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कात्‍यायनी की दो कविताएं - सात भाइयों के बीच चम्पा, हॉकी खेलती लड़कियाँ

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कात्‍यायनी की दो कविताएं सात भाइयों के बीच चम्पा सात भाइयों के बीच चम्पा सयानी हुई। बाँस की टहनी-सी लचक वाली , बाप की छाती पर साँप-सी लोटती सपनों में काली छाया-सी डोलती सात भाइयों के बीच चम्पा सयानी हुई। ओखल में धान के साथ कूट दी गई भूसी के साथ कूड़े पर फेंक दी गई। वहाँ अमरबेल बनकर उगी। झरबेरी के सात कँटीले झाड़ों के बीच चम्पा अमरबेल बन सयानी हुई। फिर से घर आ धमकी। सात भाइयों के बीच सयानी चम्पा एक दिन घर की छत से लटकती पाई गई। तालाब में जलकुम्भी के जालों के बीच दबा दी गई। वहाँ एक नीलकमल उग आया। जलकुम्भी के जालों से ऊपर उठकर चम्पा फिर घर आ गई , देवता पर चढ़ाई गई मुरझाने पर मसलकर फेंक दी गई , जलाई गई। उसकी राख बिखेर दी गई पूरे गाँव में। रात को बारिश हुई झमड़कर। अगले ही दिन हर दरवाज़े के बाहर नागफनी के बीहड़ घेरों के बीच निर्भय-निस्संग चम्पा मुस्कुराती पाई गई।   हॉकी खेलती लड़कियाँ  आज शुक्रवार का दिन है और इस छोटे से शहर की ये लड़कियाँ खेल रही हैं हॉकी। खुश हैं लड़कियाँ फिल