पुलवामा में आतंकवादी हमला और संघी फासीवादियों की रणनीति


पुलवामा में आतंकवादी हमला और संघी फासीवादियों की रणनीति 

पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद देश में जो कुछ हो रहा है उस पर बहुत ठीक से विचार करने की जरूरत है और उसी को देखते हुए हम आज सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्ण पल्लवी के चार छोटे लेखों को मिलाकर यहां प्रस्तुत कर रहे हैं सभी साथियों से आग्रह है कि वह ध्यान से पढ़ें और विचार करें

(एक मिनट रुकिए! अगर आप एक शांतिप्रिय, सेक्युलर, तरक्कीपसंद, लोकतांत्रिक चेतना वाले नागरिक हैं, तो इस टिप्पणी को ज़रूर-ज़रूर पढ़िए! अगर ये चिन्तायें और ये सरोकार आपके भी बनते हैं, तो कुछ ज़िम्मेदारियाँ आपकी भी बनती हैं! सबसे पहले तो यह कि अगर आप सहमत हैं तो यह बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचानी है!)
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भई, संदेह करने के पर्याप्त कारण हैं! पुलवामा हमले के बाद मोदी और उनके सभी मंत्री-सांसद धुँआधार रैलियाँ कर रहे हैं! मोदी तो सर्वदलीय बैठक बुलाकर खुद रैली में चले गए। भाजपा के मंत्री और सांसद मारे गए जवानों के शवों के साथ रोड शो कर रहे हैं! मुख्य धारा की मीडिया के कुत्ते लाशों पर महाभोज में जुटे ही हैं! जो हिन्दुत्ववादी साइबर गुंडे और भाड़े के टट्टू पिछले कुछ महीनों से कुछ शांत थे, वे सोशल मीडिया पर पूरी आक्रामकता के साथ सक्रिय हो गए हैं! बस दो नारे दिए जा रहे हैं, "आम चुनाव को रोक दो और पाकिस्तान को ठोंक दो" और "देश को बचाना है, मोदीजी को फिर से लाना है!" मुस्लिम आबादी आतंक के साए तले जी रही है! देश के विभिन्न इलाकों से कश्मीरी या तो खदेड़े और पीटे जा रहे हैं या धमकाए जा रहे हैं! धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण तेज़ी से हो रहा है!
नोटबंदी, जी.एस.टी.आदि के कहर, 15 लाख वाले जुमले के भद्द पिटने, किसानों की आत्महत्या और अभूतपूर्व बेरोजगारी-मँहगाई से बदली हुई हवा को अपने पक्ष में करने के लिए नागरिकता रजिस्टर, तीन तलाक़ आदि-आदि कई तीन-तिकड़म करने के बाद, आखिरकार राम मंदिर के मुद्दे को फिर से हवा दिया गया, पर वह तो टांय-टांय फिस्स हो गया! एक लोकरंजक अंतरिम बजट भी आया, पर रफ़ाल के अबतक के सबसे बड़े घोटाले का शोर दबाया न जा सका! आप याद कीजिए, मैंने (और कई अन्य लोगों ने ) कुछ महीने पहले ही लिखा था कि जब कोई भी अस्त्र काम न आयेगा तो अपने सभी पूर्वजों-अग्रजों के नक्शे-क़दम पर चलते हुए हिन्दुत्ववादी फासिस्ट भी किसी न किसी तरह से अंधराष्ट्रवादी जुनून को हवा देंगे और उन्मादी देशभक्ति की लहर पर सवार होकर फिर से सत्ता तक पहुँचने की कोशिश करेंगे! और एकदम वैसा ही हुआ! अंधराष्ट्रवाद सभी फासिस्टों का अंतिम शरण्य और ब्रह्मास्त्र -- दोनों होता है!
अंधराष्ट्रवादी "देशभक्ति" की लहर उभाड़ना फासिस्टों का एक ऐसा हथकंडा है, जिसके आगे बुर्जुआ राजनीतिक दायरे में उनसे प्रतिस्पर्धा कर रहे बुर्जुआ डेमोक्रेट और सोशल डेमोक्रेट बहुत जल्दी हथियार डाल देते हैं और सोशल डेमोक्रेट और लिबरल ज़हनियत के बुद्धिजीवी भी चुप्पी साध लेते हैं! ये सभी या तो खुद किसी हद तक बुर्जुआ राष्ट्रवाद की नक़ली "देशभक्ति" की लहर में बहने लगते हैं, या यह सोचकर डर से चुप्पी साध लेते हैं कि उन्हें 'गद्दार' या 'देशद्रोही' कह दिया जाएगा! ऐसे तमाम लोग भी अक्सर "देशभक्ति" साबित करने की प्रतिस्पर्द्धा में उतर जाते हैं, लेकिन यह गेम और इसका फील्ड तो सबसे पहले फासिस्टों का होता है, इसलिए उनका आगे निकल जाना लाजिमी होता है!
