नाटक - राजा का बाजा / सफदर हाशमी व साथी
राजा का बाजा
सफदर हाशमी व साथी
[पाँच दानव हाथ थामकर नाचते हैं।]
पहला : दौलत मेरी गाभिन गाय,
शिक्षा घर का बैल।
फ़ैक्टरियों की थानेदारी, संसद मेरी रखैल।
[बाक़ी चारों दोहराते हैं।]
दूसरा : लाखों का धन्धा है अपना,
थोक की है व्यापारी।
शेयर बाज़ार पर हरदम रखता चौकस पहरेदारी।
[बाक़ी चारों दोहराते हैं।]
तीसरा : गेहूँ चावल ज्वार बाजरा,
मक्का चना मसूर।
गन्ना गुड़ चीनी पर पूरा, हक़ है मेरा हज़ूर।
[बाक़ी चारों दोहराते हैं।]
चौथा : कोर्ट कचहरी दीवानी,
क़ानून न्याय इन्साफ़।
है अधिकार सभी पर मेरा, कभी करूँ ना माफ़।
[बाक़ी चारों दोहराते हैं।]
नौकरशाही तकनीकीशाही, अफ़सरी वकीली।
पूर्ण किलेबन्दी कर ली है, ले तलवार नुकीली।
[बाक़ी चारों दोहराते हैं। एक शिक्षित
बेरोजगार युवक रामेश्वर आता है।]
रामेश्वर : (एक से) हैलो,
थोड़ी जगह बनाइये, मुझे भी आने दीजिये।
पाँचों : ले तलवार नुकीली।
रामेश्वर : (दूसरे से) भाई साहब,
क्या मैं भी इस कारवाँ में शामिल हो सकता हूँ? मैं सबके
पीछे रहूँगा और बहुत थोड़ी सी जगह लूँगा।
पाँचों : ले तलवार नुकीली।
रामेश्वर : (तीसरे से) सरकार,
माई-बाप, बड़े साब, मैं
हाथ जोड़कर विनती करता हूँ, प्लीज़ सर मैं कितना लम्बा सफ़र
करके यहाँ पहुँचा हूँ। मुझे आने दीजिये ना।
पाँचों : ले तलवार नुकीली।
रामेश्वर : (दहाड़ते हुए) बहुत हो गया। ये जानवरों
का सा बर्ताव मुझे मंजूर नहीं। मैं भी इन्सान हूँ। दौलत,
ताक़त, शिक्षा और पूरे देश पर तुम्हारी ये
इजारेदारी मुझे मंजूर नहीं। मैं इसे अस्वीकार करता हूँ।
कोरस : कोई जि़द्दी भूले से गर हमसे टकरा जाये,
हम पाँचों के चक्रव्यूह से कभी निकल न पाये।
[रामेश्वर को घेरकर अपनी लपेट में लेते हैं।]
प्रति कोरस : राहों की
गर्द फाँकता
दरवाज़ों को खटखटाता
अर्जियाँ लिखता याचनाएँ करता
रामेश्वर : हर जगह से लौटा हूँ मायूस
प्रति कोरस : कौन है इसका
जि़म्मेदार?
रामेश्वर : मुझे नहीं मालूम,
लेकिन ये सब बहुत पहले शुरू हुआ था, जब स्कूल
के दिनों में मुझे सिखाया गया था, प्रार्थना करना हाथ जोड़कर
रोज़ सुबह।
[सब लाइन में खड़े होकर प्रार्थना करते
हैं]
सब : ता थेई ता था गा
रोटी खाना खा
राजा का बाजा बजा तू, राजा का बाजा बजा
आ राजा का बाजा बजा
सच मत कह चुप रह, स्वामी सच मत कह चुप रह
चुप रह, सह सह सह सह
राजा का बाजा बजा, आ राजा
तन मन वेतन अपने सब अर्पण कर तू
स्वामी सब अर्पण कर तू
झट पट कर श्रम से ना डर श्रम से ना डर तू
आ राजा का...
ता थेई...
राजा...
[सब घण्टी की आवाज़ बजाते हुए बैठ जाते
हैं।]
प्रति कोरस : बेटे तुम
बड़े होकर क्या बनोगे?
रामेश्वर : मम्मी मैं तो सीखूँगा मोटर चलाना
प्रति कोरस : हा... हा...
हा... हा...
