'राष्ट्र के नाम सम्बोधन' में फिर से प्रचारमन्त्री के झूठों की बौझार और सच्चाइयां
'राष्ट्र के नाम सम्बोधन' में फिर से प्रचारमन्त्री के झूठों की बौझार और
सच्चाइयां
अभिनव सिन्हा
पहला झूठ: भारत सरकार ने सही समय पर
सही कदम उठा लिया। सफेद झूठ! भारत में पहला केस 30 जनवरी को आया। उस समय भारत ने कुछ एयरपोर्टों पर मात्र तापमान लेना
प्रारंभ किया था, न कि उपयुक्त स्क्रीनिंग करना। डब्ल्यूएचओ
की तरफ से चेतावनियां आने के बावजूद ट्रम्प के स्वागत में हज़ारों लोगों को
जुटाया गया। डब्ल्यूएचओ द्वारा स्प्ष्ट बताये जाने के बावजूद, भारत सरकार ने आक्रामक तरह से परीक्षण, पहचान व उपचार के लिए कोई कदम नहीं उठाया। और जब
मामला हाथ से निकल गया तब अचानक बिना किसी तैयारी के तीन हफ्ते का लॉकडाउन घोषित
कर दिया गया। इसका क्या नतीजा सामने आया है, उसके बारे में प्रचारमन्त्री ने एक शब्द भी नहीं कहा।
दूसरा झूठ: उन्नत और अधिक सामर्थ्यवान
देशों में भारत के मुकाबले अधिक कोरोना केस आये हैं और भारत ने उनके मुकाबले बहुत
अच्छी तरह से इस महामारी का मुकाबला किया है। बिल्कुल झूठ! भारत में कोरोना
केसों का सही आकलन करना ही सम्भव नहीं है, क्योंकि प्रति दस लाख परीक्षण की दर भारत में लगभग सभी देशों से कम
है। हम वास्तव में जानते ही नहीं हैं कि वास्तव में कोरोना से संक्रमित आबादी
कितनी है। यह हमें सीधे मौतों से पता चलेगा कि वास्तव में संक्रमण का परिमाण क्या
है। इसलिए प्रचारमंत्री ने जो आंकड़े बताये, वे सभी झूठ हैं।
तीसरा झूठ: आर्थिक संकट कोरोना संकट
के कारण पैदा हो गया है, जिससे
बचना मुमकिन नहीं था। सरासर झूठ! आर्थिक संकट पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था में 2019 के तीसरे क्वार्टर से ही भयंकर रूप में प्रकट
हो चुका था, हालांकि वह जारी पहले से ही था।
कोरोना का पहला केस आने से पहले ही ऑटोमोबाइल सेक्टर, टेक्सटाइल सेक्टर में मन्दी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी। कुल
मैन्युफैक्चरिंग गतिविधि सिंकुड़ रही थी और वैश्विक एजेंसियों ने आने वाले साल
में भारत की वृद्धि दर का आकलन पहले से कम करके चार प्रतिशत से नीचे रहने की भविष्यवाणी
कर दी थी। कोरोना महामारी से पहले ही मोदी राज में चार करोड़ नौकरियां जा चुकी
थीं। निश्चित तौर पर, कोरोना संकट के कारण आर्थिक संकट और
अधिक गहरायेगा, लेकिन मोदी सरकार इस महामारी का इस्तेमाल
करके आर्थिक तबाही की जिम्मेदारी से हाथ झाड़ने का काम कर रही है, ताकि बाद में मज़दूरों के ऊपर ''अनिवार्य कठोर कदम'' उठाने के नाम पर उनसे 12 घण्टे
काम करवाने का कानून संशोधन किया जाये, हर
प्रकार के श्रम अधिकार को समाप्त करने का काम किया जाये।
चौथा झूठ: प्रचारमन्त्री ने कहा कि
ग़रीब मज़दूर और मेहनतकश उनके परिवार के समान हैं और उनकी तकलीफों को कम करने का
हर प्रयास किया जा रहा है। बेशर्म झूठ! सच्चाई यह है कि देश के गोदामों में करीब 7 से 8
महीनों के लिए पर्याप्त भोजन है, पर्याप्त
बुनियादी सामग्रियां हैं, लेकिन
इन खाद्य व बुनियादी सामग्रियों का सार्वभौमिक व सार्वजनिक वितरण करने का कोई एलान
नहीं किया गया। लेकिन कल ही वित्तमन्त्री निर्मला सीतारमण ने कारपोरेट घरानों को
