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Showing posts from February, 2019

युद्धोन्माद के विरुद्ध बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त की कविताएं Bertolt Brecht's Poem against War Hysteria

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युद्धोन्‍माद के विरुद्ध बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त की कविताएं मूल जर्मन से अनुवाद – मोहन थपलियाल 1. युद्ध जो आ रहा है (1936-38) युद्ध जो आ रहा है पहला युद्ध नहीं है। इसे पहले भी युद्ध हुए थे। पिछला युद्ध जब खत्म हुआ तब कुछ विजेता बने और कुछ विजित- विजितों के बीच आम आदमी भूखों मरा विजेताओं के बीच भी मरा वह भूखा ही। _________________________ 2. दीवार पर खड़िया से लिखा था: (1936-38) दीवार पर खड़िया से लिखा था: वे युद्ध चाहते हैं जिस आदमी ने यह लिखा था पहले ही धराशायी हो चुका है। _________________________ 3. जब कूच हो रहा होता है (1936-38) जब कूच हो रहा होता है बहुतेरे लोग नहीं जानते कि दुश्मन उनकी ही खोपड़ी पर कूच कर रहा है वह आवाज जो उन्हें हुक्म देती है उन्हीं के दुश्मन की आवाज होती है और वह आदमी जो दुश्मन के बारे में बकता है खुद दुश्मन होता है। _________________________ 4. ऊपर बैठने वालों का कहना है: (1936-38) ऊपर बैठने वालों का कहना है: यह महानता का रास्ता है जो नीचे धंसे हैं, उनका कहना हैः यह रास्ता कब्र का है। _____

युद्धोन्माद के बीच जिन्हें वाकई मुल्क की फ़िक्र है, वे ठण्डे दिमाग़ से ये लेख पढ़ें

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युद्धोन्माद के बीच जिन्हें वाकई मुल्क की फ़िक्र है, वे ठण्डे दिमाग़ से ये लेख पढ़ें कविता कृष्‍णपल्‍लवी गाली देने वाले उन्मादी यहाँ कत्तई न आयें। देशभक्ति ज़्यादा ज़ोर मार रही हो तो बाडर पर चले जायें। जिन्हें वाकई मुल्क की फ़िक्र है , वे ठण्डे दिमाग़ से पढ़ें। (1) महीनों पहले लिखा था कि जब सारे वायदों की बखिया उधड़ जायेगी और मँहगाई , बेरोज़गारी , जी.एस.टी. , नोटबंदी , जल-जंगल-ज़मीन की लूट और पूँजीपतियों की देश-हड़प मुहिम से ध्यान हटाना होगा तो , पहले राममंदिर का मसला उछाला जाएगा और फिर युद्धोन्मादी देशभक्ति का प्रेत जगाया जाएगा। (2) सोचिये , उरी और अमरनाथ यात्रियों पर हमला भी चुनावों के ऐन पहले ही हुआ था। इस बार भी ऐसा ही हुआ। फिर याद कीजिए , पुलवामा हमले के अंदेशे की इंटेलिजेंस रिपोर्ट की अनदेखी क्यों की गयी ? अब तो राज ठाकरे जैसा एक छुटभैय्या फासिस्ट भी कह रहा है कि अजित डोभाल से पूछताछ हो तो पुलवामा की सच्चाई सामने आ जायेगी। (3) सीमित युद्ध की ज़रूरत इमरान खान को भी है , क्योंकि उसके सभी पॉपुलिस्ट नारों की हवा चन्द महीनों में ही निकल चुकी है और अवाम उसे सेना की कठपुतली समझता है।

पुलवामा में आतंकवादी हमला और संघी फासीवादियों की रणनीति

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पुलवामा में आतंकवादी हमला और संघी फासीवादियों की रणनीति  पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद देश में जो कुछ हो रहा है उस पर बहुत ठीक से विचार करने की जरूरत है और उसी को देखते हुए हम आज सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्ण पल्लवी के चार छोटे लेखों को मिलाकर यहां प्रस्तुत कर रहे हैं सभी साथियों से आग्रह है कि वह ध्यान से पढ़ें और विचार करें ( एक मिनट रुकिए! अगर आप एक शांतिप्रिय , सेक्युलर , तरक्कीपसंद , लोकतांत्रिक चेतना वाले नागरिक हैं , तो इस टिप्पणी को ज़रूर-ज़रूर पढ़िए! अगर ये चिन्तायें और ये सरोकार आपके भी बनते हैं , तो कुछ ज़िम्मेदारियाँ आपकी भी बनती हैं! सबसे पहले तो यह कि अगर आप सहमत हैं तो यह बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचानी है!) . भई , संदेह करने के पर्याप्त कारण हैं! पुलवामा हमले के बाद मोदी और उनके सभी मंत्री-सांसद धुँआधार रैलियाँ कर रहे हैं! मोदी तो सर्वदलीय बैठक बुलाकर खुद रैली में चले गए। भाजपा के मंत्री और सांसद मारे गए जवानों के शवों के साथ रोड शो कर रहे हैं! मुख्य धारा की मीडिया के कुत्ते लाशों पर महाभोज में जुटे ही हैं! जो हिन्दुत्ववादी साइबर गुंडे और भाड़े के

वेलेंटाइन डे और भगतसिंह को फाँसी की सजा का संघी कुत्साप्रचार - शहीदों को विरासत को बदनाम करने की साजिश

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वेलेंटाइन डे और भगतसिंह को फाँसी की सजा का संघी कुत्साप्रचार - शहीदों को विरासत को बदनाम करने की साजिश पिछले कुछ वर्षों से वेलेंटाइन डे के दिन संघ व उसके तमाम अनुषंगी संगठन अपने परम्परागत तरीके मार पिटाई के अलावा विरोध का एक ओर तरीका प्रयोग में ला रहे है। उन् ‍ होंने इस दिन को किसी ओर दिन के रूप में पेश करने की भी कोशिश शुरू कर दी है। संघ के कुछ लोग इस दिन मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने की वकालत करते हैं। इस दिवस का मुख् ‍ य प्रचारक आसाराम बापु था पर उसके जेल में जाने पर ये परियोजना खटाई में पड़ गयी। अब इण् ‍ टरनेट पर ये तमाम सारे संघी व उनके प्रभाव में आये नौजवान ये प्रचार कर रहे हैं कि इस दिन 1930 में शहीद भगतसिंह और उनके साथियों को फाँसी की सजा सुनाई गई थी। शुरूआती कुछ सालों में तो ये बेशर्मी से इसी दिन को भगतसिंह को फाँसी की सजा देने की तारीख बताते थे पर बाद में इनका ये झूठ जब चला नहीं तो इन्होने ये प्रचार चालु किया कि इस दिन उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। इतिहासबोध से रिक्त मध्यम वर्ग के बीच इस प्रचार का अच्छा खासा प्रभाव भी हो चुका है। यहां तक कि एक अख़बार राजस्थान पत्रिका