[पाँचों साथ-साथ गाते हैं।]
सब : मम्मी मैं तो सीखूँगा मोटर चलाना
साइकिल नहीं लूँगा, मैं रिक्शा नहीं लूँगा
मुझे...
रामेश्वर : पों-पों।
सब : मोटर ड्राइवर बनाना।
मम्मी मैं तो सीखूँगा लाठी चलाना।
दफ्तर ना जाऊँगा, लिखूँगा न पढ़ूँगा
मुझे...
रामेश्वर : लाठी चार्ज!
सब : पुलिस अफ़सर बनाना -
2
मम्मी मैं तो सीखूँगा भाषण पिलाना - 2
सेवा ना करूँगा, सारे ऐश मैं करूँगा
मुझे...
रामेश्वर : भाइयो और बहनो!
सब : भारत का प्रधानमन्त्री बनाना।
मम्मी मैं तो सीखूँगा गोली चलाना
गाँधी ना बनूँगा, मैं बाँदी ना बनूँगा
मुझे...
रामेश्वर : तेरा क्या होगा कालिया!
सब : शोले का गब्बर बनाना
मम्मी मैं तो सीखूँगा गोली चलाना।
रामेश्वर : (अकेले) मम्मी मैं तो सीखूँगा
(गाना बन्द करके)
ये स्कूल आप ही का था न? मोटर ड्राइवर से लेकर भारत
का प्रधानमन्त्री बनने तक के सारे ख़्वाब यहीं से मेरे जेहन में डाले गये। पर
स्कूली शिक्षा ही इन सपनों को साकार करने के लिए काफ़ी नहीं, शायद मन्त्री पद तो स्कूली शिक्षा के बिना भी मिल जाता, पर मोटर ड्राइवर या क्लर्क बनने के लिए तो हमारे समाज में कॉलेज की पढ़ाई
ज़रूरी थी और इसी ज़रूरत के लिए मुझे कॉलेज जाना पड़ा।
[पाँचों दानव एक-एक करके पाँच
प्राध्यापकों के रूप में आते हैं।]
पहला : (पढ़ाते हुए) कवि कहता है कल कल कल
बहता पानी, छल छल कर रहता प्राणी अर्थात जल की
द्रव्यता और मनुष्य की सभ्यता, दोनों में ही परस्पर घनिष्ठ
सम्बन्ध है। इसी विषय में प्राख्यात वैज्ञानिक डॉ. सी.वी. रमन का कहना है कि ...
दूसरा : (पढ़ाते हुए) द इण्डियन कान्स्टीट्यूशन,
द होली बुक, कॉनकर्स राइट्स लेज डाउन
डाइरेक्टिस फ़ॉर ए फ़ेडरल सेट अप एण्ड मल्टी पार्टी सिस्टम फ़ॉर मिलियन्स एण्ड
मिलियन्स ऑफ़ हेट्रोजीनियस मासेज अण्डर द कवर ऑफ़ सेक्युलरिज़्म सोशलिज़्म एण्ड
डेमोक्रेसी।
तीसरा : (पढ़ाते हुए) यही कारण है कि छत्रपति
शिवाजी महाराज औरंगजेब की आँखों में आँखें डालकर कह उठे कि हे मुगल सम्राट,
तू और तेरा यह धर्म दोनों ही हम भारत माँ के वीर सपूतों को किंचित
भी स्वीकार नहीं।
चौथा : (पढ़ाते हुए) हियर दियर इज़ नो लाइट बट
व्हाट फ्राम द हैवन इज़ विद द ब्रीजिंज ब्लोन व्हाट फ्लावर्स आर एट माई फ़ीट,
आई कैन नॉट सी। (explanation) इन इज़ हियर दैट
द रिच एण्ड सेंसुअस परसेप्शंस ऑफ़ एन अर्ली रोमेंटिसिज़्म इज़ मोस्ट क्लीयरली
विज़ीबल।
पाँचवाँ : (पढ़ाते हुए) यह संसार अनन्त और असीम
है। इसके रहस्य गहन और गम्भीर हैं। इसे न तो कोई समझा है और न ही समझ पायेगा।
पाँचों : उठो बेटे,
सो गये क्या...