इन तथ्यों और तर्कों के मद्देनज़र संदेह तो उठता है! आखिर हमले के अंदेशे की इंटेलिजेंस रिपोर्ट की अनदेखी क्यों की गयी? एक आतंकी उतनी भारी मात्रा में आर.डी.एक्स. से भरी गाड़ी लेकर गलत साइड से सी.आर.पी.एफ़. के कॉन्वॉय तक कैसे पहुँच गया? एयरलिफ्ट कराके श्रीनगर पहुँचाए जाने की सी.आर.पी.एफ़. की माँग को क्यों नहीं माना गया? ये सारे सवाल हैं जिन्हें शोर में डुबोने की कोशिश की जा रही है! रफ़ाल घोटाले से जुड़े 'हिन्दू'अखबार के जो सनसनीखेज और शर्मनाक रहस्योद्घाटन किसी भी तिकड़म-हिकमत से दब नहीं पा रहे थे, वे एकबारगी "देशभक्ति" के जुनून द्वारा नेपथ्य में धकेल दिए गए हैं! पिछली एक पोस्ट में मैं बता चुकी हूँ कि गम्भीर आतंरिक संकटों से जूझते पाकिस्तानी शासकों को -- वहाँ की महाभ्रष्ट सेना को और बुरी तरह डिसक्रेडिट हो चुकी इमरान खान की सरकार को भी शिद्दत से एक छोटी या बड़ी लड़ाई की या सीमा पर तनाव की दरकार है! और आर्थिक संकट झेल रहे पश्चिम के साम्राज्यवादी देश तो चाहते ही हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में किसी तरह से युद्ध भड़के जहाँ उनके हथियारों के दो सबसे बड़े खरीदार देश हैं!
फासिस्ट चरम मक्कारी और परम धूर्तता के साथ अपने काम में लगे हैं! वे चाहते हैं कि या तो बिना ई.वी.एम. माता की कृपा बरसाए "देशभक्ति" की "पवित्र गैया" की पूँछ पकड़कर ही चुनावी बैतरनी पार हो जाए या फिर माता की कृपा का कम से कम सहारा लेना पड़े, क्योंकि पूरे देश में अगर ई.वी.एम. माता की कृपा बरसेगी तो यह खेल काफ़ी रिस्की होगा!
सभी विवेकशील, शांतिप्रिय, तरक्कीपसंद, सेक्युलर और लोकतांत्रिक चेतना के नागरिकों का यह दायित्व है कि वे दिन-रात काम में लगी संघी फासिस्टों की अफवाह मशीनरी, झूठ के कारखानों और उन्माद-प्रसारक केन्द्रों को नाकाम बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दें और इसमें सोशल मीडिया का भी भरपूर इस्तेमाल करें! पूँजी की ताक़त और संगठित गुंडा गिरोहों का मुकाबला सिर्फ़ और सिर्फ़ जनशक्ति को जागृत और संगठित करके ही किया जा सकता है!इस महत्वपूर्ण काम को अंजाम देने में आप की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, होनी ही चाहिए, होनी ही होगी! वे अपने काम में लगे हैं! आप अपने काम में कब लगेंगे?
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भक्तो! पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए छप्पन इंची से गला फाड़-फाड़कर गुहार लगाते-लगाते तुमलोगों का गला तो फटा बाँस हो गया , पर नोट कर लो, कुछ नहीं होगा! होगा कैसे? मूर्खो! पता है, तुम्हारे अम्बानी भैया और अदानी भैया के कितने करोड़ डॉलर के व्यापारिक हित पाकिस्तान में लगे हुए हैं? और भी कई भैया-चाचा लोगों के लगे हैं! और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल का बिज़नेस पार्टनर सैयद अली अब्बास भी तो एक पाकिस्तानी है! शौर्य डोभाल पाकिस्तानी नागरिक सैयद अली अब्बास और प्रिंस मिशाल बिन अबदुल्लाह बिन तुर्की बिन अबदुल्लाज़ीज़ अल साऊद के साथ मिलकर जेमिनी फाइनेंशियल सर्विसेज नामक कंपनी चलाते हैं! और घामड़ो! इन जूनियर डोभाल साब का दूसरा काम इंडिया फाउंडेशन नाम के थिंक टैंक को चलाना है, जिसमें चार केंद्रीय मंत्री बतौर निदेशक (डायरेक्टर) अपनी सेवाएँ दे रहे हैंI रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण इन चार मंत्रियों में शामिल हैंI इंडिया फाउंडेशन की स्थापना शौर्य डोभाल ने भाजपा महासचिव राम माधव के साथ मिलकर की थी। यानी एक पाकिस्तानी का बिज़नेस पार्टनर भारत सरकार के लिए नीतियाँ बनाने के काम में लगा हुआ है और उसका बाप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार है!
