कविता - किशन की बातें (रोशनाबाद कविता-श्रृंखला)
कविता - किशन की बातें ( रोशनाबाद कविता-श्रृंखला) कविता कृष्णपल्लवी किशन तीन साल पहले देवरिया से आया था हरिद्वार। कुछ दिन होटलों में बेयरे का काम किया फिर फ़ैक्ट्री मज़दूर का जीवन चुन लिया। बारहवीं पास था और आईटीआई भी किया था और अख़बार ही नहीं, कहानी-उपन्यास भी पढ़ता था। किराये की कोठरी में तीन और मज़दूर रहते थे उसके साथ जो उसे दिलचस्प जीव मानते थे और दोस्त भी। किशन कभी सीधे ढंग से नहीं करता था कोई बात। उसके अपने मुहावरे होते थे, रूपक और बिम्ब होते थे। जब फैक्ट्री से ब्रेक दे देते थे मालिक तो लेबर चौक जाता था। लेबर चौक को 'सोनपुर का पशु मेला' कहता था। वहाँ जाने से पहले कहता था, "देखें आज कोई कसाई बकरे को किस भाव ले जाता है!" बस्ती में घूमते सूदखोरों के आदमियों को देखकर आवाज़ लगाता था "हुँड़ार घूम रहे हैं बे! इधर-उधर हो जाना!" लेबर कांट्रैक्टरों को 'ग़ुलामों का सौदागर' कहता था और लेबर ऑफिस को 'बाईजी का कोठा!' फ़ैक्ट्री में जाते मज़दूरों की टोलियों को पुकार कर कहता था, "भेड़ा भाई लोग ऊन उतरवाने जा रहे हैं!" एक फ़ैक्ट्री