[पाँचों फ्रीज़ हो जाते हैं।]
रामेश्वर : ये जो मुझे पढ़ाया जा रहा है,
मेरे किस काम आयेगा? मैं जानना चाहता हूँ कि
क्यों कुछ लोग बिना क्लास में आये और बिना पढ़े ही पास हो जाते हैं और क्यों ओवर
टाइम करने के बावजूद मेरे पिता जी मेरी फ़ीस तक जुटा नहीं पाते और किताबें तो...-
[पाँचों दानव लाइब्रेरियन, प्रिंसिपल, हेड, डीन और वाइस
चांसलर बनकर गप्पे मारते हुए आते हैं।]
लाइब्रेरियन : नमस्कार
पिंसिपल साहब, नमस्कार ... भाई प्रिंसिपल साहब,
इस बार तो यू.जी.सी. ने लाइब्रेरी की ग्राण्ट 5 लाख बढ़ा दी है। अब तो
आपकी किताबें...
रामेश्वर : नहीं... नहीं...- कितने दिन तक चलेगा
यह गोलमाल? लाइब्रेरियन साहब, कहाँ गयी वो किताबें जो कोर्स में थीं?
लाइब्रेरियन : लाइब्रेरी
आपकी जरख़रीद नहीं है। जिसे चाहिए सौ बार चक्कर लगाये,
नहीं तो बाज़ार से ख़रीद लाये।
रामेश्वर : इतनी महँगी किताबें ख़रीदना क्या मेरे
बस का है?
और फिर आप लोग लाइब्रेरी की फ़ीस लेते हैं। आप ही कुछ कीजिये न
प्रिंसिपल साहब।
प्रिंसिपल : बेटे, यह
कॉलेज है, भूदान आन्दोलन नहीं और फिर हम तुम्हारी आर्थिक
समस्याओं के जि़म्मेदार नहीं।
रामेश्वर : आर्थिक समस्याएँ क्या मेरी पैदा की हुई
हैं?
मैं तो पढ़ना चाहता हूँ, और उसके लिए मुझे
किताबें चाहिए। क्या आप मेरी मदद नहीं करेंगे। आप तो हेड ऑफ़ द डिपार्टमेण्ट हैं?
हेड : नो डाउट, तुम
पढ़ने में दिलचस्पी रखते हो, मगर नोट्स बनाने के लिए किताबें
जुटाने का कर्तव्य तुम्हारा है, अध्यापक वर्ग का नहीं।
रामेश्वर : कर्त्तव्य,
कर्त्तव्य, कर्त्तव्य। इस कायनात का कोई कोना
है जहाँ इस कर्त्तव्य शब्द से छुटकारा मिल सके। किताबें ख़रीदने का कर्त्तव्य,
नोट्स बनाने का कर्त्तव्य, अनुशासन बनाये रखने
का कर्त्तव्य, रोज़-रोज़ बीस मील दूर से साइकिल चलाकर कॉलेज
पहुँचने का कर्त्तव्य।
डीन : तुम्हारा घर दूर है तो नज़दीक मकान
लेकर क्यों नहीं रहते।
रामेश्वर : बहुत ख़ूब डीन साहब,
जिसके पास अपने घर का किराया देने के लिए भी पैसे न हो उससे आप
उम्मीद करते हैं कि वह अपने बेटे के लिए शहर में मकान किराये पर ले और होटलों का
बिल भुगते, आप हॉस्टल क्यों नहीं बनवाते?
डीन : विश्वविद्यालय हॉस्टल की गारण्टी नहीं
ले सकता।
रामेश्वर : क्यों नहीं ले सकता?
उसे लेनी चाहिए, उसे लेनी पड़ेगी।
वी.सी. : उत्तेजित न हो बेटे, तुम मेरे पास अपनी
समस्याएँ लेकर कभी नहीं आये, मैं तुम्हारे बाप के समान हूँ,
यूनीवर्सिटी का वाइस चांसलर हूँ, काश तुम मेरे
ऊपर यक़ीन रखते, यूनियन के बहकावे में आकर मेरे खि़लाफ़
नारेबाज़ी न करते तो ऐन मुमकिन था कि मैं तुम जैसे होनहार लड़के के लिए किसी भी हद
से गुज़र जाता।
रामेश्वर : आपकी हद मैंने देखी है वाइस चांसलर
साहब,
मिनिस्टर के भतीजे को स्कॉलरशिप देने के लिए आपने यूनीवर्सिटी के क़ायदे-क़ानून
बदल दिये, सेठ साहब के लड़के को एडमिशन देने की ख़ातिर अक्ल
के सारे घोड़े दौड़ा दिये और जब मैंने फ़ीस माफ़ करने के लिए कहा तो आपने यू.जी.सी.
