अण्णा भाऊ साठे की कहानी - मसान में सोना

मसान में सोना 
अण्णा भाऊ साठे (अनुवाद : रमणिका गुप्ता)
पड़ोस के गाँव के एक नामी-गिरामी धनी व्यक्ति की मृत्यु की खबर सुनकर भीमा उत्तेजित हो गया और कल्पना में ही वह कई बार उस धनी व्यक्ति की कब्र को देख आया। नीम के पेड़ के नीचे उसकी प्यारी बिटिया नवदा बैठी हुई अपने आप ही खेल रही थी। अन्दर भीमा की पत्नी खाना बना रही थी और वह सूर्यास्त होने का इंतज़ार कर रहा था। उसने बहुत बेसब्री से बार-बार सूर्य को देखा था, जो उसकी नज़र में तेज़ी से नीचे नहीं जा रहा था।
भीमा का शरीर दैत्याकार था। बाहर जाते समय वह प्रायः एक पीली-सी धोती, लाल पगड़ी और मोटे कपड़े की क़मीज़ पहन लेता था। वह एक पहलवान की तरह दिखता था-बड़ी-बड़ी टाँगें, बड़ा-सा सिर, मोटी गर्दन, दाढ़ी-सी भवें, चौड़े मुँह पर बड़ी-बड़ी शानदार मूँछेंं कई गुंडों को भी दब्बू बना देती थीं। वह किसी से नहीं डरता था। भीमा ‘वरना’ नदी के किनारे स्थित एक गाँव में रहता था। उसकी इतनी ताक़त भी अपने ही गाँव में उसे रोजगार दिलाने में मददगार नहीं हो सकी। वो काम की तलाश में मुम्बई तक घूम आया था। उसने नौकरी की तलाश में पूरे शहर का चप्पा-चप्पा छान मारा, पर व्यर्थ! आखिरकार वह इस छोटे-से उपनगर, जो जंगल के किनारे था, में आकर रहने लगा। उसका अपनी पत्नी के लिए सोने का नेकलेस बनवाने का सपना भी पूरा नहीं हो पाया। उसे मुम्बई शहर, जो रोज़गार और शरणस्थली के अतिरिक्त सब कुछ देता है-से सख़्त नफ़रत थी। उपनगर में आने के बाद उसे खदान में पत्थर काटने का काम मिल गया।
जंगल में उसे ढंग का काम और सिर ढंकने को छत भी मिल गई। दैत्य-जैसी अपनी ताक़त से वह चट्टानों को तोड़ता रहा और पहाड़ी पीछे की ओर खिसकती रही। उसके घन की चोट पर पत्थर की चट्टान टूट जाती। खदान का मालिक और क्वारी का ठेकेदार उसके काम की प्रशंसा करते। भीमा अपने काम से काफ़ी खुश था। । छह माह में ही क्वारी का काम बन्द हो गया और भीमा बेरोजगार! जब अगले दिन सवेरे वह काम करने के लिए पहुँचा था तो उसे यह जानकर बड़ा सदमा लगा था कि उसका रोज़गार नहीं रहा। वह घबरा गया था। भूखा रहने की कल्पना से ही वह बेहद चिन्तित हो गया।
वह जंगल में बहती नदी के किनारे अपने कपड़े बगल में दबाए खड़ा हो गया। वह नहाया और घर की तरफ चलने लगा। चारों तरफ़ देखने पर उसने पाया कि यहां राख के बड़े-बड़े  ढ़ेर थे, जो चिताओं के जलने से बन गए थे। उसे चारों तरफ जली हुई हड्डियां इधर-उधर बिखरी दिखाई दीं। मृत्यु के विचार से वह नहीं डरा। उसने सोचा कि मरनेवाला आदमी भी जरूर बेरोजगार होगा, जिसे मृत्यु ने राहत दे दी होगी। वह जान गया था कि भूख उसके चेहरे को घूर रही है। उसकी प्यारी बेटी नवदा खाने के लिए रोती रहेगी और उसकी पत्नी बिसूरती। वह बेबस होकर बस उन्हें देखता रहेगा।
