राफ़ेल घोटाला - फ्रांस के राष्‍ट्रपति ओलांदे ने खोल दी मोदी-अंबानी पार्टनरशिप की पोल


राफ़ेल घोटाला - फ्रांस के राष्‍ट्रपति ओलांदे ने खोल दी मोदी-अंबानी पार्टनरशिप की पोल 

सत्‍यम वर्मा 

राफ़ेल घोटाला भारत ही नहीं दुनिया के सबसे बड़े घोटालों में से एक है। इससे कहीं कम बड़े मामलों में जापान, कोरिया सहित कई देशों में सरकारें गिर चुकी हैं और प्रधानमंत्री और राष्‍ट्रपति को जेल जाना पड़ा है। इस मामले में भ्रष्‍टाचार के इतने सारे साक्ष्‍य पहले ही आ चुके थे कि शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी, और मोदी सरकार द्वारा किए सौदे के समय फ्रांस के राष्‍ट्रपति रहे ओलांदे का बयान आ जाने के बाद तो मोदी सरकार के झूठ को ढंक रही लंगोट की आख़िरी चिन्‍दी भी उड़ गई है। लेकिन गोयबेल्‍स को भी मात देने वाले अंदाज़ में टीवी चैनलों से इसकी चर्चा ग़ायब है, सरकार का कोई छुटभैया कह रहा है कि मामले की ‘’जाँच’’ कराई जाएगी, सरगना चुप साधे हुए है और सारे हंगामे को ढँक देने वाला कोई नया भावनात्‍मक मुद्दा उभारने की योजना बनाने में अपने सिपहसालारों के साथ व्‍यस्‍त है।
विपक्षी बुर्जुआ पार्टियाँ ट्विटर पर व्‍यंग्‍यबाण छोड़ने से आगे बढ़ने की कूवत खो चुकी हैं। न तो उनके पास जुझारू कार्यकर्ता हैं, न ज़मीनी आधार, और न ही भ्रष्‍टाचार के सवाल पर सड़क पर उतरने का नैतिक साहस रह गया है। जिनका एक-एक विधायक तक ख़ुद भ्रष्‍टाचार के कीचड़ में सना हुआ है उनमें इस सवाल पर जुझारू आन्‍दोलन करने का दम कहाँ से आयेगा। माकपा, भाकपा जैसे संशोधनवादी पिलपिले और ठस हो चुके हैं। जिनकी पूँछ पकड़कर ये फ़ासीवाद को हराने (चुनाव में) का हसीन ख्‍वाब देख रहे हैं जब वे ही कुछ नहीं कर पा रहे तो भला ये क्‍या करेंगे। साल में 2-3 बार अपने कार्यकर्ताओं को जुटाकर कुछ आनुष्‍ठानिक हड़ताल व प्रदर्शन कर लेने में ही मगन होते रहते हैं और अपने समर्थकों को संतुष्‍ट होने का मसाला देते रहते हैं। पूरा विपक्ष और तमाम बुर्जुआ लिबरल और बहुतेरे वाम समर्थक बुद्धिजीवी भी इस मामले में ‘’जनता पर भरोसा’’ करके बैठा हुआ है कि पिछले साढ़े चार साल की बदहाली से तंग जनता ख़ुद ही फ़ासिस्‍टों के इस गिरोह को चुनाव में हराकर बाहर कर देगी और सत्‍ता का फल टप से उनकी झोली में आ गिरेगा।
अव्‍वलन तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है, फ़ासिस्‍ट चुनाव के पहले क्‍या गुल खिला सकते हैं कोई नहीं जानता। सत्‍ता में आने के बाद, फ़ासिस्‍ट दुनिया में कहीं भी आसानी से सत्‍ता छोड़ते नहीं हैं, और अब किसी को इस बात में तो संदेह नहीं रह जाना चाहिए कि हिन्‍दुत्‍ववादी फासिस्‍टों की सत्‍ता के सभी अंगों पर पकड़ और समाज में उनकी जड़ें बहुत मज़बूत हो चुकी हैं। दूसरे, अगर किसी करामात से वे चुनाव में सत्‍ता से बाहर हो भी गए तो भी पूरे समाज में उनकी जकड़ बनी रहेगी, और नौकरशाही, न्‍यायपालिका, पुलिस, शिक्षा तंत्र, मीडिया आदि में उनकी घुसपैठ बनी रहेगी। जो भी नई सरकार आएगी वह इन्‍हीं आर्थिक नीतियों को लागू करेगी और उससे पैदा होने वाले असन्‍तोष की आग पर अपनी रोटियाँ सेंकने में फासिस्‍ट फिर से जुट जायेंगे। इसलिए फासीवाद के ख़ि‍लाफ़ लड़ाई लम्‍बी है, किसी खु़शफ़हमी में रहना घातक है, मज़दूर वर्ग आधारित व्‍यापक फ़ासीवाद-विरोधी मोर्चा खड़ा करने की कोशिशें और कैडर-आधारित प्रगतिशील सामाजिक आन्‍दोलन खड़ा कर देने की कोशिशें तेज़ करनी होंगी। कोई भी शॉर्टकट शॉर्ट समय के लिए थोड़ी राहत भले ही दे दे, बदले में नासूर को और गहरा ही कर जाएगा।


Comments

  1. The Nation can't be bluffed repeatedly. Catastrophic failures will come to light and 'partners' in eroding the ethical well being of a great civilization will pay the price. Corruption, consciously perpetrated to malign the image of Mother INDIA will have its last say and will NEVER rise again.....

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  2. येसे चोरोपर पर जल्दसे जल्द कडी कारवाही होना चाहिये

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  3. Bharat me chotiyo ki kami nahi .gadhe ki tarah dhechu- dhechu karte rahne ki.

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