के ऑर्डर मेरे हाथ में पकड़ा दिये, आप किस हद तक मेरी मदद कर
सकते हैं, मुझे मालूम है।
लाइब्रेरियन : तुम्हारा
दिमाग़ ख़राब हो गया है!
प्रिंसिपल : तुम पॉलिटिशियन्स के चक्कर में पड़ गये
हो।
डीन : ये सीट ऑफ़ लर्निंग है,
कोई डिबेटिंग हॉल नहीं।
हेड : विद्यामन्दिर को तुमने राजनीति का
अखाड़ा बना दिया है।
वी-सी- : आगे बढ़ना है तो यूनिवर्सिटी के क़ायदे-क़ानून
की इज़्ज़त करनी होगी।
[पाँचों तीन बार दोहराकर बैठ जाते हैं।]
रामेश्वर : क़ायदा-क़ानून। ये शब्द ही कुछ ऐसा है
जिसे सुनकर दिमाग़ भारी-सा हो जाता है, सोचने की
क्रिया थम-सी जाती है। दिल में अजीब सा ख़ौफ़ बैठ जाता है। एक ऐसा ख़ौफ़, जो सारी जि़न्दगी एक पागल कुत्ते की तरह पीछा करता रहता है, क्यों? इसलिए कि क़ायदे-क़ानून ग़लत हैं। नये क़ायदे-क़ानून
कब बनेंगे? इसी का इन्तज़ार है, लेकिन
तब तक ऐसे ही चलना होगा, घिसटना होगा।
[पाँचों अध्यापक प्रधानाध्यापक बनकर
परीक्षा लेते हैं।]
पाँचों : रामेश्वर दयाल।
रामेश्वर : (हड़बड़ाकर) यस सर।
पहला : ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और राजऋषि
विश्वामित्र के सांसारिक रहस्यों के बारे में क्या जानते हो?
[रामेश्वर दायरे में भागना शुरू करता है।
हर सवाल जवाब पर पहले से रफ्तार तेज़ हो जाती है। इन्तहान पास करने की रेस जारी
है।]
रामेश्वर : एक ओर आध्यात्मिक शक्ति की लालसा।
दूसरी ओर सांसारिक आकर्षणों की तरफ़ खिंचाव...
दूसरा : What are the basic
feature of the Indian Constitution?
रामेश्वर : A Parliamentary System
with a Multi Party Democracy.
तीसरा : महान हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में
शिवाजी का योगदान बताओ।
रामेश्वर : शिवाजी ने औरंगजेब की हिन्दू विरोधी
नीतियों पर कुठाराघात किया।
चौथा : What factors contributed
to the spiritual confusions of William Wordsworth?
रामेश्वर : The conflict between his
romantic sensibilities and the sordid aspects of industrialisation.
पाँचवाँ : जल की द्रव्यता और मनुष्य की सभ्यता के
बारे में क्या जानते हो?
रामेश्वर : दोनों में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है
(निढाल होकर गिर पड़ता है। पहला अध्यापक उसे हाथ पकड़कर उठाता है।)
पहला : वाह बेटा वाह,
तू तो जवाँ मर्दों में बाज़ी मार ले गया।
दूसरा : (हाथ मिलाकर) तू फलेगा,
तू फूलेगा, तू जायेगा एक दिन चाँद पर।
तीसरा : या बनेगा तू मन्त्री,
पार्लियामेण्ट को लाँघकर।
चौथा : (हाथ मिलाकर) हो भविष्य रौशन तेरा,
ये है हमारी कामना!
पाँचों : भूल न जाना अगर कभी माँगें हम दक्षिणा
ला... ला... ला... लला...-
[रामेश्वर बीच में ख़ुशी से झूमता है और
कहकहे लगाता है।]
रामेश्वर : आखि़र डिग्री मिल गयी। अब नौकरी भी मिल
जायेगी। जब नौकरी मिलेगी तो फिर क्या होगा...
प्रति कोरस : क्या होगा?
रामेश्वर : बदन पर सूट होगा
पैर में बूट होगा और बग़ल में
रे मन थोड़ा धीर रख...-
मीट माई वाइफ़ मिस्टर मल्होत्रा।
प्रति कोरस : हा... हा...
