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Showing posts from July, 2022

प्रेमचंद, उनका समय और हमारा समय : निरंतरता और परिवर्तन के द्वंद्व को लेकर कुछ बातें Premchand, His Era and Our Times: Some Thoughts on the Dialectics of Continuity and Change

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प्रेमचंद ,   उनका समय और हमारा समय : निरंतरता और परिवर्तन के द्वंद्व को लेकर कुछ बातें For English version please scroll down  कविता कृष्णपल्लवी प्रेमचंद की   300  से अधिक कहानियों में से कम से कम   20  तो ऐसी हैं ही ,   जिनकी गणना विश्व की श्रेष्ठतम कहानियों में की जा सकती है और जिनकी बदौलत उनका स्थान मोपासां ,   चेखोव ,  ओ. हेनरी ,  लू शुन आदि श्रेष्ठतम कथाकारों की पाँत में सुरक्षित हो जाता है।   ' कफ़न ', ' पूस की रात ', ' ईदगाह ', ' सवा सेर गेहूँ ',' ' रामलीला ',' गुल्लीडंडा ',' बड़े भाईसाहब ', ' सद्गति ', ' ठाकुर का कुआँ ', ' शतरंज के खिलाड़ी '  जैसी कहानियाँ कभी भुलाई नहीं जा सकतीं। महत्वपूर्ण बात यह है कि एक पिछड़े हुए सामंती समाज के ग्रामीण जीवन के जो यथार्थवादी चित्र प्रेमचंद की कहानियों में मिलते हैं ,   वे विश्व के श्रेष्ठतम कथाकारों के वहाँ भी दुर्लभ हैं। अपने सृजनात्मक जीवन के बड़े हिस्से में गाँधीवादी आदर्शोन्मुखता के प्रभाव के बावजूद प्रेमचंद ने भारतीय गाँवों के भूमि-संबंधों और वर्ग-संबंधो

कविता - तानाशाह का न्याय / कविता कृष्णपल्लवी

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  तानाशाह का न्याय कविता कृष्णपल्लवी तानाशाह को कहीं से न्याय के जहाँगीरी घण्टे के बारे में पता चला और उसने तय किया कि अबसे वह जहाँगीर की तरह न्याय किया करेगा। फिर उसने मुख्य न्यायाधीश को आवारा पशुओं,शराबियों, चकलाघरों और ट्रैफ़िक के नियम तोड़ने से सम्बंधित मामले निपटाने की ज़िम्मेदारी सौंप दी और खुद ही लोगों को न्याय देने लगा। उसने अपने महल के दरवाज़े पर दुनिया का सबसे बड़ा घण्टा टंगवा दिया और लोगों को न्याय की इस नयी व्यवस्था के बारे में बता दिया गया। तानाशाह ने घण्टे की रस्सी अपने शयन कक्ष में बिस्तर के सिरहाने एक खूँटी से बँधवा दी। जब उसे जी चाहता था वह खुद ही घण्टा बजाता था और न्याय करने के लिए रात-बिरात सुबह-शाम-दोपहर, कभी भी बालकनी में निकल आता था। तानाशाह खुद ही मुंसिफ़ की कुरसी पर बैठ जाता था और मुद्दा, मुद्दई और मुद्दालेह तय करता था और ताबड़तोड़, एक के बाद एक मामले निपटाते हुए न्याय करता चला जाता था। तानाशाह ने इतना न्याय किया, इतना न्याय किया कि सड़कें वीरान हो गयीं, बस्तियाँ लहूलुहान हो गयीं, जंगल-पहाड़ वीरान हो गये और नदियाँ सूख गयीं। लोगों ने इसतरह न्याय के बारे में यह सच जाना कि

विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार मोपासां की कहानी - हीरों का हार Maupassant's Story - The Diamond Necklace

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हीरों का हार   मोपासां   वह उन खूबसूरत और आकर्षक युवतियों में से थीं , जो दुर्भाग्य से कभी-कभी किसी क्लर्क के परिवार में जन्म ले लेती हैं। उसके पास न दहेज था , न आशाएँ थीं , न साधन थे कि कोई उसे समझ सके , सराह सके , प्रेम कर सके , कि किसी अमीर अथवा प्रतिष्ठित व्यक्ति से उसकी शादी हो ; लिहाजा उसकी शादी सार्वजनिक निर्देश के मंत्रालय के दफ्तर के एक अदने क्लर्क से कर दी गई थी। वह साधारण सी पोशाक में रहती, क्योंकि वह अच्छी पोशाक खरीद नहीं सकती थी। वह स्वयं को उपयुक्त स्थान से नीचे पाकर व्यथित थी। क्योंकि महिलाओं की कोई जाति होती नहीं है और न ही कोई श्रेणी ; परिवार और जन्म के बजाय उनकी सुंदरता , शालीनता और उनका आकर्षण ही काम करते हैं। उनका स्वाभाविक लालित्य , जन्मजात चतुराई और सहज समझ उनकी एकमात्र कुलीनता है , जो साधारणजन की बेटियों को महान् महिलाओं के बराबर का दर्जा दिलाती है। वह हमेशा दुखी रहती , क्योंकि वह महसूस करती थी कि उसका जन्म हर प्रकार की सुख-सुविधाओं और विलासिताओं को भोगने के लिए हुआ है। वह अपने अपार्टमेंट की दुर्दशा , जर्जर दीवारों , टूटी-फूटी कुरसियों और पुराने-गंदे परदों से