महान लेखक बर्तोल्त ब्रेख्त की कुछ फासीवाद/दमन विरोधी रचनाएं
महान लेखक बर्तोल्त ब्रेख्त की कुछ फासीवाद/दमन विरोधी रचनाएं
फिर भी तुम खामोश हो
बदकिस्मत लोगो
तुम्हारे भाई पर मार पड़ रही है
और तुमने आँखों पर पट्टी बाँध ली है
उसे पीटा जा रहा है
फिर भी तुम खामोश हो
जंगली जानवर टोह में घूम रहा है
और तुम कहते हो
उसने हमें छोड़ दिया
क्योंकि हमने विरोध नहीं किया
यह कैसा है शहर
तुम किस तरह के जीव हो ?
जब ज़ुल्म हो
तब बगावत होनी चाहिए शहर में
और अगर बगावत न हो
तो बेहतर होगा
कि रात होने से पहले ही
शहर जल कर राख हो जाए
जब फ़ासिस्ट मज़बूत हो रहे थे
अंग्रेजी से अनुवादः रामकृष्ण
पाण्डेय
जर्मनी में
जब फासिस्ट मजबूत हो रहे थे
और यहां तक कि
मजदूर भी
बड़ी तादाद में
उनके साथ जा रहे थे
हमने सोचा
हमारे संघर्ष का तरीका गलत था
और हमारी पूरी बर्लिन में
लाल बर्लिन में
नाजी इतराते फिरते थे
चार-पांच की टुकड़ी में
हमारे साथियों की हत्या करते हुए
पर मृतकों में उनके लोग भी थे
और हमारे भी
इसलिए हमने कहा
पार्टी में साथियों से कहा
वे हमारे लोगों की जब हत्या कर रहे हैं
क्या हम इंतजार करते रहेंगे
हमारे साथ मिल कर संघर्ष करो
इस फासिस्ट विरोधी मोरचे में
हमें यही जवाब मिला
हम तो आपके साथ मिल कर लड़ते
पर हमारे नेता कहते हैं
इनके आतंक का जवाब लाल आतंक नहीं है
हर दिन
हमने कहा
हमारे अखबार हमें सावधान करते हैं
आतंकवाद की व्यक्तिगत कार्रवाइयों से
पर साथ-साथ यह भी कहते हैं
मोरचा बना कर ही
हम जीत सकते हैं
कामरेड, अपने
दिमाग में यह बैठा लो
यह छोटा दुश्मन
जिसे साल दर साल
काम में लाया गया है
संघर्ष से तुम्हें बिलकुल अलग कर देने में
जल्दी ही उदरस्थ कर लेगा नाजियों को
फैक्टरियों और खैरातों की लाइन में
हमने देखा है मजदूरों को
जो लड़ने के लिए तैयार हैं
बर्लिन के पूर्वी जिले में
सोशल डेमोक्रेट जो अपने को लाल मोरचा कहते हैं
जो फासिस्ट विरोधी आंदोलन का बैज लगाते हैं
लड़ने के लिए तैयार रहते हैं
और चायखाने की रातें बदले में गुंजार रहती हैं
और तब कोई नाजी गलियों में चलने की हिम्मत
नहीं कर सकता
क्योंकि गलियां हमारी हैं
भले ही घर उनके हों
एस.ए.^ सैनिक
का गीत (बेर्टोल्ट ब्रेष्ट)
भूख से बेहाल मैं सो गया
लिये पेट में दर्द।
कि तभी सुनाई पड़ी आवाज़ें
उठ, जर्मनी
जाग!
फिर दिखी लोगों की भीड़ मार्च करते हुएः
थर्ड राइख़^^ की ओर, उन्हें कहते सुना मैंने।
मैंने सोचा मेरे पास जीने को कुछ है नहीं
तो मैं भी क्यों न चल दूँ इनके साथ।
और मार्च करते हुए मेरे साथ था शामिल
जो था उनमें सबसे मोटा
और जब मैं चिल्लाया ‘रोटी दो काम दो’
तो मोटा भी चिल्लाया।
टुकड़ी के नेता के पैरों पर थे बूट
जबकि मेरे पैर थे गीले
मगर हम दोनों मार्च कर रहे थे
कदम मिलाकर जोशीले।
मैंने सोचा बायाँ रास्ता ले जायेगा आगे
उसने कहा मैं था ग़लत
मैंने माना उसका आदेश
और आँखें मूँदे चलता रहा पीछे।
और जो थे भूख से कमज़ोर
पीले-ज़र्द चेहरे लिये चलते रहे
भरे पेटवालों से क़दम मिलाकर
थर्ड राइख़ की ओर।
अब मैं जानता हूँ वहाँ खड़ा है मेरा भाई
भूख ही है जो हमें जोड़ती है
जबकि मैं मार्च करता हूँ उनके साथ
जो दुश्मन हैं मेरे और मेरे भाई के भी।
और अब मर रहा है मेरा भाई
मेरे ही हाथों ने मारा उसे
गोकि जानता हूँ मैं कि गर कुचला गया है वो
तो नहीं बचूँगा मैं भी।
^एस.ए. – जर्मनी में नाज़ी पार्टी द्वारा खड़ी किये
गये फासिस्ट बल का संक्षिप्त नाम। उग्र फासिस्ट प्रचार के ज़रिये इसमें काफ़ी
संख्या में बेरोज़गार नौजवानों और मज़दूरों को भर्ती किया गया था। इसका मुख्य काम था
यहूदियों और विरोधी पार्टियों, ख़ासकर
कम्युनिस्टों पर हमले करना और आतंक फैलाना।
