जैक लण्डन की कहानी - मेक्सिकन Jack London's Story - The Mexican
जैक लण्डन की कहानी - मेक्सिकन
उसके पिछले जीवन के बारे में कोई नहीं जानता था-विद्रोही
दल के वे नेता तो सबसे कम जानते थे। उनके लिए वह एक रहस्य था पर उनकी नजर में वह
देशभक्त भी था और मेक्सिको में आनेवाली क्रान्ति के लिए वह भी उतनी ही कड़ी मेहनत
कर रहा था जितनी कि वे। उन्होंने इस बात को देर से पहचाना क्योंकि नेताओं की
मण्डली में से कोई भी उसे पसन्द नहीं करता था। जिस दिन वह पहली बार उनके भीड़भरे,
व्यस्त
कमरों में आया था, उन सबने उस पर जासूस होने का सन्देह किया था-उन्हें लगा था
कि वह भी दियाज़ की सीक्रेट सर्विस के भाड़े के लोगों में से एक है। उनके बहुत से
साथी अमेरिकाभर में बिखरी सिविल और सैनिक जेलों में कैद थे और उस वक्त भी बहुतेरे
अन्य साथी जंजीरों में जकड़े सीमापार ले जाये जा रहे थे जहाँ उन्हें कच्ची र्इंटों
की दीवारों के सामने खड़ा करके गोली मार दी जाती थी।
पहली नजर में उस लड़के ने उन पर अच्छा असर नहीं छोड़ा। वह लड़का ही था,
वह
अठारह से ज्यादा का नहीं होगा और उम्र के लिहाज से उसका शरीर ज्यादा बड़ा नहीं था। उसने
कहा कि वह फेलिपे रिवेरा है और क्रान्ति के लिए काम करना चाहता है। बस इतना ही-एक
भी फालतू शब्द नहीं, आगे कुछ और बताने की कोशिश भी नहीं। वह खड़ा जवाब का इन्तजार कर रहा
था। उसके होंठों पर कोई मुस्कान नहीं थी, न ही आँखों में खुशमिजाजी। लम्बे–तगड़े,
तेज–तर्रार
पौलिनो वेरा को अपने भीतर हल्की–सी सिहरन महसूस हुई। यह कुछ अशुभ, भयावह,
अबूझ–सी
चीज थी। लड़के की काली आँखों में कुछ जहरीला और साँप–जैसा था। वे ठण्डी आग की तरह
जल रही थीं, जैसे उनमें अथाह, सघन कड़वाहट सुलग रही हो। उसकी नजरें
षड्यंत्रकारियों के चेहरों से उस टाइपराइटर तक कौंध गयीं जिस पर दुबली–पतली मिसेज
सेदबी बड़ी लगन से जुटी हुई थी। उसकी आँखें एक पल के लिए उन पर टिकीं-उन्होंने
उसी वक्त नजर उठाई थी-और उन्हें भी उस अजीब सी चीज का अहसास हुआ; उनकी उँगलियाँ अपने आप रुक गयीं। खत
की टाइपिंग जारी रखने के लिए उन्हें एक बार पीछे तक पढ़ना पड़ा।
पौलिनो वेरा ने सवालिया निगाह से अरेलानो और रामोस की ओर देखा और
उन्होंने सवालिया निगाहों से उसे और एक–दूसरे को देखा। सन्देह से उपजा अनिर्णय
उनकी आँखों में झलक रहा था। यह नाजुक सा लड़का ‘अज्ञात’ था, ‘अज्ञात’ की सारी
आशंकाएँ मानो उसमें समाई हुई थीं। उसे पहचाना नहीं जा सकता था, वह
ईमानदार, साधारण क्रान्तिकारियों की दृष्टिसीमा से परे की कोई चीज जान पड़ता था।
दियाज़ और उसकी तानाशाही से ये क्रान्तिकारी बस ईमानदार और साधारण देशभक्तों के रूप में जबर्दस्त नफरत करते थे। लेकिन यहाँ
उनके सामने कुछ और था, वे नहीं जानते थे कि यह क्या है। हमेशा ही सबसे आवेगमय, सबसे
जल्दी हरकत में आनेवाले वेरा ने चुप्पी तोड़ी।
“ठीक है”, उसने ठण्डे लहजे में कहा। “तुम कहते हो कि तुम क्रान्ति के लिए काम
करना चाहते हो। अपना कोट उतारो। इसे वहाँ टाँग दो। मैं तुम्हें बताता हूँ, आओ-बाल्टी
और पोछा कहाँ है? फर्श
गन्दा है। तुम यहाँ से शुरू करो और फिर सारे कमरों के फर्श रगड़कर साफ कर डालो।
उगलदान भी गन्दे हो गये हैं। इसके बाद खिड़कियाँ साफ करनी हैं।”
“ये सब क्रान्ति के लिए है?” लड़के ने पूछा।
“ये सब क्रान्ति के लिए है,” वेरा ने जवाब दिया।
रिवेरा ने उन सब पर सन्देह से भरी एक ठण्डी नजर डाली, फिर
अपना कोट उतारने लगा।
“ठीक है,” उसने कहा।
बस और कुछ नहीं। रोज–ब–रोज वह अपने काम पर आता था-झाड़ू
लगाता था, पोछा करता था, सफाई करता था। वह अँगीठियों की राख
निकालकर फेंकता था, कोयला और लकड़ी की छिपटियाँ लाता था और उनमें से सबसे ऊर्जावान
व्यक्ति के अपनी मेज पर पहुँचने से पहले ही अँगीठियाँ सुलगा चुका होता था।
“क्या मैं यहाँ सो सकता हूँ?” एक बार उसने पूछा।
ओ–हो! तो ये बात है-आखिर दियाज़ का हाथ नजर आ ही गया!
जुन्ता¹ के कमरों में सोने का मतलब था उनकी तमाम खुफिया जानकारियों तक सीधी
पहुँच-लोगों के नामों की सूचियाँ, मेक्सिकन धरती पर मौजूद तमाम कामरेडों
के पते, सब उसके हाथ में पड़ जाते। अनुरोध ठुकरा दिया गया, और
रिवेरा ने दुबारा कभी इसका जिक्र नहीं किया। वह कहाँ सोता था इसके बारे में वे
नहीं जानते थे और न ही उन्हें मालूम था कि वह कहाँ खाता है और कैसे खाता है। एक
बार अरेलानो ने उसे एक–दो डालर देने चाहे। रिवेरा ने सिर हिलाकर पैसे लेने से
इनकार कर दिया। जब वेरा ने भी जोर देकर उसे पैसे लेने के लिए कहा, तो उसने
कहा :
“मैं क्रान्ति के लिए काम कर रहा हूँ।”
आधुनिक क्रान्ति की तैयारी में पैसों की जरूरत होती है, और
जुन्ता के हाथ हमेशा ही तंग रहते थे। सभी सदस्य आधा पेट खाते थे और दिनो–रात काम
में जुटे रहते थे, फिर भी ऐसे मौके आते थे जब लगता था कि क्रान्ति का टिके रहना या असफल
हो जाना बस चन्द डालरों की बात है। एक बार, और यह पहली बार
था, जब मकान का किराया दो महीने से बाकी था और मकानमालिक उन्हें बाहर
करने की धमकी दे रहा था, तो इसी फेलिपे रिवेरा, घटिया
फटे–चिथड़े कपड़ों में लिपटे पोछेवाले लड़के ने मे सेदबी की मेज पर साठ डालर के सोने
के सिक्के लाकर रख दिये थे। फिर और भी मौके आये। हमेशा व्यस्त रहनेवाले
टाइपराइटरों पर लिखे तीन सौ खत भेजे जाने के लिए पड़े हुए थे, पर
डाक टिकट के पैसे नहीं थे। (इनमें मदद की, संगठित मजदूर ग्रुपों से अनुदान की
अपीलें थीं, अखबारों के सम्पादकों के नाम खत और विज्ञप्तियाँ थीं और अमेरिकी
अदालतों में क्रान्तिकारियों के साथ निरंकुश बर्ताव के खिलाफ विरोध के पत्र थे।) वेरा की घड़ी बिक चुकी थी-पुराने
फैशन की सोने की यह घड़ी उसके बाप की थी। मे सेदबी की तीसरी उँगली से सोने की
अँगूठी भी जा चुकी थी। हालात बदहवासी के थे। रामोस और अरेलानो हताशा में अपनी
लम्बी मूँछें खींचते रहते थे। चिट्ठियाँ हर हाल में भेजी जानी थीं, और
डाकघरवाले उधार पर टिकट देने को तैयार नहीं थे। उस वक्त भी रिवेरा ने टोप सिर पर
रखा और बाहर निकल गया। जब वह लौटा तो उसने मे सेदबी की मेज पर दो सेण्टवाले एक
हजार टिकट रख दिये।
“मैं सोचता हूँ कि कहीं यह सोना दियाज़ का तो नहीं है?” वेरा ने साथियों से कहा।
उन्होंने त्योरियाँ चढ़ा लीं पर कुछ तय नहीं कर पाये। और क्रान्ति के
लिए पोछा लगानेवाला फेलिपे रिवेरा मौका पड़ने पर जुन्ता के इस्तेमाल के लिए सोना और
चाँदी लाता रहा।
और फिर भी वे उसे पसन्द नहीं कर पा रहे थे। वे उसे जानते नहीं थे।
उसके तौर–तरीके उन जैसे नहीं थे। वह विश्वास नहीं जगाता था। उसके बारे में जानकारी
पाने की सारी कोशिशें उसके ठण्डे रुख से नाकाम हो जाती थीं। वह बस लड़का ही था,
फिर
भी वे उससे पूछताछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।
“शायद वह एक महान और एकाकी आत्मा है; पता नहीं, मैं समझ नहीं पाता, कुछ
नहीं समझ पाता,” अरेलानो ने झुँझलाकर कहा।
“वह इनसान नहीं है,” रामोस बोला।
“उसकी आत्मा दाग दी गयी है,” मे सेदबी ने कहा। “हँसी–खुशी तो उसके
भीतर जैसे झुलस चुकी है। वह मरे हुओं जैसा है, फिर भी वह इस
कदर जिन्दा है कि डर लगता है।”
“वह जहन्नुम से होकर गुजरा है,” वेरा ने कहा।
“कोई भी इनसान ऐसा नहीं दिख सकता, अगर वह जहन्नुम से न गुजरा हो-और
वह तो अभी लड़का ही है।”
फिर भी वे उसे पसन्द नहीं कर पाते थे। वह कभी बातें नहीं करता था,
कभी
कुछ पूछता नहीं था, कभी सलाह नहीं देता था। जब वे क्रान्ति पर गर्मजोशी से बातें करते थे,
तो
वह चुपचाप खड़ा सुनता रहता था;
उसका चेहरा भावहीन होता था, जैसे मृत हो, बस उसकी आँखों
में ठण्डी आग सुलगती रहती थी। बर्फ के दमकते बर्मों–सी भेदती उसकी नजरें एक–एक वक्ता के चेहरे पर
फिरती रहती थीं जिससे वे परेशान और विचलित हो जाते थे।
“वह कोई जासूस नहीं है,” एक बार वेरा ने मे सेदबी से अपने दिल
की बात कही। “वह एक देशभक्त है-यकीन मानो, हम सबसे बढ़कर
देशभक्त है। मैं जानता हूँ, मैं यह महसूस करता हूँ, यहाँ,
अपने
दिल में और अपने दिमाग में मैं यह महसूस करता हूँ। लेकिन मैं उसे बिल्कुल समझ नहीं
पाता हूँ।”
“वह गर्म मिजाज का है,” मे सेदबी ने कहा।
“मैं जानता हूँ,” वेरा ने हल्की–सी सिहरन के साथ कहा।
“वह मेरी ओर अपनी उन आँखों से देखता है। उनमें प्यार नहीं होता, वे
डराती हैं; वे
जंगली बाघ की तरह हिंस्र लगती हैं। मैं जानता हूँ, अगर मैंने
लक्ष्य के साथ गद्दारी की, तो वह मुझे मार डालेगा। उसके पास दिल
नहीं है। वह फौलाद की तरह निर्मम है, बर्फ की तरह ठण्डा और पैना है। वह
सर्दियों की रात में उस चाँदनी की तरह है जिसके देखते कोई इनसान पहाड़ की निर्जन
चोटी पर जमकर मर जाता है। मैं दियाज़ और उसके तमाम हत्यारों से नहीं डरता; लेकिन यह लड़का, इससे मुझे डर
लगता है। मैं सच कहता हूँ तुम्हें। उससे मौत की गन्ध आती है।”
फिर भी यह वेरा ही था जिसने दूसरों को रिवेरा पर भरोसा करने के लिए
राजी किया। लॉस एंजलिस और लोअर कैलिफोर्निया के बीच सम्पर्क सूत्र टूट गया था। तीन
साथियों से खुद अपनी कब्र खुदवाकर उन्हें उसी में गोली मार दी गयी थी। दो अन्य लॉस
एंजलिस में अमेरिकी सरकार के कैदी थे। संघीय कमाण्डर जुआन अल्वरादो एक राक्षस था।
उनकी सारी योजनाएँ वह नाकाम कर देता था। लोअर कैलिफोर्निया के सक्रिय और नये जुड़
रहे क्रान्तिकारियों तक अब उनका पहुँचना मुमकिन नहीं रह गया था।
रिवेरा को कुछ निर्देश दिये गये और दक्षिण रवाना कर दिया गया। जब वह
लौटा, तो सम्पर्क सूत्र बहाल हो चुका था और जुआन अल्वरादो मर चुका था। वह
अपने बिस्तर में मरा पाया गया था, उसके सीने में मूठ तक चाकू धँसा हुआ था।
यह रिवेरा को दिये गये निर्देशों से ज्यादा था, लेकिन जुन्ता के
लोग जानते थे कि वह कब–कब कहाँ–कहाँ गया था। उन्होंने उससे पूछा नहीं। उसने कुछ
कहा नहीं। लेकिन वे एक–दूसरे की ओर देखते और कयास लगाते रहे।
“मैंने कहा था न,” वेरा ने कहा। “यह लड़का दियाज़ के लिए
किसी से भी ज्यादा खतरनाक है। उसे शान्त नहीं किया जा सकता। वह खुदा का हाथ है।”
मे सेदबी ने जिस गर्म मिजाज की बात की थी, और जिसे सब
महसूस करते थे, उसके अब शारीरिक प्रमाण मिलने लगे थे। कभी उसका ऊपरी होंठ कटा होता,
कभी
गाल पर नीला दाग होता या कान सूजा हुआ होता। साफ था कि उस बाहरी दुनिया में वह
लड़ता–भिड़ता रहता है जहाँ वह खाता और सोता था, पैसे हासिल करता
था और इस ढंग से जीता था जिससे वे अनजान थे। समय बीतने के साथ, वह
उनके छोटे–से क्रान्तिकारी साप्ताहिक अखबार के लिए टाइप सेट करने का भी काम करने
लगा था। कई बार ऐसे मौके आते जब वह टाइप सेट नहीं कर पाता क्योंकि उसकी उँगलियों
की गाँठों पर घाव होते थे, या उसके अँगूठे चोट से बेकार हो जाते
या फिर उसकी एक बाँह बेजान–सी लटकी रहती जबकि उसका चेहरा दर्द से खिंचा रहता-यह
अलग बात है कि उसकी जुबान से उफ भी नहीं निकलती थी।
