युद्धोन्माद के बीच जिन्हें वाकई मुल्क की फ़िक्र है, वे ठण्डे दिमाग़ से ये लेख पढ़ें
युद्धोन्माद के बीच जिन्हें वाकई मुल्क की फ़िक्र है, वे ठण्डे दिमाग़ से ये लेख पढ़ें
कविता कृष्णपल्लवी
गाली
देने वाले उन्मादी यहाँ कत्तई न आयें। देशभक्ति ज़्यादा ज़ोर मार रही हो तो बाडर पर
चले जायें। जिन्हें वाकई मुल्क की फ़िक्र है, वे ठण्डे दिमाग़ से
पढ़ें।
(1) महीनों पहले लिखा था कि जब सारे वायदों की बखिया उधड़ जायेगी और
मँहगाई, बेरोज़गारी, जी.एस.टी.,नोटबंदी, जल-जंगल-ज़मीन की लूट और
पूँजीपतियों की देश-हड़प मुहिम से ध्यान हटाना होगा तो, पहले राममंदिर का मसला
उछाला जाएगा और फिर युद्धोन्मादी देशभक्ति का प्रेत जगाया जाएगा।
(2) सोचिये, उरी
और अमरनाथ यात्रियों पर हमला भी चुनावों के ऐन पहले ही हुआ था। इस बार भी ऐसा ही
हुआ। फिर याद कीजिए, पुलवामा
हमले के अंदेशे की इंटेलिजेंस रिपोर्ट की अनदेखी क्यों की गयी? अब तो राज ठाकरे जैसा
एक छुटभैय्या फासिस्ट भी कह रहा है कि अजित डोभाल से पूछताछ हो तो पुलवामा की
सच्चाई सामने आ जायेगी।
(3) सीमित युद्ध की ज़रूरत इमरान खान को भी है, क्योंकि उसके सभी
पॉपुलिस्ट नारों की हवा चन्द महीनों में ही निकल चुकी है और अवाम उसे सेना की
कठपुतली समझता है। भारत
जितना तो नहीं, पर
पाकिस्तानी अर्थतंत्र भी गंभीर संकट का शिकार है! दोनों देशों के शासक पूँजीपति
वर्ग युद्धोन्माद पैदा करके जनता को उसमें उलझा देना चाहते हैं और साथ ही युद्ध
उद्योग से अपार मुनाफ़ा कूटकर अपने संकटों से थोड़ी राहत भी चाहते हैं, भले ही युद्ध का बोझ
उठाने में आम जनता की कमर टूट जाए।
(4) भारतीय उपमहाद्वीप में तनाव और युद्ध की स्थिति साम्राज्यवादियों
की भी ज़रूरत है। अमेरिका
और यूरोप के देश जिस दीर्घकालिक, असाध्य भयंकर मंदी को
झेल रहे हैं, उसमें
हथियारों की बिक्री से उन्हें कुछ राहत की साँस मिलेगी। ज्ञात हो कि भारत, पाकिस्तान और सऊदी अरब
ही पश्चिमी देशों के हथियारों के सबसे बड़े खरीदार हैं।
(5) जनता, विशेषकर
मध्यवर्ग के भीतर युद्धोन्मादी देशभक्ति का उभार हमेशा से सत्ताधारियों को संकटों
के भँवर से उबारता रहा है। पुलवामा की घटना और भारत द्वारा आतंकी ठिकानों पर
बमबारी के बाद अब देश में रिकॉर्डतोड़ बेरोज़गारी, रफ़ाल के भ्रष्टाचार
-घोटाला सहित दर्ज़नों घपले-घोटाले, जी.एस.टी. नोटबंदी के
झूठे दावों का भंडाफोड़, 10 लाख आदिवासियों को उजाड़े जाने का तुगलकी फरमान, किसानों की तबाही और
आन्दोलन आदि-आदि सभी मसले हवा हो गए हैं। कुत्ता मीडिया लगातार भौंक रहा है :'बदला-बदला।' हमले से ऐन पहले मोदी
सरकार ने देश के पाँच एअरपोर्ट 50 वर्षों के लिए अदानी को
सौंप दिए, जो
खबर मीडिया से ग़ायब है। आज शाम से ही हमले का हवाला देकर अमिट शाह और कई अन्य
भाजपा नेताओं ने भाजपा के लिए वोट माँगना भी शुरू कर दिया। पर उन्मादी अंधराष्ट्रवाद
की घुट्टी ऐसी चीज़ होती है, जिसे
पीने के बाद लोगों को कुछ भी दिखाई नहीं देता।
(6) युद्ध साम्राज्यवादी दुनिया की एक बुनियादी अभिलाक्षणिकता होता है। साम्राज्यवादी
देश दुनिया के बाज़ार में लूट का अपना हिस्सा बढ़ाने के लिए विश्व-स्तर पर या छोटे
स्तर पर युद्ध लड़ते हैं। युद्ध और तनाव से वैध-अवैध हथियार उद्योग फलता-फूलता है
और विश्व-पूँजीवादी अर्थ-व्यवस्था को संजीवनी मिलती रहती है। पहले युद्ध की तैयारी
में और फिर युद्ध से हुए विनाश को ठीक करने में पूँजी-निवेश होता है। इससे मंदी से
तात्कालिक तौर पर राहत मिलती है और अर्थ-व्यवस्था की धौंकनी चलती रहती है। जो
दुनिया के छोटे चौधरी, यानी
साम्राज्यवादियों के जूनियर पार्टनर हैं, यानी एशिया, अफ्रीका, लातिन अमेरिका के
