अगर तुम युवा हो श्रृंखला की छह कविताएं / शशिप्रकाश
अगर तुम युवा हो श्रृंखला की छह कविताएं
✍शशिप्रकाश
♦___________________♦
अगर तुम युवा हो! - एक
ग़रीबों-मज़लूमों के नौजवान सपूतों!
उन्हें
कहने दो कि क्रांतियाँ मर गयीं
जिनका स्वर्ग
है इसी व्यवस्था के भीतर
तुम्हें तो
इस नर्क से बाहर
निकलने के लिए
बन्द
दरवाजों को तोड़ना ही होगा,
आवाज़ उठानी ही होगी
इस निजामें कोहना के खिलाफ।
यदि तुम चाहते हो
आज़ादी, न्याय, सच्चाई, स्वाभिमान
और सुन्दरता
से भरी जिन्दगी
तो तुम्हें
उठाना ही होगा
नये इंकलाब का परचम फिर से।
उन्हें
करने दो 'इतिहास के अन्त'
और 'विचारधारा
के अन्त' की अन्तहीन बकवास।
उन्हें
पीने दो पेप्सी और कोक और
थिरकने दो माइकल जैक्सन की
उन्मादी
धुनों पर।
तुम गाओ
प्रकृति की लय पर जिन्दगी के गीत।
तुम पसीने और खून और
मिट्टी और रोशनी की बातें करो।
तुम बगावत की धुनें रचो।
तुम इतिहास के रंगमंच पर
एक नये महाकाव्यात्मक नाटक की
तैयारी करो।
तुम उठो,
एक प्रबल वेगवाही
प्रचण्ड
झंझावात बन जाओ।
♦___________________♦
अगर तुम युवा हो! - दो
स्मृतियों से कहो
पत्थर के
ताबूत से बाहर आने को ।
गिर जाने दो
पीले पड़ चुके पत्तों को,
उन्हें
गिरना ही है ।
बिसुरो मत,
न ही ढिंढोरा पीटो
यदि दिल तुम्हारा सचमुच
प्यार से
लबरेज़ है ।
तब कहो कि विद्रोह न्यायसंगत है
अन्याय के
विरुद्ध ।
युद्ध को आमंत्रण दो
मुर्दा शान्ति और कायर-निठल्ले विमर्शों के विरुद्ध ।
चट्टान के नीचे दबी पीली घास
या जज्ब कर
लिये गये आँसू के क़तरे की तरह
पिता के सपनों
और माँ की प्रतीक्षा को
और हाँ, कुछ
टूटे-दरके रिश्तों और यादों को भी
रखना है साथ
जलते हुए समय की छाती पर यात्रा करते हुए
और तुम्हें इस
सदी को
ज़ालिम नहीं होने देना है ।
रक्त के
सागर तक फिर पहुँचना है तुम्हें
और उससे छीन लेना है वापस
मानवता का दीप्तिमान वैभव,
सच के आदिम पंखों की उड़ान,
न्याय की
गरिमा
और भविष्य की
कविता
अगर तुम युवा हो ।
♦___________________♦
अगर तुम युवा हो! - तीन
जहाँ स्पन्दित हो रहा है बसन्त
हिंस्र हेमन्त और सुनसान शिशिर में
वहाँ है तुम्हारी जगह
अगर तुम युवा हो!
जहाँ बज रही है भविष्य-सिम्फ़नी
जहाँ स्वप्न-खोजी यात्राएँ कर रहे हैं
जहाँ ढाली जा रही हैं आगत की साहसिक परियोजनाएँ,
स्मृतियाँ
जहाँ ईंधन हैं,
लुहार की भाथी की कलेजे में भरी
बेचैन गर्म हवा जहाँ ज़िन्दगी को रफ़्तार दे रही है,
वहाँ तुम्हें होना है
अगर तुम युवा हो!
जहाँ दर-बदर हो रही है ज़िन्दगी,
जहाँ हत्या हो
रही है जीवित शब्दों की
और आवाज़ों को कैद-तनहाई की
सजा सुनायी जा रही है,
जहाँ निर्वासित वनस्पितियाँ हैं
और काली तपती चट्टानें हैं,
वहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा है
अगर तुम युवा हो!