एकाएक उसे राख के ढेर के ऊपरी हिस्से पर कोई चमकीली वस्तु चमकती हुई नजर आई। वह उसे नजदीक से देखने के लिए झुका। वह एक सोने की अँगूठी थी, जो लगभग बारह माशे की तो होगी! उसने झट से उसे उठा लिया। अँगूठी को अपनी मुड़ी में भींचकर उसे एक खोज का सा महासुख मिला। चिता की राख में मिली इस अँगूठी ने भीमा के लिए भूखरूपी भेड़िए को दूर करके जीने का रास्ता दिखा दिया।
उसने अगला दिन श्मशान भूमि में और क़ब्र भूमियों की खोज में घूम-घूमकर बिताया। राख को कुरेलते हुए उसे चमकते हुए सोने के छोटे-मोटे टुकड़े मिले । ऐसा कोई भी दिन नहीं था, जब वह बिना बाली, नथ, पाजेब या नेकलेस लिए घर गया हो। उसने देखा कि चिता की तेज़ गर्मी से सोना पिघलकर हड्डियों में चिपक जाता है। वह जली हुई हड्डियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता था। इस क़ीमती धातु का एक टुकड़ा पाने के लिए खोपड़ी और कलाई की हड्डियों को निर्ममतापूर्वक पीसकर पाउडर बना देता। शाम को वह मुम्बई के एक क़स्बे कुर्ला में जाता था। कुर्ला में जाकर सोना बेच देता और पॉकेट में पैसे भरकर घर लौट आता था। घर लौटते समय प्रायः वह अपनी प्यारी बिटिया नवदा के लिए खजूर का एक पैकेट खरीद लाता था। | इस प्रकार भीमा शवों की राख को कुरेल-कुरेलकर गुजर-बसर करने लगा। वह जीवन और मृत्यु की पहेली समझ नहीं सका। दोनों के बीच का अन्तर उसके लिए मिट चुका था। वह केवल यह जानता था कि अमीरों की राख में सोना होता है और गरीबों की राख में उसका एक कण भी नहीं! इस साधारण तर्क ने उसमें यह विश्वास दृढ़ कर दिया कि ग़रीबों को दुनिया में जीवित रखने के लिए केवल धनिकों को ही मरना चाहिए और यह कि ग़रीबों को मरने का कोई हक़ नहीं है। उसने गम्भीर होकर अपने मित्रों में यह घोषित कर दिया था कि जो लोग अपमान भरा जीवन जीते हैं, उनके जीने-मरने का कोई अर्थ नहीं है। वह दिन-रात श्मशान भूमि तथा क़ब्रगाहों को खोजता रहता था। पिशाच की तरह वह लाशों पर जीवित रहने लगा था। इस प्रकार उसका जीवन लाशों से बँध गया था।
कभी-कभी बड़ी विचित्र घटनाओं की खबर मिलती। मक़बरों में दफ़नाई लाशें खोदकर निकाली हुई मिलतीं। एक सूदखोर की युवा पुत्रवधू की लाश क़ब्रगाह से घसीटकर नदी के किनारे फेंकी हुई मिली। इस घटना ने लोगों को आतंकित कर दिया। पुलिस सावधान हो गई। क़ब्रगाह में लाशों पर पहरा देना आसान काम नहीं । श्मशानों पर भी रात भर निगरानी रखना असम्भव था।
सूरज छिप गया और अब अँधेरा हो गया था। भीमा ने अपनी पत्नी द्वारा परोसा हुआ खाना खाया। अपनी मंशा को जाहिर करते हुए उसकी पत्नी ने उससे पूछा-“कहाँ की तैयारी में हो? हमें यह धन्धा छोड़ देना चाहिए।”
“ये सब कुछ बहुत ही असहनीय है। चिता की राख को छानना, कुरेलना... लाशें...सोना... यह सब बहुत भयानक है। लोगों ने हमारे बारे में बातें करनी शुरू कर दी हैं।” उसने कहा। | भीमा उस पर चिल्लाया। दुःखी होते हुए उसने धीमी आवाज़ में कहा, “मैं वही करूँगा, जो मुझे अच्छा लगता है, लोग जो चाहे कहें। मैं कमाऊँगा नहीं तो हमें कौन खिलाएगा?”
