परमाणु ऊर्जा और जादूगोडा का नरक


परमाणु ऊर्जा और जादूगोडा का नरक 

डॉ. नवमीत

पिछले दिनों एक फ़िल्म आयी थी "परमाणु"। फ़िल्म में बड़े जोरशोर से राष्ट्रवाद का तड़का लगाते हुए दिखाया गया था कि किस तरह से भारत ने अमेरिका की नाक तले पोखरण में परमाणु विस्फोट किये थे। इसके बाद भारत एक नाभिकीय शक्ति के तौर पर स्थापित हो गया था। फिर उसी कड़ी में भारत सरकार ने आगे अमेरिका से न्यूक्लियर डील की और नाभिकीय ऊर्जा को ऊर्जा के मुख्य स्रोत के तौर अपनाने की शुरुआत की। 
खैर अब आपको लेकर चलते हैं झारखण्ड में सिंहभूम जिले के जादूगोड़ा कस्बे में। इस कस्बे और इसके आसपास के आदिवासी इलाकों में आपको जन्मजात और अनुवांशिक बीमारियों और अपंगता से ग्रस्त लोग बहुतायत से मिलेंगे। किसी की रीढ़ टेढ़ी हो गई है, किसी की मांसपेशियां काम नहीं करती, किसी को असाध्य कैंसर है।
लेकिन इसका नाभिकीय ऊर्जा से क्या संबंध है? असल में यह वह इलाका है जहां नाभिकीय ऊर्जा के लिए इस्तेमाल होने वाला उच्च कोटि का यूरेनियम पाया जाता है। यूरेनियम का यह समस्थानिक यानि आइसोटोप बहुत ज्यादा रेडियोएक्टिव होता है। इसके असुरक्षित खनन के चलते यहां की जनता पर इसके भयंकर प्रभाव पड़े हैं। आज के समय में इस इलाके की आबोहवा में यह रेडियोएक्टिव पदार्थ और इसकी रेडियोएक्टिविटी बुरी तरह से घुले हुए हैं। वातावरण में, पानी में, फसलों में यानि हर जगह। सूखे मौसम में जब हवा चलती है तो यह धूल के साथ लोगों के शरीर में प्रवेश कर जाता है। जब बारिश आती है तो यह पानी में घुल कर और भी बुरे प्रभाव दिखाता है। इससे निकलने वाले रेडियोएक्टिव अल्फा कण यूँ तो खतरनाक हैं ही, लेकिन जब ये पानी के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं तो 1000 गुना ज्यादा खतरनाक प्रभाव शरीर पर डालते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीने योग्य सुरक्षित पानी के कुछ मानक तय किये हैं। इन मानकों का एक पहलू रेडियोधर्मिता से संबंधित भी है। इसके अनुसार पानी में अल्फा कणों की रेडियोधर्मिता 0.5 Bq प्रति लीटर से कम होनी चाहिए। और न सिर्फ इतने से कम बल्कि इतने से भी जितना हो सके उतना कम। क्योंकि इसके बुरे प्रभाव सिर्फ उस इंसान पर ही नहीं पड़ते जो इसके संपर्क में आया है बल्कि उसकी आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ते हैं। और इस इलाके में यह मात्रा अधिकतम तय मानकों से भी 160 प्रतिशत ज्यादा है। 
इस जगह खनन करने वाली "यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड", जो सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी है, के अनुसार इस जगह पर खनन करने से यहां की लोकल आबादी पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है। 2015 में भारत सरकार ने भी घोषित किया था कि नाभिकीय ऊर्जा बिल्कुल सुरक्षित है और इसके बुरे प्रभाव नहीं हैं। नवम्बर 2015 में ओबामा के साथ फ़ोटो खिंचवाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भी डींग हांकी थी कि भारत एक प्रकृति प्रेमी देश है और ऊर्जा की जरूरतों को हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना पूरा करते हैं। अब एक तरफ तो यह बयानबाज़ी है और दूसरी तरफ अपंग होकर तड़प तड़प कर मरते हुए इस इलाके के ये लोग, इनके छोटे छोटे बच्चे जो जन्म के साथ ही पूंजीवाद के इस नासूर को लेकर पैदा होते हैं। इन आदिवासियों की विडम्बना यह है कि इनको पहले तो इनकी जमीनों से बेदखल कर दिया गया और अब इनसे इनका स्वास्थ्य और साथ में जीने का अधिकार भी छीन लिया गया है। 
एक तरफ तो प्रकृति के यूँ अंधाधुंध और असुरक्षित दोहन के चलते पर्यावरण को बर्बाद किया जा रहा है। ऊपर से लोगों के स्वास्थ्य को खराब किया जा रहा है। फिर यहां जो मजदूर काम करते हैं उनके लिए भी कोई सुरक्षा नहीं है। स्वास्थ्य सेवाएं तो दूर की बात है यहां तो सरकार ने स्वस्थ वातावरण भी नहीं रहने दिया है। मुनाफे की इस अंधी दौड़ में आम जनता को मौत के मुहाने पर लेकर छोड़ देना, यही इस व्यवस्था की परिणीति है। इनपर कोई सवाल उठाता है तो सामने मंदिर मस्जिद, हिन्दू मुस्लिम और गाय को रख दिया जाता है। मोब लिंचिंग से लेकर आगजनी और दंगे यही चीजें बची हैं अब। रही सही कसर परमाणु हथियार, युद्ध और सेना को महिमामण्डित करके पूरी हो जाती है। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे तो मुनाफे की भेंट कब के चढ़ चुके हैं।


Comments

Popular posts from this blog

केदारनाथ अग्रवाल की आठ कविताएँ

कहानी - आखिरी पत्ता / ओ हेनरी Story - The Last Leaf / O. Henry

अवतार सिंह पाश की सात कविताएं Seven Poems of Pash