व्यंग्य कविता : एक देश में कविता की चमत्कारी लोकप्रियता की जादुई कहानी / कविता कृष्णपल्लवी
एक देश में कविता की चमत्कारी
लोकप्रियता की जादुई कहानी
एक देश था।
उस देश में कविता धीरे-धीरे इतनी
लोकप्रिय हो चली थी, इतनी लोकप्रिय हो चली थी
कि काला बाजारिये, प्रॉपर्टी डीलर, हवाला व्यापारी, कमीशन
एजेंट, चार्टर्ड एकाउंटेंट, वकील, बीमा
एजेंट,
तस्कर, हलवाई, पंसारी, शेयर बाज़ार के खिलाड़ी, भंडवे,
रंडियों के दल्ले, जेबकतरे, हत्यारे, बलात्कारी,
सड़क के गुंडे और दंगाई तक कविता
लिखने लगे थे।
यह लोकप्रियता कविता को रातोंरात
हासिल नहीं हुई थी।
इसमें एक लंबा समय लगा था।
शुरुआत कुछ यूँ हुई कि देश की
राजधानी और कई प्रांतीय राजधानियों में कविताओं के भव्य आयोजनों में
गणमान्य अतिथि के रूप में नेता और
व्यापारी और ठेकेदार और पेट्रोल पम्पों के मालिक
जो शिक्षा, संस्कृति और समाज-कल्याण के कई ट्रस्ट चलाते थे, आने लगे।
फिर सरकारी जलसों में गंभीर कविताएँ
लिखने वाले कवि गण आमंत्रित किये जाने लगे।
फिर सरकार ने कवियों-लेखकों-कलाकारों
के लिए कई भव्य प्रतिष्ठान बनवा दिए।
आरक्षित सीटों पर मनोनीत होकर कुछ
कवि-लेखक संसद के उच्च सदन तक भी जा पहुँचे।
फिर उनके लिए विशेष तौर पर कई
उपाधियाँ दी जाने लगीं,
कई पद सृजित हुए और कई पीठ स्थापित
हुए और कई वजीफ़े भी दिए जाने लगे।
कवियों की संगत संक्रामक सिद्ध हुई।
उनकी संगत में कई नेता आये जो अपने
भाषण-लेखकों और सचिवों से
यह ज़िद करने लगे कि वे भी कविता
लिखेंगे।
भाषण-लेखकों ने लिखीं बड़ी मेहनत से
कविताएँ,
कुछ निजी सचिवों ने भी लिखीं।
कविता का असर ऐसा था कि
अवकाश-प्राप्ति के बाद की संभावनाओं का संधान करते हुए
कैबिनेट सचिव ने भी लिख डालीं कुछ
कविताएँ।
फिर मुख्य सचिव और अन्य सचिवों और
उप-सचिवों ने, कई कमिश्नरों और कलक्टरों ने और
पुलिस के कई आला अफसरों ने और सेल्स
टैक्स और इनकम टैक्स जैसे कई विभागों के
कई उच्च अधिकारियों ने भी लिखीं और
कविताओं की बाढ़ ला दी।
अफसरों के निकट संपर्क में रहते थे
जो दलाल और व्यापारी,
वे भी कविताओं की दुनिया में हाथ-पैर
मारने लगे।
आलम यह था कि मरदाना कमजोरी की दवाओं
के विज्ञापन भी कविता की भाषा में छपने लगे।
यहाँ तक कि ताक़त और पैसे की दुनिया
में विचरने वालों के
कुत्ते भी कविता की दुनिया में
विचरने लगे।
एक पुलिस अफसर जो एक मुख्य मंत्री के
आदेश पर हर रात कुछ फ़र्जी एनकाउंटर करता था
और घर लौटकर सितार पर राग तिलक कामोद
बजाता था,
वह अब घर लौटने के बाद कविताएँ लिखने
लगा।
जितना अधिक ताक़तवर लोग कविताएँ लिखने
लगे,
उतना ही अधिक उनके निकट के कवि लोग
उनके कुत्तों की तरह हो गए,
इतना कि कवियों और कुत्तों में अंतर
करना मुश्किल होता गया।
उधर उस देश में लोगों का जीना दूभर
हो गया था,
सडकों पर वर्दीधारियों की गश्त थी,
उन्मादियों की भीड़ थी और गलियों में बहता हुआ लहू
था
और भय था और अँधेरा था और चीखें थीं
और गाँव के गाँव, शहर के शहर जेलखानों में तब्दील हो चुके थे।
पर सत्ताधारी अपनी और अपने कवियों की
कविताई की बदौलत
मनुष्यता को बचाए हुए थे।
तब सत्ता के शीर्ष पर बैठा था एक
पुराना अनुभवी हत्यारा
जिसका ख़ास सलाहकार भी एक घुटा हुआ
विकट अपराधी था।
तो कविता की धूम उस हत्यारे तक
पहुँची
जिसके पास सत्ता की निरंकुश ताक़त थी
और सड़कों पर, जिसके एक इशारे पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार उन्मादियों की भीड़ भी थी।
सहसा सबसे ताक़तवर उस शख्स को लगा कि
एक चीज़ है जो उसके पास नहीं है।
वह भी कविता लिखने को मचल उठा।
उसके लिए ढेरों कविताएँ लिखी गयीं।
कुछ लिखीं कैबिनेट सचिव ने, कुछ मुख्य सचिव ने, कुछ मुख्य न्यायाधीश ने, कुछ
चुनाव आयोग के प्रमुख ने,
कुछ केन्द्रीय ख़ुफ़िया महक़मे के आला
अफसर ने
और कुछ साहित्य-कला के केन्द्रीय
प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कवि ने।
देश के सबसे ताक़तवर आदमी का छपा एक
बेजोड़ ताक़तवर कविता-संकलन
और अनूदित हुआ देश की अड़तालीस और
दुनिया की एक सौ अड़तालीस भाषाओं में।
विद्वज्जनों के बीच कविता उन्माद,
देशभक्ति, अंध-विश्वास और विवेकहीनता की तरह प्रतिष्ठित हुई।
पत्र-पत्रिकाओं में चर्चा हुई।
सड़कों पर जो घूम रही थीं हत्यारों की
टोलियाँ,
उनमें शामिल अभागे लोग
कविता के महात्म्य से उतना ही
अपरिचित बने रहे
जितना हत्या के शिकार लोग।
( 9-10 सितम्बर, 2018 )
अंतश के जज्बातों को जब शब्दों में पिरोया जाता है ,
ReplyDeleteपढ़कर जो समझ सकें उसको कविता कहा जाता है ।