“मुझे ग़लत मत समझो? इस तरह श्मशान में प्रेत की तरह घूमना तुम्हारे लायक़ काम नहीं है। मैं डर से मरी जा रही हैं, यह सब कुछ मुझमें भय पैदा करता है।”
“यह तुमसे किसने कहा कि श्मशानों में केवल भूत ही घूमते हैं।” भीमा चिल्लाया, “मुम्बई ही भूतों की बस्ती है। असली भूत तो घरों में रहते हैं और मुर्दे क़ब्रों में सड़ते हैं। दैत्य शहरों में पनपते हैं, जंगलों में नहीं!” भीमा ने निष्कर्ष देते हुए कहा। | यह कहकर भीमा ने उसे चुप करा दिया और वह अपने रात्रि अभियान के लिए तैयार हो गया। उसने अपनी पत्नी पर गुर्राते हुए कहा कि वह पूरे मुम्बई में घूमता रहा, पर उसे नौकरी नहीं मिली, लेकिन चिता की राख ने उसे सोना दिया। “मैंने दिन भर पत्थर तोड़ा तो मुझे एकाध रुपल्ली मिली, जबकि चिता की राख दिन भर हटाने से मुझे दस रुपये मिले।” वह गुस्से में घर से निकला। जब भीमा ने अपनी रात्रि परिक्रमा के लिए घर छोड़ा तो हर तरफ़ सन्नाटा था। उसने अपने सिर को एक कपड़े के टुकड़े से ढंक रखा था और एक बोरे का चोला पहन रखा था, जिसे अपनी कमर में बाँधे भीमा तेज़ चाल से चल रहा था। अपनी बग़ल में एक सम्बल दबाए वह लम्बे-लम्बे डगों से आगे बढ़ रहा था। उसकी चारों तरफ़ घुप्प अँधेरा था, लेकिन भीमा ज़रा भी नहीं डरा। उसके मन में केवल एक विचार था कि उसे एक साड़ी, एक पेटीकोट, एक ब्लाउज़ और एक खजूर का पैकेट खरीदना है। | पूरा वातावरण कुछ होने की आशंका से भरा था। चुप्पी जानलेवा थी। गीदड़ों का एक झुंड हुआँ-हुआँ करते हुए बेधड़क घूम रहा था। एक साँप घुमावदार रास्ते से अलग हटकर जंगल में सरक गया। एक उल्लू की कर्कश ध्वनि पूँजी और चुप्पी और भी भयावह हो उठी। भीमा गाँव के और नजदीक पहुँचा और जमीन पर बैठकर चारों तरफ़ देखने लगा। गाँव एकदम शान्त था। कोई खाँसा, एक बत्ती चमकी और फिर वैसे ही सब ठहर गया। भीमा सन्तुष्ट हो गया। वह क़ब्रिस्तान में गया और हाल में बनी क़ब्र खोजने लगा। वह एक क़ब्र से दूसरी क़ब्र पर कूदने लगा। टूटे हुए बर्तनों को और बाँस की खपच्चियों को बिखेरकर उसने हर क़ब्र पर माचिस जलाकर देखा और एक अमीर आदमी की क़ब्र खोजने लगा।
आकाश में बादल घिर आए थे। अँधेरा गहरा गया और बिजली चमकी। बारिश आते देखकर भीमा घबरा गया कि बारिश होने पर अमीर आदमी की ताज़ा खुदी क़ब्र खोजनी सम्भव नहीं हो पाएगी। वह जल्दी-जल्दी चलने लगा, जिससे वह पसीना-पसीना हो गया। क़ब्रिस्तान के आखिर में पहुँचने पर वह बुरी तरह डरकर जड़वत हो गया। उसे दाँतों की किटकिटाहट सुनाई दी। किसी का गुर्राना और जमीन का खुरचना भी सुनाई दे रहा था। भीमा समझ नहीं पाया। वह आगे की तरफ़ झुका और फिर सब शान्त हो गया। थोड़ी ही देर में उसे किसी के ठोकरें मारने की आवाज़ सुनाई दीं। भीमा भयभीत हो उठा। ज़िन्दगी में पहली बार उसने भय और दैवीशक्ति का डर अनुभव किया, लेकिन उसने शीघ्र ही अपने आपको संयमित कर लिया। जब उसने यह जाना कि वहाँ दरअस्ल क्या घट रहा है तो उसे अपने आप पर शर्म आई। गीदड़ों का एक झुंड क़ब्र में दबी एक लाश के लिए आया हुआ था। वे ज़मीन