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Showing posts from August, 2020

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविता - अगली पीढ़ी के लिए Poem - ‘To Those Who Follow in Our Wake’ by Bertolt Brecht

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  बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविता - अगली पीढ़ी के लिए 1- सचमुच मैं अंधेरे युग में जी रहा हूं सीधी-सादी बात का मतलब बेवकूफी है और सपाट माथा दर्शाता है उदासीनता वह, जो हंस रहा है सिर्फ इसलिए कि भयानक खबरें अभी उस तक नहीं पहुंची हैं कैसा जमाना है कि पेड़ों के बारे में बातचीत भी लगभग जुर्म है क्योंकि इसमें बहुत सारे कुकृत्यों के बारे में हमारी चुप्पी भी शामिल है। वह जो चुपचाप सड़क पार कर रहा है क्या वह अपने खतरे में पड़े हुए दोस्तों की पहुुंच से बाहर नहीं है? यह सच है: मैं अभी भी अपनी रोजी कमा रहा हूं लेकिन विश्वास करो, यह महज संयोग है इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि मेरी पेट-भराई का औचित्य सिद्ध हो सके यह इत्तफाक है कि मुझे बख्श दिया गया है (किस्मत खोटी होगी तो मेरा खात्मा हो जायेगा) वे मुझसे कहते हैं: खा, पी और मौज कर क्योंकि तेरे पास है लेकिन मैं कैसे खा पी सकता हूं जबकि जो मैं खा रहा हूं, वह भूखे से छीना हुआ है और मेरा पानी का गिलास एक प्यासे मरते आदमी की जरूरत है। और फिर भी मैं खाता और पीता हूं। मैं बुद्धिमान भी होना पसन्द करता पुरानी पोथियां बतलाती हैं कि क्या है बुद्धिमानी: दुनिया के टंटों से खुद क

कहानी - नीलकांत का सफर / स्वयं प्रकाश

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कहानी -  नीलकांत का सफर स्वयं प्रकाश नीलकांत सफर कर रहे थे। चूंकि वह जनता थे , इसलिए थर्ड क्लास में सफर कर रहे थे और चूंकि वह थर्ड क्लास था , इसलिए ट्रेन के आखिरी डिब्बे का आखिरी कम्पार्टमेंट था। बाकी ट्रेन या तो फस्र्ट थी या शयनयान या आरक्षिक या और कुछ। लगता था , साधारण थर्ड के इस कम्पार्टमेंट को भी पीछे ही पीछे मात्र दयावश या औपचारिकता निभाने के लिए जोड़ दिया गया है। जब ट्रेन कहीं रुकती तो प्लेटफार्म पर बीचोंबीच फस्र्ट के डिब्बे होते जहां चाय , पानी , पान-सिगरेट , फल-फ्रूट , पूछताछ , स्टेशन-मास्टर सब सामने ही होता। साधारण थर्ड अक्सर प्लेटफार्म से बहुत दूर जंगल में रुकता , जहां से हर स्टेशन पर बहुत सारे प्यासे अपने-अपने लोटे-गिलास लेकर वाटरहट की तरफ भागते जो अक्सर सूखी या खाली या बंद होती... तब आगे का कोई नल या प्याऊ बर्र का छत्ता बन जाता। दो-चार पानी पी पाते , चार-छह भर पाते कि सीटी बज जाती और लोग वापस दुम की तरफ भागते। यह सब इतना तय कि सहज व ‘ शाश्वत ’ सा था कि कोई इस बारे में नहीं सोचता। सोचता भी तो बस यही कि मुसाफिरी में तो यह सब चलता ही है। नीलकांत उसी डिब्बे में थे। डिब्

कहानी - एक छोटे लड़के और एक छोटी लड़की की कहानी जो बफ़ीर्ली ठण्ड में ठिठुरकर मरे नहीं / मक्सिम गोर्की

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एक छोटे लड़के और एक छोटी लड़की की कहानी जो बफ़ीर्ली ठण्ड में ठिठुरकर मरे नहीं बड़े दिन की एक कहानी मक्सिम गोर्की यह एक आम रिवाज हो गया है कि साल में एक बार बड़े दिन की कहानियों में कुछ एक छोटे लड़कों और लड़कियों को ब र्फ़ -पाले में जामकर मार दिया जाता है। बड़े दिन की प्रतिष्ठित कहानी का बेचारा ग़रीब छोटा लड़का या बेचारी ग़रीब छोटी लड़की आमतौर से किसी प्रासाद की खिड़की के रास्ते शानदार दीवान-खाने में जगमग करते बड़े दिन के पेड़ को मुग्ध भाव से खड़ी देखती रहती है और इसके बाद ब र्फ़ -पाले में जाम होकर मर जाती है , कड़ुवाहट और घोर निराशा में डूबी। इन लेखकों के भले इरादों की मैं क़द्र करता हूँ, बावजूद उस निर्ममता के , जिससे कि वे अपने नन्हें हीरों और हीरोइनों का टिकट कटाते हैं। मैं जानता हूँ कि ये लेखक इन ग़रीब छोटे बच्चों को इसलिए जाम करते हैं कि छोटे धनी बच्चों को उनके अस्तित्व की याद दिलाई जा सके , लेकिन जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है , इतने शुभ लक्ष्य तक के लिए किसी छोटे ग़रीब लड़के या छोटी ग़रीब लड़की को जाम करके मारना मेरे बूते से बाहर है। मैं ख़ुद ब र्फ़ -पाले में जाम होकर कभी नहीं मरा और मैंने किसी छोटे