भाई, जब पाकिस्तान से सारे सम्बन्ध तोड़ने हैं और उसकी कमर भी तोड़नी है तो अपने अम्बानी भैया और अदानी भैया से भी तो कहो कि अपना धंधा वहाँ से समेट लें और डोभाल साहिब के बिटुवा से भी तो कहो कि अपने पाकिस्तानी पार्टनर से कट्टी कर ले! और गर्दभ-पुत्रो! यह बात जब गोदी मीडिया के कुत्तों ने ही दबा दी तो भला तुमको कैसे पता होगा कि इस महादेशभक्त सरकार के सुरक्षा सलाहकार के दूसरे बेटे विवेक डोभाल ने नोट्बंदी के कुछ ही दिनों बाद केमन आइलैंड्स में हेज फंड्स खोला था और वहाँ से अचानक विशाल मात्रा में विदेशी पूँजी भारत आयी थी! यानी सारा खेल काले को सफ़ेद करने का था! इस पूरे मामले को एकदम से दबा दिया गया!
तो बछिया के ताऊ लोग!अब संघी देशभक्ति की एक और बात जान लो! कल सऊदी अरब का कुख्यात जालिम सुलतान प्रिंस सलमान भारत आ रहा है, जिसके लिए छप्पन इंची पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत करने की गजब तैयारी किये हुए हैं! क्या करें बिचारे, तेल जो चाहिए, और अमेरिका वाले बड़के भैया ने कहा है कि खबरदार! ईरान से नहीं,सऊदी से लो! और प्रिंस सुलतान पाकिस्तान को हथियार खरीदने के लिए और ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने के लिए कितने का तोहफा देते हुए भारत आ रहा है, जानते हो? -- दो सौ करोड़ अमेरिकी डॉलर! दम है तो प्रिंस सुलतान को काला झंडा दिखाओ! तब तुम सभी झंडुओं की देशभक्ति की हवा तुम्हारे छप्पनइंची खलीफा ही टाइट कर देंगे! तुम लोगों की औंधी खोंपड़ी में यह बात घुस ही नहीं सकती कि जब पूरी सत्ता पूँजी की चाकरी में सन्नद्ध हो तो सारा राष्ट्रवाद और सारी देशभक्ति सिक्कों से भरी थैली से निकलती है और फिर उसी में घुस जाती है!
और हाँ, एक बात और जान लो! चुनाव तक गरमागरम बातों का खूब जुबानी जमाखर्च होगा, सीमा पर तनाव और कुछ झड़पें होगीं, आतंकियों के नाम पर कश्मीर में न जाने कितने बेगुनाह गोलियों से छलनी किये जायेंगे, पर पाकिस्तान पर हमला करके कोई बड़ी सैनिक कार्रवाई कत्तई नहीं होगी! मोदीजी पगलाए हैं का कि अम्बानी, अदानी और डोभाल के लाल के व्यावसायिक हितों को चोट पहुँचायेगे? अरे भई, तुम क्या जानो! यह सब गंदा है, पर धंधा है! कश्मीर में भी लाशों का धंधा है, जो भारत-पाकिस्तान दोनों के हुक्मरानों की ज़रूरत है! लाशें आम गरीबों के बेटों की गिरनी है, चाहे वे कश्मीर के आम लोग हों या फिर सी.आर.पी.एफ़.,बी.एस.एफ़. और सेना के जवान!
अभी जितनी लाशें गिरेंगी, उतना ही देशभक्ति का जुनून उफान मारेगा और उतना ही कमल खिलेगा! अगर नहीं ही खिल पाया फिर भी, तो ई.वी.एम. है ही! उससे खिला लेंगे! वह तो थोड़ा रिस्क है, इसलिए भरसक बचा रहे हैं! बाकी, तुम भक्त लोग तो सोचोगे नहीं! सोचने का काम देशद्रोह और धर्म-द्रोह का काम जो होता है! और ज्यादा सोचने से घुटनों में दर्द भी होने लगता है! थोड़ा पंचगव्य का चखना खाकर गोमूत्र का तगड़ा पेग लगाओ और सो जाओ! कल फिर से काम पर लग जाना है!
