कहानी - टिटवाल का कुत्ता / सआदत हसन मंटो Story - The Dog of Ṭeṭval / Saadat Hasan Manto

टिटवाल का कुत्ता सआदत हसन मंटो For English version please scroll down कई दिनों से दोनों तरफ से सिपाही अपने-अपने मोर्चे पर जमे हुए थे। दिन में इधर और उधर से दस-बारह गोलियाँ चल जातीं , जिनकी आवाज़ के साथ कोई इनसानी चीख बुलन्द नहीं होती थी। मौसम बहुत खुशनुमा था। हवा जंगली फूलों की महक में बसी हुई थी। पहाडिय़ों की ऊँचाइयों और ढलानों पर लड़ाई से बेखबर कुदरत , अपने रोज के काम-काज में व्यस्त थी। चिडिय़ाँ उसी तरह चहचहाती थीं। फूल उसी तरह खिल रहे थे और धीमी गति से उडऩे वाली मधुमक्खियाँ , उसी पुराने ढंग से उन पर ऊँघ-ऊँघ कर रस चूसती थीं। जब गोलियाँ चलने पर पहाडिय़ों में आवाज़ गूँजती और चहचहाती हुई चिडिय़ाँ चौंककर उडऩे लगतीं , मानो किसी का हाथ साज के गलत तार से जा टकराया हो और उनके कानों को ठेस पहुँची हो। सितम्बर का अन्त अक्तूबर की शुरूआत से बड़े गुलाबी ढंग से गले मिल रहा था। ऐसा लगता था कि जाड़े और गर्मी में सुलह-सफाई हो रही है। नीले-नीले आसमान पर धुनी हुई रुई जैसे , पतले-पतले और हल्के-हल्के बादल यों तैरते थे , जैसे अपने सफेद बजरों में नदी की सैर कर रहे हैं। पहाड़ी मोर्चों पर...