व्‍यंग्‍य कविता : रामलला हम आएँगे, मन्दिर वहीं बनाएँगे / जगदीश सौरभ


व्‍यंग्‍य कविता : रामलला हम आएँगे, मन्दिर वहीं बनाएँगे

जगदीश सौरभ 

हिटलर के वारिस (वायरस?) संघी हाफपैंटियों ने 2014 का चुनाव अच्छे दिनों के वायदे पर लड़ा था। लोगों को रोजगार देने, अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने, काला धन वापस लाने और भ्रष्टाचारियों को सजा देने के वायदे किए गए थे लेकिन पांचवा साल आते आते उनकी असलियत अब जनता के सामने आ गई है। विकास के वायदे हवा हो गए हैं और राम मंदिर एक बार फिर सेंटर स्टेज पर आ गया है। कभी गाय के नाम पर तो कभी मंदिर के नाम पर दंगे करवा कर लगातार देश में हिंदू मुस्लिम तनाव को बनाए रखना इनकी पुरानी रणनीति है। जगदीश सौरभ ने इस पर एक बेहतरीन व्यंग्य कविता लिखी है। यह अवधी में है लेकिन हिंदी समझने वाले ज्यादातर लोग इसको समझ ही जाएंगे। पढ़ें और आगे बढ़ाएं।

रामलला हम आएँगे, मन्दिर वहीं बनाएँगे
जे सरवा सिरि राम न बोली, पकड़-पकड़ लतियाएँगे
रामलला हम आएँगे

पढ़े बदे इस्कूल ना रहै, घर चौका औ चूल्ह ना रहै
रोटी औ रोजगार ना रहै, कउनो कारोबार ना रहे
अपने खूब मलाई काटें, लम्बा-लम्बा भाषण छाँटैं
गाय-भईंस के नाम पे हरदम, जनता को लड्वाएँगे
रामलला हम आएँगे

अस्पताल, गोदाम अनाज के, एक्को नाही काम-काज के
सरकारी स्कूल औ कॉलेज, उफरि परै सब नालेज-वालेज
दाल, तेल औ नून के कीमत, कोचिंग, टयूसन फीस के आफत,
पइसा वालेन के का दिक्कत प्राइबेट में जाएँगे
रामलला हम आएँगे

खाली हौवा ? झण्डा लेला, हाथ में मोट के डण्डा लेला
रोजगार के बात मत करा, सरऊ देसदरोही हउआ ?
आटा ना हौ, डाटा हौ नै, रोटी डाउनलोड कई लेहा
टच मोबाइल, टीबी, किरकेट, घर-घर में पहुचाएँगे
रामलला हम आएँगे

गाँव गली में मन्दिर होइहैं, चार ठे मोट पुजारी होइहैं
दुई ठे दिन भर रूपया गिनिहैं, औ दुई ठे रेचकारी बिनिहैं
ओही भब्य मन्दिर के बहरे पच्चिस-तीस भिखारी होइहैं
तोहर कमाई खाइके बाबा तोहईं के गरियाएँगे
रामलला हम आएँगे

पैदा चाहे कुछ ना करिहैं, नटई तक ले ठूँस के खइहें
जवन बची ऊ घर ले जईहैं, बेटवा अमरीका में पढ़इहैं
थोड़का दान औ पुन्न देखाई, बाकी पार्टी फण्ड में जाई
वो ही से हथियार खरीद के दंगा-मार कराएँगे.
रामलला हम आएँगे

गंगा माई, देंय दोहाई, कइसे होई साफ़-सफाई
चार ठे नाला और गिरी तब नेता दीहैं बजट बढ़ाई
पण्डन के गजबै लीला हौ, हमरे नाम पे करैं कमाई
लाखों टन लकड़ी रोज फूँकिहैं, मुर्दा वहीँ जलाएँगे
रामलला हम आएँगे

कोका-कोला, पेप्सी माज़ा, जवन मिलै बस गटक जा राजा
पोखरी कूँआ, ताल-तलैया, सुखति हवे तो सुखे दा भइया
काहें हाहाकार ? बिकत बा, पानी खाली बीस रुपैया
हवा त अबहीं बकिये बाटे, उसको भी बेचवाएँगे
रामलला हम आएँगे

जनरल डिब्बा में ठुँस-ठुँस के, आड़े तिरछे कइसौ घुस के
दिल्ली-बम्मई भाग के जइहैं, पूरी जिनगी बेचि के अइहें
ई बिकास के कइसन सीढ़ी, भै बरबाद पचीसन पीढ़ी
तोहरे खून पसीना से ऊ आपन महल बनाएँगे
रामलला हम आएँगे

रोटी-बेटी, नात-हीत में जतिये एक कसौटी होलै
दुनिया में इनसान, इहाँ पे चमरौटी बभनौटी होलै
पाँड़े बोलैं ठाकुरसाहब ! तोहँऊ हिन्दू हमहू हिन्दू
देखिहा अब थोडके दिन में हम बिस्वगुरु बन जाएँगे
रामलला हम आएँगे

छोटजतिया सब पढ़ि लिख जइहैं, धरम करम के आँख देखइहें
बड़जातियन के खेत फैक्टरी फिर कब्भौं ना झाँकें जइहैं
अपने काम क छाँट के रक्खा, बाकी सबके बाँट के रक्खा
एनके बस मजदूर बनावा, नहीं त सब बढ़ जाएँगे.
रामलला हम आएँगे

एही देस में लाख-करोड़ों आधे पेट ले खाना खालैं
एही मुलुक में रोज हजारन टीबी कैंसर से मरि जालैं
मछरी माँस पे फाँसी होई, दुनियाँ भर में हाँसी होई
बीड़ी, सिगरेट, गुटखा दारू बन्द नहीं करवाएँगे
रामलला हम आएँगे।
 
https://satyagrah.scroll.in से साभार

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