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कहानी - बुढ़िया इज़रगिल / मक्सिम गोर्की Story - Old Izergil / Maxim Gorky

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कहानी - बुढ़िया इज़रगिल मक्सिम गोर्की For English version please scroll down  1 मैंने ये कहानियाँ बेस्साराबिया में अक्करमन के नज़दीक समुद्र-तट पर सुनी थीं। साँझ का समय था। अंगूर तोड़ने का काम ख़त्म हो चुका था। मोल्दावियावासियों का दल , जिसके साथ मैं अंगूर तोड़ने का काम करता था , समुद्र-तट को चल दिया। मैं और बुढ़िया इजरगिल अंगूरी बेलों की घनी छाँव में चुपचाप लेटे थे और रात के नीले तिमिर में समुद्र-तट की ओर जाते लोगों की परछाइयों को विलीन होते देख रहे थे। वे गाते और हँसते हुए जा रहे थे। साँवले मर्दों की मूँछें घनी और काली थीं , कन्धों तक के बाल घुँघराले थे। वे छोटे कुरते और ढीली-ढाली सलवारें पहने थे। गहरी नीली आँखों और सुघड़-सुडौल बदन वाली प्रसन्न तथा प्रफुल्ल औरतें तथा लड़कियाँ भी सांवली थीं। रेशम-से मुलायम उनके काले बाल लहरा रहे थे , सुहानी हवा उनके बालों के साथ खिलवाड़ कर रही थी और उनमें गुँथे सिक्के आपस में टकराकर झंकार कर रहे थे। हवा की एक प्रशस्त और निर्बाध धारा बह रही थी , लेकिन जब-तब वह मानो किसी अदृश्य चीज़ के ऊपर से ज़ोर की छलांग लगाती , जिससे तेज़ झोंका आता , हवा स्त्रियों के बालो