“आवारा छोकरा!” अरेलानो ने कहा।
“गन्दी जगहों पर जाता होगा,” रामोस का कहना था।
“लेकिन उसे पैसे कहाँ से मिलते हैं?” वेरा ने पूछा। “आज ही, बल्कि अभी–अभी मुझे पता चला है कि उसने
कागज का बिल चुका दिया है-एक सौ चालीस डालर।”
“बीच–बीच में वह गायब रहता है,” मे सेदबी ने कहा।
“वह कभी नहीं बताता कि इस बीच कहाँ रहा।”
“हमें उसके पीछे जासूस लगाना चाहिये,” रामोस ने विचार
व्यक्त किया।
“मैं तो वह जासूस नहीं होना चाहूँगा,” वेरा ने कहा।
“मुझे डर है कि तुम लोग मुझे दुबारा कभी नहीं देख पाओगे, सीधे दफनाने के
समय ही देखोगे। उसके भीतर भावनाओं का जबर्दस्त उबाल है। उसकी भावनाओं की राह में
आने की इजाजत तो खुदा भी नहीं देगा।”
“उसके सामने मैं खुद को बच्चे–जैसा महसूस करता हूँ,” रामोस
ने स्वीकार किया।
“मेरे लिए तो वह साक्षात शक्ति है-वह आदिम शक्ति
है, जंगली भेड़िया है, फन मारता रैटलस्नेक है, डंक
मारता बिच्छू है,” अरेलानो ने कहा।
“वह साक्षात क्रान्ति है,” वेरा ने कहा। “वह इसकी लौ है, इसकी
आत्मा है; बदले की कभी न
शान्त होनेवाली पुकार है जो आवाज नहीं करती मगर चुपचाप वध करती है। वह रात की
खामोशी में निकलनेवाला मौत का फरिश्ता है।”
“मुझे उस पर रोना आता है,” मे सेदबी ने कहा। “वह किसी को नहीं
जानता। वह सबसे नफरत करता है। वह हमें बर्दाश्त करता है क्योंकि हम उसकी मुराद
पूरी करने का जरिया हैं। वह अकेला है–––बिल्कुल अकेला।” सिसकी रोकने की कोशिश में
उसकी आवाज खो गयी और उसकी आँखें धुँधला गर्इं।
रिवेरा के तौर–तरीके और उसके आने–जाने का समय वाकई रहस्यमय थे।
कभी–कभी वह उन्हें एक हफ्ते तक नहीं दिखाई देता था। एक बार, वह पूरे महीने
भर गायब रहा। ऐसे मौकों पर उसकी वापसी हमेशा ही सुखद होती थी क्योंकि वह बिना
दिखावे के या बिना कुछ बोले मे सेदबी की मेज पर सोने के सिक्के रख देता था। इसके
बाद वह कई दिनों और हफ्तों तक अपना सारा समय जुन्ता के साथ गुजारता था। लेकिन फिर,
वह
बीच–बीच में सुबह से दोपहर बाद तक गायब रहने लगता था। ऐसे मौकों पर वह काफी जल्दी
आ जाता था और देर रात तक रुकता था। अरेलानो ने एक बार उसे आधी रात को सूजी हुई
उँगलियों से टाइप सेट करते पाया था, या शायद उसका होंठ भी फटा हुआ था जिससे
अब भी खून चुहचुहा रहा था।
दो
संकट का समय आ पहुँचा
था। क्रान्ति होगी या नहीं यह अब जुन्ता पर निर्भर था और जुन्ता बेहद दबाव में थी।
पैसे की तंगी पहले हमेशा से ज्यादा थी, पर पैसे जुटाना और भी मुश्किल हो गया
था। देशभक्तों ने अपनी आखिरी कौड़ी भी दे दी थी और अब कुछ नहीं दे सकते थे। रेल
मार्गों के सेक्शनों पर काम करनेवाले मजदूर और मेक्सिको से भागकर अमेरिका के
दफ्तरों में काम करनेवाले चपरासी अपनी मामूली तनख्वाहों का आधा हिस्सा दे रहे थे।
लेकिन इससे कहीं ज्यादा की दरकार थी। बरसों तक हताशा से जूझते हुए, जीतोड़
मेहनत से किये गये गुप्त कामों का नतीजा मिलने का समय आ रहा था। समय बिल्कुल सटीक
था। क्रान्ति एक नाजुक सन्तुलन पर टिकी थी। बस एक और धक्का, पूरी ताकत और
हिम्मत से की गयी एक कोशिश की जरूरत थी, और यह लहराती हुई जीत की ओर बढ़ जाती।
वे अपने मेक्सिको को जानते थे। बस एक बार शुरू हो जाये, उसके बाद
क्रान्ति खुद अपना ख्याल रख सकती थी। दियाज़ का पूरा तंत्र ताश के पत्तों की तरह
भहरा जायेगा। सीमा के इलाके उठ खड़े होने के लिए तैयार थे। आई.डब्ल्यू.डब्ल्यू.¹ के
सौ लोगों के साथ एक यांकी सीमा पार करके लोअर कैलिफोर्निया पर धावा बोलने के लिए
तैयार था। लेकिन उसे बन्दूकों की जरूरत थी। और उधर, अटलांटिक तक के
पूरे इलाके में ऐसे लोगों की पूरी फौज थी जो इस आततायी हुकूमत से लड़ने को तैयार
बैठे थे। इनमें दुस्साहसियों, लूट के लिए लड़नेवाले, बागी
डकैत, अमेरिकी यूनियनों के असन्तुष्ट लोग, समाजवादी,
अराजकतावादी,
आवारागर्द,
मेक्सिको
से निर्वासित लोग, बंधुआगीरी से भागे हुए कर्मचारी, कोर द’अलान और
कोलोराडो की खदानों में कोड़े खानेवाले खान मजदूर-ये सब शामिल थे।
जुन्ता उन सबसे सम्पर्क बनाये हुए थी, और सबको बन्दूकों की जरूरत थी। बार–बार यही माँग आती थी-बन्दूकें
और गोली–बारूद, गोली–बारूद और बन्दूकें।
प्रतिशोध से भरी, अपना सब कुछ खो चुकी इस ऊबड़खाबड़ भीड़ को
सीमा के पार धकेल देना था, और क्रान्ति शुरू हो जाती। कस्टम हाउस,
उत्तरी
बन्दरगाहों के प्रवेशद्वार पर कब्जा हो जाता। दियाज़ इसे रोक नहीं पाता। वह अपनी
सेनाएँ उनके खिलाफ भेजने की हिम्मत नहीं कर सकता था क्योंकि उसे दक्षिण को काबू
में रखना था। और पूरे दक्षिण में क्रान्ति की लपटें उसके रोके नहीं रुकेंगी। लोग
उठ खड़े होंगे। एक के बाद एक शहर की रक्षापंक्ति ध्वस्त हो जायेगी। एक के बाद एक
प्रान्त घुटने टेक देगा। और आखिरकार, हर ओर से क्रान्ति की विजयी सेनाएँ
दियाज़ के आखिरी गढ़, मेक्सिको सिटी को घेर लेंगी।
लेकिन पैसा कहाँ से आये! उनके पास बन्दूकों का इस्तेमाल करनेवाले लोग
थे, उत्साह से भरे और अधीर। वे उन व्यापारियों को जानते थे जो बन्दूकें
बेचने और उन्हें सही जगह पहुँचाने के लिए तैयार थे। लेकिन क्रान्ति को इस मुकाम तक
लाने में जुन्ता ने अपने सारे संसाधन खर्च कर दिये थे। आखिरी डालर खर्च हो चुका था,
आखिरी
स्रोत और भूख से लड़ते आखिरी देशभक्त से जो भी मिल सकता था निचोड़ा जा चुका था,
लेकिन
निर्णायक कार्रवाई अब भी बारीक सन्तुलन पर टिकी थी। बन्दूकें और गोलीबारूद!
खस्ताहाल बटालियनों को हथियारबन्द करना ही होगा। लेकिन कैसे? रामोस को अपनी जब्त हो चुकी जागीरों की
याद आयी। अरेलानो ने अपनी जवानी की फिजूलखर्ची का रोना रोया। मे सेदबी सोचने लगी
कि अगर जुन्ता अतीत में थोड़ी और किफायतशारी बरतती तो क्या कुछ हो सकता था?
“जरा सोचो कि मेक्सिको की आजादी बस कुछ हजार डालरों की मोहताज है,”
पौलिनो
वेरा ने कहा।
हताशा उन सबके चेहरों पर साफ दिख रही थी। उनकी आखिरी उम्मीद, हाल
ही में जुड़े जोस अमारिलो, जिसने पैसे देने का वादा किया था,
को
चिहुआहुआ में अपनी हवेली में पकड़ लिया गया था और उसके अस्तबल की दीवार के सामने
उसे गोली मार दी गयी थी। खबर अभी–अभी आयी थी।
घुटनों के बल फर्श पर पोछा लगाते हुए रिवेरा ने उनकी ओर देखा। उसका
ब्रशवाला हाथ हवा में उठा था और नंगी बाँहों पर झागदार गन्दा पानी लगा हुआ था।
“पाँच हजार से काम चल जायेगा?” उसने पूछा।
उन्होंने अचरज से उसकी ओर देखा। वेरा ने थूक निगलते हुए सिर हिलाया।
वह बोल नहीं सका लेकिन अचानक उसमें अथाह विश्वास जाग उठा।
“बन्दूकों का आर्डर दे दो,” रिवेरा ने कहा। “समय कम है। तीन हफ्ते
में मैं तुम्हें पाँच हजार ला दूँगा। यह ठीक रहेगा। तब तक लड़नेवालों के लिए मौसम
भी कुछ गर्म हो जायेगा। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकता।”
वेरा अपने विश्वास को कायम रखने की पूरी कोशिश कर रहा था। यह
अविश्वसनीय था। जब से वह क्रान्ति में शामिल हुआ था तब से उसने बहुत सी उम्मीदों
को टूटते देखा था। उसे चिथड़े पहने हुए क्रान्ति के लिए पोछा लगानेवाले इस लड़के पर
यकीन था, फिर भी वह यकीन करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
“तू पागल है,” उसने कहा।
“बस तीन हफ्ते,” रिवेरा ने कहा। “बन्दूकों का आर्डर दे
दो।”
वह उठा, कमीज की बाँहें नीचे कीं और कोट पहन लिया।
“बन्दूकों का आर्डर दे दो,” उसने कहा।
“मैं अभी जा रहा हूँ।”
तीन
काफी भागदौड़, इधर–उधर टेलीफोन करने और गाली–गलौज के
बाद केली के दफ्तर में रात को एक बैठक हुई। केली का धन्धा चमका हुआ था, लेकिन
वह बदकिस्मत भी था। वह न्यूयार्क से डैनी वार्ड को ले आया था, बिल
कार्थी के साथ उसके मुकाबले का सारा इन्तजाम कर लिया था, मुकाबले का दिन
बस तीन हफ्ते दूर रह गया था लेकिन पिछले दो दिनों से कार्थी बुरी तरह घायल होकर
पड़ा था, हालाँकि खेल पत्रकारों से अब तक यह तथ्य बड़ी सावधानी से छुपाकर रखा
गया था। उसकी जगह लेनेवाला कोई नहीं था। केली पूरब के हर सम्भावित लाइटवेट
मुक्केबाज को फोन घनघनाता रहा था लेकिन सब के सब अनुबन्धों और पहले से तय तारीखों
से बँधे हुए थे। और आखिरकार अब उसकी उम्मीद फिर से जागी थी, हालाँकि यह एक
धुँधली–सी ही उम्मीद थी।
केली ने वहाँ आते ही रिवेरा पर एक नजर डाली और कहा, “तू
है बड़े जीवटवाला।”
रिवेरा की आँखों में जहरीली नफरत थी, लेकिन उसका
चेहरा निर्विकार बना रहा।
“मैं वार्ड को धूल चटा सकता हूँ,” उसने बस इतना
कहा।
“तू कैसे जानता है?
कभी
देखा है उसे लड़ते हुए?”
रिवेरा ने सिर हिला दिया।
“वह दोनों आँखें बन्द करके तुझे एक हाथ से पीट सकता है।”
रिवेरा ने कन्धे उचका दिये।
“तुझे कुछ कहना नहीं है?” फाइट प्रमोटर ने तीखी आवाज में पूछा।
“मैं उसे धूल चटा सकता हूँ।”
“अच्छा? तू
अब तक किससे भिड़ा है?” माइकल
केली ने पूछा। माइकल प्रमोटर का भाई था और यलोस्टोन जुआघर चलाता था जहाँ वह
मुक्केबाजी के मुकाबलों पर सट्टे से अच्छे पैसे बनाता था।
रिवेरा ने उसे कड़वी, सपाट नजर से घूरा।
प्रमोटर के नौजवान, खिलन्दड़े सेक्रेटरी ने खींसे निपोरीं।
“ठीक है, तू राबर्टस् को जानता है,” केली ने शत्रुतापूर्ण चुप्पी को तोड़ते
हुए कहा। “उसे अब तक यहाँ आ जाना चाहिए था। मैंने उसे बुलवाया है। बैठकर इन्तजार
करो, हालाँकि तुझे देखकर नहीं लगता कि तेरे बस की बात है। मैं इकतरफा
मुकाबले से पब्लिक को नाराज नहीं कर सकता। पता है तुझे, रिंग के सामने
की सीटें पन्द्रह–पन्द्रह डालर में बिक रही हैं।”
राबर्ट्स आया तो उसे देखते ही लग गया कि वह हल्के नशे में है। वह एक
लम्बा, छरहरा, ढीला–ढाला सा आदमी था और उसकी बोली की तरह ही उसकी चाल भी धीमी और
सुस्त थी।
केली सीधे मुद्दे पर आया।
“देखो राबर्ट्स, तुम डींग हाँकते रहे हो कि तुमने इस
मेक्सिकन छोकरे को ढूँढ़ निकाला है। तुम जानते ही हो कि कार्थी अपनी बाँह तुड़वा
बैठा है। अब इस पीले मुँहवाले का जिगर तो देखो, ये आकर मुझसे
कहता है कि यह कार्थी की जगह ले सकता है। क्या ख्याल है?”
“सही है, केली,” अपने सुस्त अन्दाज में राबर्टस ने जवाब दिया। “वह मुकाबला कर सकता है।”
“मेरे ख्याल से तुम अब यह कहोगे कि वह वार्ड को पटरा कर सकता है,”
केली
ने तुर्श लहजे में कहा।
राबर्टस विचार करने की मुद्रा में कुछ देर चुप रहा।
“नहीं, मैं यह तो नहीं कहूँगा। वार्ड ऊँची चीज है, वह रिंग का
बादशाह है। लेकिन वह रिवेरा को चुटकियों में ठिकाने नहीं लगा सकता। मैं रिवेरा को
जानता हूँ। कोई भी उसे गुस्सा नहीं दिला सकता। मैं उसकी ऐसी कोई कमजोरी ढूँढ़ नहीं
पाया। और उसके दोनों हाथ चलते हैं। वह किसी भी स्थिति से, किसी भी रुख से
सामनेवाले को ढेर कर देनेवाले मुक्के चला सकता है।”
“उसकी बात छोड़ो। वह कैसा शो पेश कर सकता है? तुम सारी जिन्दगी फाइटरों को तैयार
करते रहे हो। तुम्हारी परख की मैं दाद देता हूँ। क्या वह पब्लिक का पैसा वसूल करा
सकता है?”
