। उसे देखकर पुलिस अफसर चौंका नहीं, बल्कि धीरे-से बोला, “तुम्हारा
पास कहाँ है?"
एमोस ने भूरे रंग का एक कार्ड बढ़ाया और दीवार पर आँखें जमाये रहा।
अफसर ने उलट-पुलट कर देखते हुए पूछा, “स्पेशल नहीं है?...हूँ...कर्फ्यू
के बाद तुम गोरों के इलाके में हो। तुम्हारे पास स्पेशल पास होना चाहिए था -ठीक ?"
उसने
बाहर की तरफ आवाज दी और खाकी वर्दी तथा टोपी में एक अफ्रीकी सिपाही हाजिर हुआ।
“आप क्या कर रहे हैं? इसे कहाँ ले जा रहे हैं...? सुनिए-
सुनिए... " उसे लगा जैसे कोई ख्वाब देख रही हो।
“नेटिव अर्बन एरियाज एक्ट के तहत गिरफ्तारी," अफसर
ने संजीदगी से कहा। “लेकिन वह मेरा दोस्त हैं, वह यहाँ पढ़ने आता है..." उसकी
आवाज काँप रही थी। एमोस के पीछे-पीछे वह दरवाजे तक आयी।
"मैडम, आप ठहरें। मुझे आपसे कुछ बातें करनी हैं।" वह
मजबूर निगाहों से देखती रही...पुलिस एमोस को अपने साथ लेती गयी।
दरवाजे पर दोनों ने एक-दूसरे की निगाहों में देखा। एमोस की नजरें
तीखी और भयानक लगी। वह माफी माँगना चाहती थी, क्योंकि इस सारी
वारदात की जिम्मेदार वह खुद थी। शायद इसलिए वह उसे अपने यहाँ लायी थी कि एक दिन
पुलिस उसे जलील करे, क्योंकि वह काला
है-हाँ, वह काला है। दरवाजा बन्द हो गया।
अफसर कमरे में टहलते हुए हवा में कुछ सूँघता रहा-लिखने की मेज का
मुआइना करता रहा। मेज पर उसे दो ढक्कन मिले, जिन्हें उठाकर
उसने सूँघा, फिर दीवान के नीचे झाँकर दो गिलास निकाले। उसे नाक के करीब ले जाकर
बोला, “शराब ? उसे आप शराब पिलाती थीं?"
'आपको इससे क्या मतलब?" उसका डर अब गुस्से में तब्दील हो गया
था। “आपको यहाँ आने का कोई हक नहीं है... आपके पास वारंट है?"
“वारंट की कोई जरूरत नहीं...क्रिमिनल लाज अमेंडमेंट ऐक्ट। शक हो तो
तलाशी ली जा सकती है। आप अंग्रेज हैं? किसी ने बताया नहीं कि आप क्या कर रही
हैं? आपको नहीं पता कि वह एक काफिर है-काफिर।" थोड़ी देर तक
खामोश रहने के बाद वह फिर बोला, “क्या खूब। बिस्तर के नीचे गिलास रखे
हैं, और क्या-क्या बिस्तर के नीचे रख छोड़ा है?"
