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“हम पर्वतवासी - उन्नीस आर्मीनियायी कहानियाँ” पुस्‍तक की पीडीएफ फाइल PDF File of “Armenian short stories - We of the Mountains”

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“हम पर्वतवासी - उन्नीस आर्मीनियायी कहानियाँ” पुस्‍तक की पीडीएफ फाइल PDF File of “Armenian short stories - We of the Mountains” पीडीएफ फाइल डाउनलोड लिंक    लिंक 1          लिंक 2   For English PDF file Link 1 Link 2 डाउनलोड करने में कोई समस्‍या आये तो 9892808704 पर व्‍हाटसएप्‍प संदेश भेजें For Introduction in English please scroll down प्राक्कथन इस संग्रह में उन्नीस आर्मीनियाई लेखकों की कहानियाँ संकलित हैं। सब के सब विभिन्न पीढ़ियों, दृष्टिकोणों व लेखन शैलियों के लोग हैं। कुछेक निश्चित घटनाओं को अपना कथ्य बनाते हैं तो दूसरे जीवन के दार्शनिक मूल्यांकन का प्रयास करते हैं। यह एक संकलन है , कोई गद्यावली नहीं। आर्मीनियाई साहित्य में आर्मीनियाई कहानियों की शैली का इतिहास कई सौ साल का है और इसके लेखक विश्व संस्कृति के इतिवृत्त में अमर हैं। इसलिए आर्मीनियाई कहानियों की गद्यावली तैयार करने के लिए कई खण्डों वाले संस्करण की आवश्यकता होगी। बहरहाल , इस संकलन को प्रस्तुत करते समय कई ऐसे लेखकों को उद्धृत किया जा सकता है जो अपने समय में आर्मीनियाई कथा-लेखन के इतिहास में युगान्तरकारी माने जाते थे

कहानी - कायापलट / मोवसेस अराजी Story - Comrade Mukuch / Movses Arazi

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कहानी - कायापलट मोवसेस अराजी (हिन्‍दी अनुवाद -  राय गणेश चन्‍द्र  ) “हम पर्वतवासी (उन्‍नीस आर्मिनियायी कहानियां)” संग्रह से  For English version please scroll down  1 हर चीज बदलती थी , सिर्फ़ मुकुच नहीं बदलता। पिछले दस वर्षों से वह चर्मशोधनालय में पहरेदार का काम कर रहा है। इस अवधि में शासन में दो बार तब्दीली आयी और चर्मशोधनालय में पाँच बार प्रबन्धक बदले गये। इसके बावजूद , मुकुच पर इन सब बातों का कोई भी प्रत्यक्ष प्रभाव दृष्टिगोचर न होता। चाहे आप किसी से पूछें , जवाब एक ही होगा : हमेशा की तरह फटा-चीटा पहने मुकुच जहाँ पहले था , वहीं है। जो भी नया प्रबन्धक आता , पहले दिन ही निरीक्षण के दौरान मुकुच को देखता। और हर बार , औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद नया प्रबन्धक बड़ी अर्थपूर्ण आवाज में मुकुच को सम्बोधित करता , “ ठीक है , मेरे निर्देश तक अपनी जगह पर बरक़रार रहो।” मगर ऐसा निर्देश कभी नहीं आता और मुकुच अपने स्थान पर बरक़रार रहता उन शब्दों का अर्थ उसकी समझ के बाहर था। फिर उसे एकदम भुला दिया जाता या दूसरे शब्दों में उसकी उपस्थिति नज़र अन्दाज़ कर दी जाती। कुछ ही दिनों में नया प्रबन्धक उसे