कहानी - रफूजी / स्वदेश दीपक

कहानी - रफूजी स्वदेश दीपक नानी बिलकुल अनपढ़। अस्सी के ऊपर आयु होगी , लेकिन अंग्रेजी के कुछ शब्द उसे आते हैं - जैसे कि रिफ्यूजी , जिसे वह रफूजी बोलती है। कुछ शब्द इतिहास की उपज होते हैं , जो प्रतिदिन की जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं। ये शब्द राजा अथवा रानी की देन होते हैं। अंग्रेज जाते-जाते बँटवारा करा गए और विरासत में एक शब्द दे गए - रिफ्यूजी। जैसा कुछ वर्ष पहले हमारी महारानी मरी और विरासत में एक शब्द दे गई - उग्रवादी। सारा कस्बा उसे नानी कह कर बुलाता है। शायद परिवार के सदस्यों के अलावा किसी को भी असली नाम मालूम या याद नहीं। जिस्म के सारे हिस्से जिस्म का साथ छोड़ चुके हैं सिवा आवाज के। फटे ढोल की तरह की आवाज - एकदम कानफाड़ और ऊँची। बेटे तो बँटवारे की भेंट चढ़ गए , एक लड़की बची थी , इसलिए कि विभाजन से पहले वह जालंधर में ब्याही गई। अब यह भी नहीं। उसके बेटे , अपने दोहते के साथ नानी रहती है , इस कस्बे में। कलेमों में थोड़ी जमीन मिल गई , मकान भी बनवा लिया। दोहता कॉलेज में पढ़ाता है , लेकिन नानी उसे प्रोफेसर नहीं , मास्टर कह कर बुलाती है। उसकी समझ में सब पढ़ानेवाल...