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कविता - लौटने के बारे में / कात्‍यायनी

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लौटने के बारे में कात्‍यायनी लौटने के बारे में (एक) तूफ़ान आने पर अपने साथियों को छोड़ किनारे लौट आता है जो मछुआरा, वह भूल जाता है धीरे-धीरे अपनी बीवी की आँखों का रंग। ताउम्र उसकी बीवी जब भी उसे अपना शरीर सौंपती है तो उसकी जान और गर्मी अपने पास रख लेती है। 'लौटना' होता है उसके जीवन का बीज-शब्द पर वह अपने बच्चों के सपनों में कभी नहीं लौट पाता। लौटे हुए लोगों के बारे में हम कह रहे हैं ये बातें ताकि सनद रहे और हमारे बच्चे याद रखें अगर हम कभी वापस लौटे तो ..... लौटने के बारे में (दो) अगर तुम लौटोगे , उन चीजों को कत्तई वैसा नहीं पाओगे जिन्हें याद करते हो इतनी शिद्दत के साथ। * तुम्हें भले लगता हो कि अभी कल की ही बात है, पर बीस साल पुरानी तुम्हारी बन्दूक की बट दीमक खोखली कर चुके होंगे और वह बेर का पेड़ ही कट चुका होगा जिसपर बयां का घोंसला लटकता था और रोशनाई की दावात भी न मालूम कहाँ होगी। * अतीत की पुकार पर तुम मुड़ने की कोशिश करोगे भी तो पुराने दिनों तक नहीं लौट पाओगे, किसी और राह से आगे ही जाओगे और खुद को हमारे ख़िलाफ़ खड़ा पाओगे। * हो सकता है कि कल तुम बदलाव को महज़ एक शब्द घोषित कर