पूँजीपति शासक हैं, वे
भी क्षेत्रीय चौधराहट के लिए आपस में युद्ध में उलझे रहते हैं और इन क्षेत्रीय
युद्धों में परोक्ष रूप से परस्पर-विरोधी साम्राज्यवादी खेमों के हित भी टकराते
रहते हैं।
(7) युद्ध हर पूँजीवादी देश में मूल समस्या और वर्ग-अंतरविरोधों से
जनता का ध्यान हटाने का काम करता है। एक पूँजीवादी दुनिया युद्ध-रहित हो ही नहीं
सकती। सभी
ऐसे युद्धों में शासक वर्ग अपने आपसी हितों के लिए लड़ते हैं और दोनों ओर से तोपों
के चारे आम गरीबों के बेटे बनते हैं। ये युद्ध हर हाल में
अपनी प्रकृति से ही प्रतिक्रियावादी होते हैं। प्रतिक्रियावादी युद्ध
दो प्रकार के होते हैं। एक वे जो समय-समय पर देशों की सीमाओं पर लड़े जाते हैं, और दूसरे वे जो हर देश
के भीतर शासक वर्ग जनता के ख़िलाफ़ अनवरत लूट-खसोट तथा दमन-उत्पीड़न-आतंक राज आदि के
रूप में चलाता रहता है। इन दोनों प्रकार के प्रतिक्रियावादी युद्धों का खात्मा
केवल और केवल क्रांतिकारी युद्ध के द्वारा ही हो सकता है। क्रांतिकारी युद्ध वह
युद्ध है जो व्यापक जनसमुदाय एक वैज्ञानिक चेतना-संपन्न क्रांतिकारी नेतृत्व में
संगठित होकर अपने देश के शासक वर्ग के विरुद्ध लड़ता है। इस युद्ध की प्रक्रिया
लम्बी और चढ़ावों-उतारों भरी होती है और यह युद्ध निर्णायक मुकाम पर पहुँचकर
जन-विरोधी सत्ता का ध्वंस करके क्रांतिकारी सत्ता की स्थापना करता है। विभिन्न
ऐतिहासिक, वस्तुगत-मनोगत
कारणों से इस प्रक्रिया में बाधाएँ और गतिरोध आ सकते हैं, उलटाव भी हो सकते हैं
पर अंततः इतिहास को इसी रास्ते से होकर आगे बढ़ना होगा और विनाशकारी युद्धों का
सदा-सदा के लिए खात्मा करना होगा।
(8) जब युद्धोन्माद और फर्जी देशभक्ति का घटाटोप छाया हो तो आम लोगों, विशेषकर पिछड़ी चेतना
वाले मध्यवर्गीय आबादी को युद्धों की असलियत बताना मुश्किल होता है। पर
जो सच्चे अर्थों में क्रांतिकारी सर्वहारा चेतना से लैस होते हैं वे धारा के विरुद्ध
खड़े होकर युद्धोन्माद और राष्ट्रवाद के विरुद्ध बोलते हैं, प्रचार करते हैं, जबकि जो कॉस्मेटिक
वामपंथी, सोशल
डेमोक्रेट और लिबरल होते हैं, वे या तो खुद ही उसी
अंध-राष्ट्रवादी लहर में बहने लगते हैं, या चमड़ी बचाने के लिए
दुबककर चुप्पी साध जाते हैं, या बस अमूर्त-अकर्मक
ढंग से 'शान्ति-शान्ति' की गुहार लगाते रहते
हैं। आज के उन्मादी माहौल में हमें एकजुट होकर साहसपूर्वक युद्धपिपासु-खूनी
अंधराष्ट्रवादी जुनून का विरोध करना चाहिए और लोगों को बार-बार याद दिलाते रहना
चाहिए कि भारत की जनता की लम्बी लड़ाई फासिज्म और पूँजीवाद से है, ठीक उसीतरह जैसे
पाकिस्तान की जनता की असली लड़ाई एक निरंकुश पूँजीवादी सत्ता और भ्रष्ट-पतित-ज़ालिम
सैन्यतंत्र से है। हमें पूरी कोशिश करनी होगी कि मूल मुद्दों से आम जनता का ध्यान
भटकाने की फासिस्टों की साज़िश किसी भी सूरत में सफल न हो।
true
ReplyDeleteलेख सही है, और ये सारांश बिल्कुल सही है, ऐन चुनाव से पहले ये माहौल युद्ध जैसा माहौल बनाया जा रहा है। जिसका परिणाम गरीब जनता को ही भुगतना है।
DeleteIn.jk what done by suport jk pandit no work only supports for gaddar algav Vadi by Cong
ReplyDeletepata nahi aap jaise kuchh log
ReplyDeleteaam logo ko gumrah kyo karte hai.
fact jo hai wahi batao
apni jasusi apne tak rakho
log andhe nahi hai
'तेरी जैसी चुतीया कोडूब मरना चाहीये
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है।युद्धोन्माद के पीछे की राजनीति को बेनकाब करने के लिये हमें वर्ग संघर्ष और जन संघर्ष तेज करना होगा।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete