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Showing posts from January, 2019

मोदी को खड़ा करने-रखने के प्रोजेक्ट पर 50 हजार करोड़ रु किसने खर्चे?

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मोदी को खड़ा करने-रखने के प्रोजेक्ट पर 50 हजार करोड़ रु किसने खर्चे?   मुकेश असीम  पिछले 7-8 साल में मोदी को खड़ा करने-रखने के प्रोजेक्ट पर ज्यादा नहीं तो 50 हजार करोड़ रु का खर्च तो आया ही है। वो कौन हैं जिन्होने इस खर्च के लिए अपना भंडार खोला ? फिर इतना पैसा नकद सूटकेसों में भरकर इधर से उधर गया होगा , ये तो कोई मूर्ख भी नहीं सोच सकता। ये आईएलएफ़एस , आईसीआईसीआई , अनिल अंबानी , सिटी बैंक , ज़ी , वगैरह जो मामले सामने आ रहे हैं , जिनकी जांच से घबराकर न्यूयॉर्क में कैंसर का इलाज कराता जेटली अस्पताल के बिस्तर पर से उठ खड़ा होता है , जांच अधिकारी हटा दिये जाते हैं , सारी जांच एजेंसियों से लेकर सुप्रीम कोर्ट और रिजर्व बैंक तक हिला दिये जाते हैं , ये फासिस्ट सामाजिक-राजनीतिक मुहिम को फ़ाइनेंस करने वाली जंजीर की कुछ कड़ियाँ हैं जो अपनी कमजोरी से टूटने के कगार पर हैं। मजबूत कड़ियाँ अभी टिकी हैं। पर ये तो बस आगाज है , बहुत कुछ सामने आना बाकी है।   ये सब पूंजीपति और फासिस्ट पार्टी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं , पहला दूसरे का खर्चा चलाता है तो दूसरा सत्ता में आने के बाद पहले को देश के समस्त

उम्बेर्तो एको व ला रोशफूको के कुछ उद्धरण

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ला रोशफूको प्यार के लिए अनुपस्थिति उसी प्रकार होती है जैसे आग के लिए हवा । वह छोटी लपट को बुझा देती है जबकि बड़ी लपट को भड़का देती है । हम अपनी छोटी गलतियों को सिर्फ़ इसलिए स्वीकार कर लेते हैं ताकि लोगों को यक़ीन दिला सकें कि हमने कोई बड़ी गलती नहीं की है । अगर खुद हमारे भीतर कमियाँ नहीं होतीं , तो दूसरे की कमियाँ निकालने में हमें इतना मज़ा नहीं आता । सबसे अधिक चालाकी का काम है अपनी चालाकी छुपा लेने की कुशलता ! पाखण्ड दुराचार द्वारा सदाचार को दी जाने वाली श्रद्धांजलि होती है । उम्बेर्तो एको (1932-2016) ( बहुचर्चित इतालवी उपन्यासकार , आलोचक , निबंधकार ) पुस्तकें विश्वास करने के लिए नहीं निर्मित की गयी हैं , वे प्रश्नेय हैं । बुरी कवितायें सभी कवि लिखते हैं । बुरे कवि उन्हें प्रकाशित करते हैं और अच्छे कवि उन्हें जला देते हैं । इसतरह मैंने फिर से इस बात की खोज की जिसे लेखक गण पहले से ही जानते हैं ( और बार-बार हमें बताते रहे हैं) : किताबें अक्सर दूसरी किताबों की बातें करती हैं , और हर कहानी एक कहानी कहती है जो पहले ही कही जा चुकी है । ज़िंदा रहने के लिए

