कविता - तानाशाह और साहित्य-संस्कृति के मेले / कविता कृष्णपल्लवी
कविता - तानाशाह और साहित्य-संस्कृति के मेले कविता कृष्णपल्लवी हालाँकि हर चुनाव में उसका जीतना तय होता था लेकिन फिर भी तानाशाह कम से कम चुनाव तो करवाता ही था अपार धन और ताक़त ख़र्च करके जनता से अपनी ताक़तवर सत्ता के लिए सहमति हासिल करने के लिए, एकदम संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीके से I अपने लिए बस थोड़ा सा ही लेकर तानाशाह सभी उद्योगपतियों-व्यापारियों को दोनों हाथों से धन बटोरने की छूट देता था ताकि वे देश की तरक़्क़ी में खुलकर योगदान कर सकें I तानाशाह अपने संघर्षों की कहानियाँ युवाओं को प्रेरित करने के लिए बार-बार बताता था और इस विश्वास को पुख़्ता बनाता था कि अगर लगन हो तो कोई चोर, रंगसाज़, सड़क का गुण्डा, तड़ीपार या चाय बेचने वाला भी सत्ता के शीर्ष तक पहुँच सकता है और देश की बहुमूल्य सेवा कर सकता है बशर्ते कि इस महान लक्ष्य के लिए उसमें कुछ भी कर गुज़रने की हिम्मत हो, सड़कों पर ख़ून की नदियाँ बहाने देने का, आगज़नी, दंगों और बलात्कारों की झड़ी लगा देने का दृढ़निश्चय हो, जगत सेठों का दिल जीत लेने का हुनर हो और लाखोलाख गुण्डों, मवालियों, लंपटों को धर्मयोद्धा बना देने का जादू हो! ताना...