हा...
[पाँचों दानव नौकरी देने वाले अधिकारी बन
जाते हैं। रामेश्वर भागकर पहले के पास जाता है।]
रामेश्वर : गुड मार्निंग सर,
मैं बी.ए. फ़र्स्ट डिवीज़न हूँ, मुझे नौकरी
चाहिए।
पहला : नौकरी?
रामेश्वर : हाँ जी।
पहला : नो वैकेंसी
रामेश्वर : नो वैकेंसी?
पहला : गेट आउट
रामेश्वर : (दूसरे के पास) नमस्ते सर,
मैं बी.ए. फ़र्स्ट डिवीज़न...
दूसरा : नो वैकेंसी।
रामेश्वर : (तीसरे के पास) नमस्ते सर,
मैं बी.ए. ...
तीसरा : नानसेन्स
रामेश्वर : (चौथे के पास जाकर) सर...
चौथा : नो वैकेंसी
[रामेश्वर पाँचों की ओर बढ़ता है। पाँचों
खड़े हो जाते हैं और एक साथ बोलते हैं।]
पाँचों : नो वैकेंसी,
नो वैकेंसी, नो वैकेंसी। (बैठते हैं)
[रामेश्वर लड़खड़ाता है और टूटी आवाज़
में बोलता है]
रामेश्वर : नौकरी न मिलेगी तो क्या होगा?
क्या होगा?
प्रति कोरस : क्या होगा,
क्या होगा, कहकर काहे उदास तू
छोटी सी नाकामी से न छोड़ रे मन की आस तू
बड़ी मुश्किलें आयेंगी रे जीवन की इस दौड़ में
लाखों लाख जवान लगे हैं नौकरियों की होड़ में
धीरज से कोशिश करता जा इक दिन ऐसा आयेगा
बरसों की मेहनत के बदले बड़ी नौकरी पायेगा।
बड़ी नौकरी पायेगा, तू बड़ी नौकरी पायेगा।
कोरस : फलाँ दिन,
फलाने समय निम्नलिखित पोस्टों के साक्षात्कार हेतु, सत्ता भवन की फलानी मंजि़ल पर, कमरा नम्बर फलाँ-फलाँ
में उपस्थित हों। (बैठते हैं)
रामेश्वर : इण्टरव्यू (ख़ुशी से उछलता है) पिता जी
इण्टरव्यू
[प्रति कोरस रामेश्वर को समझाता है।]
पहला : जल्दी-जल्दी रट लो,
भेजे को रस्सी में बट लो
दूसरा : पढ़ा-पढ़ाया फिर दोहरा लो,
डिग्री फ़ोटोस्टेट करा लो
तीसरा : बाल काढ़ लो,
नाख़ून काटो, मन्दिर में कुछ लड्डू बाँटो
चौथा : उल्टी-सीधी बात न कहना,
नाज़ुक मसलों पर चुप रहना
चारों : आगे ऊपर वाले की मर्जी।
रामेश्वर : बोल सियापति रामचन्द्र की जय
[प्रति कोरस बैठता है। पाँचों दानव एक तरफ़
जमघट बनाकर खड़े होते हैं। एक सीधा खड़ा है, चार नीचे झाँकने
की मुद्रा में खड़े हैं।]
चारों : भीड़ खड़ी है नीचे उम्मीदवारों की
अपनी-अपनी माँ के राजदुलारों की
यही कोई चालीस हज़ार लड़के आये हैं
जनरल नॉलेज रास्ते में भी रटते आये हैं।
पहला : ठीक है, ठीक
है, एक-एक करके ऊपर उन्हें बुलाओ...
चारों : उल्टे-सीधे प्रश्न पूछकर जल्दी से टरकाओ।
[पहला कान पर हाथ रखकर कव्वाली का आलाप
लेता है]
पहला : हाँ निश्चित है कि...
चारों : क्या?
पहला : आज बनेगा...-
चारों : क्या?
पहला : यहाँ का अफ़सर आला
चारों : कौन?
पहला : चेयरमैन के बहनोई के पड़पोते का साला।
[पाँचों नाचते हैं, दायरे के अलग-अलग कोनों में जाते हैं]
चारों : चेयरमैन के बहनोई के पड़पोते का साला।
चेयरमैन के बहनोई के (चीख़कर) पड़पोते का साला।
मिस्टर रामेश्टर दयाल!