हुए आर्थिक हानि से निपटने के लिए क्या-क्या छूटें दी जायेंगी, यह बता दिया था। कारपोरेट घरानों के लिए असली ''राष्ट्र को सम्बोधन'' कल ही हो गया था! तभी यह बात बता दी गयी थी कि पूंजीपतियों को
मज़दूरों को और ज्यादा निचोड़ने के लिए (क्योंकि मुनाफा श्रम के शोषण से ही आता
है!) पूरी कानूनी छूट दी जायेगी। बेरोज़गारी और भूख से तड़प रहे मज़दूर इसके लिए
मजबूर भी होंगे क्योंकि ठेका, दिहाड़ी
और यहां तक कि स्थायी मज़दूरों की बड़ी आबादी बेरोज़गार हो चुकी है।
पांचवां झूठ: सिर्फ लॉक डाउन को 3 मई तक जारी रखने से कोरोना महामारी से निपटा जा
सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत सरकार को पहले ही बता चुका है कि कोरोना
संक्रमण भारत में अब जिस चरण में है, उसमें
महज़ लॉकडाउन पर्याप्त नहीं है, बल्कि
बहुत ही बड़े पैमाने पर मास टेस्टिंग, क्वारंटाइनिंग
और ट्रीटमेण्ट की आवश्यकता है। इसके बारे में कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं
और जो थोड़े-बहुत उठाये गये हैं, वे
निहायत अपर्याप्त हैं। सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञ व डॉक्टर इस सच्चाई का बयान
बार-बार कर रहे हैं, लेकिन इसके बारे में कोई ठोस कदम नहीं
उठाया गया है।
छठा झूठ: कोरोना की रोकथाम पूरी तरह
से जनता की जिम्मेदारी है और इसलिए वह ''वफादार
सिपाही की तरह लॉकडाउन के सारे नियमों का पालन करे, बुनियादी सेवाएं प्रदान कर रहे लोगों का सम्मान करे, बुजुर्गों का ध्यान रखे, ग़रीबों की मदद करे'', वगैरह।
लेकिन सरकार कोरोना की रोकथाम के लिए लॉकडाउन के अलावा ठोस तौर पर क्या करे,
इसके बारे में कोई बात नहीं। जो चीज़ सबसे ज़रूरी
है वे तीन काम हैं: पहला, व्यापक
पैमाने पर मास टेस्टिंग, क्वारंटाइनिंग
व ट्रीटमेण्ट; दूसरा, ग़रीब मेहनतकश आबादी के लिए सभी बुनियादी वस्तुओं का सार्वभौमिक व
सार्वजनिक वितरण; और तीसरा, सभी स्वास्थ्यकर्मियों को पर्याप्त सुरक्षा उपकरण व टेस्टिंग
किट्स मुहैया कराना, जिसके लिए स्वास्थ्यकर्मी शुरू से
ही मांग कर रहे हैं। इस बारे में प्रचारमंत्री के पास कहने के लिए कुछ नहीं था।
सातवां झूठ: प्रचारमन्त्री ने सीमित
संसाधनों का भी रोना रोया, हालांकि
एनपीआर-एनआरसी करने की गैर-जरूरी और जनविरोधी प्रक्रिया चलाने के लिए ये सीमित
संसाधन कभी बाधा नहीं थे; हाल ही
में सांसदों के वेतनों और भत्तों में भारी बढ़ोत्तरी करने में सीमित संसाधन कभी
बाधा नहीं थे; पूंजीपतियों को हर साल लाखों करोड़
रुपयों की छूट देने और सारे गबनकारी पूंजीपतियों को छूट देने और चार्टर्ड विमानों
से भगाने में सीमित संसाधन कभी बाधा नहीं थे; कोरोना महामारी फैलने के बाद 102 चार्टर्ड विमानों से धनपशुओं की औलादों को देश वापस लाने में सीमित
संसाधन कभी बाधा नहीं थे। लेकिन जब ग़रीब आबादी को इस संकट में खाना देने की बात
आयी तो सीमित संसाधनों का रोना शुरू! इसी सरकार ने कल सुप्रीम कोर्ट में अपने
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा सभी अस्पतालों का कोरोना से निपटने के लिए राष्ट्रीकरण
करने का विरोध किया है, जिससे कि सरकार के पास इस संकट से
निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन आ गये होते। लेकिन जनता के लिए हमेशा ही संसाधन कम
