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Showing posts from January, 2024

महान क्रांतिकारी सोहन सिंह भकना को उनके 153वें जन्मदिवस (4 जनवरी) पर क्रांतिकारी सलाम

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गदर लहर के निर्माताओं में से एक, महान क्रांतिकारी सोहन सिंह भकना को उनके 153 वें जन्मदिवस ( 4 जनवरी) पर क्रांतिकारी सलाम अमेरिका में मौजूद भारतीय श्रमिकों , विद्यार्थियों (जिन में सिख , हिन्दू , मुसलमान सभी थे) ने 1913 में ग़दर पार्टी कायम करके भारतीय आज़ादी संग्राम में पहली धर्म-निरपेक्ष लहर को स्थापित किया | पंजाबी , उर्दू और अन्य भारती भाषाओं में उन की ओर से ग़दर अखबार निकाला गया ताकि भारत के श्रमिकों को अंग्रेजी गुलामी और लूट के खिलाफ लामबंद किया जा सके | सोहन सिंह भकना को लाहौर साज़िश केस में मौत की सज़ा सुनाई गयी थी जिस को बाद में आजीवन कारावास में तब्दील करके उन्हें अंडमान जेल में भेज दिया गया था और सारी संपत्ति ज़ब्त की गई | जेल में भी वह लगातार कैदियों के साथ होते बदतर सलूक के खिलाफ हड़तालें करते रहे | उन्होंने 1928 में जाति के आधार पर खाने के लिए कैदियों की लगाई जाने वाली अलग-अलग पंगत के खिलाफ भी हड़ताल की और 1929 में भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के समर्थन में भी हड़ताल पर गए | 16 साल की क़ैद के बाद वह 1930 में जेल से रिहा हुए और उसके बाद भी स्वतंत्रता संग्राम में सरगर्म रहे |

कविता - सूरज को नही डूबने दूंगा / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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कविता - सूरज को नही डूबने दूंगा सर्वेश्वरदयाल सक्सेना अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा। देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर खड़ा होना मैंने सीख लिया है। घबराओ मत मैं क्षितिज पर जा रहा हूँ। सूरज ठीक जब पहाडी से लुढ़कने लगेगा मैं कंधे अड़ा दूंगा देखना वह वहीं ठहरा होगा। अब मैं सूरज को नही डूबने दूँगा। मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो तुम्हें मैं उतार लाना चाहता हूं तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो तुम जो साहस की मूर्ति हो तुम जो धरती का सुख हो तुम जो कालातीत प्यार हो तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो तुम्हें मैं उस रथ से उतार लाना चाहता हूं। रथ के घोड़े आग उगलते रहें अब पहिये टस से मस नही होंगे मैंने अपने कंधे चौड़े कर लिये है। कौन रोकेगा तुम्हें मैंने धरती बड़ी कर ली है अन्न की सुनहरी बालियों से मैं तुम्हें सजाऊँगा मैंने सीना खोल लिया है प्यार के गीतो में मैं तुम्हे गाऊँगा मैंने दृष्टि बड़ी कर ली है हर आँखों में तुम्हें सपनों सा फहराऊँगा। सूरज जायेगा भी तो कहाँ उसे यहीं रहना होगा यहीं हमारी सांसों में हमारी रगों म