“शट अप!" मार्था चीख पड़ी।
“अच्छा, यह बात है। आप मेरे साथ आइए। लिकर ऐक्ट के तहत मैं आपको गिरफ्तार
करता हूँ-कालों को शराब सप्लाई करने का जुर्म है। "
मार्था के घुटने काँपने लगे, दिल तेजी से धड़कने लगा। डर, गुस्सा,
शर्म,
हिकारत
सब एक साथ उसकी आँखों में तैर गया। वह छटपटाती रही, पैर पटकती रही
और बदहवास हो कमरे में चहलकदमी करती रही। पुलिस अफसर तब तक रुका जब तक वह खामोश
नहीं हो गयी। अफसर ने जब यकीन दिलाया कि पुलिस स्टेशन से किसी वकील को फोन करने की
इजाजत मिल जाएगी, तब वह आगे बढ़ी। नीचे सड़क पर एक अमरीकन फोर्ड खड़ी थी। एमोंस पीछे
की सीट पर काले सिपाही के साथ बैठा था-मार्था आगे की सीट पर गोरे अफसर के साथ बैठ
गयी।
दोनों का मुकदमा अलग-अलग अदालतों में पेश किया गया। ‘पास
लॉ' तोड़ने के जुर्म में एमोस को दो पौंड जुर्माना या दस दिन की कैद हुई।
एमोस के मामले में किसी गवाही वगैरह की जरूरत नहीं थी- पुलिस का बयान ही काफी था।
यह रोज का किस्सा था। हर हफ्ते इस तरह के सैकड़ों मामले आते थे और हर मामले में
सजा ही होती थी।
मार्था का मुकद्दमा लम्बा था। उसके मामले में वकील थे, गवाह
थे, लम्बी- लम्बी जिरहें थीं। उसके फ्लैट के मालिक ने पुलिस को इत्तला की
थी, क्योंकि उसकी बदनामी हो रही थी.. वह भी अदालत में हाजिर था। सरकारी
वकील ने अनेक इल्जामों के साथ मार्था पर यह इल्जाम लगाया था कि उसने कहा है कि,
“ऐसा कानून तोड़ने की मुझे खुशी है।" मार्था ने यह
कतई नहीं कहा था, पर जब उससे पूछा गया तो उसने सचमुच कह दिया, "हाँ,
मुझे
बेहद खुशी है।" मार्था के वकील ने सिर ठोंक लिया।
जज ने मार्था को बीस पौंड जुर्माना या एक माह की कैद की सजा सुनाई।
साथ ही यह भी कहा कि चूँकि यह लड़की अभी हाल ही में यहाँ आयी है और इसका चाल-चलन
भी काफी हद तक ठीक पाया गया है, इसलिए सजा में रियायत की जाती है।
कचहरी के बरामदे में एमोस मौजूद था। मार्था ने पिछले तीन दिन से -
गिरफ्तारी की रात से ही उसे नहीं देखा था। मार्था उसी रात जमानत पर रिहा हो रही
थी। पर उसकी जमानत नहीं मंजूर हुई थी। एमोस के होंठ सूजे और फटे हुए थे। माथे पर
गहरा दाग पड़ा था।
“उन्होंने तुमको पीटा भी?" मार्था ने पूछा।
“हाँ,” उसने जवाब दिया, “मैं चाहता था कि यह बात जज साहब को
बतलाऊँ, पर हिम्मत न पड़ी। "
“क्या?" उसकी आँखें भर आयी थीं।
“मैं बेहद डरा हुआ था।"
उसकी तबीयत हुई कि वह खूब तेज आवाज में चीखे, उसके कन्धों को
थपथपाए, होंठों पर लगे घावों पर अपने... अपने होंठ रखकर सारा दर्द खींच ले,
पर
वह कुछ कर न सकी।
“मुझे बेहद अफसोस है एमोस। "
“यह तुम्हारी गलती नहीं है...अच्छा, अब चलूँ,"
वह
तेजी से मुड़ा और चल पड़ा।
वह जानती थी कि उनकी यह आखिरी मुलाकात है। एमोस अब उससे कभी नहीं
मिलेगा, कभी नहीं।
अदालत के बाहर तेज सूरज चमक रहा था। किरणें उसके चेहरे पर सीधी पड़
रही थीं। उस रोशनी में वह फूट-फूटकर रो पड़ी-अपने अकेलेपन पर, घुटन
पर, गुम हो गयी किसी चीज पर।
शहर लन्दन में वह बिल्कुल तनहा थी।
सुबह तकरीबन सात बजे उसने अपने ड्राइंग-रूम की खिड़की पर टँगे परदों
को ऊपर उठाया। भोर की मटमैली रोशनी में उसने गौर किया-मुँह से निकलती साँस बाहर
आकर भाप की शक्ल अख्तियार कर रही थी। उसने चेहरा फेर लिया।
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