कहानी - उसकी पहली उड़ान / लायम ओ' फ़्लैहर्टी Story - His First Flight / Liam O'Flaherty
कहानी - उसकी पहली उड़ान
लायम ओ' फ़्लैहर्टी (अनुवाद : सुशांत सुप्रिय)
For English version please scroll down
समुद्री चिड़िया (sea gull) का बड़ा हो चुका बच्चा पत्थर के उठे हुए किनारे पर अकेला था। उसकी बहन और उसके दो भाई कल ही उड़ कर जा चुके थे। वह डर जाने की वजह से उनके साथ नहीं उड़ पाया था। जब वह पत्थर के उठे हुए किनारे की ओर दौड़ा था और उसने अपने पंखों को फड़फड़ाने का प्रयास किया था, तब पता नहीं क्यों वह डर गया था। नीचे समुद्र का अनंत विस्तार था, और उठे हुए पत्थर के कगार से नीचे की गहराई मीलों की थी। उसे ऐसा पक्का लगा था कि उसके पंख उसे नहीं सम्भाल पाएँगे, इसलिए अपना सिर झुका कर वह वापस पीछे उठे हुए पत्थर के नीचे मौजूद उस जगह की ओर भाग गया था, जहाँ वह रात में सोया करता था। जबकि उससे छोटे पंखों वाली उसकी बहन और उसके दोनों भाई कगार पर जा कर अपने पंख फड़फड़ा कर हवा में उड़ गए थे, वह उस किनारे के बाद की गहराई से डर गया था और वहाँ से कूद कर उड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। इतनी ऊँचाई से कूदने का विचार ही उसे हताश कर दे रहा था। उसकी माँ और उसके पिता तीखे स्वर में उसे डाँट रहे थे। वे तो उसे धमकी भी दे रहे थे कि यदि उसने जल्दी उड़ान नहीं भरी तो पत्थर के उस उठे हुए किनारे पर उसे अकेले भूखा रहना पड़ेगा। लेकिन बेहद डर जाने की वजह से वह अब हिल भी नहीं पा रहा था।
यह सब चौबीस घंटे पहले की बात थी। तब से अब तक उसके पास कोई नहीं आया
था। कल उसने अपने माता-पिता को पूरे दिन अपने भाई-बहनों के साथ उड़ते हुए देखा था।
वे दोनों उसके भाई-बहनों को उड़ान की कला में माहिर बनने, और लहरों को
छूते हुए उड़ने का प्रशिक्षण दे रहे थे। साथ ही वे उन्हें पानी के अंदर मछलियों का
शिकार करने के लिए गोता लगाने की कला में पारंगत होना भी सिखा रहे थे। दरअसल उसने
अपने बड़े भाई को चट्टान पर बैठ कर अपनी पहली पकड़ी हुई मछली खाते हुए भी देखा था,
जबकि
उसके माता-पिता उसके बड़े भाई के चारो ओर उड़ते हुए गर्व से शोर मचा रहे थे। सारी
सुबह समुद्री चिड़िया का पूरा परिवार उस बड़े पठार के ऊपर हवाई-गश्त लगाता रहा था।
पत्थर के दूसरे उठे हुए किनारे पर पहुँच कर उन सब ने उसकी बुज़दिली पर उसे
बहुत-ताने मारे थे।
सूरज अब आसमान में ऊपर चढ़ रहा था। दक्षिण की ओर उठे हुए पत्थर के
नीचे मौजूद उसकी बैठने की जगह पर भी तेज धूप पड़ने लगी थी। चूँकि उसे पिछली रात के
बाद से खाने के लिए कुछ नहीं मिला था, धूप की गरमी उसे विचलित करने लगी।
पिछली रात उसे कगार के पास मछली की पूँछ का एक सूखा टुकड़ा पड़ा हुआ मिल गया था।
किंतु अब खाने का कोई क़तरा उसके आस-पास नहीं था। उसने चारो ओर ध्यान से देख लिया
था। यहाँ तक कि अब गंदगी में लिपटे, घास के सूखे तिनकों से बने उस घोंसले
के आस-पास भी कुछ नहीं था जहाँ उसका और उसके भाई-बहनों का जन्म हुआ था। भूख से
व्याकुल हो कर उसने अंडे के टूटे पड़े सूखे छिलकों को भी चबाया था। यह अपने ही एक
हिस्से को खाने जैसा था। परेशान हो कर वह उस छोटी-सी जगह में लगातार चहलक़दमी करता
रहा था। बिना उड़ान भरे वह अपने माता-पिता तक कैसे पहुँच सकता है, इस
प्रश्न पर वह लगातार विचार कर रहा था, किंतु उसे कोई राह नहीं सूझी। उसके
दोनों ओर कगार के बाद मीलों लम्बी गहराई थी, और बहुत नीचे
