Posts

Showing posts from December, 2018

नया वर्ष हो ऐसा

Image
नया वर्ष हो ऐसा   कविता कृष्‍णपल्‍लवी  नया वर्ष हो ऐसा कि बचे रहें सपने बची रहें उम्मीदें बची रहे फिर से उड़ने की चाहत बचा रहे कुछ हरापन , थोड़ा भोलापन , थोड़ी शिशुता थोड़ा युवापन और क्षितिज पर थोड़ी लालिमा बची रहे अन्याय से और क्षुद्रता से और पाखंड और अहम्मन्य विद्वत्ता से घृणा करने की ताकत और अंतिम सांस तक बाज की तरह आज़ाद रहने और लड़ने की ज़िद। प्यार करने की शक्ति अक्षत बची रहे और बची रहे कुछ चीजों को भूलने की और कुछ को न भूलने की आदत। नए साल में हम घृणा करें बर्बरता से और अधिक और गहरी और सक्रिय और मनुष्यता और सुंदरता की दिशा में मज़बूत कदमों से थोड़ा और आगे बढ़ जाएँ।

कविता - बाज़ार / कविता कृष्‍णपल्‍लवी

Image
बाज़ार कविता कृष्‍णपल्‍लवी  बाज़ार हमें खुश रहने का आदेश देता है I मौतों , युद्धों , अभावों , भुखमरी , और संगीनों के साये तले बाज़ार हमें खुशियाँ ख़रीदने के लिए उकसाता है I बाज़ार एक मसीहा का चोला पहनकर हमें हमारी ज़िंदगी के अँधेरों से बाहर खींच लाने का भरोसा देता है I बाज़ार हमें शोर और चकाचौंध भरी रोशनी की ओर बुलाता है I बाज़ार हमें हमारी पसंद बताता है और बताता है कि सबकुछ ख़रीदा और बेचा जा सकता है I . हम बहुत सारी चमकदार और जादुई चीज़ें खरीदते हैं और लालच , हिंसा , स्वार्थपरता , ईर्ष्या , प्रतिस्पर्द्धा और ढेर सारी मानसिक और शारीरिक बीमारियाँ उनके साथ-साथ घर चली आती हैं I . कुछ लोग बाज़ार में बेचते हैं अपना हुनर , कुछ काम करने की क़ूव्वत , कुछ अपनी ज़रूरी चीज़ें , कुछ अपनी स्मृतियाँ , स्वप्न और कल्पनाएँ और कुछ लोग अपनी आत्मा I . बाज़ार पुरस्कृत करता है कवियों-कलाकारों-शिल्पियों को , बाज़ार समाज-सेवियों को समाज-सेवा के लिए मुक्त-हस्त मदद करता है और इसतरह एक मानवीय चेहरा हासिल करता है बाज़ार-विस्तार की नयी संभावनाओं के साथ-साथ I बाज़ार अप

कविता - दिलरुबा के सुर / शुभा

Image
दिलरुबा के सुर शुभा कश्मीर के वर्तमान हालात पर एक कविता हाल ही में कवयित्री शुभा द्वारा लिखी गई है। वहां के दुखद हालात का जो चित्र शुभा ने उकेरा है है ऐसा हाल ही में कश्मीर पर किसी कविता में देखने में नजर नहीं आता। लेकिन चूंकि मुद्दा कश्मीर का है इसलिए लोग कविता पढ़ने से पहले ही कमेंट करना शुरू कर देंगे। इसलिए  पहले  थोड़ी बातें कश्मीर के बारे में । राज्य सत्ता और मीडिया द्वारा फैलाए गए पूर्वाग्रह कितने खतरनाक होते हैं यह भारत में कश्मीर मुद्दे को लेकर समझा जा सकता है। जब भी कश्मीर की बात होती है तो कश्मीर के अलावा देश के बाकी हिस्‍सों के ज्यादातर लोगों के लिए वह एक जमीन है जिसे भारत को कब्जा करके रखना है। वहां के लोगों के सपनों और आकांक्षाओं के बारे में कोई बात नहीं होती। इस पर भी कोई बात नहीं होती कि क्या कारण है की 1947-48 में जो कश्मीर पाकिस्तान के साथ ना जा कर भारत के निकट आया वह आज ऐसा क्यों हो गया है कि वह भारत के सत्ताधारियों से बेहद नफरत करने लगा। भारत की आज़ादी के वक़्त जम्मू एवं कश्मीर में लगभग 77 फ़ीसदी आबादी मुस्लिम थी। यदि सिर्फ़ कश्मीर घाटी की बात की जाये

