महान क्रांतिकारी सोहन सिंह भकना को उनके 153वें जन्मदिवस (4 जनवरी) पर क्रांतिकारी सलाम
गदर लहर के निर्माताओं में से एक, महान क्रांतिकारी सोहन सिंह भकना को उनके 153वें जन्मदिवस (4 जनवरी) पर क्रांतिकारी सलाम
अमेरिका में मौजूद भारतीय श्रमिकों, विद्यार्थियों
(जिन में सिख, हिन्दू, मुसलमान सभी थे) ने 1913 में ग़दर पार्टी कायम करके भारतीय आज़ादी
संग्राम में पहली धर्म-निरपेक्ष लहर को स्थापित किया | पंजाबी, उर्दू
और अन्य भारती भाषाओं में उन की ओर से ग़दर अखबार निकाला गया ताकि भारत के श्रमिकों
को अंग्रेजी गुलामी और लूट के खिलाफ लामबंद किया जा सके | सोहन सिंह भकना
को लाहौर साज़िश केस में मौत की सज़ा सुनाई गयी थी जिस को बाद में आजीवन कारावास में
तब्दील करके उन्हें अंडमान जेल में भेज दिया गया था और सारी संपत्ति ज़ब्त की गई |
जेल
में भी वह लगातार कैदियों के साथ होते बदतर सलूक के खिलाफ हड़तालें करते रहे |
उन्होंने
1928 में जाति के आधार पर खाने के लिए कैदियों की लगाई जाने वाली अलग-अलग
पंगत के खिलाफ भी हड़ताल की और 1929 में भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों
के समर्थन में भी हड़ताल पर गए | 16 साल की क़ैद के बाद वह 1930 में
जेल से रिहा हुए और उसके बाद भी स्वतंत्रता
संग्राम में सरगर्म रहे|
1947 के बाद नेहरू सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार किया और दिओली कैंप में
रखा जहाँ उन की रीढ़ की हड्डी सख्त क़ैद की वजह से मुड़ गई थी | इसे
वह 'आज़ाद' भारत की ओर से उन की पीठ पर दी गई मुहर कहा करते थे |
(संबंधित जानकारी Balwinder Kaur Bansal जी की दीवार से साभार)
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कुछ और जानकारी
आज 4 जनवरी 1870 के दिन जन्म हुआ था महान क्रांतिकारी
सोहन सिंह भकना का। सोहन सिंह भकना का जन्म पंजाब के अमृतसर जिला के गाँव खुतराई
खुर्द में हुआ था।अपनी आजीविका की खोज में सोहन
सिंह अमेरिका जा पहँचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय आदि अन्य
देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक सोहन सिंह के कानों तक भी
पहुँच चुकी थी।
क्रांतिकारी लाला हरदयाल अमेरिका में ही थे। उन्होंने 'पैसिफ़िक
कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नामक एक संस्था बनाई। बाबा सोहन सिंह
उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने। सब भारतीय इस संस्था में सम्मिलित हो गए।
सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में इस संस्था ने 'गदर'
नाम
का पत्र भी प्रकाशित किया। इसके अतिरिक्त 'ऐलाने जंग', 'नया जमाना'
जैसे
प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी 'ग़दर पार्टी'
कर
दिया गया। 'ग़दर पार्टी' के अंतर्गत सोहन सिंह ने
क्रांतिकारियों को संगठित करने तथा अस्त्र-शस्त्र एकत्र करके भारत भेजने की योजना
को कार्यान्वित करने में आगे बढ़ कर भाग लिया। 'कामागाटामारू
प्रकरण' में भी इन्होंने 200 पिस्टल और 2000 कारतूस भी जहाज़
पहुंचाए थे। ये घटना भी इस सिलसिले का ही एक हिस्सा थी।
भारतीय सेना की कुछ टुकड़ियों को क्रांति में भाग लेने के तैयार किया
गया था। किन्तु मुखबिरों और कुछ देशद्रोहियों द्वारा भेद खोल देने से यह सारा किया
धरा बेकार गया। सोहन सिंह भकना एक अन्य जहाज़ से कलकत्ता पहुँचे थे। 13 अक्टूबर,
1914 ई. को उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। यहाँ से उन्हें पूछताछ के लिए
लाहौर जेल भेज दिया गया। इन सब क्रांतिकारियों पर लाहौर में मुकदमा चलाया गया,
जो 'प्रथम
लाहौर षड़यंत्र केस' के नाम से प्रसिद्ध है।
सोहन सिंह को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई और उन्हें अंडमान भेज
दिया गया। वहाँ से वे कोयम्बटूर और यर्वदा जेल भेजे गए वहाँ पर इनको अपने धर्म के
अनुरूप पगड़ी और कछेरा न डालने देने के विरोध स्वरूप भूख हड़ताल शुरू कर तब इनको
लाहौर जेल भेज दिया गया उस समय यहाँ गाँधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए।
इस दौरान उन्होंने एक लम्बे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
16 वर्ष जेल मे बिताने पर भी अंग्रेज़ सरकार का इरादा उन्हें जेल में ही
सड़ा डालने का था। इस पर सोहन सिंह ने अनशन आरम्भ कर दिया। इससे उनका स्वास्थ्य
बिगड़ने लगा। यह देखकर अततः अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। रिहाई के बाद
सोहन सिंह 'कम्युनिस्ट पार्टी' का प्रचार करने लगे।
द्वितीय विश्व युद्ध आंरभ होने पर सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर
लिया था, लेकिन सन 1943 में रिहा कर दिया और देश के आज़ाद होने
तक लगातार लड़ते रहे।आजादी के बाद भी सन 1948 में किसानों और
मजदूरों के लिये आवाज उठाने के फलस्वरूप प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय भी
इनको जेल में डाल दिया गया था परन्तु जनता में असंतोष को देखते हुए जल्दी ही रिहा
भी कर दिया गया।
20 दिसम्बर,1968 को सोहन सिंह भकना एक लम्बे संघर्ष
पूर्ण जीवन के बाद चिरनिद्रा में हमेशा हमेशा के लिए सो गए।
और किसानों,मजदूरों और देशहित की आगे की लड़ाई को
हम लोगो के लिये छोड़ गए, वो काम ,आज भी अधूरे पड़े
है!
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