गहरा समुद्र था। उसके और उसके माता-पिता के बीच में एक गहरी, चौड़ी
खाई थी। यदि वह कगार से उत्तर की ओर चल कर जा पाता, तो वह अपने
माता-पिता तक पहुँच सकता था। लेकिन वह चलता किस पर? वहाँ तो पत्थर
थे ही नहीं, केवल गहरी खाई थी! और उसे उड़ना आता ही नहीं था। अपने ऊपर भी वह कुछ
नहीं देख पा रहा था क्योंकि उसके ऊपर की चट्टान आगे की ओर निकली हुई थी जिसने
दृश्य को ढँक लिया था। और पत्थर के उठे हुए किनारे के नीचे तो अनंत गहराई थी ही,
जहाँ
बहुत नीचे था — हहराता समुद्र।
वह आगे बढ़ कर कगार तक पहुँचा। अपनी दूसरी टाँग पंखों में छिपा कर वह
किनारे पर एक टाँग पर खड़ा हो गया। फिर उसने एक-एक करके अपनी दोनों आँखें भी बंद
कर लीं और नींद आने का बहाना करने लगा। लेकिन इस सब के बावजूद उसके माता-पिता और
भाई-बहनों ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने अपने दोनों भाइयों और बहन को पठार
पर अपना सिर अपने पंखों में धँसा कर ऊँघते हुए पाया। उसके पिता अपनी सफ़ेद पीठ पर
मौजूद पंखों को सजा-सँवार रहे थे। उन सब में केवल उसकी माँ ही उसकी ओर देख रही थी।
वह अपनी छाती फुला कर पठार के उठे हुए भाग पर खड़ी थी। बीच-बीच में वह अपने पैरों
के पास पड़े मछली के टुकड़े की चीर-फाड़ करती, और फिर पास पड़े
पत्थर पर अपनी चोंच के दोनों हिस्सों को रगड़ती। खाना देखते ही वह भूख से व्याकुल
हो उठा। ओह, उसे भी मछली की इसी तरह चीर-फाड़ करने में कितना मज़ा आता था। अपनी
चोंच को धारदार बनाने के लिए वह भी तो रह-रह कर उसे पत्थर पर घिसता था। उसने एक
धीमी आवाज़ की। उसकी माँ ने उसकी आवाज़ का उत्तर दिया, और उसकी ओर
देखा।
उसने "ओ माँ, थोड़ा खाना मुझ भूखे को भी दे दो"
की गुहार लगाई।
लेकिन उसकी माँ ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए चिल्ला कर पूछा,
"क्या तुम्हें उड़ना आता है?" पर वह दारुण
स्वर में माँ से गुहार लगाता रहा, और एक-दो मिनट के बाद उसने ख़ुश हो कर
किलकारी मारी। उसकी माँ ने मछली का एक टुकड़ा उठा लिया था, और वह उड़ते हुए
उसी की ओर आ रही थी। चट्टान को पैरों से थपथपाते हुए वह आतुर हो कर आगे की ओर झुका,
ताकि
वह उड़ कर उसके पास आ रही माँ की चोंच में दबी मछली के नज़दीक पहुँच सके। लेकिन
जैसे ही उसकी माँ उसके ठीक सामने आई, वह कगार से ज़रा-सा दूर हवा में वहीं
रुक गई। उसके पंखों ने फड़फड़ाना बंद कर दिया और उसकी टाँगें बेजान हो कर हवा में
झूलने लगीं।
अब उसकी माँ की चोंच में दबा मछली का टुकड़ा उसकी चोंच से बस ज़रा-सा
दूर रह गया था। वह हैरान हो कर एक पल के लिए रुका — आख़िर माँ उसके और क़रीब क्यों
नहीं आ रही थी? फिर भूख से व्याकुल हो कर उसने माँ की चोंच में दबी मछली की ओर छलाँग
लगा दी।
एक ज़ोर की चीख़ के साथ वह तेज़ी से हवा में आगे और नीचे की ओर गिरने
लगा। उसकी माँ ऊपर की ओर उड़ गई। हवा में अपनी माँ के नीचे से गुज़रते हुए उसने
माँ के पंखों के फड़फड़ाने की आवाज़ सुनी। तभी एक दानवी भय ने जैसे उसे जकड़ लिया,
और
उसके हृदय ने जैसे धड़कना बंद कर दिया। उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। पर यह
सारा अहसास केवल पल भर के लिए हुआ। अगले ही पल उसने अपने पंखों का बाहर की ओर
फैलना महसूस किया। तेज़ हवा उसकी छाती, पेट और पंखों से टकरा कर गुज़रने लगी।
उसके पंखों के किनारे जैसे हवा को चीर रहे थे। अब वह सिर के बल नीचे नहीं गिर रहा