कूपमंडूक के बारे में कुछ बातें / कविता कृष्‍णपल्‍लवी

Image
कूपमंडूकों द्वारा अमरत्व का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने की अपेक्षा क्षणभंगुर जीवन लाखगुना बेहतर होता है। कविता कृष्‍णपल्‍लवी कूपमंडूकता एक सार्वभौमिक परिघटना है , पर अलग-अलग देशों में इसकी अलग विशिष्टताएँ होती हैं। उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मन महाकवि हाइने ने और युवा मार्क्स-एंगेल्स ने जर्मन कूपमंडूकता की खूब खिल्ली उड़ाई थी और हर्ज़ेन , चेर्नीशेव्स्की , दोब्रोलुबोव जैसे क्रांतिकारी जनवादी दार्शनिकों ने रूसी कूपमंडूकता से जमकर लोहा लिया था। पर इन महापुरुषों ने अगर भारतीय कूपमंडूकता , विशेषकर "हिन्दू" कूपमंडूकता के दर्शन किये होते तो उसके आगे उन्हें दुनिया की हर कूपमंडूकता पानी भरती नज़र आती। कूपमंडूक के मानस का निर्माण निम्न-बुर्जुआ आत्मतुष्टि , पाखंडपूर्ण पारम्परिक नैतिकता , और चाटुकारिता की दासतापूर्ण वृत्ति से होता है। कूपमंडूक महानगरीय जीवन की अच्छाई-बुराई के विराट फलक से डरता और चिढ़ता है और अपने भीतर कस्बाई सुस्ती और आत्मतुष्ट गँवारपन को लिए हुए मुम्बई-बंगलुरु ही नहीं बल्कि पश्चिम के शहरों तक में जी आता है।   कूपमंडूक हरदम अपने निजी अनुभवों की दुहाई देता

मोदी जी ने 15 लाख बांटने शुरू कर दिए हैं पर उन्हीं को जिनके पास बाइक या कोई साधन है

Image
मोदी जी ने 15 लाख बांटने शुरू कर दिए हैं पर उन्हीं को जिनके पास बाइक या कोई साधन है सत्‍यनारायण अभी अपनी 6 साल पुरानी बाइक का इंश्योरेंस नवीनीकरण कराने वेबसाइट पर गया तो पता चला कि पिछले साल के 1104 रूपए की बजाए इस बार 2061 रुपए भरने पड़ेंगे। यह तो तब है जब बाइक की क्लेम वैल्यू सिर्फ 20000 आ रही है। जेब पर तो भारी पड़ रहा है पर चूंकि अभी "देश भक्तों" की सरकार है इसलिए यह मानना ही पड़ेगा कि ₹1000 के आसपास जो अतिरिक्त दिया जा रहा है वह देश हित में है। इसके बाद इंटरनेट पर चेक किया तो पता चला कि 1 अक्टूबर 2018 से गाड़ी के मालिक का या ड्राइवर का क्लेम एक लाख से बढ़ाकर 15 लाख अनिवार्य कर दिया गया है जिसकी वजह से इंश्योरेंस में इतनी बढ़ोतरी हो गई। तो भाइयों जो भी बाइक वगैरह रखते हैं वह हर साल हजार पंद्रह सौ रुपए अतिरिक्त दें ताकि आप के मरने पर आपको ₹15 लाख मिल सके। अरे आपको 15 लाख तो चाहिए थे ना , मिल तो रहे हैं , मोदी जी सिर्फ एक हजार लेकर आपको 15 लाख दे रहे हैं। इससे सम् ‍ बन्धित खबर आप यहां विस्‍तार से पढ़ सकते हैं - https://timesofindia.indiatimes.com/business/in

हरिशंकर परसाई का निबंध - आवारा भीड़ के खतरे The Dangers of a Restless Mob / Harishankar Parsai

Image
हरिशंकर परसाई का निबंध - आवारा भीड़ के खतरे एक अंतरंग गोष्ठी सी हो रही थी युवा असंतोष पर। इलाहाबाद के लक्ष्मीकान्त वर्मा ने बताया-पिछली दीपावली पर एक साड़ी की दुकान पर काँच के केस में सुंदर साड़ी से सजी एक सुंदर मॉडल खड़ी थी। एक युवक ने एकाएक पत्थर उठाकर उस पर दे मारा। काँच टूट गया। आसपास के लोगों ने पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया ? उसने तमतमाए चेहरे से जवाब दिया-हरामजादी बहुत खूबसूरत है। हम 4-5 लेखक चर्चा करते रहे कि लड़के के इस कृत्य का क्या कारण है ? क्या अर्थ है ? यह कैसी मानसिकता है ? यह मानसिकता क्यों बनी ? बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में ये सवाल दुनिया भर में युवाओं के बारे में उठ रहे हैं-पश्चिम से संपन्न देशों में भी और तीसरी दुनियाँ के गरीब देशों में भी। अमेरिका से आवारा हिप्पी और ‘हरे राम और हरे कृष्ण’ गाते अपनी व्यवस्था से असंतुष्ट युवा भारत आते हैं और भारत का युवा लालायित रहता है कि चाहे चपरासी का नाम मिले , अमेरिका में रहूँ। ‘स्टेट्स’ जाना यानि चौबीस घंटे गंगा नहाना है। ये अपवाद हैं। भीड़-की-भीड़ उन युवकों की है जो हताश , बेकार और क्रुद्ध हैं। संपन्न पश्चिम के युवको