जहाँ संकल्पों के बैरिकेड खड़े हो रहे हैं
जहाँ समझ की बंकरें खुद रही हैं
जहाँ चुनौतियों के परचम लहराये जा रहे हैं
वहाँ तुम्हारी तैनाती है
अगर तुम युवा हो।
♦___________________♦
अगर तुम युवा हो! - चार
चलना होगा एक बार फिर
बीहड़, कठिन,
जोखिम भरी सुदूर यात्रा पर,
पहुँचना होगा उन ध्रुवान्तों तक
जहाँ प्रतीक्षा है हिमशैलों को
आतुर हृदय और सक्रिय विचारों के ताप की।
भरोसा करना होगा एक बार
विस्तृत और
आश्चर्यजनक सागर पर।
उधर रहस्यमय
जंगल के किनारे
निचाट मैदान के अँधेरे छोर पर
छिटक रही हैं जहाँ नीली चिंगारियाँ
वहाँ जल उठा था कभी कोई हृदय
राहों को रौशन करता हुआ।
उन राहों को ढूँढ निकालना होगा
और आगे ले जाना होगा
विद्रोह से प्रज्ज्वलित हृदय लिए हाथों में
सिर से ऊपर उठाये हुए,
पहुँचना होगा वहाँ तक
जहाँ समय टपकता रहता है
आकाश के अँधेरे से बूँद-बूँद
तड़ित
उजाला बन।
जहाँ नीली जादुई झील में
प्रतिपल काँपता रहता अरुण कमल एक,
वहाँ पहुँचने के लिए
अब महज अभिव्यक्ति के नहीं
विद्रोह के सारे ख़तरे उठाने होंगे,
अगर तुम युवा हो।
♦___________________♦
अगर तुम युवा हो! - पाँच
गूँज रही हैं चारो ओर
झींगुरों की आवाजें।
तिलचिट्टे फदफदा रहे हैं
अपने पंख।
जारी है अभी भी नपुंसक विमर्श।
कान मत दो इन पर।
चिन्ता मत
करो।
तुम्हारे
सधे कदमों की धधक से
सहमकर शान्त हो जायेंगे
अँधेरे के सभी अनुचर।
जियो इस तरह कि
आने वाली पीढ़ियों से कह सको --
'हम एक अँधेरे समय में पैदा हुए
और पले-पढ़े
और लगातार उसके खिलाफ सक्रिय रहे'
और तुम्हें
बिल्कुल हक होगा
यह कहने का बशर्ते कि
तुम फैसले पर पहुँच सको
बिना रुके, बिना ठिठके।
मत भूलो कि देर से फैसले पर पहुँचना
आदमी को बूढ़ा कर देता है।
जीवन के प्याले से छककर पियो
और लगाओ चुनौती भरे ठहाके
पर कभी न भूलो उनको
जिनके प्याले
खाली हैं।
आश्चर्यजनक
हों तुम्हारी योजनाएँ
पर व्यावहारिक
हों।
सागर में दूर तक जाने की
बस ललक भर ही न हो,
तुम्हारी
पूरी जिन्दगी ही होनी चाहिए
एक खोजी यात्रा।
सपने देखने की आदत
बनाये रखनी होगी
और मुँह अँधेरे जागकर
सूरज की पहली किरण के साथ
सक्रिय होने की आदत भी
डाल लेनी होगी तुम्हें।
कुछ चीजें धकेल दी गयी हैं
अँधेरे में।
उन्हें
बाहर लाना है,
जड़ों तक जाना है
और वहीं से ऊपर उठना है
टहनियों को फैलाते हुए
आकाश की ओर।
सदी के इस छोर से
उठानी है फिर आवाज
'मुक्ति' शब्द को
एक घिसा हुआ सिक्का होने से
बचाना है।
जनता को सुषुप्त-अज्ञात मेधा तक जाना है
जो जड़-निर्जीव चीजों को
सक्रिय जीवन में रूपान्तरित करेगी
एक बार फिर।
जीवन से अपहृत चीजों की
बरामदगी होगी ही एक न एक दिन।
आकाश को प्राप्त होगा
उसका नीलापन,
वृक्षों को उनका हरापन,
तुषारनद को उसकी श्वेताभा
और सूर्योदय को उसकी लाली
तुम्हारे
रक्त से,
अगर तुम युवा हो।
♦___________________♦
अगर तुम युवा हो - छह
जब तुम्हें होना है
हमारे इस ऊर्जस्वी, सम्भावनासम्पन्न,
लेकिन अँधेरे, अभागे देश में
एक योद्धा शिल्पी की तरह
और रोशनी की एक चटाई बुननी है
और आग और पानी और फूलों और पुरातन पत्थरों से