**थर्ड राइख़ – 1933 से 1945 के बीच नाज़ी पार्टी शासित जर्मनी को
ही थर्ड राइख़ कहा जाता था।
आठ हजार गरीब लोगों का नगर के बाहर
इकट्ठा होना
‘आठ हजार से अधिक बेरोजगार खानकर्मी,
अपने बीवी-बच्चों समेत बुडापेस्ट के बाहर साल्गोटार्जन
रोड पर जामा हो रहे हैं। उन्होंने अपने अभियान में पहली दो रातें बिना कुछ
खाये-पिये ही गुजार दी है। उनके शरीर पर बेहद नाकाफी जीर्ण-शीर्ण कपड़े हैं। देखने
में वे बस हड्डियों के ढांचे ही भर हैं। अगर वे खाना और काम पाने में नाकाम रहे,
तो उन्होंने कसम खा रखी है कि वे
बुडापेस्ट पर धावा बोल देंगे, भले ही
इससे खून-खराबा ही क्यों न शुरू हो जाये, उनके
पास अब खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। बुडापेस्ट क्षेत्र में सैनिक बल तैनात कर
दिये गये हैं, तथा उन्हें सख्त आदेश दे दिये गये
हैं कि अगर लेशमात्र भी शांति भंग तो वे अपने आग्नेयास्त्र इस्तेमाल करें।’
हम जा पहुँचे सबसे बड़े शहर में
हममें से 1000 भूख से पीड़ित थे
1000 के पास खाने को कुछ नहीं था
1000 को खाना चाहिए था।
जनरल ने अपनी खिड़की से देखा
तुम यहां मत खड़े हो, वह बोला
घर चले जाओ भले लोगों की तरह
अगर तुम्हें कुछ चाहिए, तो लिख भेजो।
हम रुक गये, खुली सड़क पर:
‘हम हल्ला मचायें इसके पहले
वे हमें खिला देंगे।’
लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया
जबकि हम देखते रहे उनकी धुंवा देती
चिमनियों को।
लेकिन आ पहुँचा फिर वह जनरल।
हमने सोचा : आ गया हमारा खाना।
जनरल बैठ गया मशीनगन के ऊपर
और पकाया जो था वह इस्पात।
जनरल बोला : बहुत भीड़ लगा रखी है
तुम लोगों ने
और गिनने लगा आगे बढ़कर।
हम बोले : बस इतने ही जो तुम्हारे सामने हैं
कुछ भी नहीं है आज खाने को।
हम नहीं बना सके अपनी झोपड़-पट्टी
हम नहीं साफ कर सके फिर से अपनी कमीजें
हमने कहा : अब हम और इन्तजार
नहीं कर सकते।
जनरल बोला : जाहिर है।
हमने कहा : लेकिन हम सभी मर नहीं सकते
जनरल बोला : क्यों नहीं?
हालात गर्म हो रहे हैं, शहर के लोगों ने कहा
जब सुनाई दी उन्हें पहली गोली की आवाज
शासन करने की कठिनाई
अनुवादः विश्वनाथ मिश्र
1.
मंत्रीगण हरदम कहते रहते हैं जनता से
कि कितना कठिन होता है शासन करना।
बिना मंत्रियों के
फसल ज़मीन में ही धँस जाती, बजाय ऊपर आने के।
न ही एक टुकड़ा कोयला बाहर निकल पाता खदान से
अगर चांसलर इतना बुद्धिमान नहीं होता।
प्रचारमंत्री के बगैर
कोई लड़की कभी राज़ी ही न होती गर्भधारण के लिए।
युद्धमंत्री के बिना
कभी कोई युद्ध ही न होता।
और कि सचमुम सूरज उगेगा भोर में
बिना फ़्यूहरर की आज्ञा के
इसमें बहुत सन्देह है,
और अगर यह उगा भी तो,
गलत जगह ही होगा।
2.
ठीक उतना ही कठिन है, ऐसा वे हमें बताते हैं
चलाना एक फैक्टरी को।
बिना उसके मालिक के
दीवारें ढह पड़ेंगी और मशीनों में ज़ंग लग जायेगी,
ऐसा वे कहते हैं।
भले ही एक हल बना लिया जाये कहीं पर
यह कभी नहीं पहुँचेगा खेत तक
बिना उन धूर्तता भरे शब्दों के
जिन्हें फैक्टरी मालिक लिखता है किसानों के लिएः
कौन उन्हें बतायेगा उनके सिवा कि हल मौजूद हैं?
और क्या होगा जागीर का अगर ज़मींदार न हों?
निश्चय ही वे बो देंगे राई जहाँ बोना था आलू?
3.
अगर शासन करना सरल होता
तो कोई ज़रूरत न होती फ़्यूहरर जैसे अन्तःप्रेरित
दिमाग़ वालों की।
अगर मज़दूर जानते कि कैसे चलायी जाती है मशीन
और
किसान जोत-बो लेते अपने खेत घर बैठे ही
तो ज़रूरत ही न होती किसी फैक्ट्री मालिक या
ज़मींदार की
यह तो सिर्फ़ इसीलिए है कि वे सब हैं ही इतने
जाहिल
कि ज़रूरत होती है इन थोड़े-से समझदार लोगों की।
4.
या फिर ऐसा भी तो हो सकता है
कि शासन करना इतना कठिन है ही इसीलिए
कि ठगी और शोषण के लिए ज़रूरी है
कुछ सीखना-समझना।
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