“पक्की बात है। और इतना ही नहीं, वह वार्ड को
खासा परेशान कर सकता है। तुम इस लड़के को जानते नहीं हो। मैं जानता हूँ। मैंने उसे
ढूँढ़ा है। उसे गुस्सा दिलाना नामुमकिन है। वह शैतान का अवतार है। वह पक्की आफत की
पुड़िया है। वह वार्ड को देसी प्रतिभा के कमाल से ऐसा चैंकायेगा कि तुम सब चौंक
जाओगे। मैं यह नहीं कहता कि वह वार्ड को धूल चटा देगा, लेकिन वह ऐसा
जबर्दस्त मुकाबला करेगा कि तुम सब जान जाओगे कि आनेवाले दिन उसी के हैं।”
“ठीक है।” केली अपने सेक्रेटरी की ओर मुड़ा। “वार्ड को फोन लगाओ। मैंने
उसे बता दिया था कि अगर कुछ बात बनी तो उसे यहाँ आना होगा। वह अभी सामने यलोस्टोन
में ही है;
लोगों को अपने बल्ले दिखा रहा होगा, लोकप्रिय होने का कोई मौका वह नहीं
छोड़ता।”
केली फिर ट्रेनर से मुखातिब हुआ। “कुछ पिओगे?”
राबर्ट्स ने लम्बे गिलास से चुस्की ली और अपने सुस्त लहजे में बोलने
लगा।
“मैंने कभी तुम्हें बताया नहीं कि यह बदमाश मुझे मिला कैसे। दो साल
पहले यह हमारे यहाँ आया था। मैं प्राइने
को डेलानी के साथ उसके मुकाबले के लिए तैयार कर रहा था। प्राइने बड़ा दुष्ट है।
उसमें रत्तीभर भी दया नहीं है। उसने अपने पार्टनर
की बुरी तरह ठुँकाई कर डाली थी और मुझे उसके साथ लड़ने को तैयार कोई लड़का
मिल नहीं रहा था। तभी मुझे भूख से बेहाल यह मेक्सिकन छोकरा वहाँ मँडराता दिखाई
दिया। मुझे कोई भी नहीं मिल रहा था। इसलिए मैंने उसे पकड़ा, दस्ताने पहनाये
और रिंग में उतार दिया। वह चमड़े–सा चीमड़ था लेकिन बेहद कमजोर था। और वह मुक्केबाजी
के ककहरे का पहला अक्षर भी नहीं जानता था। प्राइने ने उसकी धज्जियाँ उड़ा दीं।
लेकिन वह दो राउण्ड तक टिका रहा, फिर बेहोश हो गया। वह भी भूख से। कैसी
मार लगी थी उसे! उसे पहचानना मुश्किल था। मैंने उसे आधा डालर और खाना दिया।
तुम्हें उसे भुक्खड़ों की तरह भकोसते देखना चाहिए था। उसने दो दिन से एक निवाला भी नहीं
चखा था। मैंने सोचा, यह तो गया काम से। लेकिन अगले दिन वह फिर पहुँच गया। उसका शरीर अकड़ा
और सूजा हुआ था लेकिन आधा डालर और भरपेट खाने के लिए वह फिर तैयार था। और समय
बीतने के साथ वह बेहतर होता गया। वह जन्मजात फाइटर है, और ऐसा कड़ियल कि
विश्वास नहीं होता। उसके दिल नहीं है। वह बर्फ की सिल्ली है। जब से मैं उसे जानता
हूँ उसने एक बार में ग्यारह शब्द भी नहीं बोले होंगे। वह बस अपना काम करता है।”
“मैंने देखा है,” सेक्रेटरी ने कहा। “उसने तुम्हारे लिए
खूब काम किया है।”
“मेरे सारे बड़े फाइटर उसके साथ आजमाइश कर चुके हैं,” राबर्ट्स
ने जवाब दिया। “और उसने उन सबसे सीखा है। मैंने देखा है कि उनमें से कुछ को वह धो
सकता था। लेकिन उसका दिल नहीं लगता था। मैं सोचता था कि उसे ये खेल कभी पसन्द नहीं
था। उसके हाव–भाव से तो ऐसा ही लगता था।”
“पिछले कुछ महीनों में तो वह छोटे क्लबों में फाइटिंग करता रहा है,”
केली
ने कहा।
“हाँ। अचानक उसे पता नहीं क्या हुआ। एकदम से वह इसके लिए तैयार हो गया।
वह बस एक कौंध की तरह निकला और तमाम लोकल फाइटरों की छुट्टी कर दी। लगता है उसे
पैसों की जरूरत है, और उसने ठीक–ठाक कमाई की है, हालाँकि उसके कपड़ों से पता नहीं चलता।
वह अजीब ही चीज है। कोई नहीं जानता कि वह क्या करता है। किसी को नहीं पता कि वह
अपना समय कैसे बिताता है। जब वह काम पर होता है तब भी काम खत्म होते ही गायब हो
जाता है। कभी–कभी वह हफ्तों तक लापता रहता है। लेकिन वह किसी की सुनता नहीं है।
उसका मैनेजर बननेवाला भारी कमाई कर सकता है, लेकिन वह इस
बारे में सोचने को भी तैयार नहीं है। और तुम देखना कि जब मुकाबले की शर्तें तय
होने लगेंगी तो वह पैसे नकद लेने के लिए किस तरह अड़ेगा।”
इसी समय डैनी वार्ड आ पहुँचा। पूरी मण्डली थी। उसका मैनेजर और ट्रेनर
पीछे–पीछे थे और वह खुशमिजाजी और विजयी भाव के साथ हवा के झोंके की तरह भीतर आया।
आते ही उसने लोगों से हाथ मिलाया, किसी से मजाक किया, किसी
को अपनी हाजिरजवाबी की झलक दिखायी, किसी को देखकर मुस्कुराया और किसी की
बात पर हँसा। ये उसका अन्दाज था और इसमें आंशिक ही सच्चाई थी। वह एक अच्छा अभिनेता
था और उसने पाया था कि दुनिया में आगे बढ़ने के खेल में खुशमिजाजी बड़ा ही कारगर
नुस्खा था। लेकिन भीतर से वह एक हिसाबी–किताबी, निर्मम फाइटर और
बिजनेसमैन था। बाकी सब बस दिखावा था। एक मुखौटा था जिस पर हमेशा मुस्कान चिपकी
रहती थी। उसे जाननेवाले या उसके साथ कारोबार करनेवाले कहते थे कि पैसों के मामले
में उसका दिमाग उसके मुक्कों से भी ज्यादा
तेज चलता था। लेन–देन सम्बन्धी हर बातचीत में वह जरूर मौजूद रहता था और कुछ
लोग कहते थे कि उसका मैनेजर बस डैनी का माउथपीस है, वह वही बोलता है
जो उसे कहा जाता है।
रिवेरा का अन्दाज बिल्कुल अलग था। उसकी नसों में स्पेनिश के साथ ही
इण्डियन (रेड इण्डियन-अनु.) खून था और वह एक कोने में चुपचाप, बिल्कुल स्थिर
बैठा हुआ था, सिर्फ उसकी काली आँखें एक–एक चेहरे पर फिर रही थीं और हर चीज को गौर
से देख रही थीं।
“अच्छा, तो यह बन्दा है,” डैनी ने अपने प्रस्तावित प्रतिद्वंद्वी
का नजरों से जायजा लेते हुए कहा। “कहो कैसे हो, दोस्त?”
रिवेरा की आँखें जल उठीं, लेकिन उसने अभिवादन स्वीकारने का कोई
संकेत नहीं दिया। सारे ग्रिंगो¹ उसे सख्त नापसन्द थे, लेकिन
इस ग्रिंगो को देखते ही उसके भीतर ऐसी नफरत उमड़ी थी जो खुद उसके लिए भी अजीब था।
“या खुदा!” डैनी ने मजाकिया अन्दाज में फाइट प्रमोटर से कहा। “तो तुम
मुझे एक गूँगे–बहरे से भिड़ाना चाहते हो।” हँसी थमने पर उसने एक और फिकरा कसा।
“लगता है आजकल लॉस एंजिलस में लोग चूड़ियाँ पहनने लगे हैं, तभी तुम इससे
बेहतर का जुगाड़ नहीं कर सके। किस किण्डरगार्टेन से पकड़कर लाये हो इसे?”
“वह बढ़िया लड़का है, डैनी, मेरी बात मानो,”
राबर्ट्स
ने उसका बचाव किया। “जैसा कमजोर दिखता है वैसा है नहीं।”
“और आधी सीटें पहले ही बिक चुकी हैं,” केली ने अनुरोध
के स्वर में कहा। “तुम्हें उससे भिड़ना ही होगा डैनी। अब इससे बेहतर हमारे लिए
मुमकिन नहीं है।”
डैनी ने रिवेरा पर एक और बेफिक्र और उपेक्षापूर्ण नजर डाली और आह भरी।
“मेरे ख्याल से मुझे उसके साथ नरमी बरतनी पड़ेगी; बशर्ते वह बेवकूफी न कर बैठे।”
राबर्ट्स ने नथुनों से फुफकार मारी।
“तुम्हें सावधान रहना होगा,” डैनी के मैनेजर ने चेताया। “ऐसे
घुरमुइसों को कोई मौका नहीं देना चाहिए। क्या पता, उसकी किस्मत से
एकाध घूँसा तुम तक पहुँच ही जाये।”
“ओह, मैं पूरी सावधानी बरतूँगा, पूरी,” डैनी मुस्कुराया।
“प्यारी पब्लिक की खातिर मैं इसे शुरू से धीरे–धीरे खिलाउँगा। पन्द्रह राउण्ड तक-और
फिर उसे ढेर कर दूँगा, क्यों, क्या ख्याल है केली?”
“चलेगा,” उसने जवाब दिया। “बस असली दिखना चाहिए।”
“तो अब काम की बात कर लें।” डैनी ने ठहरकर मन ही मन हिसाब लगाया।
“टिकट–बिक्री का पैंसठ फीसदी, जैसे कार्थी के साथ तय था। लेकिन इसका
बँटवारा अलग होगा। मेरे लिए अस्सी ठीक रहेगा।” उसने अपने मैनेजर से पूछा, “ठीक
है?”
मैनेजर ने हामी भरी।
“अरे सुनो, तुम्हारी समझ में आया?”
केली
ने रिवेरा से पूछा।
रिवेरा ने इनकार में सिर हिलाया।
“देखो, ये ऐसा होता है,” केली ने उसे समझाया। “इनाम की रकम होगी
टिकट–बिक्री की पैंसठ फीसदी। तुम नये और अनजान हो। रकम तुम दोनों के बीच बँट
जायेगी। बीस फीसदी तुम्हें, अस्सी डैनी को। क्यों, सही
है न, राबर्ट्स?”
“बिल्कुल सही है, रिवेरा,” राबर्ट्स ने
सहमति जताई।
“देखो, अभी तुम्हारा नाम तो हुआ नहीं है।”
“टिकट–बिक्री का पैंसठ फीसदी कितना होगा?” रिवेरा ने पूछा।
“ओह, शायद पाँच हजार, या, हो सकता है आठ
हजार तक पहुँच जाये,” डैनी बोल पड़ा। “लगभग इतना ही होगा। तुम्हारे हिस्से में हजार से सोलह
सौ तक आयेंगे। मेरे जैसे नामचीन बन्दे से पिटने के लिए ये खासी रकम है। क्या कहते
हो?”
रिवेरा का जवाब सुनकर उनकी साँस गले में अटक गयी। “पूरी रकम
जीतनेवाला ले जायेगा,” उसने फैसला सुनाने के अन्दाज में कहा।
कमरे में सन्नाटा छा गया।
“वाह, बच्चा हमें टॉफी खिला रहा है,” डैनी के मैनेजर
ने कहा।
डैनी ने सिर हिलाया।
“मैं इस खेल में बहुत दिनों से हूँ,” उसने कहा। “मैं
रेफरी या आयोजक कम्पनी पर शुबहा नहीं कर रहा हूँ। मैं सट्टेबाजों और धोखाधड़ियों की
भी बात नहीं कर रहा हूँ, जैसा कि कई बार होता है। मैं बस यही कह
रहा हूँ कि मेरे जैसे फाइटर के लिए यह सौदा ठीक नहीं है। इस मामले में मैं जोखिम
नहीं उठाता। तुम कुछ कह नहीं सकते। क्या पता मेरी बाँह टूट जाये, क्यों? या कोई मुझे धोखे से नशा खिला दे?” उसने गम्भीर मुद्रा में सिर हिलाया।
“हार या जीत, मेरा हिस्सा होगा अस्सी फीसदी। क्या कहते हो, मेक्सिकन?”
रिवेरा ने फिर इनकार में सिर हिलाया।
डैनी गुस्से से फट पड़ा। अब वह असल रूप में आ रहा था।
“अबे, सड़कछाप गन्दे छोकरे, तू चाहता क्या है? जी तो करता है अभी तुझे चपटा कर दूँ।”
राबर्ट्स धीरे से अपना शरीर दोनों प्रतिद्वन्द्वियों के बीच ले आया।
“पूरी रकम जीतनेवाले को,” रिवेरा ने रूखे ढंग से दोहराया।
“तू इस तरह अड़ा क्यों हुआ है?” डैनी ने पूछा।
“मैं तुम्हें पीट सकता हूँ,” उसका सपाट जवाब था।
डैनी ने कोट उतारने की कोशिश शुरू की। लेकिन, जैसा कि उसका
मैनेजर जानता था, यह महज दिखावा था। कोट उतरा नहीं, और डैनी ने
लोगों को उसे शान्त करने दिया। सबकी हमदर्दी उसके साथ थी। रिवेरा अकेला खड़ा था।
“सुन, बेवकूफ छोकरे,” केली ने उसे समझाने का जिम्मा अब खुद
पर ले लिया। “तू कुछ नहीं है। हम जानते हैं कि पिछले कुछ महीनों में तू क्या करता
रहा है-मामूली लोकल फाइटरों को पीटा है तूने। लेकिन डैनी आला दर्जे का है।
इस मुकाबले के बाद वह चैम्पियनशिप के लिए भिड़ेगा। और तू बिल्कुल गुमनाम है। लॉस
एंजलिस के बाहर किसी ने तेरा नाम भी नहीं सुना है।”
“सुनेंगे,” रिवेरा ने कन्धे झटककर कहा, “इस मुकाबले के बाद वे सुनेंगे।”
“तू सोचता है तू मुझे पीट देगा?” डैनी गुस्से में बोला।
रिवेरा ने सिर हिलाकर हामी भरी।
“अरे छोड़ो;
जरा बात समझने की कोशिश करो,” केली ने अपील की। “विज्ञापनों के बारे
में सोचो।”
“मुझे पैसे चाहिए,” रिवेरा का जवाब था।
“तू एक हजार साल में मुझसे नहीं जीत सकता,” डैनी ने आश्वस्त
भाव से कहा।
“फिर तुम्हें फिक्र काहे की है?” रिवेरा ने पलटकर कहा। “अगर पैसा इतनी आसानी से मिल रहा है तो तुम ले
क्यों नहीं लेते?”