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देश फिर एक ख़तरनाक दिशा में जा रहा है! पुलवामा की घटना के बाद अखबारों, न्यूज़ चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक पर "देशभक्ति" का जुनून उबाल पर है! चारो ओर एक के बदले दस सर लाने, पाकिस्तान पर अभी हमला करके उसे नेस्तनाबूद कर देने और "गद्दार कौम" के लोगों को सबक सिखाने का शोर गूँज रहा है! नतीजे भी आने लगे हैं! जम्मू में हिन्दुत्ववादी गुंडों ने मुस्लिम बस्तियों पर हमले किये। देहरादून के विभिन्न शिक्षा-संस्थानों में पढ़ने वाले 700 छात्र शहर आतंक के साये तले जीते हुए शहर छोड़ने के बारे में सोच रहे हैं! एक जगह करीब 20 कश्मीरी छात्राओं ने जुनूनी भीड़ से बचने के लिए अपने को हॉस्टल में भीतर से बंद कर लिया। बंगलुरु और देश के अधिकांश शहरों में जहाँ कश्मीरी छात्र पढ़ते हैं, उन्हें धमकियाँ दी जा रही हैं! कश्मीर की तबाह अर्थ-व्यवस्था के कारण हजारों की तादाद में जो कश्मीरी देश के महत्वपूर्ण पर्यटन-स्थलों पर शिल्प और दस्तकारी की दूकानें चलाकर परिवार का पेट पालते हैं, उन्हें धमकाया जा रहा है!
मैंने कुछ ही दिनों पहले एक पोस्ट डाली थी कि लोकरंजक नारों के फुस्स होने के बाद मोदी सरकार ने राम मंदिर का मुद्दा उछाला है, लेकिन अगर यह काठ की हाँडी दुबारा नहीं चढ़ी तो चुनावों से पहले पाकिस्तान-विरोधी लहर उभाड़ी जा सकती है और सीमा पर तनाव पैदा हो सकता है, क्योंकि अंधराष्ट्रवादी जूनून फासिस्टों का अंतिम शरण्य होता है और भारत की ठोस परिस्थितियों में तो इसके साथ-साथ धार्मिक ध्रुवीकरण भी आसान हो जाता है! आश्चर्य है (यानी नहीं है ) कि जल्दी ही ये हालात पैदा हो गए! आश्चर्य तो इस बात पर भी होता है कि आतंकी हमले के अंदेशे की खुफिया रिपोर्ट के बाद भी CRPF के इतने बड़े काफिले को एक साथ भेजा गया और सभी जानते हैं कि जिसतरह सेना के काफिले के गुजरने के लिए पूरा हाईवे खाली कराया जाता है, वैसा CRPF के मामले में नहीं होता! तो क्या यह ऐसे ही किसी वारदात को न्योता देना नहीं था? और इस लापरवाही पर अब कोई चर्चा नहीं हो रही है! होने को कुछ भी हो सकता है! फासिस्ट सत्ताओं के षडयंत्रों-कुचक्रों का इतिहास उठाकर देख लीजिये!