पर रखे पत्थरों को छुए बिना अगल-बग़ल से ज़मीन खोदकर लाश तक पहुँचना चाह रहे थे। मांस की गन्ध पाकर वे अभी-अभी दफ़नाए गए मुर्दे की क़ब्र पर बार-बार हमला कर रहे थे। हालाँकि अपने लक्ष्य में वे एकजुट थे, लेकिन फिर भी एक-दूसरे से भयंकर होड़ लगाए हुए थे। वे अपनी नाक जमीन में रगड़ते, सूँघते तथा मांस-गन्ध से उत्तेजित होकर ज़ोर-शोर से क़ब्र को खोदने लगते । भीमा गुस्से से भर उठा। वह मिट्टी के उस ढेर के ऊपर कूदा और धनी आदमी की क़ब्र पर रखे पत्थरों के बीच खड़ा हो गया। भीमा ने बड़े-बड़े पत्थर उठाकर गीदड़ों पर मारने शुरू किए। एकाएक हुए इस हमले से घबराकर गीदड़ दूर भाग गए और कहीं छिप गए। भीमा का हौसला बढ़ा और उसने गीदड़ों से पहले लाश निकालने का निर्णय लिया। उसने काम में व्यस्त देखकर गीदड़ों ने उस पर हमला बोल दिया। एक ने सीधे उस पर हमला किया, जैसे कि वह बहुत गुस्से में हो और उसका बोरे का लबादा फाड़ दिया। लबादा फट जाने से भीमा परेशान हो गया। अपने दाँतों में से बोरे के टुकड़े को झटककर गीदड़ ने और भी अधिक ताक़त से भीमा पर हमला किया। भीमा इसके लिए तैयार था। उसने लोहे की नुकीली छड़ के एक वार से उसे मार दिया। मरे हुए गीदड़ की बग़ल में ही भीमा ने क़ब्र खोदनी शुरू कर दी, लेकिन गीदड़ों ने एकजुट होकर चारों तरफ़ से उस पर हमला बोल दिया और उनमें एक भयंकर युद्ध शुरू हो गया।
भीमा ने आधी क़ब्र खोद दी थी, लेकिन उसे गीदड़ों के हमलों से अपना बचाव करने के लिए थोड़ी देर रुकना पड़ा, जो उसके मांस को काट-खा रहे थे। उसने हर उस गीदड़ को मुक्के मारे, जिसने उस पर हमला किया था। जब वह गीदड़ों को मारता तो वे गिर जाते  लेकिन बाक़ी गीदड़ अधिक गुस्से में भरकर उसे आ घेरते और उसकी मांसपेशियाँ फाड़ने लगते। भीमा, जो कुन्ती के दूसरे पुत्र का नाम था, अपनी रोजी के लिए गीदड़ों के साथ एक कंकाल के कब्जे के लिए युद्ध कर रहा था। गांव के आस-पास एक भयंकर युद्ध लड़ा जा रहा था। युद्ध-जो देश के मिथकों की ऐतिहासिक अभिलेख परम्परा में कभी दर्ज नहीं होगा।
हर तरफ़ चुप्पी छाई थी। मुम्बई शहर सो रहा था और गाँव आराम कर रहा था। एक भीषण युद्ध क़ब्रिस्तान में लड़ा जा रहा था। आदमी सोने के लिए लड़ रहा था और पशु खाने के लिए। भीमा ने अपने सब्बल से उन पशुओं पर हमला किया और उन्हें मार गिराया। जो उसकी मार से बच गए, उन्होंने उसके मांस को फाड़ डाला और जो उसकी मार खा गए, वे ज़ोर से चिल्लाए। उनके काटने पर भीमा ज़ोर से चिल्लाता और गाली देता। । कुछ समय बाद गीदड़ों ने कुछ देर के लिए हमला बन्द कर दिया। यह देखकर भीमा ने फिर से क़ब्र खोदनी शुरूकर दी। उसने धरती को नरम किया और अपने माथे से पसीना पोंछा। वह बुरी तरह थक गया था। जैसे ही वह क़ब्र के भीतर घुसा कि गीदड़ों ने उस पर फिर हमला कर दिया। उसने उन्हें ज़ोर से मारा और गीदड़ों का झुंड हारकर भाग गया। दैत्य जैसा भीमा अपनी ताक़त और सहनशक्ति के बल पर विजयी हुआ।
बड़ी मेहनत से भीमा ने लाश को खींचकर बाहर निकाला। उसने माचिस जलाई और लाश को नज़दीक से देखा। अकड़ी लाश क़ब्र में उसके सामने पड़ी थी और भीमा उसका शरीर टटोलने लगा। उस लाश की अँगुली में एक अँगूठी मिली, जिसे निकालकर उसने अपनी पॉकेट में रख लिया। उसने लाश के कानों से बालियाँ खींचकर निकाल लीं और तब उसे याद आया कि लाश के मुँह के अन्दर भी सोना हो सकता है। उसने अपनी अँगुलियाँ उसके मुँह में घुसाईं, लेकिन लाश का जबड़ा सख्ती से बन्द था और मुँह को पूरी तरह खोलने के लिए उसे अपने सब्बल का इस्तेमाल करना पड़ा। उसने मुँह को पूरी तरह खोल दिया और अपनी अँगुलियाँ मुँह में घुसा दीं। उसी समय गीदड़ ज़ोर से शोर करते हुए जंगल की तरफ़ भागे। यह आवाज़ सुनकर गाँव के लोग इकट्ठा होकर क़ब्रगाह से गीदड़ों को भगाने के लिए लोगों का जुटने के लिए आह्वान कर रहे थे। भीमा की देह में डर के मारे कँपकँपी दौड़ गई। उसे लाश के मुँह से एक अँगूठी मिली, उसने अपनी पॉकेट में रख ली। मुँह के अन्दर खोखले हिस्से में पूरी तरह खोजने के लिए उसने अपने बाएँ हाथ की दो अँगुलियाँ मुँह में डाली, लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। अनजाने में उसने अपनी अँगुलियाँ कंकाल के मुँह से  निकालने के पहले अपना सब्बल बाहर निकाल लिया। जबड़ा झटके से बन्द हो गया और उसकी अँगुलियाँ जबड़े की पकड़ में जकड़ गईं। पीड़ा की एक दर्दनाक लहर भीमा के शरीर को भेद गई। उसने लोगों को हाथ में लालटेन लिए हुए कब्रगाह की तरफ आते देखा। डर ने उसे घेर लिया और उसके भीतर उस लाश के खिलाफ गुस्सा भर गया। गुस्से में उसने उस लाश की खोपड़ी पर सब्बल से वार किया। इस वार के ज़ोरदार आघात से जबड़ा उसकी उँगलियों पर और ज़ोर से जकड़ गया। लाश के दाँत उसकी अँगुलियाँ की हड्डियों तक घुस गए थे। वह जानता था कि अगर लोगों ने उसे क़ब्र की पवित्रता को भंग करते हुए देख लिया तो वे उसे या तो मार डालेंगे या अच्छी तरह पिटाई करने के बाद पुलिस के हवाले कर देंगे। उसने लाश की तरफ़ देखते हुए सोचा शायद इसी को लोग भूत कहते हैं। उसने गुस्से में आकर और ज़ोर से गाली देते हुए छोड़ने के लिए कहा।
अब तक लोग क़ब्रगाह के पास पहुँच गए थे। भीमा ने लाश के मुँह में सब्बल घुसाकर मुँह खोल दिया। जब मुँह खुल गया तो उसने बड़ी सावधानी से अपनी अँगुलियाँ बाहर निकालीं, जो टुकड़ों-टुकड़ों में कट चुकी थीं और कहीं-कहीं चमड़ी और हाथ से जुड़ी हुई थी। उसे भयंकर दर्द हुआ। किसी तरह से अपनी टूटी अँगुलियों की मुट्ठी बनाकर वह घर की तरफ़ भागा।
जब वह घर पहुँचा तो उसे बहुत तेज़ बुखार चढ़ा हुआ था। भीमा की यह दशा देखकर उसकी पत्नी और बच्चे ने रोना शुरू कर दिया।
उसकी अँगुलियाँ काट देनी पड़ीं। डॉक्टर ने कहा कि उसे बचाने का यही एकमात्र रास्ता था। जिस दिन उसकी अँगुलियाँ काटी गईं, उसी दिन उसने सुना कि खदान का काम फिर शुरू होने जा रहा है। वह दैत्य-जैसा आदमी भी बच्चे की तरह बिलख-बिलखकर रोया। वही अँगुलियाँ, जिनसे वह पत्थरों को चूर-चूर कर देता था, क़ब्रिस्तान में सोना पाने के चक्कर में गुम हो गई थीं।

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