“लूँगा! अब तू देख!” डैनी अचानक फैसलाकुन अन्दाज में चीखा। “मैं रिंग
में तुझे पीट–पीटकर मार डालूँगा, बच्चे-तू मेरे साथ
खिलवाड़ कर रहा है! अखबारों में लेख छपवाना शुरू कर दो, केली। पूरा पैसा
जीतनेवाले को! खेल कालमों में इसे जमकर उछालो। पब्लिक को बताओ कि ये पुराने
दुश्मनों की भिड़न्त है। मैं इस नौबढ़ छोकरे को उसकी औकात दिखाउँगा।”
केली के सेक्रेटरी ने लिखना शुरू कर दिया था कि डैनी ने उसे रोक दिया।
“रुको!” वह रिवेरा की ओर मुड़ा।
“वजन?”
“रिंग के बाहर,” जवाब आया।
“सवाल ही नहीं उठता, नौबढ़ छोकरे। अगर पूरा माल जीतनेवाले का,
तो
वजन सुबह दस बजे होगा।”
“और पूरा माल जीतनेवाले को मिलेगा?” रिवेरा ने पूछा।
डैनी ने हामी भरी। मामला तय हो गया। वह अपनी पूरी ताकत और ताजगी के
साथ रिंग में उतरेगा।
“वजन दस बजे होगा,” रिवेरा ने कहा।
सेक्रेटरी का पेन तेजी से चलने लगा।
“इसका मतलब हुआ पाँच पौण्ड और,” राबर्ट्स ने
रिवेरा को समझाया।
“तूने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। तूने हारने का पक्का इन्तजाम कर
लिया। डैनी पक्के तौर पर तुझे पीट डालेगा। वह साँड़ की तरह मजबूत होगा। तू एकदम
बेवकूफ है। अब तो तेरे पास रत्तीभर भी मौका नहीं है।”
रिवेरा ने नपी–तुली, नफरतभरी नजर से उसका जवाब दिया। वह इस
ग्रिंगो से भी नफरत करता था, हालाँकि यह उन सबसे बेहतर गिंग्रो था।
चार
रिवेरा रिंग में उतरा तो शायद ही किसी ने उसकी ओर ध्यान दिया।
स्टेडियम में इधर–उधर छितरी और बेमन से बजायी तालियों की आवाज ने उसका स्वागत किया।
दर्शकों को उस पर भरोसा नहीं था। वह तो महान डैनी के हाथों बलि चढ़ने के लिए लाया
गया मेमना था। इसके अलावा, दर्शकों को हताशा भी हुई थी। उन्हें
डैनी वार्ड और बिल कार्थी के बीच जबर्दस्त भिड़न्त की उम्मीद थी और यहाँ
उन्हें इस पिद्दी से काम चलाना पड़ रहा था।
दर्शकों ने डैनी पर एक के मुकाबले दो, यहाँ तक कि तीन का सट्टा लगाकर इस
बदलाव पर अपनी नाखुशी जाहिर कर दी। और सट्टा लगानेवालों का पैसा जिधर होता है,
उधर
ही उनका दिल भी होता है।
मेक्सिकन लड़का अपने कोने में बैठ गया और इन्तजार करने लगा। समय
धीरे–धीरे बीत रहा था। डैनी उससे इन्तजार करा रहा था। यह एक पुरानी चाल थी लेकिन
कमउम्र, नये फाइटरों पर इसका हमेशा ही असर होता था। इस तरह बैठे और खुद अपनी
आशंकाओं तथा धुआँ उड़ाते निर्मम दर्शकों का सामना करते हुए उनमें डर समाने लगता था।
लेकिन इस बार यह चाल नाकाम रही। राबर्ट्स ने ठीक कहा था। रिवेरा को अशान्त करना
असम्भव था। वह उन सबसे ज्यादा सन्तुलित था और उसके दिलो–दिमाग की एक–एक नस
प्रत्यंचा की तरह खिंची हुई थी और उसमें घबराहट या डर के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी।
रिंग के उसके कोने में मौजूद हार और निराशा के माहौल का भी उस पर कोई असर नहीं था।
उसके सहयोगी ग्रिंगो और अजनबी थे। और उसे इनामी मुक्केबाजी के खेल की तलछट के लोग
दिये गये थे, जिनके पास न तो कोई सम्मान था और न कुशलता। ऊपर से, वे
पहले ही यह मान बैठे थे कि उनके खिलाड़ी की हार पक्की है।
“होशियार रहना,” स्पाइडर हैगर्टी ने उसे चेताया।
स्पाइडर उसका मुख्य सहयोगी था। “जितनी देर टिके रह सको, उतनी देर टिकने
की कोशिश करना-केली ने यही कहलाया है। अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो अखबारवाले इसे भी
मिली–जुली लड़ाई बता देंगे और लॉस एंजलिस में यह खेल और बदनाम हो जायेगा।”
यह सब कतई हौसला आफजाई करनेवाला नहीं था। लेकिन रिवेरा ने जरा भी
ध्यान नहीं दिया। उसे इनामी मुक्कबाजी से नफरत थी। यह घृणित ग्रिंगो लोगों का
घृणित खेल था। ट्रेनर के अखाड़े में दूसरों के मुक्के खानेवाले के तौर पर वह इसमें
शामिल हुआ था, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह भूख से मर रहा था। इस बात से कोई फर्क नहीं
पड़ता था कि वह इस खेल के लिए बहुत बढ़िया ढंग से बना था। वह इससे नफरत करता था।
जुन्ता के सम्पर्क में आने के पहले वह कभी पैसे के लिए नहीं लड़ा था, पर
उसे इस तरह पैसे कमाना आसान लगता था। वह पहला इनसान नहीं था जिसने खुद को एक ऐसे
पेशे में कामयाब पाया था जिससे वह नफरत करता था।
उसने किसी चीज का विश्लेषण नहीं किया। वह बस जानता था कि उसे यह लड़ाई
जीतनी ही है। कोई और नतीजा हो ही नहीं सकता। उसके इस विश्वास के पीछे ऐसी विराट
शक्तियाँ थीं जिनकी स्टेडियम में खचाखच भरे दर्शक कल्पना भी नहीं कर सकते थे। डैनी
वार्ड पैसे के लिए, और पैसे से खरीदे जा सकनेवाले ऐशो–आराम के लिए लड़ता था। लेकिन रिवेरा
जिन चीजों के लिए लड़ता था वे उसके दिमाग में सुलग रही थीं-उसके दिमाग में
जलते हुए और भयानक दृश्य कौंध रहे थे, जिन्हें रिंग के अपने कोने में अकेले
बैठे और अपने तिकड़मी प्रतिद्वन्द्वी का इन्तजार करते हुए वह इतना साफ देख रहा था
मानो उन्हें जी रहा हो।
उसने रिओ ब्लांको की सफेद दीवारों से घिरी पनबिजली से चलनेवाली
फैक्ट्रियाँ देखीं। उसने छह हजार थके–हारे और भूखे मजदूरों को और सात–आठ साल के
छोटे बच्चों को देखा जो रोजाना दस सेण्ट के लिए लम्बी–लम्बी पालियों में खटते थे।
उसकी आँखों के सामने से चलते–फिरते शव गुजर गये; ये डाई–रूमों में काम करनेवाले
लोग थे। उसे याद आया कि उसने अपने पिता को कहते सुना था कि ये डाई–रूम मौत के कुएँ हैं जहाँ एक साल काम करना मौत को
बुलावा देना था। उसे छोटा–सा आँगन दिखायी दिया जहाँ उसकी माँ खाना बनाती थी और घर
चलाने के लिए सुबह से रात तक खटती थी, फिर भी उसे दुलारने और प्यार करने का
समय निकाल लेती थी। फिर उसने अपने पिता को देखा। लम्बे–ऊँचे, बड़ी–बड़ी
मूँछों और गहरे सीनेवाले पिता, जो उन तमाम लोगों से प्यार करते थे और
जिनका दिल इतना बड़ा था कि उसमें उमड़ता प्यार उन हजारों लोगों के बीच बँटने के बाद
भी माँ और आँगन के कोने में खेल रहे नन्हे छोकरे के लिए बचा रहता था। उन दिनों
उसका नाम फेलिपे रिवेरा नहीं था, उसका नाम फर्नांदेज़ था, जो
उसे अपने पिता और माँ से मिला था। उसे वे जुआन कहते थे। बाद में उसने खुद इसे बदल
लिया था क्योंकि पुलिस, राजनीतिज्ञ और जागीरदारों के आदमी फर्नांदेज़ नाम से नफरत करते थे।
लम्बे–तगड़े, दिलदार जोआक्विन फर्नांदेज“! वे हमेशा
रिवेरा की आँखों के सामने होते थे। उस वक्त वह उन्हें समझ नहीं पाता था लेकिन अब
याद करने पर वह सब कुछ समझ सकता था। वह उन्हें छोटी–सी प्रिण्टिंग प्रेस में
टाइपसेट करते हुए, या किताबों और कागजों से
अँटी पड़ी मेज पर जल्दी–जल्दी कुछ लिखते हुए देख सकता था। और उसे वे विचित्र–सी
शामें दिखाई दे रही थीं जब शहर के मजदूर बुरे काम करनेवालों की तरह अँधेरे में
चुपके–चुपके उसके पिता से मिलने आते थे और घण्टों बातें करते रहते थे। उस वक्त वह
कोने में लेटा अकसर उनकी अबूझ बातें सुना करता था।
उसे स्पाइडर हैगर्टी की कहीं दूर से आती हुई–सी आवाज सुनाई दी :
“शुरू में ही लुढ़क मत जाना। यही कहलाया गया है। थोड़ी मार सह लो, तुम्हें
पैसे मिल जायेंगे।”
दस मिनट बीत चुके थे और वह अब भी अपने कोने में बैठा हुआ था। डैनी का
कुछ अता–पता नहीं था। साफ था कि वह अपनी चाल को आखिरी सीमा तक खींचना चाह रहा था।
रिवेरा की आँखों के सामने से जलते हुए दृश्य गुजरते रहे। उसे वह
हड़ताल, बल्कि तालाबन्दी दिखाई दी जब रिओ ब्लांको के मजदूरों ने प्यूब्ला के
अपने हड़ताली भाइयों की मदद करने की सजा पायी थी। भूख, बेरियाँ चुनने
के लिए पहाड़ियों में भटकना, जड़ें और बूटियाँ जिन्हें सब खाते थे और
जो सब के पेटों में दर्द और ऐंठन पैदा करती थीं-और फिर उसने वह
दु:स्वप्न एक बार फिर देखा : कम्पनी के गोदाम के सामने का खाली मैदान; भूख से मरते हजारों मजदूर; जनरल रोज़ालिओ मार्तीनेज़ और
पोर्फिरिओ दिआज़ के सिपाही और उनकी मौत उगलनेवाली राइफलें जिनके मुँह कभी बन्द ही
नहीं होते थे जबकि मजदूरों के “जुर्म” के निशान उन्हीं के खून से बार–बार धोये जा
रहे थे। और वह रात! उसने मालगाड़ी के डिब्बों में लाशों के ढेर देखे जिन्हें वेरा
क्रुज़ ले जाया जा रहा था, खाड़ी की शार्क मछलियों का चारा बनने के
लिए। खून से सने ढेरों में रेंगते हुए उसने अपने माँ और बाप को ढूँढ़ निकाला था; उनके कपड़े तार–तार थे और शरीर
क्षत–विक्षत। उसे खासतौर पर अपनी माँ की याद थी-सिर्फ उसका
चेहरा बाहर निकला था, उसका शरीर दर्जनों लाशों के वजन से दबा हुआ था। एक बार फिर पोर्फिरिओ
दियाज़ के सिपाहियों की राइफलें कड़कीं और एक बार फिर वह जमीन से चिपक गया और फिर
शिकारियों से बचती किसी पहाड़ी लोमड़ी की तरह वहाँ से निकल गया।
समुद्र की गरज जैसा तेज शोर उसके कानों में पहुँचा और उसने देखा कि
डैनी वार्ड स्टेडियम के बीच वाले रास्ते से आ रहा है। ट्रेनरों और सहयोगियों का
दल–बल उसके पीछे–पीछे था। दर्शक इस लोकप्रिय हीरो का जोर–शोर से स्वागत कर रहे थे
जिसका जीतना पहले से तय था। हर कोई उसका नाम पुकार रहा था। हर कोई उसी की ओर था।
यहाँ तक कि, जब डैनी बाँके अन्दाज में झुककर रस्सियों के बीच से रिंग में आया तो
खुद रिवेरा के सहयोगियों के चेहरे खिल गये। उसका चेहरा कभी खत्म न होनेवाली
मुस्कान से फैला हुआ था और जब डैनी मुस्कुराता था तो उसके चेहरे के हर अंग से
मुस्कान फूटी पड़ती थी। इतना मिलनसार फाइटर शायद ही कभी रहा हो। उसका चेहरा
खुशमिजाजी और दोस्ताने का चलता–फिरता विज्ञापन था। वह जैसे हर किसी को जानता था।
वह मजाक कर रहा था, हँस रहा था और रस्सियों के बीच से अपने दोस्तों का अभिवादन कर रहा था।
दूर की सीटों पर बैठे हुए लोग भी अपने को रोक नहीं पा रहे थे और जोर–जोर से उसका
नाम पुकार रहे थे। स्नेह और सराहना की यह खुशियोंभरी बौछार पूरे पाँच मिनट तक चलती
रही।
रिवेरा की ओर किसी ने ध्यान भी नहीं दिया। दर्शकों के लिए मानो उसका
अस्तित्व ही नहीं था। स्पाइडर हैगर्टी का शराब से सूजा हुआ चेहरा उसके चेहरे के
पास झुक आया।
“डरना मत,” स्पाइडर ने चेताया।
“और हिदायतें याद रखना। तुम्हें हर हाल में टिके रहना है। लुढ़कना नहीं।
अगर तू लुढ़का तो हमें कहा गया है कि ड्रेसिंग रूम में तेरी अच्छी धुलाई करेंगे।
समझ गया? तुझे बस लड़ना है।”
दर्शक तालियाँ बजाने लगे थे। डैनी रिंग पार करते हुए उसकी ओर आ रहा
था। डैनी झुका, रिवेरा का दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों में लिया और बड़े जोर–शोर से
हिलाया। मुस्कान में लिपटा डैनी का चेहरा उसके करीब था। दर्शक खेलभावना के इस
प्रदर्शन पर खुश होकर चीख रहे थे और सीटियाँ बजा रहे थे। डैनी अपने बैरी से भाई की
तरह अपनेपन से मिल रहा था। डैनी के होंठ हिले और दर्शकों ने अनसुने शब्दों को एक
