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Showing posts from July, 2019

व्‍यंग्‍य कथा - उखड़े खंभे / हरिशंकर परसाई

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व्‍यंग्‍य कथा - उखड़े खंभे / हरिशंकर परसाई एक दिन राजा ने खीझकर घोषणा कर दी कि मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भे से लटका दिया जाऐगा। सुबह होते ही लोग बिजली के खम्भों के पास जमा हो गये। उन्होंने खम्भों की पूजा की , आरती उतारी और उन्हें तिलक किया। शाम तक वे इंतजार करते रहे कि अब मुनाफाखोर टांगे जाऐंगे- और अब। पर कोई नहीं टाँगा गया। लोग जुलूस बनाकर राजा के पास गये और कहा ," महाराज , आपने तो कहा था कि मुनाफाखोर बिजली के खम्भे से लटकाये जाऐंगे , पर खम्भे तो वैसे ही खड़े हैं और मुनाफाखोर स्वस्थ और सानन्द हैं।" राजा ने कहा ," कहा है तो उन्हें खम्भों पर टाँगा ही जाऐगा। थोड़ा समय लगेगा। टाँगने के लिये फन्दे चाहिये। मैंने फन्दे बनाने का आर्डर दे दिया है। उनके मिलते ही , सब मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों से टाँग दूँगा। भीड़ में से एक आदमी बोल उठा ," पर फन्दे बनाने का ठेका भी तो एक मुनाफाखोर ने ही लिया है।" राजा ने कहा ," तो क्या हुआ ? उसे उसके ही फन्दे से टाँगा जाऐगा।" तभी दूसरा बोल उठा ," पर वह तो कह रहा था कि फाँसी पर लटकाने का ठेका भी

व्‍यंग्‍य कथा - इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर / हरिशंकर परसाई

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व्‍यंग्‍य कथा - इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर / हरिशंकर परसाई वैज्ञानिक कहते हैं , चाँद पर जीवन नहीं है। सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम. डी. साब) कहते हैं- वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं , वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है। विज्ञान ने हमेशा इन्स्पेक्टर मातादीन से मात खाई है। फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ कहता रहता है- छुरे पर पाए गए निशान मुलज़िम की अँगुलियों के नहीं हैं। पर मातादीन उसे सज़ा दिला ही देते हैं। मातादीन कहते हैं , ये वैज्ञानिक केस का पूरा इन्वेस्टीगेशन नहीं करते। उन्होंने चाँद का उजला हिस्सा देखा और कह दिया , वहाँ जीवन नहीं है। मैं चाँद का अँधेरा हिस्सा देख कर आया हूँ। वहाँ मनुष्य जाति है। यह बात सही है क्योंकि अँधेरे पक्ष के मातादीन माहिर माने जाते हैं। पूछा जाएगा , इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर क्यों गए थे ? टूरिस्ट की हैसियत से या किसी फरार अपराधी को पकड़ने ? नहीं , वे भारत की तरफ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत गए थे। चाँद सरकार ने भारत सरकार को लिखा था- यों हमारी सभ्यता बहुत आगे बढ़ी है। पर हमारी पुलिस में पर्याप्त सक्षमता नहीं है। वह अपराधी का

कविता - हत्यारा कवि / अदनान कफ़ील दरवेश

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हत्यारा कवि अदनान कफ़ील दरवेश उसकी कविताएँ मुझे चकित करती रहीं  उसकी लिखी पंक्तियाँ पढ़कर  अक्सर  मन करुणा से भर-भर जाता  कैसे कहूँ कि उसकी कविताएँ पढ़कर रोया हूँ बारहा आधी रातों के सुनसानों में बहुत दिनों तक उसे उसकी कविताओं से ही जाना था  अचानक वो मिल गया किसी गोष्ठी में  और उससे सीधे पहचान हुई धीरे-धीरे पता चला उसका राजनीतिक पक्ष  जो कि हत्यारों की तरफ़ था  मेरे पाँव से ज़मीन खिसक गई विश्वास नहीं हुआ कि कैसे मेरा प्रिय कवि  हत्यारों की ढाल बन सकता है  जी हुआ उसकी कविताएँ जला दूँ  जिसे पढ़कर रोया था बार-बार फिर अचानक उसकी एक और कविता पढ़ी  फिर मन बदल लिया कोई कवि इतना अदाकार कैसे हो सकता है कविता में  अब भी चकित हूँ नोचूँ हूँ घास  देखूँ हूँ उसकी तस्वीर, उसका मासूम चेहरा जिसपर फैली है गुनगुनी धूप सोचूँ हूँ शायद वो कल मेरी हत्या करने मेरे गले पर छुरी रखे  तो मैं उसका विरोध भी न कर पाऊँ  अजीब प्रेम है उससे मुझे उफ़्फ़ शायद उसे कहूँ कि भाई गला काट के हाथ धो के जाना अलमारी में मेरे कपड़े होंगे उन्हें पहन लेना मुझे तुम्हारी कविताए