जो लोग पूरे कश्मीर की जनता को सबक सिखाना चाहते हैं, उन्हें ज़रा रुककर सोचना चाहिए कि आखिर वहाँ ये हालात कैसे पैदा हुए कि घाटी की 90 फीसदी आबादी में भारत-विरोधी भावनाएँ सुलग रही हैं! उन्हें पता करना चाहिए कि घाटी में सेना और अर्ध-सैनिक बलों के हाथों कितने लोग मारे गए हैं, कितने लोग ग़ायब हुए हैं, कुनान-पोशपुरा जैसी कितनी घटनाएँ घटी हैं, और कितनी गुमनाम कब्रें हैं! यह सच है कि पाकिस्तान-परस्त अलगाववादी भी इस आँच पर अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं और पाकिस्तानी शासक वर्ग भी! पर समूची जनता सिर्फ़ और सिर्फ़ गलत और दमनकारी नीतियों के चलते उस मुकाम पर पहुँची है कि अब आतंकी पाकिस्तान से नहीं आते बल्कि लोकल आबादी में से आते हैं और आम ग़रीब के बच्चे-बच्चियाँ भी ग्रुप बनाकर सेना पर पत्थरबाजी करते हैं! यह अटल सत्य है कि कश्मीर-समस्या का समाधान बन्दूक की नोक पर नहीं होगा, न ही वहाँ के स्वयंभू दलाल नेताओं से सौदेबाजी करके होगा, बल्कि आम अवाम को भरोसे में लेकर ही हो सकता है! तबतक क़त्लो-गारत का यह सिलसिला चलता रहेगा। जैसे कश्मीर की आम जनता मर रही है, वैसे ही सेना और अर्ध-सैनिक बलों के जो जवान मर रहे हैं वे भी आम गरीब घरों से ही आते हैं! युद्ध देश के भीतर हो या सीमा पर, तोपों का चारा तो आम घरों के गरीब ही बनते हैं! पर ठन्डे दिमाग से यह भी सोचिये कि जो लोग जीवन-यापन के लिए सेना में भरती होते हैं, उनका जनता के प्रति क्या रवैया होता है! असम रेजिमेंट के मुख्यालय के बाहर मणिपुर की माओं का वह नग्न प्रदर्शन याद है या नहीं? CRPF का जो काफिला घाटी में जा रहा था वह वहाँ के लोगों के लिए गुलदस्ते लेकर नहीं जा रहा था! यह एक नंगा और बदसूरत सच है!
एक और बात गौरतलब है! इससमय अंधराष्ट्रवादी जुनून की जितनी भारत के शासकों को ज़रूरत है, उतना ही पाकिस्तान के शासकों के लिए भी ज़रूरी है कि भारत के साथ तनाव कुछ विस्फोटक रूप में पैदा हो! पाकिस्तान में भी इमरान खान के सारे लोकरंजक वायदे फुसफुसे पटाखे साबित हुए हैं और उन्हें परम भ्रष्ट पाकिस्तानी सेना की कठपुतली माना जा रहा है। वहाँ की अर्थ-व्यवस्था ध्वस्त हो रही है, बेरोज़गारी और महंगाई आसमान छू रही है! ऐसे में सरकार को वहाँ भी देशभक्ति के जुनून, युद्ध के माहौल, या सीमित स्तर के युद्ध की ज़रूरत है!
और इस प्रश्न का एक अंतरराष्ट्रीय पहलू भी है! साम्राज्यवादी देशों का आर्थिक संकट इससमय विस्फोटक रूप लेता जा रहा है! बदहवास ट्रम्प वेनेजुएला सहित कई लैटिन अमेरिकी देशों में सीधे सैनिक कार्रवाई या गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा करने के बारे में सोच रहा है! युद्ध और हथियारों की बिक्री से साम्राज्यवादियों को हमेशा ही अपना आर्थिक संकट दूर करने में मदद मिलती है। पश्चिमी देशों के हथियारों के सबसे बड़े खरीदार या तो मध्य-पूर्व के देश हैं, या फिर भारत और पाकिस्तान! भारतीय उपमहाद्वीप में अशांति पैदा होने के साथ ही साम्राज्यवादियों की तो चाँदी कटने लगेगी!
ये सारी बातें हार्डकोर जुनूनियों को नहीं समझाई जा सकतीं, पर जो आम भोले-भाले नागरिक ऐसी घटनाओं के बाद बिना अधिक आगा-पीछा सोचे हुए अंधराष्ट्रवादी "देशभक्ति" के भावोद्रेक और प्रतिशोधी प्रतिहिंसा की लहर में बहने लगते हैं, उनसे थोड़ा रुककर पूरे सवाल पर सोचने की अपील तो की ही जा सकती है और उनसे यह अपेक्षा भी की जा सकती है! याद रखिये, देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता! देश आम लोगों से बनता है! देश के आम लोगों के हित से सरोकार रखना ही सच्ची देशभक्ति है!
