कात्यायनी की दो कविताएं - सामान्यता की शर्त, सफल नागरिक
कात्यायनी की दो कविताएं
सामान्यता की शर्त
.
जिस गन्दे रास्ते से हम रोज़ गुज़रते हैं
वह फिर गन्दा लगना बन्द हो जाता है।
.
रोज़ाना हम कुछ अजीबोग़रीब चीज़ें देखते हैं
और फिर हमारी आँखों के लिए
वे अजीबोग़रीब नहीं रह जाती।
.
हम इतने समझौते देखते हैं आसपास
कि समझौतों से हमारी नफ़रत ख़त्म हो जाती है।
.
इसीतरह, ठीक इसीतरह हम मक्का़री, कायरता,
क्रूरता, बर्बरता, उन्माद
और फासिज़्म के भी आदी होते चले जाते हैं।
.
सबसे कठिन है एक सामान्य आदमी होना।
सामान्यता के लिए ज़रूरी है कि
सारी असामान्य चीज़ें हमें असामान्य लगें
क्रूरता, बर्बरता, उन्माद और फासिज़्म हमें
हरदम क्रूरता, बर्बरता, उन्माद और फासिज़्म ही लगे
यह बहुत ज़रूरी है
और इसके लिए हमें लगातार
बहुत कुछ करना होता है
जो इनदिनों ग़ैरज़रूरी मान लिया गया है।
.
सफल नागरिक
.
दुनिया में जब घटती होती हैं रोज़-रोज़
तमाम चीज़ें – मसलन मँहगाई, भूख,
भ्रष्टाचार, ग़रीबी, तरह-तरह के अन्याय
और अत्याचार और लूट और युद्ध और नरसंहार,
तो हम दोनों हाथ फैलाकर कहते हैं,
‘हम भला और क्या कर सकते हैं
कुछ सवाल उठाने और कुछ शिकायतें
दर्ज़ करते रहने के अलावा !’
इसतरह हम धीरे-धीरे चीज़ों के
बद से बदतर होते जाने को देखने
और इन्तज़ार करने के आदी हो जाते हैं।
इसतरह क्रूरता हमारे भीतर
प्रवेश करती है और फिर
अपना एक मज़बूत घर बनाती है।
इसतरह हम
सबसे अधिक क्रूर लोगों के शासन में
जीने लायक एक दुनिया बनाते हैं
और सफल और शान्तिप्रिय, नागरिक बन जाते हैं
और हममें से कुछ लोग
बड़े कवि बन जाते हैं।
.
( 5 सितम्बर, 2019 )
वाह
ReplyDelete