भलेमानस खिलाड़ी की बातें समझकर फिर से शोर मचाया। सिर्फ रिवेरा ने नीची आवाज में
कहे गये ये शब्द सुने।
“गन्दे मेक्सिकन चूहे,” डैनी के मुस्कुराते होंठों से यह
फुफकार निकली, “मैं तेरा मलीदा बना के रख दूँगा।”
रिवेरा खामोश बैठा रहा। वह अपनी जगह से उठा नहीं। बस उसकी आँखों से
नफरत बरस रही थी।
“खड़े तो हो जा, कुत्ते!” पीछे की कतारों से कोई
चिल्लाया।
उसके इस गैर खिलाड़ियाना बर्ताव पर दर्शक उसके खिलाफ चीखने और हूटिंग
करने लगे, लेकिन वह चुपचाप बैठा रहा। वापस अपने कोने में लौटते हुए डैनी का एक
बार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत हुआ।
डैनी के गाउन उतारते ही चारों ओर खुशी से ओह–आह की आवाजें गूँजने
लगीं। उसका बदन एकदम नपा–तुला और सुगठित था, उसमें फुर्ती और
ताकत दोनों थी और वह भरपूर स्वास्थ्य से दमक रहा था। उसकी त्वचा औरतों की तरह
स्निग्ध और गोरी थी। उसके भीतर लय, लोच और शक्ति भरी हुई थी। बीसियों
मुकाबलों में उसने इसे साबित किया था। उसकी तस्वीरें खेल और शरीर सौष्ठव की तमाम
पत्रिकाओं में छायी रहती थीं।
जब स्पाइडर हैगर्टी ने रिवेरा का स्वेटर उसके सिर के ऊपर से खींचकर
निकाला तो स्टेडियम में एक कराह–सी गूँज गयी। उसके साँवलेपन की वजह से उसका बदन और
भी दुबला दिखता था। उसकी भी मांसपेशिया थीं लेकिन वे उसके प्रतिद्वन्द्वी की तरह
उभरी हुई नहीं थीं। पर दर्शक यह नहीं देख सके कि उसका सीना कितना गहरा था। न ही वे
इस बात का अनुमान लगा सकते थे कि उसके बदन का रेशा–रेशा कैसा सख्त था, उसकी
मांसपेशियाँ कितनी चपल थीं और उसकी नस–नस में दौड़ रही बिजली ने किस तरह उसे एक
शानदार लड़ाकू मशीन में तब्दील कर दिया था। दर्शकों को बस यही दिखायी दिया कि उनके
सामने भूरी चमड़ीवाला अठारह साल का एक लड़का खड़ा था जिसका शरीर लड़कों जैसा था। डैनी
की बात अलग थी। डैनी चौबीस साल का मर्द था और उसका शरीर परिपक्व आदमी का शरीर था।
यह वैषम्य उस वक्त और भी साफ दिखने लगा जब वे रिंग के बीचोबीच खड़े होकर रेफरी की
हिदायतें सुन रहे थे।
रिवेरा ने देखा कि राबर्ट्स अखबारवालों के ठीक पीछे बैठा हुआ है। वह
आम दिनों से ज्यादा नशे में था और उसकी बोली भी उसी अनुपात में और सुस्त हो गयी थी।
“घबराना मत, रिवेरा,” राबर्ट्स ने
अपने खास लहजे में कहा। “वह तुम्हारी जान नहीं ले सकता, यह बात याद रखना।
शुरू होते ही वह तुम पर झपटेगा, लेकिन हड़बड़ाना मत। तुम बस उसे रोकना और
पकड़ लेना। वह ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचा पायेगा। बस खुद को यह यकीन दिला लो कि वह ट्रेनिंग
अखाड़े में तुम पर मुक्के आजमा रहा है।”
रिवेरा ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि उसने सुना हो।
“मनहूस शैतान,” राबर्ट्स बगल में बैठे व्यक्ति से
बड़बड़ाया। “वह हमेशा से ऐसा ही है।”
लेकिन रिवेरा अपनी नफरतभरी नजर उधर डालना भूल गया। उसकी आँखों के
सामने अनगिनत राइफलों की तस्वीर कौंध गयी। उसकी नजर जहाँ तक पहुँच रही थी, एक–एक
दर्शक का चेहरा राइफल में बदल गया था। उसने बंजर, उजाड़ और धूप से
नहाये मेक्सिको के सीमावर्ती इलाके देखे और उसने सीमा के पास उन खस्ताहाल दस्तों
को देखा जो सिर्फ बन्दूकों के इन्तजार में रुके हुए थे।
अपने कोने में लौटकर वह खड़ा इन्तजार कर रहा था। उसके सहयोगी कैनवस का
स्टूल अपने साथ लेकर रस्सियों के बीच से रेंगकर निकल रहे थे। रिंग के दूसरे कोने
पर डैनी उसके सामने खड़ा था। घण्टा बजा और लड़ाई शुरू हो गयी। दर्शक खुशी से चीख रहे
थे। उन्होंने अब तक इतनी खुली लड़ाई नहीं देखी। अखबारों का कहना सही था। यह रंजिश
से भरा मुकाबला था। डैनी ने तीन–चौथाई दूरी झपटते हुए पार की, मेक्सिकन
छोकरे की धज्जियाँ उड़ा देने का उसका इरादा एकदम साफ था। उसने एक घूँसा नहीं चलाया,
न
दो, न एक दर्जन। वह घूँसों की बौछार कर रहा था, वह बर्बादी के
तूफान की तरह था। रिवेरा कुछ नहीं कर पा रहा था। वह बिल्कुल कुचल–सा गया था,
मुक्केबाजी
की कला के धुरन्धर उस्ताद द्वारा हर कोण और हर दिशा से बरसाये जा रहे मुक्कों की
बाढ़ में डूब–सा गया था। उसके पाँव उखड़ गये, वह रस्सियों पर
जा गिरा, रेफरी ने उसे अलग किया और वह फिर से रस्सियों पर जा गिरा।
यह मुकाबला नहीं था। यह वध था, कत्लेआम था।
इनामी लड़ाइयों के अभ्यस्त दर्शकों के अलावा और कोई भी होता तो इस एक मिनट में ही
उसके भावावेगों ने उसे निचोड़ डाला होता। डैनी वाकई दिखा रहा था कि वह क्या कर सकता
है-यह एक जबर्दस्त प्रदर्शन था। दर्शक नतीजे को लेकर इतने आश्वस्त थे,
और
वे इतने एकतरफा और इतने उत्तेजित थे कि इस ओर उनका ध्यान ही नहीं गया कि मेक्सिकन
अब भी अपने पैरों पर खड़ा था। वे रिवेरा को भूल ही गये। डैनी के हिंसक आक्रमण में
वह इस कदर दबा हुआ था कि वे मुश्किल से ही उसे देख पा रहे थे। इस तरह एक मिनट
गुजरा, फिर दो मिनट। और जब रेफरी ने उन्हें अलग किया तभी दर्शकों को
मेक्सिकन की साफ झलक दिखायी दी। उसका होंठ कट गया था, उसकी नाक से खून
बह रहा था। जब वह मुड़ा और लड़खड़ाते हुए डैनी से गुत्थम–गुत्था हो गया तो रस्सियों
की रगड़ से उसकी पीठ पर पड़ी लाल धारियाँ दिखायी दीं जिनसे खून चुहचुहा रहा था।
लेकिन दर्शक जो नहीं देख सके वह यह था कि उसकी छाती धौंकनी की तरह नहीं चल रही थी
और उसकी आँखों में हमेशा की तरह ठण्डी आग थी। ट्रेनिंग कैम्प के क्रूर अखाड़े में
बहुत से उभरते हुए चैम्पियनों ने इस हिंसक आक्रमण का अभ्यास उस पर किया था। रोज के
आधे डालर से हफ्ते के पन्द्रह डालर पाने तक वह इसे झेलना बखूबी सीख गया था-अखाड़ा
एक सख्त स्कूल था, और उसने बहुत सख्ती से सबक सीखा था।
तभी वह अचम्भा हुआ। तेजी से घूमता, धुँधलाता घालमेल
अचानक थम गया। रिवेरा अकेला खड़ा था। डैनी, विश्वसनीय डैनी, चारों खाने चित
पड़ा था। उसके होश वापस लौटने की कोशिश कर रहे थे जिससे उसके शरीर में थरथराहट हो
रही थी। वह लड़खड़ाकर भहराया नहीं था, और न ही उसके घुटनों ने धीरे–धीरे जवाब
दे दिया था। रिवेरा के दाहिने हाथ के नीचे से उठे घूँसे ने उसे बीच हवा में अचानक
ढेर कर दिया था। रेफरी ने एक हाथ से रिवेरा को पीछे धकेला और धराशायी ग्लैडिएटर के
पास खड़े होकर सेकण्ड गिनने लगा। इनामी मुक्केबाजी देखनेवाले सीधे धराशायी कर
देनेवाले ऐेसे प्रहारों पर जमकर तालियाँ पीटते और शोर मचाते हैं। लेकिन इन दर्शकों
ने कोई हर्षध्वनि नहीं की। रिंग में जो हुआ, उसकी किसी को
जरा भी उम्मीद नहीं थी। वे तनावभरी खामोशी के बीच गिनती देखते रहे, और
खामोशाी के बीच राबर्टस का उल्लसित स्वर गूँज उठा :
“मैंने कहा था न, उसके दोनों हाथ चलते हैं।”
पाँचवें सेकण्ड पर डैनी ने करवट बदली और सात गिने जाने तक वह एक
घुटना जमीन पर टिकाकर बैठ चुका था। वह नौ गिने जाने के बाद और दस गिने जाने
के पहले उठ खड़ा होने के लिए तैयार था।
उसके घुटने के फर्श छोड़ते ही उसे “उठा” हुआ मान लिया जाता और उसी क्षण रिवेरा को
इस बात का हक मिल जाता कि वह फिर से उसे गिराने की कोशिश करे। रिवेरा कोई मौका
नहीं देना चाहता था। घुटना फर्श से अलग होते ही वह वार करेगा। वह डैनी के
इर्द–गिर्द घूम रहा था, लेकिन रेफरी दोनों के बीच घूमने लगा और रिवेरा जान गया कि वह बहुत
धीरे–धीरे गिनती कर रहा है। सारे ग्रिंगो उसके खिलाफ थे, यह रेफरी भी।
“नौ” पर रेफरी ने रिवेरा को पीछे की ओर तेज धक्का दिया। यह एकदम गलत
था, लेकिन इसने डैनी को उठने का मौका दे दिया। उसके चेहरे पर मुस्कान लौट
आयी। अपनी बाँहों से चेहरे और पेट को ढँके हुए, वह लड़खड़ाते हुए
बड़ी चतुराई से आकर रिवेरा से चिपट गया। खेल के नियमों के मुताबिक रेफरी को उसे अलग
करना चाहिए था, पर उसने नहीं किया, और डैनी जोंक की तरह चिपका रहा और हर
बीतते पल के साथ अपनी ताकत वापस पाता गया। राउण्ड का आखिरी मिनट तेजी से बीत रहा
था। अगर वह अन्त तक टिक गया तो उसे अपने कोने में पूरे एक मिनट का समय मिल जायेगा।
और वह अन्त तक टिका रहा-बदहवासी और बेहाली के बावजूद
मुस्कुराते हुए।
“क्या मुस्कान चिपकायी है, गिरती ही नहीं!” कोई जोर से चिल्लाया,
और
राहत महसूस कर रहे दर्शक जोर से हँस पड़े।
“सुअर का बच्चा, हाथ है या हथौड़ा,” डैनी
ने अपने कोने में ट्रेनर से हाँफते हुए कहा। उसके सहायक पागलों की तरह उसे पोंछने
और मालिश में जुटे थे।
दूसरे और तीसरे राउण्ड में कुछ खास नहीं हुआ। डैनी चालाक और घुटा हुआ
खिलाड़ी था। वह रिवेरा के मुक्कों से बचता और उन्हें रोकता रहा और किसी तरह बस
अखाड़े में जमा रहा। उसका सारा ध्यान पहले राउण्ड की सन्न कर देनेवाली चोट से उबरने
पर था। चौथे राउण्ड में वह फिर अपने रंग में आ चुका था। उसे तगड़ा झटका लगा था,
लेकिन
अपने अच्छे खाये–पिये शरीर की बदौलत उसकी शक्ति और ऊर्जा लौट आयी थी। लेकिन अब
उसने प्रतिद्वंद्वी पर एकदम से हावी होने का दाँव आजमाने की कोशिश नहीं की। यह
मेक्सिकन तो एकाएक टूट पड़नेवाला क्रुद्ध तातार साबित हुआ था।
डैनी ने मुक्केबाजी का अपना सारा कौशल झोंक दिया। दाँव–घात, तकनीकी
कुशलता और अनुभव के मामले में वह उस्ताद था, और हालाँकि वह
कोई जोरदार चोट नहीं कर पाया लेकिन उसने प्रतिद्वन्द्वी को बड़े योजनाबद्ध ढंग से
थकाना और कमजोर करना शुरू कर दिया। रिवेरा के एक के मुकाबले उसके तीन घूँसे निशाने
पर बैठते थे, लेकिन वे बस चोट पहुँचानेवाले थे, घातक नहीं। पर
ऐसी कई चोटें मिलकर घातक बन सकती थीं। वह इस दोहत्थे लड़ाके को अब पूरा मान दे रहा
था, जिसके दोनों मुक्कों में गजब की तेजी थी।
बचाव में रिवेरा ने प्रतिद्वन्द्वी को विचलित कर देनेवाले सीधे बाएँ
घूँसे का सहारा लिया। बार–बार, हर हमले के जवाब में, उसके
दाएँ हाथ का सीधा घूँसा डैनी के मुँह और नाक पर आकर लगता। लेकिन डैनी के तरकश में
बहुत से तीर थे। इसीलिए उसे भावी चैम्पियन माना जा रहा था। वह जब चाहे, लड़ने
की शैली बदल लेने में माहिर था। अब उसने नजदीक रहकर लड़ने की शैली अपनायी। इससे वह
सामनेवाले के सीधे बाएँ घूँसे से बच सकता था और अपनी सारी धूर्तता का बखूबी
इस्तेमाल कर सकता था। उसकी नई चाल पर दर्शक खुशी से पागल हो उठे और फिर उसने
फुर्ती से खुद को रिवेरा की पकड़ से अलग किया और नीचे से उठते हुए एक जबर्दस्त
घूँसा लगाया जिससे मेक्सिकन हवा में उछल गया और चारों खाने चित मैट पर गिर गया।
रिवेरा जल्दी ही उठ गया और एक घुटने पर टिककर गिनती के समय का पूरा फायदा उठाने की
कोशिश कर रहा था, हालाँकि उसका दिल कह रहा था कि रेफरी के सेकण्ड अब छोटे हो रहे हैं।
सातवें राउण्ड में, डैनी एक बार फिर अपना शैतानी इनसाइड
अपरकट लगाने में कामयाब रहा। इस बार रिवेरा गिरा नहीं, बस लड़खड़ा गया
लेकिन असहायता के उसी एक क्षण में डैनी ने एक और ताकतवर वार किया जिससे वह