बच्चों का
सपनाघर बनाना है,
तुम सुस्ता रहे
हो
एक बूढ़े बरगद के नीचे
अपने सपनों के लिए एक गहरी कब्र खोदने के बाद।
तुम्हारे पिताओं को उनके बचपन में
नाजिम हिकमत ने भरोसा दिलाया था
धूप के उजले दिन देखने का,
अपनी तेज रफ्तार नावें
चमकीले-नीले-खुले समन्दर में दौड़ाने का।
और सचमुच हमने देखे कुछ उजले दिन
और तेज़ रफ्तार नावें लेकर
समन्दर की
सैर पर भी निकले।
लेकिन वे थोड़े से उजले दिन
बस एक बानगी थे,
एक झलक मात्र थे,
भविष्य के
उन दिनों की
जो अभी दूर थे और जिन्हें तुम्हें लाना है
और सौंपना है अपने बच्चों को।
हमारे देखे हुए उजले दिन
प्रतिक्रिया की काली आँधी में गुम हो गये दशकों
पहले
और अब रात के दलदल में
पसरा है निचाट सन्नाटा,
बस जीवन के महावृतान्त के समापन की
कामना या घोषणा करती बौद्धिक तांत्रिकों की
आवाजें सुनायी दे रही हैं यहाँ-वहाँ
हम नहीं कहेंगे तुमसे
सूर्योदय और दूरस्थ सुखों और
सुनिश्चित विजय
और बसन्त के
उत्तेजक चुम्बनों के बारे में
कुछ बेहद उम्मीद भरी बातें
हम तुम्हें
भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं
बेचैन करना चाहते हैं।
हम तुम्हें
किसी सोये हुए गाँव की
तन्द्रिलता की याद नहीं,
बस नायकों की स्मृतियाँ
विचारों की विरासत
और दिल तोड़ देने वाली पराजय का
बोझ सौंपना चाहते हैं
ताकि तुम नये प्रयोगों का धीरज सँजो सको,
आने वाली लड़ाइयों के लिए
नये-नये व्यूह रच सको,
ताकि तुम जल्दबाज़ योद्धा की ग़लतियाँ न करो।
बेशक थकान और उदासी भरे दिन
आयेंगे अपनी पूरी ताकत के साथ
तुम पर हल्ला बोलने और
थोड़ा जी लेने की चाहत भी
थोड़ा और, थोड़ा और जी लेने के लिए लुभायेगी,
लेकिन तब ज़्ररूर याद करना कि किस तरह
प्यार और
संगीत को जलाते रहे
हथियारबंद हत्यारों के गिरोह
और किस तरह भुखमरी और युद्धों और
पागलपन
और आत्महत्याओं के बीच
नये-नये
सिद्धान्त जनमते रहे
विवेक को दफनाते हुए
नयी-नयी सनक भरी विलासिताओं के साथ।
याद रखना फिलिस्तीन और इराक को
और लातिन अमेरिकी लोगों के
जीवन और जंगलों के महाविनाश को,
याद रखना सबकुछ राख कर देने वाली आग
और सबकुछ रातोरात बहा ले जाने वाली
बारिश को,
धरती में दबे खनिजों की शक्ति को,
गुमसुम उदास अपने देश के पहाड़ों के
नि:श्वासों
को,
ज़हर घोल
दी गयी नदियों के रुदन को,
समन्दर
किनारे की नमकीन उमस को
और प्रतीक्षारत प्यार को।
एक गीत अभी खत्म हुआ है,
रो-रोकर थक चुका बच्चा अभी सोया है,
विचारों को लगातार चलते रहना है
और अन्तत:
लोगों के अन्तस्तल तक पहुँचकर
और अनन्त
कोलाहल रचना है
और तब तक,
तुम्हें स्वयं अनेकों विरूपताओं
और अधूरेपन के साथ
अपने हिस्से का जीवन जीना है
मानवीय चीजों की अर्थवत्ता की बहाली के लिए
लड़ते हुए
और एक नया सौन्दर्यशास्त्र रचना है।
तुम हो प्यार और सौन्दर्य
और नैसर्गिकता की
निष्कपट
कामना,
तुम हो स्मृतियों और स्वप्नों का द्वंद्व,
तुम हो वीर शहीदों के जीवन के वे दिन
जिन्हें वे
जी न सके।
इस अँधेरे, उमस भरे कारागृह में
तुम हो उजाले की खिड़कियाँ,
अगर तुम युवा हो!
Comments
Post a Comment