[रामेश्वर झट से अन्दर आता है।]
रामेश्वर : मे आई कम इन सर?
[पाँचों दानव एक क़दम आगे लेकर छोटा
दायरा बनाते हुए रामेश्वर की परिक्रमा करते हैं।]
पाँचों : हा... हा... हा... हा...,
कहाँ तक पढ़े हो?
रामेश्वर : बी.ए.
पाँचों : हा... हा... हा... कौन डिवीज़न?
रामेश्वर : फ़र्स्ट
पाँचों : फ़र्स्ट? हा...
हा... हा...
रामेश्वर : हें, हें,
हें।
[पाँचों चौककर रुक जाते हैं]
पहला : क्यों हँसते हो पाजी लड़के
दूसरा : दाँत फाड़कर ऐसे?
तीसरा : कितने बेहूदा हो तुम!
चौथा : और जाहिल हो तुम कैसे?
पहला : तो तुमने हिन्दी साहित्य पढ़ा है। तो
यह बताओ कि गुलशन नन्दा जी का प्रथम उपन्यास कौन-सा था और किस वर्ष में प्रकाशित
हुआ था?
रामेश्वर : लेकिन गुलशन नन्दा जी का हिन्दी
साहित्य में कोई योगदान नहीं है।
पाँचों : क्या, कोई
योगदान नहीं है?
दूसरा : हिन्दी का ऐसा कौन सा उपन्यासकार है
जिसके हर नॉवल पर फ़िल्म बनी हो!
तीसरा : और जिसकी हर फ़िल्म कम से कम सिल्वर
जुबली हिट रही हो!
चौथा : और जिनके गीत महाकवि आनन्द बक्षी जी ने
लिखे हों और संगीत को सँवारा हो पंडित राहुल देव बर्मन जी महाराज ने!
पाँचवाँ : और देश की ऐसी कौन सी लाइब्रेरी है,
जिसमें श्री गुलशन नन्दा जी की संकलित रचनाएँ न उपलब्ध हों? यू नो, मेरी मिसेज़ के लिए तो गुलशन नन्दा की नॉवल
मुझसे भी ज़्यादा ज़रूरी हैं।
पाँचों : और तुम कहते हो कि कोई योगदान नहीं है।
रामेश्वर : लेकिन मुझे तो यह पढ़ाया गया है कि
प्रेमचन्द, यशपाल, भगवती चरण
वर्मा--
पहला : बस, बस,
क्या चरण वर्मा, चरण वर्मा लगा रखी है,
जब तुम्हें हिन्दी साहित्य के बारे में कुछ मालूम ही नहीं तो क्यों
टाँग अड़ा रहे हो?
और क्या विषय था तुम्हारा?
रामेश्वर : जी, फ़िलोसॉफ़ी।
दूसरा : फ़िलोसॉफ़ी?
यानी दर्शन शास्त्र? गुड, वेरी गुड!
तीसरा : अच्छा तो यह बताओ कि महर्षि श्री महेश
योगी और भगवान श्री रजनीश के दर्शनों में तुम्हें कौन सा पसन्द है?
चौथा : और क्यों पसन्द है?
सन्दर्भ सहित व्याख्या करो
With
proper reference to the context.
पाँचवाँ : भगवान रजनीश को पढ़ा भी है या नहीं।
रामेश्वर : (हकलाते हुए) जी... जी...
पाँचों : तो बताओ।
पहला : ख़ैर छोड़ो,
अल्बेयर कामू और भगवान रजनीश के दार्शनिक मतभेदों के सम्बन्ध में सर
रिचर्ड ऐटनबरो के क्या विचार हैं?
रामेश्वर : सर मैं अल्बेयर कामू के बारे में तो
बता सकता हूँ पर भगवान रजनीश और सर रिचर्ड...
पाँचों : ऐटनबरो
रामेश्वर : हाँ, इनके
बारे में मैं कुछ नहीं जानता।
पाँचवाँ : आखि़र तुम जानते क्या हो?
रामेश्वर : (बौखलाहट और गुस्से से तीसरे की तरफ़
बढ़ता है) Indian Constitution guarantees Civil Liberties. (तीसरा डरकर चौथे के पास जाता है।) जल की द्रव्यता और मनुष्य की सभ्यता
में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिवाजी ने औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों से
संघर्ष किया।
The
rich and sensuous perception of an early romanticism in most clearly visible in
keats.