होते हैं, जबकि पूंजीपतियों, धनपशुओं के लिए जनता के श्रम की लूट से भरी गयी
सभी तिजोरियों के दरवाज़े पूरी तरह खुले होते हैं।
आठवां झूठ: वैसे तो गरीबों को
प्रचारमंत्री ने अपना ''परिवार'' बताया, लेकिन इन्हीं गरीबों के बीच अल्पसंख्यकों
की जो भारी आबादी है, उस पर कोरोना संकट के नाम पर संघ
परिवार के गुण्डे जो हमले कर रहे हैं, उसके
बारे में प्रचारमंत्री के पास कहने के लिए एक शब्द भी नहीं था। इस रूप में भी
फासीवादी गिरोह कोरोना संकट को ग़रीब मुसलमान आबादी को निशाना बनाने का एक अवसर
बना रहे हैं। इस समय भी सीएए-एनआरसी के खिलाफ जारी जनान्दोलन के नेतृत्व के
लोगों की धरपकड़ जारी है। इस समय भी गौतम नवलखा व आनन्द तेलतुंबड़े जैसे जनवादी
अधिकार कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों पर झूठे मामले दर्जकर उन्हें गिरफ्तार करना
जारी है। यहां भी दिख रहा है कि फासीवादी मोदी सरकार की प्रथामिकताएं क्या हैं और
प्रचारमंत्री के नकली सरोकार की असलियत क्या है।
नौवां झूठ: लॉकडाउन के दौरान सभी
गतिविधियों को बन्द करने की बात प्रचारमंत्री बार-बार कर रहे थे। लेकिन बुनियादी
सेवाओं के अलावा और भी कई गतिविधियां जारी हैं। जैसे कि संसद सत्र न होने के
बावजूद ऑर्डिनेंस के रास्ते चार में से तीन प्रस्तावित मज़दूर-विरोधी लेबर कोडों
को लाने की पूरी तैयारी की जा चुकी है। यह किनके लिए बुनियादी कार्य है? अम्बानियों और अडानियों के लिए! कायदे से इसके
लिए जनता को ऐसी सरकार पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए!
इसके अलावा छोटे-छोटे बहुत से झूठ
बोले गये, जिनका यहां खण्डन करना सम्भव नहीं
है। प्रचारमन्त्री ने एक सच्चे फासीवादी की तरह यह भी बता दिया कि आने वाले
दिनों में लॉकडाउन में और भी सख्ती बरती जायेगी, और जिस भी क्षेत्र में कोरोना के नये मामले आयेंगे, उसकी सज़ा उस इलाके की जनता को सख़्ती को और
बढ़ाकर दी जायेगी। यानी, करेंगे
प्रचारमन्त्री और भरेंगे हम सब लोग।
थाली बजाने और मोमबत्ती जलाने जैसा
कोई आह्वान प्रचारमन्त्री ने नहीं किया क्योंकि उससे पूरे देश में प्रचारमन्त्री
की भद्द ही पिटी थी। कई मध्यवर्गीय प्रगतिशील व जनवादी लोग अपनी बालकनी से जो देश
देखते हैं, वे ''गो कोरोना गो कोरोना'' का
भयंकर उत्सव देखकर घबरा गये थे, लेकिन
वास्तव में व्यापक ग़रीब आबादी में इस नौटंकी से मौजूदा व्यवस्था के प्रति
नफ़रत और बढ़ रही थी। इसी वजह से प्रचारमंत्री ने इस बार खास तौर पर मज़दूरों और
ग़रीबों की मदद करने की बात की और किसी नयी विद्रूप नौटंकी करने का अपने भक्तों
से आह्वान नहीं किया। भक्त ज्यादा 'वोकल'
हैं, इसलिए
ज़्यादा दिखते हैं। मेहनतकश आबादी की व्यापक व मूक बहुसंख्या इस प्रहसन से घृणा
कर रही है। एक हिस्सा ऐसा भी है जो बिना सोचे-समझे इस नौटंकी में शामिल हो जाता
है। यह इस संकट के गहराने के साथ घटता जायेगा। पिछली दो नौटंकियों के दौरान ही यह
घटा है।
कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि ''राष्ट्र
के नाम सम्बोधन'' में प्रचारमन्त्री के पास कोई
प्रभावी ठोस कदम नहीं था, सिवाय
लॉकडाउन बढ़ाने के, जबकि अब महज़ लॉकडाउन बढ़ाने से मरने
वालों की संख्या को और संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या को प्रभावी तरीके से