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शक और गहरा हो रहा है! उत्तर भारत के अधिकांश शहरों में उन्मादी नारों के साथ जुलूस निकल रहे हैं! और नारे कुछ इस प्रकार के लग रहे हैं और तख्तियों पर लिखे गए हैं कि 'हमें नौकरी नहीं बदला चाहिए', ', हम भूखों रह लेंगे पर मोदीजी, बदला लो', 'आम चुनाव रोक दो, पाकिस्तान को ठोंक दो', 'पाकिस्तान की माँ की ...', 'देश को बचाओ मोदीजी को फिर से लाओ'...! स्कूली बच्चे भी तख्तियाँ लेकर जुलूस निकाल रहे हैं। इनमें सरस्वती शिशु मंदिरों के बच्चों के साथ ही प्राइवेट स्कूलों के बच्चे बड़े पैमाने पर शामिल हैं! इन प्राइवेट स्कूलों के मैनेजमेंट से भाजपा के नेता जुलूस निकलवाने के लिए कह रहे हैं! इन जुलूसों में मुसलमानों को गद्दार और पाकिस्तान-परस्त बताते हुए भी नारे लगाए जा रहे हैं! मुस्लिम आबादी की बस्तियों से गुजरते हुए जानबूझकर तनाव उकसाने और आतंक पैदा करने की कोशिशें की जा रही हैं! 'जी न्यूज़', 'आजतक', 'रिपब्लिक टीवी, 'सुदर्शन, आदि चैनल तो दिन-रात ज़हर उगल रहे हैं! भाड़े के साइबर प्रचारकऔर साइबर गुंडे सक्रिय हो गए हैं! व्हाट्सअप आदि के जरिये अफवाहों और फासिस्ट प्रचारों का घटाटोप फैला दिया गया है! देहरादून, उदयपुर, बिहार और देश के कई शहरों में कश्मीरी छात्रों और दुकानदारों पर हमले तो पुलवामा के दूसरे दिन ही शुरू हो गए थे! जम्मू की मुस्लिम बस्तियों पर भी हमला उसी दिन हो गया था! मोदी सहित भाजपा के नेता अगले ही दिन से धुआँधार रैलियों में जुट गए थे। CRPF के शहीद हुए जवानों की लाशों के साथ कई भाजपा नेताओं ने बाकायदा रोड शो किये!
उन्मादी देशभक्ति का प्रेत उन आम घरों के अधिकांश लोगों के सिर पर भी चढ़कर नाच रहा है जो जी.एस.टी. , नोटबंदी, रिकार्डतोड़ बेरोज़गारी और आसमान छूती मँहगाई से बेहद परेशान थे और मोदी सरकार को गालियाँ दे रहे थे! राममंदिर का मामला फुस्स हो गया था, 'हिन्दू' अखबार के भांडा फोड़ने के बाद रफ़ालगेट से चेहरे पर कालिख पुत चुकी थी, सी.बी.आई. काण्ड से भी खूब भद्द पिटी थी, महागठबंधन और प्रियंका के राजनीति में उतरने से माहौल बदलने की चिन्ताएँ भी थीं, लोग भाजपाइयों को सड़कों पर घेरकर 15 लाख वाले जुमले के बारे में पूछते थे! पर अब ये सारी बातें कहीं नेपथ्य में चली गयी हैं! पुलवामा की घटना के बाद भाजपाइयों के चेहरे खिले हुए हैं! एक बार फिर यह साबित हो रहा है कि अंधराष्ट्रवादी उन्माद ही फ़ासिस्टों का अन्तिम शरण्य और अन्तिम अस्त्र होता है! बुर्जुआ राष्ट्रवाद के इस विकृत-खूनी रूप के आगे अन्य बुर्जुआ पार्टियों के बुर्जुआ राष्ट्रवाद का रंग काफ़ी फीका पड़ जाता है और वे भी अपने को "देशभक्त" साबित करने के लिए अन्य सारे मसलों को आलमारी में बंद कर देने को विवश हो जाते हैं! सोशल डेमोक्रेट भी या तो "देशभक्ति" की लहर में बहने लगते हैं या इस डर से चुप्पी साध लेते हैं कि उन्हें देशद्रोही क़रार दे दिया जाएगा, या सीधे गलत चीज़ पर उंगली उठाने की जगह मिमियाकर और घुमाफिराकर कूट भाषा में बात करने लगते हैं!
याद कीजिए! अमरनाथ यात्रियों पर हमला भी चुनावों के ठीक पहले हुआ था! उरी की घटना भी चुनावों के ठीक पहले हुई थी! इसलिए शक तो होता ही है! जिसे नहीं होता, वह न तो इतिहास के बारे में कुछ जानता है, न ही फासिस्टों की कार्य-प्रणाली के बारे में! आ रही है बात समझ में ? जिनके आ रही है, वे तो कम से कम जाग जाएँ और इन बातों को सभी संभव माध्यमों से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचायें! अरे, कम से कम इस पोस्ट को तो शेयर करके, ग्रुपों में डालकर और अन्य माध्यमों से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाइये! सिर्फ़ लाइक करके मत रह जाइए!


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