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है / कैफ़ी आज़मी

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आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है /  कैफ़ी आज़मी आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है , आज की रात न फ़ुटपाथ पे नींद आएगी , सब उठो , मैं भी उठूँ , तुम भी उठो , तुम भी उठो , कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी । ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थी , पाँव जब टूटती शाखों से उतारे हमने , इन मकानों को ख़बर है न , मकीनों [1]  को ख़बर उन दिनों की जो गुफ़ाओं में गुज़ारे हमने । हाथ ढलते गए साँचों में तो थकते कैसे , नक़्श के बाद नए नक़्श निखारे हमने , की ये दीवार बुलन्द , और बुलन्द , और बुलन्द , बाम-ओ-दर [2]  और ज़रा और निखारे हमने । आँधियाँ तोड़ लिया करतीं थीं शामों की लौएँ , जड़ दिए इस लिए बिजली के सितारे हमने , बन गया कस्र [3]  तो पहरे पे कोई बैठ गया , सो रहे ख़ाक पे हम शोरिश [4]- ए-तामीर [5]  लिए । अपनी नस-नस में लिए मेहनत-ए-पैहम [6]  की थकन , बन्द आँखों में इसी कस्र [7]  की तस्वीर लिए , दिन पिघलता है इसी तरह सरों पर अब तक , रात आँखों में खटकती है सियाह [7]  तीर लिए । आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है , आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी , स

कविता - नया लिबास पहनकर… / ग़ौहर रज़ा

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कविता - नया लिबास पहनकर…  ग़ौहर रज़ा  नया लिबास पहनकर के ये क्युं सोचते हो कि सारे ख़ून के धब्बों को तुम छुपा लोगे ? कि बस्तियों को जलाते रहे हो बरसों से उन्हीं की राख है अब तक तुम्हारे चेहरे पर सदाएं बच्चों की आती थीं जब अंधेरों में तुम्हारे पैर थिरकते थे रक्स करते थे घरों में सिसकियां आहें या आंसुओं की क़तार तुम्हारे दिल को सुकूं बख़्शती रहीं अब तक धरम शराब था बांटा गया , नशा भी हुआ और इस नशे में बहुत कुछ लुटा दिया तुमने हर एक फूल से रंगों से तुमको नफरत है न जाने कितना असासा जला दिया तुमने हर एक बाग में नफ़रत के बीज बोते रहे फसल खड़ी है अब तो काटने को आए हो फ़रेबो-झूठ की बैसाखियों पर चलते रहे तो पैर निकाले हैं जाने क्या होगा शहर शहर को जलाकर हमेशा तुमने कहा कि यही है मुल्क़ की ख़िदमत , यही वतन से है प्यार तुम्हारे क़दमों की आहट से दिल धड़कता था तुम्हारे बढ़ते क़दम अब भी वहशियाना हैं ये भूल जाएं और अब सब तुम्हारे साथ चलें तुम्हारे हाथों के ख़ंजर छिपे हुए तिरशूल चमकते भालों को भूलें तुम्हारे साथ चलें दहकते शोलों को भूलें तुम्हा

नाटक - राजा का बाजा / सफदर हाशमी व साथी

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राजा का बाजा सफदर हाशमी व साथी  [ पाँच दानव हाथ थामकर नाचते हैं।] पहला     :            दौलत मेरी गाभिन गाय , शिक्षा घर का बैल।                         फ़ैक्टरियों की थानेदारी , संसद मेरी रखैल। [ बाक़ी चारों दोहराते हैं।] दूसरा      :            लाखों का धन्धा है अपना , थोक की है व्यापारी।                         शेयर बाज़ार पर हरदम रखता चौकस पहरेदारी। [ बाक़ी चारों दोहराते हैं।] तीसरा     :            गेहूँ चावल ज्वार बाजरा , मक्का चना मसूर।                         गन्ना गुड़ चीनी पर पूरा , हक़ है मेरा हज़ूर। [ बाक़ी चारों दोहराते हैं।] चौथा      :            कोर्ट कचहरी दीवानी , क़ानून न्याय इन्साफ़।                         है अधिकार सभी पर मेरा , कभी करूँ ना माफ़। [ बाक़ी चारों दोहराते हैं।]                         नौकरशाही तकनीकीशाही , अफ़सरी वकीली।                         पूर्ण किलेबन्दी कर ली है , ले तलवार नुकीली। [ बाक़ी चारों दोहराते हैं। एक शिक्षित बेरोजगार युवक रामेश्वर आता है।] रामेश्वर   :            (एक से) हैलो , थोड़ी जगह बनाइ