नियंत्रित करना सम्भव नहीं होगा। कोरोना संकट को पूंजीपति वर्ग एक अवसर में तब्दील
कर रहा है जिससे कि मज़दूरों को और बुरी तरह से निचोड़ा जा सके और ''राष्ट्रहित'' के नाम पर उन्हें पूंजीवादी राष्ट्र के गुलामों की फौज़ में तब्दील
कर दिया जाय। हमें भी इस संकट को एक अवसर में तब्दील करना होगा, जिसमें कि हम व्यापक जनता के सामने इस संकट के
वास्तविक कारणों, इसके लिए जिम्मेदार शक्तियों और
समूची पूंजीवादी व्यवस्था के सीमान्तों को उजागर कर सकें। यदि क्रान्तिकारी
शक्तियां यह नहीं कर सकीं, तो
प्रतिक्रियावादी फासीवादी शक्तियां अपने मंसूबों में कामयाब होंगी।
Absolutely brilliant bro you have pointed out each and every aspect in a very very clear view even I am totally agree with all your points few days back I have given a speech which was against the government but since then people started to troll me
ReplyDeleteकांग्रेस BJP को सत्ता से दूर रखना एकमात्र उपाय
ReplyDeleteThese two parties are for rich not for true Indian.
Deleteजनता मे अशिक्षा और अंधविश्वास
ReplyDeleteजनता मे अशिक्षा और अंधविश्वास
ReplyDeleteNo negative please
ReplyDelete🌹😊🙏
Share positive
Think positive
Act positive..
No politics please.
🙏🙏🙏
उपरोक्त लेख पढकर येसा महसूस करता हूँ कि कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा के उपयो का समर्थन एवम लोंगो का जीवन बचाने मे सहयोग की बजाय राजनीति कर आम लोगों का जीवन खतरे मे डालने का काम कर रहे, श्रम करो, कोरोना योद्धा न बन सको तो भड़काऊ पोस्ट तो मत डालो, मानव जीवन बचाना सरकार के साथ साथ आम आदमी का भी कार्य व जिम्मेदारी है। ईश्वर आपको सद बद्दी दे।
ReplyDeleteHistory Ka sabse jhoota prime minister hai ye
ReplyDeleteभोली भाली जनता का लगातार शोषण उन्हें मानसिक गुलाम बनाकर कुछ भी झूठ मूठ परोसा जा सकता है।
ReplyDeleteइसलिए बुद्धिजीवी लोगों को आगे आना ही होगा। ताकि इस सरकार की झूठ और मक्कारी से लड़ सकें।
Right to express thought सभीको है। Actually True or false ye to आनेवाला वक्त ही बतायेगा पढणेमे हर्ज करता है। लोगों को पढ़ने दो पाबंदी लगाने से करता फायदा। आनेवाला वक्त तय करेगा । विरोधी
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteYeh jhooth bakwas hai. Sarkar billion sami kam or the hai. Janta ko jaypur saying janta chahiye. He kewal sarkar nhi tamari bhi nominated hai. Koi bhi sarkar ho aise Mahanadi mein jan sagging bhut arakshan hai. CORONA ko Havana hai janta hi have spit hai.
ReplyDeleteकिसी लानत मलानत का
ReplyDeleteअसर उस पर नहीं होता.
किसी भी झूठ पर नीचा
अब उसका सर नहीं होता.
न कोई जाति,मजहब,
कौम होती है गरीबी की;
किसी का दुख किसी से भी
कभी कमतर नहीं होता.
कहीं से उड़,कहीं को भी,
कभी भी जा पहुँचती हैं;
इन अफवाहों के 'महरूम'
पैर,पहिया,पर नहीं होता.
Best story ,Best writer in his time.such type of stories must publish in paper far the wel fare of today humanity.
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