था, बल्कि हवा में तैरते हुए धीरे-धीरे नीचे और बाहर की ओर उतर रहा था।
अब वह भयभीत नहीं था। बस उसे ज़रा अलग-सा लग रहा था। फिर उसने अपने पंखों को एक
बार फड़फड़ाया और वह ऊपर की ओर उठने लगा। खुश हो कर उसने ज़ोर से किलकारी मारी और
अपने पंखों को दोबारा फड़फड़ाया। वह हवा में और ऊपर उठने लगा। उसने अपनी छाती फुला
ली और हवा का उससे टकराना महसूस करता रहा। खुश हो कर वह
गाना गाने लगा। उसकी माँ ने उसके ठीक बगल से हो कर गोता लगाया। उसे हवा से टकराते
माँ के पंखों की तेज़ आवाज़ अच्छी लगी। उसने फिर एक किलकारी मारी।
उसे उड़ता हुआ देख कर उसके प्रसन्न पिता भी शोर मचाते हुए उसके पास
पहुँच गए। फिर उसने अपने दोनों भाइयों और अपनी बहन को ख़ुशी से उसके चारो ओर चक्कर
लगाते हुए देखा। वे सब प्रसन्न हो कर हवा में तैर रहे थे, गोते लगा रहे थे
और कलाबाज़ियाँ खा रहे थे।
यह सब देखकर वह पूरी तरह भूल गया कि उसे हमेशा से उड़ना नहीं आता था।
मारे ख़ुशी के वह भी चीख़ते-चिल्लाते हुए हवा में तैरने और बेतहाशा गोते लगाने
लगा।
अब वह समुद्र की अथाह जल-राशि के पास पहुँच गया था, बल्कि
उसके ठीक ऊपर उड़ रहा था। उसके नीचे हरे रंग के पानी वाला गहरा समुद्र था जो अनंत
तक फैला जान पड़ता था। उसे यह उड़ान मज़ेदार लगी और उसने अपनी चोंच टेढ़ी करके एक
तीखी आवाज़ निकाली। उसने देखा कि उसके माता-पिता और भाई-बहन उसके सामने ही समुद्र
के इस हरे फ़र्श-से जल पर नीचे उतर आए थे। वे सब ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर उसे भी
अपने पास बुला रहे थे। यह देखकर उसने भी अपने पैरों को समुद्र के पानी पर उतार
लिया। उसके पैर पानी में डूबने लगे। यह देखकर वह डर के मारे चीख़ा और उसने दोबारा
हवा में उड़ जाने की कोशिश की। लेकिन वह थका हुआ था और खाना न मिलने के कारण
कमज़ोर हो चुका था। इसलिए चाह कर भी वह उड़ न सका। उसके पैर अब पूरी तरह पानी में
डूब गए और फिर उसके पेट ने समुद्र के पानी का स्पर्श किया। इसके साथ ही उसकी देह
का पानी में डूबना रुक गया। अब वह पानी पर तैर रहा था। और उसके चारों ओर ख़ुशी से
चीख़ता-चिल्लाता हुआ उसका पूरा परिवार जुट आया था। वे सब उसकी प्रशंसा कर रहे थे,
और
अपनी चोंचों में ला-ला कर उसे खाने के लिए मछलियों के टुकड़े दे रहे थे।
उसने अपनी पहली उड़ान भर ली थी।
Story - His First Flight
Liam O’Flaherty
The young seagull was alone in his ledge. His two
brothers and his sister had already flown away the day before. He had been
afraid to fly with them. Somehow when he had taken a little run forward to the
brink of the ledge and attempted to flap his wings he became afraid. The great
expanse of sea stretched down beneath, and it was such a long way down -- miles
down. He felt certain that his wings would never support him, so he bent his
head and ran away back to the little hole under the ledge where he slept at
night.
Even when each of his brothers and his little sister, whose
wings were far shorter than his own, ran to the brink, flapped their wings, and
flew away, he failed to muster up courage to take that plunge which appeared to
him so desperate. His father and mother had come around calling to him shrilly,
scolding him, threatening to let him starve on his ledge unless he flew away.
