कला के साथ विचारधारा और राजनीति के अन्तर्सम्बन्ध और ‘प्रतिबद्ध’ सम्पादक का भोंड़ा भौतिकवाद
कला के साथ विचारधारा और राजनीति के अन्तर्सम्बन्ध और ‘ प्रतिबद्ध ’ सम्पादक का भोंड़ा भौतिकवाद कात्यायनी पंजाब में अभी पंजाबी कवि सुरजीत पातर के कवित्व के चरित्र-निर्धारण को लेकर एक बहस जारी है। इस बहस में ‘ प्रतिबद्ध ’ पत्रिका ने अपना पक्ष रखा और सुरजीत पातर की कविता को क्रान्तिकारी मानने से इंकार किया , हालाँकि अतीत में उनकी अवस्थिति कुछ और थी , जिसे लेकर उन्होंने अपनी “ आत्मालोचना ” पेश की! उनकी दलील एक ओर पातर के कवि-कर्म के एक विश्लेषण पर आधारित है , जिसे ‘ सुर्ख लीह ’ के साथियों ने ग़लत क़रार दिया है , तो वहीं दूसरी ओर इस बात पर आधारित है कि पातर ने सरकार से पुरस्कार लिए , सरकारी संस्थाओं में पद ग्रहण किया , इत्यादि। इसका जवाब देते हुए ‘ सुर्ख लीह ’ ( सुर्ख रेखा) पत्रिका ने ‘ प्रतिबद्ध ’ की अवस्थिति की विस्तृत आलोचना पेश करते हुए तमाम दूसरी चीज़ों के साथ यह दिखलाया कि ‘ प्रतिबद्ध ’ के सम्पादक महोदय को सुरजीत पातर की कविताओं का न तो ‘ टेक्स्ट ’ समझ आया है और न ही ‘ कण्टेक्स्ट ’ । इसके बाद ‘ प्रतिबद्ध ’ ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में यह वायदा किया कि व