रस्सियों के बीच से रिंग के बाहर बैठे अखबारवालों के ऊपर जा गिरा। उन्होंने उसे
हाथ लगाकर रिंग के चबूतरे पर वापस पहुँचा दिया। वहाँ, रस्सियों के
बाहर, वह एक घुटने पर इन्तजार कर रहा था और रेफरी तेजी से सेकण्ड गिने जा
रहा था। उसे झुककर रस्सियाँ पार करनी होंगी, और सामने डैनी
उसके इन्तजार में था। रेफरी ने न तो दखल दी, न डैनी को पीछे
धकेला।
दर्शक खुशी से बौराये जा रहे थे।
“मार दे, डैनी, मार दे इसे!” कोई जोर से चीखा।
बीसियों आवाजों ने फौरन इसे लपक लिया और थोड़ी ही देर में यह भेड़ियों
का युद्धनाद बन गया।
डैनी ने पूरी कोशिश की, लेकिन रिवेरा अप्रत्याशित ढंग से नौ के
बजाय आठ की गिनती पर ही रस्सियों के बीच से निकलकर उससे लिपट गया। अब रेफरी हरकत
में आया और उसे खींचकर अलग कर दिया ताकि उस पर वार किया जा सके। वह डैनी को हर वह
लाभ देने की कोशिश कर रहा था जो एक बेईमान रेफरी दे सकता है।
लेकिन रिवेरा टिका रहा, और उसके दिमाग की चकराहट दूर हो गयी।
सब के सब मिले हुए थे। ये सब घृणित ग्रिंगो थे और सबके सब बेईमान थे। और इस सबके
बीच उसके दिमाग में तस्वीरें कौंधती रहीं, चमकती रहीं-रेगिस्तान में
झिलमिलाती लम्बी रेल–लाइनेंय जनरल के सिपाही और अमेरिकी पुलिसिए, जेलें
और काल–कोठरियाँ, तालाबों के किनारे बेघर–बेरोजगारों की भीड़-रिओ ब्लांका और
हड़ताल के बाद की लम्बी यात्रा के तमाम तकलीफदेह और दर्दभरे मंजर उसकी आँखों के
सामने आ–जा रहे थे। और फिर उसने देखा देदीप्यमान और तेजस्वी महान लाल क्रान्ति को
अपने देश पर छाते हुए। इसके लिए जरूरी थी बन्दूकें, जो उसके सामने
थीं। हर घृणित चेहरा एक बन्दूक था। वह लड़ रहा था बन्दूकों के लिए। उसे लगा वह
बन्दूकों का जखीरा है। वह क्रान्ति है। वह सारे मेक्सिको के लिए लड़ रहा था।
रिवेरा पर दर्शकों का गुस्सा अब भड़कने लगा था। वह पिटकर हार क्यों
नहीं मानता, जिसके लिए उसे रखा गया है? उसे पिटना तो है ही, फिर वह इतना अड़ियलपना क्यों दिखा रहा
है? बहुत कम लोगों
की उसमें दिलचस्पी थी, और वे हर जुआड़ी भीड़ का वह छोटा–सा, पर निश्चित
हिस्सा थे जो दूर का दाँव खेलती है। वे भी मानते थे कि डैनी जीतेगा, पर
उन्होंने 4–10 और 1–3 के भाव से मेक्सिकन पर दाँव लगाया था। काफी पैसा इस बात पर भी लगा
था कि रिवेरा कितने राउण्ड तक टिक सकेगा। रिंग के बाहर इस बात पर धड़ाधड़ पैसे बटोरे
गये थे कि वह छह या सात राउण्ड पार नहीं कर पायेगा। इसके विजेता, खुशी–खुशी
अपना पैसा वसूल कर लेने के बाद अब सबके पसन्दीदा मुक्केबाज का हौसला बढ़ाने में जुट
गये थे।
रिवेरा हार मानने को तैयार नहीं था। पूरे आठवें राउण्ड के दौरान उसका
प्रतिद्वन्द्वी अपने घातक अपरकट को दोहराने की नाकाम कोशिश करता रहा। नवें राउण्ड
में, रिवेरा ने एक बार फिर दर्शकों को स्तब्ध कर दिया। डैनी उसे दबोचे हुए
था कि उसने एक तेज, फुर्तीली हरकत से उसकी पकड़ तोड़ी और दोनों शरीरों के बीच की संकरी जगह
में उसका दाहिना मुक्का कमर से एकदम ऊपर उठा। डैनी फर्श पर छितरा गया और रेफरी की
धीमी गिनती फिर उसका सहारा बनी। भीड़ भौचक थी। डैनी अपने ही दाँव से मात खा रहा था।
उसका प्रसिद्ध राइट अपरकट उसी पर आजमाया गया था। “नौ” पर उसके उठने पर रिवेरा ने
वार करने की कोशिश नहीं की। रेफरी ऐसा करने का रास्ता रोके हुए था, हालाँकि
जब हालात उलट थे और रिवेरा उठना चाह रहा था तो वह किनारे खड़ा था।
दसवें राउण्ड में रिवेरा ने दो बार राइट–अपरकट जड़ा, कमर
से उठता हुआ मुक्का सीधे प्रतिद्वन्द्वी की ठोड़ी पर। डैनी बदहवास हो गया। मुस्कान
अब भी उसके चेहरे पर चिपकी थी, लेकिन वह फिर हावी होने की कोशिश में
रिवेरा पर झपटने लगा। वह बेतहाशा मुक्कों की बौछार कर रहा था, पर
रिवेरा को नुकसान नहीं पहुँचा पा रहा था जबकि उसकी तमाम फूं–फां और चकरघिन्नी नाच
के बीच रिवेरा ने उसे एक के बाद एक, तीन बार ढेर कर दिया। डैनी अब इतनी
जल्दी चोट से उबर नहीं पा रहा था और ग्यारहवें राउण्ड तक उसकी दशा गम्भीर हो गयी।
लेकिन तब से लेकर चौदहवें राउण्ड तक उसने अपने कैरियर का बेहतरीन प्रदर्शन किया।
वह बचता और मुक्के रोकता रहा, खुद बड़ी किफायतशारी से मुक्के चलाये और
अपनी ताकत फिर से हासिल करने की कोशिश करता रहा। और इसके साथ ही वह जमकर ‘फाउल’
खेला, जिसमें हर कामयाब मुक्केबाज माहिर होता है। उसने हर चाल, हर
तिकड़म का इस्तेमाल किया। कभी पकड़ने के दौरान इस तरह धक्का मारना जैसे अनजाने में
हुआ हो, कभी रिवेरा का दस्ताना अपनी बाँह और शरीर के बीच दबा लेना तो कभी
अपना दस्ताना इस तरह रिवेरा के मुँह पर दबाना कि वह साँस न ले सके। अकसर, उससे
चिपटने के दौरान अपने कटे और मुस्कुराते होंठो के बीच से फुफकारते हुए वह रिवेरा
के कानों में ऐसी घटिया और अपमानजनक बातें कहता था जिन्हें बयान नहीं किया जा सकता।
रेफरी से लेकर दर्शकों तक, हर कोई डैनी के साथ था और डैनी की मदद
कर रहा था। और वे जानते थे कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है। इस अनजान छुपे
रुस्तम से पछाड़ खाये डैनी की सारी उम्मीदें एक जबर्दस्त घूँसे पर टिकी थीं। कभी वह
रिवेरा को वार करने का मौका देता, कभी लड़खड़ाने का नाटक करता, कभी
जानबूझकर गलती करता, उसे करीब आने के लिए ललचाता-वह बस एक मौके की ताक में था कि अपनी
पूरी ताकत लगाकर ऐसा घूँसा जड़ सके जिससे पासा पलट जाये। इसके बाद, वह
ताबड़तोड़ दाएँ और बाएँ मुक्के लगा सकता था, एक सौर जालिका पर और एक जबड़े पर,
जैसाकि
उससे पहले एक महान मुक्केबाज ने किया था। वह ऐसा कर सकता था, क्योंकि
वह इस बात के लिए मशहूर था कि जब तक वह अपने पैरों पर टिका रहता था, तब
तक उसकी बाँहों में भी वार करने की ताकत रहती थी।
रिवेरा के सहायक राउण्ड के बीच के अन्तराल में उसका बहुत ही कम ख्याल
रख रहे थे। वे तौलिए चलाने का दिखावा तो करते थे लेकिन इससे हाँफते रिवेरा के
फेफड़ों में बहुत कम हवा आती थी। स्पाइडर हैगर्टी उसे सलाह देता था, लेकिन
रिवेरा जानता था कि यह सलाह गलत होती थी। हर कोई उसके खिलाफ था। वह कपटियों से
घिरा हुआ था। चौदहवें राउण्ड में उसने फिर डैनी को धूल चटाई और रेफरी की गिनती के
दौरान चुपचाप विश्राम की मुद्रा में खड़ा रहा। पिछले कुछ समय से रिवेरा का ध्यान
दूसरे कोने में चल रही खुसर–पुसर की ओर भी था। उसने माइकल केली को राबर्ट्स के पास
जाते और झुककर फुसफुसाती आवाज में कुछ कहते देखा। रेगिस्तानी इलाके में पले रिवेरा
के कान बिल्ली जैसे तेज थे और बातचीत के कुछ टुकड़े उसने सुन लिए थे। वह और सुनना
चाहता था, इसलिए जब उसका प्रतिद्वंद्वी उठा तो वह लड़ते–लड़ते उसे दूसरे कोने में
ले आया और उससे चिपटकर रस्सियों से जा लगा।
“करना ही पड़ेगा,” उसने माइकल को कहते सुना और राबर्ट्स
ने सिर हिलाया।
“डैनी को जीतना ही होगा-मेरा तो दिवाला निकल जायेगा-मैंने
बेहिसाब पैसा लगा रखा है-मेरा अपना पैसा। अगर वह पन्द्रहवाँ
राउण्ड पार कर गया तो मैं गया काम से! लड़का तुम्हारी बात मानेगा-समझाओ
उसे।”
और इसके बाद रिवेरा की आँखों में और कोई दृश्य नहीं कौंधा। वे उसका
सौदा कर रहे थे। एक बार फिर उसने डैनी को ढेर किया और दोनों बाजू लटकाये आराम से
खड़ा रहा। राबर्ट्स अपनी सीट से उठा।
“बस निपट गया,” उसने कहा। “अपने कोने में जाओ।”
वह अधिकारपूर्वक बोला था, जिस लहजे में वह अखाड़े में रिवेरा से
अकसर ही बोलता था। लेकिन रिवेरा ने उसे नफरत से देखा और डैनी के उठने का इन्तजार
करता रहा। एक मिनट के अन्तराल में प्रमोटर केली रिवेरा के पास आया।
“हार जा तू, समझा,” उसने तीखी,
पर
धीमी आवाज में कहा। “तुझे हारना ही होगा, रिवेरा। मेरी बात मान, मैं
तेरी तकदीर बदल दूँगा। मैं तुझे अगली बार डैनी को पटरा कर लेने दूँगा। पर यहाँ
तुझे चित होना पड़ेगा।”
रिवेरा ने आँखों से यह दिखा दिया कि उसने सुन लिया है, लेकिन
उसने सहमति या असहमति का कोई संकेत नहीं दिया।
“तू बोलता क्यों नहीं?”
केली
ने गुस्से से पूछा।
“तू हर हाल में हारेगा,” स्पाइडर हैगर्टी ने बीच में जोड़ा।
“रेफरी तुझे जीतने नहीं देगा। केली की बात सुन और लम्बलेट हो जा।”
“इस बार छोड़ दे, मेरे बच्चे,” केली ने बड़ी
आजिजी से कहा। “मैं तुझे चैम्पियनशिप तक पहुँचा दूँगा।”
रिवेरा ने जवाब नहीं दिया।
“मैं वाकई ऐसा करूँगा;
अभी मेरी मदद कर दे, बच्चे।”
घण्टा बजते ही रिवेरा को लगा कि कुछ होनेवाला है। दर्शकों को कुछ पता
नहीं लगा। जो भी होना था, वह रिंग के भीतर था और बहुत करीब था।
डैनी का पहलेवाला यकीन जैसे लौट आया था। जिस आत्मविश्वास से वह उसकी ओर बढ़ा उससे
रिवेरा डर गया। कोई चाल चली जानेवाली थी। डैनी झपटा, लेकिन रिवेरा ने
भिड़ने से इनकार कर दिया। वह किनारे हट गया। सामनेवाला उसे दबोचना चाहता था। उसकी
चाल के लिए यह किसी रूप में जरूरी था। रिवेरा पीछे हटता और गोल दायरे में घूमकर
अलग हटता रहा, लेकिन वह जानता था कि देर–सबेर वह पकड़ और फिर वह चाल आनी ही है। कोई
चारा न देख उसने तय किया कि वह खुद ही इसका मौका देगा। अगली बार डैनी के झपटने पर
उसने ऐसा दिखाया मानो पकड़ना चाहता हो। इसके बजाय, आखिरी पल में,
ठीक
उस वक्त जब उनके शरीर एक–दूसरे से टकराते, रिवेरा फुर्ती से उछलकर पीछे हट गया।
और उसी पल डैनी के कोने से ‘फाउल–फाउल’ का शोर उठा। रिवेरा ने उन्हें चकमा दे दिया
था। रेफरी असमंजस में रुक गया। पर उसके होंठों पर थरथराता फैसला सुनाया नहीं गया
क्योंकि दर्शक दीर्घा से किसी लड़के की तीखी आवाज गूँज उठी, “कमाल कर दिया!”
डैनी ने अब खुलेआम रिवेरा को गाली बकी और उसे लड़ने के लिए मजबूर करने
की कोशिश की, पर रिवेरा ने थिरकते हुए उससे दूरी बनाये रखी। रिवेरा ने यह भी मन
बना लिया कि वह शरीर पर कोई वार नहीं करेगा। ऐसा करके वह जीतने का आधा मौका तो ऐसे
ही गँवा दे रहा था, लेकिन वह जानता था कि अगर उसे जीतना है तो उसके पास बस दूर रहकर लड़ने
का ही मौका है। जरा–सा मौका मिलते ही वे उसे फाउल करार देंगे। डैनी ने अब हर तरह
की सावधानी ताक पर धर दी। दो राउण्ड तक वह लड़के पर झपटता रहा, उसे
ठोंकता रहा जो उसके करीब आने की हिम्मत नहीं कर रहा था। रिवेरा पर बार–बार चोटें
पड़ रही थीं;
उसने डैनी की उस खतरनाक पकड़ से बचने के लिए दर्जनों वार झेले। डैनी की इस शानदार
वापसी ने दर्शकों को दीवाना कर दिया। लोग अपनी जगहों पर खड़े हो गये थे। उन्हें कुछ
समझ नहीं आ रहा था। वे बस यही देख पा रहे थे कि आखिरकार उनका प्रिय खिलाड़ी जीत रहा
था।
“तू लड़ता क्यों नहीं?”
वे
नफरतबुझे लहजे में रिवेरा पर चिल्ला रहे थे।
“ओय पीली चमड़ीवाले!” “लड़ पिल्ले, लड़!” “मार डाल
साले को, डैनी! मार इसे!” “अब वो तेरा है! मार साले को!”
