शिशुओं के पोषण पर अमेरिकी साम्राज्यवाद की गिद्ध दृष्टि
शिशुओं के पोषण पर अमेरिकी साम्राज्यवाद की गिद्ध
दृष्टि
डॉक्टर्स फॉर सोसायटी
मुनाफ़ाख़ोर साम्राज्यवादियों के लिए मानवता के
स्वास्थ्य के ऊपर वरीयता इनके मुनाफ़े की अंधी हवस रखती है । तभी तो हाल ही में WHO
द्वारा जीनेवा में आयोजित विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन में शिशु के लिए
स्तनपान को वरीयता और प्रोत्साहन देने हेतु प्रस्ताव जब पटल पर रखा गया तब अमेरिका
ने उसे पारित होने से रोकने के लिए नीचता की सारी हदें पार कर दी। विज्ञान में यह
एक निर्विवाद रूप से स्थापित सत्य है कि नवजात शिशु के विकास के लिए पहले छह महीने
तक माँ का दूध ही सर्वोत्तम होता है, व इसके विकल्प के रूप में प्रचारित बाज़ार
में उपलब्ध कृत्रिम baby-feeds बेचने वाले बहुराष्ट्रीय brands अपने
विज्ञापनों में झूठे दावे करके शिशुओं के स्वास्थ्य और पोषण से खिलवाड़ करते हैं।
लातिन अमेरिकी देश , इकुएडोर के प्रतिनिधि मंडल ने जब स्तनपान को
प्रोत्साहित करने हेतु इन झूठे दावे करके कृत्रिम baby feed बेचने
वाले brands पर नकेल कसने का प्रस्ताव रखा तो अमेरिका को अपने
देश के उन मुनाफ़ाख़ोर brands का हित याद आ गया जिनके मुनाफ़े पर इस
जन-स्वास्थ्य हित में लाए गए प्रस्ताव के पारित होने के कारण मार पड़ती । अमेरिका
के प्रतिनिधि मंडल ने अपने देश की मुनाफ़ाख़ोर कंपनियों के हित को शिशुओं के पोषण
और स्वास्थ्य के ऊपर चुना और इकुएडोर पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाने और सैन्य
सहायताएँ बंद करने की धमकी देते हुए इस प्रस्ताव को वापस लेने का दबाव बनाया,
जिसके फलस्वरूप इकुएडोर को यह प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। अमेरिकी
प्रतिनिधि मंडल ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह अपनी कंपनियों के मुनाफ़े पर पड़ने
वाली मार को किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगा। यह प्रस्ताव ख़ासकर विकासशील
देशों में शिशु कुपोषण से लड़ने हेतु एक ज़रूरी पहल साबित होता लेकिन
साम्राज्यवादी मुनाफ़े की हवस ने इसमें भी अडंगा लगा दिया।
2016 में The Lancet में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वव्यापी
स्तनपान रेजॉल्यूशन पारित होने से हर साल 8 लाख शिशुओं की मौतों
को रोका जा सकता है। सिर्फ़ यही नहीं , ऐसे कई महत्वाकांक्षी प्राजेक्ट्स हैं जो
वैश्विक स्तर पर जनहित में लागू किए जाएँ तो पूरी दुनिया से कुपोषण और भुखमरी जड़
से मिटाई जा सकती हैं। लेकिन जबतक स्वास्थ्य सेवाएँ मुनाफ़े की पूँजीवादी बेड़ियों
में जकड़ी रहेंगी, तबतक धनपशुओं का हित मानवहित के आड़े इसी तरह आता
रहेगा।
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