But for the life of him he could not move.
That was twenty-four hours ago. Since then nobody had come
near him. The day before, all day long, he had watched his parents flying about
with his brothers and sister, perfecting them in the art of flight, teaching
them how to skim the waves and how to dive for fish. He had, in fact, seen his
older brother catch his first herring and devour it, standing on a rock, while
his parents circled around raising a proud cackle. And all the morning the
whole family had walked about on the big plateau midway down the opposite
cliff, laughing at his cowardice.
The sun was now ascending the sky, blazing warmly on his
ledge that faced south. He felt the heat because he had not eaten since the
previous nightfall. Then he had found a dried piece of mackerel’s tail at the
far end of his ledge. Now there was not a single scrap of food left. He had
searched every inch, rooting among the rough, dirt-caked straw nest where he
and his brothers and sister had been hatched. He even gnawed at the dried
pieces of eggshell. It was like eating part of himself.
He had then trotted back and forth from one end of the ledge
to the other, his long gray legs stepping daintily, trying to find some means
of reaching his parents without having to fly. But on each side of him the
ledge ended in a sheer fall of precipice, with the sea beneath. And between him
and his parents there was a deep, wide crack.
Surely he could reach them without flying if he could only
move northwards along the cliff face? But then on what could he walk? There was
no ledge, and he was not a fly. And above him he could see nothing. The
precipice was sheer, and the top of it was perhaps farther away than the sea
beneath him.
He stepped slowly out to the brink of the ledge, and,
standing on one leg with the other leg hidden under his wing, he closed one
eye, then the other, and pretended to be falling asleep. Still they took no
notice of him. He saw his two brothers and his sister lying on the plateau
dozing, with their heads sunk into their necks. His father was preening the
feathers on his white back. Only his mother was looking at him.
She was standing on a little high hump on the plateau, her
white breast thrust forward. Now and again she tore at a piece of fish that lay
at her feet, and then scraped each side of her beak on the rock. The sight of
the food maddened him. How he loved to tear food that way, scraping his beak
now and again to whet it! He uttered a low cackle. His mother cackled too, and
looked over at him.
Ga, ga, ga, he cried, begging her to bring him over
some food. Gawl-ool-ah, she screamed back mockingly. But he kept
calling plaintively, and after a minute or so he uttered a joyful scream. His
mother had picked up a piece of the fish and was flying across to him with it.
He leaned out eagerly, tapping the rock with his feet, trying to get nearer to
her as she flew across. But when she was just opposite to him, abreast of the
ledge, she halted, her legs hanging limp, her wings motionless, the piece of
fish in her beak almost within reach of his beak.
He waited a moment in surprise, wondering why she did not
come nearer, and then maddened by hunger, he dived at the fish. With a loud
scream he fell outwards and downwards into space. His mother had swooped
upwards. As he passed beneath her he heard the swish of her wings.
Then a monstrous terror seized him and his heart stood
still. He could hear nothing. But it only lasted a moment. The next moment he
felt his wings spread outwards. The wind rushed against his breast feathers,
then under his stomach and against his wings. He could feel the tips of his
wings cutting through the air. He was not falling headlong now. He was soaring
gradually downwards and outwards. He was no longer afraid. He just felt a bit
dizzy. Then he flapped his wings once and he soared upwards.
He uttered a joyous scream and flapped them again. He soared
higher. He raised his breast and banked against the wind. Ga, ga, ga.
Ga, ga, ga. Gawl-ool-ah. His mother swooped past him, her wings making a
loud noise. He answered-her with another scream Then his father flew over him
screaming. The he saw his two brothers and sister flying around him, soaring
and diving.
Then he completely forgot that he had not always been able
to fly, and commenced himself to dive and soar, shrieking shrilly.
He was near the sea now, flying straight over it, facing out
over the ocean. He saw a vast green sea beneath him, with little ridges moving
over it, - anti he turned his beak sideways and crowed amusedly. His parents
and his brothers and sister had landed on this green floor in front of him.
They were beckoning to him, calling shrilly. He dropped his legs to stand on
the green sea. His legs sank into it. He screamed with fright and attempted to
rise again, flapping his wings. But he was tired and weak with hunger and he
could not rise, exhausted by the strange exercise. His feet sank into the green
sea, and then his belly touched it and he sank no farther.
He was floating on it. And around him his family was
screaming, praising him, and their beaks were offering him scraps of dog-fish.
He had made his first flight.
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