शशिप्रकाश की कविता - स्पेंग्लर का रोना और कुकनूस का गाना
शशिप्रकाश की कविता - स्पेंग्लर का रोना और
कुकनूस का गाना
और उन्होंने कहा कि लड़ना,
यह शब्द पुराना पड़ चुका है,
कि इसके नतीजे
टिकाऊ नहीं रहे हैं
और कि इसमें निहित है
मानवीय मूल्यों का निषेध।
इसकी जगह होना चाहिये
जीवन और चिन्तन में कोई शब्द
न लड़ने का अर्थ लिये हुए।
सोचता रहा मैं?
लड़ने की क्रिया की प्राचीनता के बारे में,
लड़ने और लड़ने के बीच के
फ़र्क के बारे में
और यह कि न लड़ना भी
उतनी ही पुरानी आदत है
जितना कि लड़ना।
और फि़र यह कि
जीवन भी तो उतना ही पुराना है!
किस विधि से करें
जीवन का मानवीय निषेध?
शब्द वह कौन-सा होगा
जीवन का स्थानापन्न?
और यह भी कि प्रयोजन को हटाकर
क्यों हो रही हैं
लड़ने-न लड़ने की बातें?
सोचता हूँ उस निर्जन द्वीप पर
एकाकी मृत्यु का आलिंगन करने से पूर्व
वेजालियास(1) क्या सोचता रहा होगा
और अग्नि में प्रवेश करने से पहले
ब्रूनो(2) के दिमाग में
आखि़री विचार क्या आया था?
उधर कोहेकाफ़(3) अभी भी
उतना ही ख़ूबसूरत बना हुआ है।
सहस्त्राब्दी का अन्त आ रहा है।
दूर से सुनायी दे रहा है
स्पेंग्लर(4) का दयनीय रुदन।
उसकी प्रतिध्वनि फ़ूट रही है
फ़ूकोयामा(5) के कण्ठ से।
और बेइन्तहा ख़ूबसूरत कोहेकाफ़ पर्वत पर
कुकनूस(6) अभी भी गा रहा है।
वनस्पतियों को
दीपक राग की प्रतीक्षा है।
पूरब से बादल फि़र चढ़ने लगे हैं
और हवा धीरे-धीरे रुकती जा रही है।
जून, 1994
(1) आंद्रेयास वेजालियस विख्यात फ्लेमिश सर्जन, ह्यूमन एनाटोमी के
जनक थे। जान पर खेलकर, चर्च के धर्माधिकारियों से बिना डरे, वे
छिप-छिपकर शवों की चीरफ़ाड़ करते रहे और लम्बे समय के शोध-अध्ययन के बाद सात खण्डों
में उनकी कृति ‘मानव शरीर की रचना’ प्रकाशित हुई। चर्च
ने उन्हें मृत्युदण्ड दिया। राजा का निजी चिकित्सक होने के कारण वे मृत्यु से तो
बच गये पर उन्हें जबर्दस्ती तीर्थयात्रा पर भेज दिया गया। समुद्री तूफ़ान में एक
निर्जन द्वीप पर एकाकी मृत्यु।
(2) ब्रूनो इटली का दार्शनिक, रोमन कैथोलिक चर्च का विरोधी और भौतिकवादी
विश्व दृष्टिकोण का उत्कट पक्षधर था। प्राचीन क्लासिकीय दर्शन, पुनर्जागरणकालीन
इतालवी भौतिकवाद और तत्कालीन प्राकृतिक विज्ञान की खोजों, विशेषकर
कोपरनिकस के सूर्य केन्द्रिक सिद्धान्त के प्रभाव में ब्रूनो का विश्व दृष्टिकोण
निर्मित हुआ था। ब्रूनो ने अनन्त परमेश्वर और अनन्त प्रकृति को एक माना। कोपरनिकस
के सिद्धान्त के इस मुख्य दोष का उसने निवारण किया कि सूर्य गतिहीन तथा ब्रह्माण्ड
का केन्द्र है। उसने कहा कि ब्रह्माण्ड में जगत अनन्त हैं तथा आबाद हैं। इन घोर
धर्म-विरोधी विचारों के कारण आठ वर्ष तक जेल में रखने के बाद इंक्वीजिशन ने रोम
में उसे जिन्दा जला दिया। अन्तिम समय में पादरी ने चूमने के लिए जब उसकी ओर क्रॉस
बढ़ाया तो उसने उपेक्षा से मुँह फ़ेर लिया और अग्नि में प्रविष्ट हो गया।
(3) कोहेकाफ़ काकेशिया का एक पर्वत है जो अपने अद्भुत सौन्दर्य के लिए
प्रसिद्ध है।
(4) स्पेंग्लर जर्मन प्रत्ययवादी दार्शनिक था जिसकी मुख्य कृति ‘यूरोप
का पतन’ प्रथम विश्वयुद्ध के तुरन्त बाद प्रकाशित हुई थी। स्पेंग्लर के इतिहास
दर्शन में साम्राज्यवाद के युग की बुर्जुआ बौद्धिक रिक्तता, निराशा
और अवसाद को तथा मानवद्रोही प्रवृत्तियों को प्रातिनिधिक अभिव्यक्ति मिली।
स्पेंग्लर के अनुसार, इतिहास अनेक स्वतंत्र, बन्द, चक्रीय
संस्कृतियों में बँटा होता है, जिनकी अपनी-अपनी नियति होती है और जो जन्म,
विकास और अवसान की अवधियों से गुजरती रहती हैं। उसका कहना था कि
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से, पश्चिमी संस्कृति ने पतन की मंजिल में
प्रवेश किया और पूर्ववर्ती संस्कृति बिगड़कर सभ्यता बन गयी। स्पेंग्लर के अनुसार,
अगली सहस्त्राब्दी की प्रथम शताब्दियों के दौरान (यानी इक्कीसवीं सदी
में और उसके बाद) जो कुछ भी घटने वाला है और जिसे ‘पश्चिम का पतन’
कहा जायेगा उसके संकेत हमें पहले ही मिल चुके हैं।
(5) फ्रांसिस फ़ूकोयामा अमेरिकी प्रतिक्रियावादी बुद्धिजीवी जिसने बीसवीं
सदी के नवें दशक के अन्त में ‘इतिहास के अन्त’ का नारा दिया।
फ़ूकोयामा समाजवाद की पराजय को उदारवादी पूँजीवादी जनतंत्र की स्थायी विजय के रूप
में देखता है पर पश्चिमी दुनिया के भविष्य के प्रति उसका नजरिया निराशापूर्ण है।
(6) किंवदन्ती है कि कोहेकाफ़ पर्वत पर कुकनूस (फ़ीनिक्स) नामक पक्षी अपनी
संगीत-साधना में हजार साल तक जीता है और गाता रहता है। फि़र अन्त में वह (दीपक राग
जैसा कुछ) गाता है और उसके प्रभाव से उत्पन्न अग्नि में जलकर राख हो जाता है। नये
वर्ष में वर्षा की पहली बूँदें पड़ते ही वह अपनी राख से फि़र जीवित हो उठता है और
अपनी संगीत-साधना में जुट जाता है।
बहुत सुन्दर
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