पूरे स्टेडियम में, रिवेरा अकेला इनसान था जिसके होशोहवास
काबू में थे। मिजाज में वह उन सबसे गर्म था; लेकिन वह इतनी बार इससे कहीं ज्यादा गर्म हालात से गुजर चुका था कि
दस हजार कण्ठों से फूटता और एक के बाद एक लहरों की तरह चढ़ता सामूहिक उन्माद उसके
लिए गर्मियों की ढलती शाम की सुहानी ठण्डक से ज्यादा कुछ नहीं था।
डैनी ने सत्रहवें राउण्ड में भी घूँसों की बौछार जारी रखी। एक जोरदार
वार खाकर रिवेरा गिरते–गिरते बचा; वह
झूल–सा गया, उसके बाजू बेजान से लटक गये और वह लड़खड़ाता हुआ पीछे हटा। डैनी ने
सोचा, यही मौका है। लड़का अब उसकी दया पर था। रिवेरा ने इस स्वांग से उसे
एकदम असावधान कर दिया और फिर सीधे मुँह पर एक करारा मुक्का जड़ दिया। डैनी पसर गया।
जब वह उठा तो रिवेरा ने गर्दन और जबड़े पर दाहिने हाथ के घूँसे से उसे फिर ढेर कर
दिया। तीन बार यही चीज दोहराई गयी। किसी भी रेफरी के लिए इन मुक्कों को ‘फाउल’
घोषित करना नामुमकिन था।
“अरे बिल! कुछ करो बिल!” केली रेफरी से गिड़गिड़ाया।
“मैं कुछ नहीं कर सकता” उसने मुँह लटकाकर जवाब दिया। “वह कोई मौका ही
नहीं देता।”
बुरी तरह पिटा हुआ डैनी बहादुरी से उठने की कोशिश करता रहा। केली और
रिंग के पास खड़े दूसरे लोग इसे रोकने के लिए पुलिस को आवाज देने लगे, हालाँकि
डैनी का कोना हार मानने को तैयार नहीं था। रिवेरा ने मोटे पुलिस कप्तान को अटपटे
ढंग से रस्सियों से होकर ऊपर आने की कोशिश करते देखा। वह ठीक से समझ नहीं पा रहा
था कि इसका क्या मतलब है। गिंग्रो लोगों के इस खेल में धोखाधड़ी के कितने ही तरीके
थे। डैनी अब अपने पैरों पर था और उसके सामने असहाय और चकराया हुआ–सा लड़खड़ा रहा था।
रेफरी और कप्तान रिवेरा को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ा ही रहे थे कि उसने आखिरी वार किया।
मुकाबला रोकने की अब कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि डैनी अब उठा नहीं।
“गिनो!” रिवेरा भर्राई आवाज में रेफरी पर चीखा।
गिनती पूरी हो जाने पर डैनी के सहायक उसे बटोरकर उसके कोने में ले
गये।
“कौन जीता?”
रिवेरा
ने जोर से पूछा।
रेफरी ने हिचकिचाते हुए उसका हाथ थामा और ऊपर उठा दिया।
रिवेरा को किसी ने बधाई नहीं दी। वह अकेला चलकर अपने कोने में आया,
जहाँ
उसके सहायकों ने अब तक उसका स्टूल नहीं रखा था। वह रस्सियों के सहारे पीछे झुक गया
और अपनी आँखों की नफरत उन पर उड़ेल दी, फिर उसकी नफरतभरी नजर उसके चारों ओर
घूम गयी, उन सारे के सारे दस हजार ग्रिंगो को उसने चपेट में ले लिया। उसके
घुटने काँप रहे थे और वह बेहद थकान के कारण सुबक रहा था। मितली और चकराहट के बीच
उसकी आँखों के सामने वे घृणित चेहरे आगे–पीछे तैर रहे थे। फिर उसे याद आया कि ये
बन्दूकें थीं। ये बन्दूकें उसकी थीं। क्रान्ति अब आगे बढ़ सकती थी।
Jack London's Story - The Mexican
I
NOBODY knew his history-- they of the Junta least of all. He
was their "little mystery," their "big patriot," and in his
way he worked as hard for the coming Mexican Revolution as did they. They were
tardy in recognizing this, for not one of the Junta liked him. The day he first
drifted into their crowded, busy rooms, they all suspected him of being a
spy--one of the bought tools of the Diaz secret service. Too many of the
comrades were in civil an military prisons scattered over the United States,
and others of them, in irons, were even then being taken across the border to
be lined up against adobe walls and shot.
At the first sight the boy did not impress them favorably.
Boy he was, not more than eighteen and not over large for his years. He
announced that he was Felipe Rivera, and that it was his wish to work for the
Revolution. That was all--not a wasted word, no further explanation. He stood
waiting. There was no smile on his lips, no geniality in his eyes. Big dashing
Paulino Vera felt an inward shudder. Here was something forbidding, terrible,
inscrutable. There was something venomous and snakelike in the boy's black
eyes. They burned like cold fire, as with a vast, concentrated bitterness. He
flashed them from the faces of the conspirators to the typewriter which little
Mrs. Sethby was industriously operating. His eyes rested on hers but an
instant--she had chanced to look up--and she, too, sensed the nameless
something that made her pause. She was compelled to read back in order to
regain the swing of the letter she was writing.
Paulino Vera looked questioningly at Arrellano and Ramos,
and questioningly they looked back and to each other. The indecision of doubt
brooded in their eyes. This slender boy was the Unknown, vested with all the
menace of the Unknown. He was unrecognizable, something quite beyond the ken of
honest, ordinary revolutionists whose fiercest hatred for Diaz and his tyranny
after all was only that of honest and ordinary patriots. Here was something
else, they knew not what. But Vera, always the most impulsive, the quickest to
act, stepped into the breach.
"Very well," he said coldly. "You say you
want to work for the Revolution. Take off your coat. Hang it over there. I will
show you, come--where are the buckets and cloths. The floor is dirty. You will
begin by scrubbing it, and by scrubbing the floors of the other rooms. The
spittoons need to be cleaned. Then there are the windows."
"Is it for the Revolution?" the boy asked.
"It is for the Revolution," Vera answered.
Rivera looked cold suspicion at all of them, then proceeded
to take off his coat.
"It is well," he said.
And nothing more. Day after day he came to his
work--sweeping, scrubbing, cleaning. He emptied the ashes from the stoves,
brought up the coal and kindling, and lighted the fires before the most
energetic one of them was at his desk.
"Can I sleep here?" he asked once.
Ah, ha! So that was it--the hand of Diaz showing through! To
sleep in the rooms of the Junta meant access to their secrets, to the lists of
names, to the addresses of comrades down on Mexican soil. The request was
denied, and Rivera never spoke of it again. He slept they knew not where, and
ate they knew not where nor how. Once, Arrellano offered him a couple of
dollars. Rivera declined the money with a shake of the head. When Vera joined
in and tried to press it upon him, he said:
"I am working for the Revolution."
It takes money to raise a modern revolution. and always the
Junta was pressed. The members starved and toiled, and the longest day was none
too long, and yet there were times when it appeared as if the Revolution stood
or fell on no more than the matter of a few dollars. Once, the first time, when
the rent of the house was two months behind and the landlord was threatening
dispossession, it was Felipe Rivera, the scrub-boy in the poor, cheap clothes,
worn and threadbare, who laid sixty dollars in gold on May Sethby's desk. There
were other times. Three hundred letters, clicked out on the busy typewriters
(appeals for assistance, for sanctions from the organized labor groups,
requests for square news deals to the editors of newspapers, protests against
the high-handed treatment of revolutionists by the United States courts), lay
unmailed, awaiting postage. Vera's watch had disappeared--the old-fashioned
gold repeater that had been his father's. Likewise had gone the plain gold band
from May Setbby's third finger. Things were desperate. Ramos and Arrellano
pulled their long mustaches in despair. The letters must go off, and the Post
Office allowed no credit to purchasers of stamps. Then it was that Rivera put
on his hat and went out. When he came back he laid a thousand two-cent stamps
on May Sethby's desk.
"I wonder if it is the cursed gold of Diaz?" said
Vera to the comrades.
They elevated their brows and could not decide. And Felipe
Rivera, the scrubber for the Revolution, continued, as occasion arose, to lay
down gold and silver for the Junta's use.
And still they could not bring themselves to like him. They
did not know him. His ways were not theirs. He gave no confidences. He repelled
all probing. Youth that he was, they could never nerve themselves to dare to
question him.
"A great and lonely spirit, perhaps, I do not know, I
do not know," Arrellano said helplessly.
"He is not human," said Ramos.
"His soul has been seared," said May Sethby.
"Light and laughter have been burned out of him. He is like one dead, and
yet he is fearfully alive."
"He has been through hell," said Vera. "No
man could look like that who has not been through hell--and he is only a
boy."
Yet they could not like him. He never talked, never
inquired, never suggested. He would stand listening, expressionless, a thing
dead, save for his eyes, coldly burning, while their talk of the Revolution ran
high and warm. From face to face and speaker to speaker his eyes would turn,
boring like gimlets of incandescent ice, disconcerting and perturbing.
"He is no spy," Vera confided to May Sethby.
"He is a patriot--mark me, the greatest patriot of us all. I know it, I
feel it, here in my heart and head I feel it. But him I know not at all."
"He has a bad temper," said May Sethby.
"I know," said Vera, with a shudder. "He has
looked at me with those eyes of his. They do not love; they threaten; they are
savage as a wild tiger's. I know, if I should prove unfaithful to the Cause,
that he would kill me. He has no heart. He is pitiless as steel, keen and cold
as frost. He is like moonshine in a winter night when a man freezes to death on
some lonely mountain top. I am not afraid of Diaz and all his killers; but this
boy, of him am I afraid. I tell you true. I am afraid. He is the breath of
death."
Yet Vera it was who persuaded the others to give the first
trust to Rivera. The line of communication between Los Angeles and Lower
California had broken down. Three of the comrades had dug their own graves and
been shot into them. Two more were United States prisoners in Los Angeles. Juan
Alvarado, the Federal commander, was a monster. All their plans did he
checkmate. They could no longer gain access to the active revolutionists, and
the incipient ones, in Lower California.
Young Rivera was given his instructions and dispatched
south. When he returned, the line of communication was reestablished, and Juan
Alvarado was dead. He had been found in bed, a knife hilt-deep in his breast.
This had exceeded Rivera's instructions, but they of the Junta knew the times
of his movements. They did not ask him. He said nothing. But they looked at one
another and conjectured.
"I have told you," said Vera. "Diaz has more
to fear from this youth than from any man. He is implacable. He is the hand of
God."
The bad temper, mentioned by May Sethby, and sensed by them
all, was evidenced by physical proofs. Now he appeared with a cut lip, a
blackened cheek, or a swollen ear. It was patent that he brawled, somewhere in
that outside world where he ate and slept, gained money, and moved in ways unknown
to them. As the time passed, he had come to set type for the little
revolutionary sheet they published weekly. There were occasions when he was
unable to set type, when his knuckles were bruised and battered, when his
thumbs were injured and helpless, when one arm or the other hung wearily at his
side while his face was drawn with unspoken pain.
"A wastrel," said Arrellano.
"A frequenter of low places," said Ramos.
"But where does he get the money?" Vera demanded.
"Only to-day, just now, have I learned that he paid the bill for white
paper--one hundred and forty dollars."
"There are his absences," said May Sethby.
"He never explains them."
"We should set a spy upon him," Ramos propounded.
"I should not care to be that spy," said Vera.
"I fear you would never see me again, save to bury me. He has a terrible
passion. Not even God would he permit to stand between him and the way of his
passion."
"I feel like a child before him," Ramos confessed.
"To me he is power--he is the primitive, the wild wolf,
the striking rattlesnake, the stinging centipede," said Arrellano.
"He is the Revolution incarnate," said Vera.
"He is the flame and the spirit of it, the insatiable cry for vengeance
that makes no cry but that slays noiselessly. He is a destroying angel in moving
through the still watches of the night."
"I could weep over him," said May Sethby. "He
knows nobody. He hates all people. Us he tolerates, for we are the way of his
desire. He is alone. . . . lonely." Her voice broke in a half sob and
there was dimness in her eyes.
Rivera's ways and times were truly mysterious. There were
periods when they did not see him for a week at a time. Once, he was away a
month. These occasions were always capped by his return, when, without
advertisement or speech, he laid gold coins on May Sethby's desk. Again, for
days and weeks, he spent all his time with the Junta. And yet again, for
irregular periods, he would disappear through the heart of each day, from early
morning until late afternoon. At such times he came early and remained late.
Arrellano had found him at midnight, setting type with fresh swollen knuckles,
or mayhap it was his lip, new-split, that still bled.
II
The time of the crisis approached. Whether or not the
Revolution would be depended upon the Junta, and the Junta was hard-pressed.
The need for money was greater than ever before, while money was harder to get.
Patriots had given their last cent and now could give no more. Section gang
laborers-fugitive peons from Mexico--were contributing half their scanty wages.
But more than that was needed. The heart-breaking, conspiring, undermining toil
of years approached fruition. The time was ripe. The Revolution hung on the
balance. One shove more, one last heroic effort, and it would tremble across
the scales to victory. They knew their Mexico. Once started, the Revolution
would take care of itself. The whole Diaz machine would go down like a house of
cards. The border was ready to rise. One Yankee, with a hundred I.W.W. men,
waited the word to cross over the border and begin the conquest of Lower
California. But he needed guns. And clear across to the Atlantic, the Junta in
touch with them all and all of them needing guns, mere adventurers, soldiers of
fortune, bandits, disgruntled American union men, socialists, anarchists,
rough-necks, Mexican exiles, peons escaped from bondage, whipped miners from
the bull-pens of Coeur d'Alene and Colorado who desired only the more
vindictively to fight--all the flotsam and jetsam of wild spirits from the
madly complicated modern world. And it was guns and ammunition, ammunition and
guns--the unceasing and eternal cry.
Fling this heterogeneous, bankrupt, vindictive mass across
the border, and the Revolution was on. The custom house, the northern ports of
entry, would be captured. Diaz could not resist. He dared not throw the weight
of his armies against them, for he must hold the south. And through the south
the flame would spread despite. The people would rise. The defenses of city
after city would crumple up. State after state would totter down. And at last,
from every side, the victorious armies of the Revolution would close in on the
City of Mexico itself, Diaz's last stronghold.
But the money. They had the men, impatient and urgent, who
would use the guns. They knew the traders who would sell and deliver the guns.
But to culture the Revolution thus far had exhausted the Junta. The last dollar
had been spent, the last resource and the last starving patriot milked dry, and
the great adventure still trembled on the scales. Guns and ammunition! The
ragged battalions must be armed. But how? Ramos lamented his confiscated
estates. Arrellano wailed the spendthriftness of his youth. May Sethby wondered
if it would have been different had they of the Junta been more economical in
the past.
"To think that the freedom of Mexico should stand or
fall on a few paltry thousands of dollars," said Paulino Vera.
Despair was in all their faces. Jose Amarillo, their last
hope, a recent convert, who had promised money, had been apprehended at his
hacienda in Chihuahua and shot against his own stable wall. The news had just
come through.
Rivera, on his knees, scrubbing, looked up, with suspended
brush, his bare arms flecked with soapy, dirty water.
"Will five thousand do it?" he asked.
They looked their amazement. Vera nodded and swallowed. He
could not speak, but he was on the instant invested with a vast faith.
"Order the guns," Rivera said, and thereupon was
guilty of the longest flow of words they had ever heard him utter. "The
time is short. In three weeks I shall bring you the five thousand. It is well.
The weather will be warmer for those who fight. Also, it is the best I can
do."
Vera fought his faith. It was incredible. Too many fond
hopes had been shattered since he had begun to play the revolution game. He
believed this threadbare scrubber of the Revolution, and yet he dared not
believe.
"You are crazy," he said.
"In three weeks," said Rivera. "Order the
guns."
He got up, rolled down his sleeves, and put on his coat.
"Order the guns," he said.
"I am going now."
