कविता - इन्क़लाब के बारे में कुछ बातें / कात्यायनी
कविता - इन्क़लाब के बारे में कुछ बातें
कात्यायनी
नहीं मिलती है
रोटी कभी लम्बे समय तक
या छिन जाती है मिलकर भी बार-बार
तो भी आदमी नहीं छोड़ता है
रोटी के बारे में सोचना
और उसे पाने की कोशिश करना।
कभी-कभी लम्बे समय तक आदमी नहीं पाता है प्यार
और कभी-कभी तो ज़िन्दगी भर।
खो देता है कई बार वह इसे पाकर भी
खो देता है कई बार वह इसे पाकर भी
फिर भी वह सोचता है तब तक
प्यार के बारे में
जब तक धड़कता रहता है उसका दिल।
ऐसा ही,
ठीक ऐसा ही होता है
इन्क़लाब के बारे में भी।
पुरानी नहीं पड़ती हैं बातें कभी भी
इन्क़लाब के बारे में।
नवम्बर, 1992
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