और यह संसार अनन्त और असीम है।
पाँचवाँ : (डरते हुए) लगता है...
चारों : (एक साथ) पागल हो गया है।
रामेश्वर : क्यों पूछते हो ग़लत-सलत सवाल। तुम
नहीं चाहते कि...
पाँचों : Get out from here. (बैठ जाते हैं)
रामेश्वर : यह संसार अनन्त और असीम है। यहाँ से
वहाँ तक रेगिस्तान है बेरोज़गारी का। मुझे बताओ कब बेरोज़गारी दूर होगी?
क्या मुझे रोज़गार मिलेगा? नहीं तो... नहीं तो...
Get out from here, but where shall I go? मैं कहाँ जाऊँ? हर रोज़
इन्हीं उम्मीदों के सहारे घर से निकलता हूँ कि आज अप्वांइटमेण्ट लेटर लेकर ही घर
लौटूँगा। अपने बूढ़े बीमार बाप के चेहरे पर सुकून देखूँगा। लेकिन हर आने वाला दिन
एक नाकामयाबी का दिन होता है जैसे आज का... लेकिन घर तो जाना ही होगा!
कोरस : किस सोच में डूबे हो नौजवान
गुमसुम उदास और परेशान
रामेश्वर : बेरोज़गारी ने सभी सम्बन्ध तोड़ दिये।
दोस्त तो पहले ही ना जाने किस मोड़ पर जुदा हो गये थे। लगता है मेरा ख़ुद से भी
नाता टूट जायेगा।
कोरस : इस दुनिया ने तोड़ दिये सारे रिश्ते
सच्चाई भी झूठ बन गयी पिसते-पिसते
इस लड़के ने वही किया जो सबने इसको बतलाया
उसी मार्ग पर चला कि जो गुरुओं ने इसको सिखलाया।
रामेश्वर : मेहनत से पढ़ाई की। उस्तादों का मान
किया। ईमानदारी से इम्तहान पास किया। रोज़गार दफ्तरों में नाम लिखाया,
उम्मीदों के हवाई किले बनाये। धैर्य से इन्तज़ार किया और इन्तज़ार करते-करते,
उपदेश-नसीहतें, सरकारी और ग़ैरसरकारी...
कोरस : कार्य करो तो फल पाओगे
पहला : एक दिन अफ़सर बन जाओगे
दूसरा : भारत जग का प्यारा है
तीसरा : फ़ॉरेन एड का प्यारा है
चौथा : निर्धनों के सब अधिकार
पाँचवाँ : न्याय के हैं पूरे हक़दार
पहला : प्रजातन्त्र का नारा है
दूसरा : भारत वर्ष हमारा है
तीसरा : रघुकुल रीति सदा चली आयी
चौथा : समाजवाद के हम अनुयाई
सभी : सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा,
हमारा, सारे जहाँ से अच्छा।
हम बुलबुले हैं इसकी, ये गुलसिताँ हमारा, हमारा। सारे जहाँ।
[पाँचों मंच से हटकर गोल दायरे में बैठ
जाते हैं।]
रामेश्वर : मैंने सात इण्टरव्यू दिये हैं,
सातों बार मुझसे ऐसे सवाल पूछे गये जिनका मेरी पढ़ाई से कोई ताल्लुक
नहीं।
प्रति कोरस : इसका
जि़म्मेदार ये लड़का है, इसका बाप या कोई और?
रामेश्वर : सातों बार नौकरी किसी न किसी सिफ़ारिशी
आदमी को ही मिली। सातों बार मैं निराशा और नकामयाब ही लौटा।
प्रति कोरस : इसका
जि़म्मेदार ये लड़का है, इसका बाप या कोई और?
रामेश्वर : आज मेरे सारे सपने टूट चुके हैं,
मेरे चारों ओर अँधेरा सिर्फ अँधेरा। इसका जि़म्मेदार कौन है?
प्रति कोरस : टूटे सपनों
का अम्बार, कौन है इसका जि़म्मेदार?
इसके हिस्से में क्यों बाक़ी, सड़क से लड़ना
बारम्बार।
रामेश्वर : (चीख़कर) कौन है इसका जि़म्मेदार।
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