III
After hurrying and scurrying, much telephoning and bad
language, a night session was held in Kelly's office. Kelly was rushed with
business; also, he was unlucky. He had brought Danny Ward out from New York,
arranged the fight for him with Billy Carthey, the date was three weeks away,
and for two days now, carefully concealed from the sporting writers, Carthey
had been lying up, badly injured. There was no one to take his place. Kelly had
been burning the wires East to every eligible lightweight, but they were tied
up with dates and contracts. And now hope had revived, though faintly.
"You've got a hell of a nerve," Kelly addressed
Rivera, after one look, as soon as they got together.
Hate that was malignant was in Rivera's eyes, but his face
remained impassive.
"I can lick Ward," was all he said.
"How do you know? Ever see him fight?"
Rivera shook his head.
"He can beat you up with one hand and both eyes
closed."
Rivera shrugged his shoulders.
"Haven't you got anything to say?" the fight
promoter snarled.
"I can lick him."
"Who'd you ever fight, anyway!" Michael Kelly
demanded. Michael was the promotor's brother, and ran the Yellowstone pool
rooms where he made goodly sums on the fight game.
Rivera favored him with a bitter, unanswering stare.
The promoter's secretary, a distinctively sporty young man,
sneered audibly.
"Well, you know Roberts," Kelly broke the hostile
silence. "He ought to be here. I've sent for him. Sit down and wait,
though f rom the looks of you, you haven't got a chance. I can't throw the
public down with a bum fight. Ringside seats are selling at fifteen dollars,
you know that."
When Roberts arrived, it was patent that he was mildly
drunk. He was a tall, lean, slack-jointed individual, and his walk, like his
talk, was a smooth and languid drawl.
Kelly went straight to the point.
"Look here, Roberts, you've been bragging you
discovered this little Mexican. You know Carthey's broke his arm. Well, this
little yellow streak has the gall to blow in to-day and say he'll take
Carthey's place. What about it?"
"It's all right, Kelly," came the slow response.
"He can put up a fight."
"I suppose you'll be sayin' next that he can lick
Ward," Kelly snapped.
Roberts considered judicially.
"No, I won't say that. Ward's a top-notcher and a ring
general. But he can't hashhouse Rivera in short order. I know Rivera. Nobody
can get his goat. He ain't got a goat that I could ever discover. And he's a
two-handed fighter. He can throw in the sleep-makers from any position."
"Never mind that. What kind of a show can he put up?
You've been conditioning and training fighters all your life. I take off my hat
to your judgment. Can he give the public a run for its money?"
"He sure can, and he'll worry Ward a mighty heap on top
of it. You don't know that boy. I do. I discovered him. He ain't got a goat.
He's a devil. He's a wizzy-wooz if anybody should ask you. He'll make Ward sit
up with a show of local talent that'll make the rest of you sit up. I won't say
he'll lick Ward, but he'll put up such a show that you'll all know he's a
comer."
"All right." Kelly turned to his secretary.
"Ring up Ward. I warned him to show up if I thought it worth while. He's
right across at the Yellowstone, throwin' chests and doing the popular."
Kelly turned back to the conditioner. "Have a
drink?"
Roberts sipped his highball and unburdened himself.
"Never told you how I discovered the little cuss. It
was a couple of years ago he showed up out at the quarters. I was getting
Prayne ready for his fight with Delaney. Prayne's wicked. He ain't got a tickle
of mercy in his make-up. I chopped up his pardner's something cruel, and I
couldn't find a willing boy that'd work with him. I'd noticed this little
starved Mexican kid hanging around, and I was desperate. So I grabbed him,
shoved on the gloves and put him in. He was tougher'n rawhide, but weak. And he
didn't know the first letter in the alphabet of boxing. Prayne chopped him to
ribbons. But he hung on for two sickening rounds, when he fainted. Starvation, that
was all. Battered! You couldn't have recognized him. I gave him half a dollar
and a square meal. You oughta seen him wolf it down. He hadn't had the end of a
bite for a couple of days. That's the end of him, thinks I. But next day he
showed up, stiff an' sore, ready for another half and a square meal. And he
done better as time went by. Just a born fighter, and tough beyond belief. He
hasn't a heart. He's a piece of ice. And he never talked eleven words in a
string since I know him. He saws wood and does his work."
"I've seen 'm," the secretary said. "He's
worked a lot for you."
"All the big little fellows has tried out on him,"
Roberts answered. "And he's learned from 'em. I've seen some of them he
could lick. But his heart wasn't in it. I reckoned he never liked the game. He
seemed to act that way."
"He's been fighting some before the little clubs the
last few months," Kelly said.
"Sure. But I don't know what struck 'm. All of a sudden
his heart got into it. He just went out like a streak and cleaned up all the
little local fellows. Seemed to want the money, and he's won a bit, though his
clothes don't look it. He's peculiar. Nobody knows his business. Nobody knows
how he spends his time. Even when he's on the job, he plumb up and disappears
most of each day soon as his work is done. Sometimes he just blows away for
weeks at a time. But he don't take advice. There's a fortune in it for the
fellow that gets the job of managin' him, only he won't consider it. And you
watch him hold out for the cash money when you get down to terms."
It was at this stage that Danny Ward arrived. Quite a party
it was. His manager and trainer were with him, and he breezed in like a gusty
draught of geniality, good-nature, and all-conqueringness. Greetings flew
about, a joke here, a retort there, a smile or a laugh for everybody. Yet it
was his way, and only partly sincere. He was a good actor, and he had found
geniality a most valuable asset in the game of getting on in the world. But
down underneath he was the deliberate, cold-blooded fighter and business man.
The rest was a mask. Those who knew him or trafficked with him said that when
it came to brass tacks he was Danny-on-the-Spot. He was invariably present at
all business discussions, and it was urged by some that his manager was a blind
whose only function was to serve as Danny's mouth-piece.
Rivera's way was different. Indian blood, as well as
Spanish, was in his veins, and he sat back in a corner, silent, immobile, only
his black eyes passing from face to face and noting everything.
"So that's the guy," Danny said, running an
appraising eye over his proposed antagonist. "How de do, old chap."
Rivera's eyes burned venomously, but he made no sign of
acknowledgment. He disliked all Gringos, but this Gringo he hated with an immediacy
that was unusual even in him.
"Gawd!" Danny protested facetiously to the
promoter. "You ain't expectin' me to fight a deef mute." When the
laughter subsided, he made another hit. "Los Angeles must be on the dink
when this is the best you can scare up. What kindergarten did you get 'm
from?"
"He's a good little boy, Danny, take it from me,"
Roberts defended. "Not as easy as he looks."
"And half the house is sold already," Kelly
pleaded. "You'll have to take 'm on, Danny. It is the best we can
do."
Danny ran another careless and unflattering glance over
Rivera and sighed.
"I gotta be easy with 'm, I guess. If only he don't
blow up."
Roberts snorted.
"You gotta be careful," Danny's manager warned.
"No taking chances with a dub that's likely to sneak a lucky one
across."
"Oh, I'll be careful all right, all right," Danny
smiled. "I'll get in at the start an' nurse 'im along for the dear
public's sake. What d' ye say to fifteen rounds, Kelly--an' then the hay for
him?"
"That'll do," was the answer. "As long as you
make it realistic."
"Then let's get down to biz." Danny paused and
calculated. "Of course, sixty-five per cent of the gate receipts, same as
with Carthey. But the split'll be different. Eighty will just about suit
me." And to his manager, "That right?"
The manager nodded.
"Here, you, did you get that?" Kelly asked Rivera.
Rivera shook his head.
"Well, it is this way," Kelly exposited. "The
purse'll be sixty-five per cent of the gate receipts. You're a dub, and an
unknown. You and Danny split, twenty per cent goin' to you, an' eighty to
Danny. That's fair, isn't it, Roberts?"
"Very fair, Rivera," Roberts agreed.
"You see, you ain't got a reputation yet."
"What will sixty-five per cent of the gate receipts
be?" Rivera demanded.
"Oh, maybe five thousand, maybe as high as eight
thousand," Danny broke in to explain. "Something like that. Your
share'll come to something like a thousand or sixteen hundred. Pretty good for
takin' a licking from a guy with my reputation. What d' ye say?"
Then Rivera took their breaths away. "Winner takes
all," he said with finality.
A dead silence prevailed.
"It's like candy from a baby," Danny's manager
proclaimed.
Danny shook his head.
"I've been in the game too long," he explained.
"I'm not casting reflections on the referee, or the
present company. I'm not sayin' nothing about book-makers an' frame-ups that
sometimes happen. But what I do say is that it's poor business for a fighter
like me. I play safe. There's no tellin'. Mebbe I break my arm, eh? Or some guy
slips me a bunch of dope?" He shook his head solemnly. "Win or lose,
eighty is my split. What d' ye say, Mexican?"
Rivera shook his head.
Danny exploded. He was getting down to brass tacks now.
"Why, you dirty little greaser! I've a mind to knock
your block off right now."
Roberts drawled his body to interposition between
hostilities.
"Winner takes all," Rivera repeated sullenly.
"Why do you stand out that way?" Danny asked.
"I can lick you," was the straight answer.
Danny half started to take off his coat. But, as his manager
knew, it was a grand stand play. The coat did not come off, and Danny allowed
himself to be placated by the group. Everybody sympathized with him. Rivera
stood alone.
"Look here, you little fool," Kelly took up the
argument. "You're nobody. We know what you ve been doing the last few
months--putting away little local fighters. But Danny is class. His next fight
after this will be for the championship. And you're unknown. Nobody ever heard
of you out of Los Angeles."
"They will," Rivera answered with a shrug,
"after this fight."
"You think for a second you can lick me?" Danny
blurted in.
Rivera nodded.
"Oh, come; listen to reason," Kelly pleaded.
"Think of the advertising."
"I want the money," was Rivera's answer.
"You couldn't win from me in a thousand years,"
Danny assured him.
"Then what are you holdin' out for?" Rivera
countered. "If the money's that easy, why don't you go after it?"
"I will, so help me!" Danny cried with abrupt
conviction. "I'Il beat you to death in the ring, my boy--you monkeyin'
with me this way. Make out the articles, Kelly. Winner take all. Play it up in
the sportin' columns. Tell 'em it's a grudge fight. I'll show this fresh kid a
few."
Kelly's secretary had begun to write, when Danny
interrupted.
"Hold on!" He turned to Rivera.
"Weights?"
"Ringside," came the answer.
"Not on your life, Fresh Kid. If winner takes all, we
weigh in at ten A.M."
"And winner takes all?" Rivera queried.
Danny nodded. That settled it. He would enter the ring in
his full ripeness of strength.
"Weigh in at ten," Rivera said.
The secretary's pen went on scratching.
"It means five pounds," Roberts complained to
Rivera.
"You've given too much away. You've thrown the fight
right there. Danny'll lick you sure. He'll be as strong as a bull. You're a
fool. You ain't got the chance of a dewdrop in hell."
Rivera's answer was a calculated look of hatred. Even this
Gringo he despised, and him had he found the whitest Gringo of them all.
IV
Barely noticed was Rivera as he entered the ring. Only a
very slight and very scattering ripple of half-hearted hand-clapping greeted
him. The house did not believe in him. He was the lamb led to slaughter at the
hands of the great Danny. Besides, the house was disappointed. It had expected
a rushing battle between Danny Ward and Billy Carthey, and here it must put up
with this poor little tyro. Still further, it had manifested its disapproval of
the change by betting two, and even three, to one on Danny. And where a betting
audience's money is, there is its heart.
The Mexican boy sat down in his corner and waited. The slow
minutes lagged by. Danny was making him wait. It was an old trick, but ever it
worked on the young, new fighters. They grew frightened, sitting thus and
facing their own apprehensions and a callous, tobacco-smoking audience. But for
once the trick failed. Roberts was right. Rivera had no goat. He, who was more
delicately coordinated, more finely nerved and strung than any of them, had no
nerves of this sort. The atmosphere of foredoomed defeat in his own corner had
no effect on him. His handlers were Gringos and strangers. Also they were
scrubs--the dirty driftage of the fight game, without honor, without
efficiency. And they were chilled, as well, with certitude that theirs was the
losing corner.
"Now you gotta be careful," Spider Hagerty warned
him. Spider was his chief second. "Make it last as long as you can--them's
my instructions from Kelly. If you don't, the papers'll call it another bum
fight and give the game a bigger black eye in Los Angeles."
All of which was not encouraging. But Rivera took no notice.
He despised prize fighting. It was the hated game of the hated Gringo. He had
taken up with it, as a chopping block for others in the training quarters,
solely because he was starving. The fact that he was marvelously made for it
had meant nothing. He hated it. Not until he had come in to the Junta, had he
fought for money, and he had found the money easy. Not first among the sons of
men had he been to find himself successful at a despised vocation.
He did not analyze. He merely knew that he must win this
fight. There could be no other outcome. For behind him, nerving him to this
belief, were profounder forces than any the crowded house dreamed. Danny Ward
fought for money, and for the easy ways of life that money would bring. But the
things Rivera fought for burned in his brain--blazing and terrible visions,
that, with eyes wide open, sitting lonely in the corner of the ring and waiting
for his tricky antagonist, he saw as clearly as he had lived them.
He saw the white-walled, water-power factories of Rio
Blanco. He saw the six thousand workers, starved and wan, and the little
children, seven and eight years of age, who toiled long shifts for ten cents a
day. He saw the perambulating corpses, the ghastly death's heads of men who
labored in the dye-rooms. He remembered that he had heard his father call the
dye-rooms the "suicide-holes," where a year was death. He saw the
little patio, and his mother cooking and moiling at crude housekeeping and
finding time to caress and love him. And his father he saw, large,
big-moustached and deep-chested, kindly above all men, who loved all men and
whose heart was so large that there was love to overflowing still left for the
mother and the little muchacho playing in the corner of the patio. In those
days his name had not been Felipe Rivera. It had been Fernandez, his father's
and mother's name. Him had they called Juan. Later, he had changed it himself,
for he had found the name of Fernandez hated by prefects of police, jefes
politicos, and rurales.
Big, hearty Joaquin Fernandez! A large place he occupied in
Rivera's visions. He had not understood at the time, but looking back he could
understand. He could see him setting type in the little printery, or scribbling
endless hasty, nervous lines on the much-cluttered desk. And he could see the
strange evenings, when workmen, coming secretly in the dark like men who did
ill deeds, met with his father and talked long hours where he, the muchacho,
lay not always asleep in the corner.
As from a remote distance he could hear Spider Hagerty
saying to him: "No layin' down at the start. Them's instructions. Take a
beatin' and earn your dough."
Ten minutes had passed, and he still sat in his comer. There
were no signs of Danny, who was evidently playing the trick to the limit.
But more visions burned before the eye of Rivera's memory.
The strike, or, rather, the lockout, because the workers of Rio Blanco had
helped their striking brothers of Puebla. The hunger, the expeditions in the
hills for berries, the roots and herbs that all ate and that twisted and pained
the stomachs of all of them. And then, the nightmare; the waste of ground
before the company's store; the thousands of starving workers; General Rosalio Martinez
and the soldiers of Porfirio Diaz, and the death-spitting rifles that seemed
never to cease spitting, while the workers' wrongs were washed and washed again
in their own blood. And that night! He saw the flat cars, piled high with the
bodies of the slain, consigned to Vera Cruz, food for the sharks of the bay.
Again he crawled over the grisly heaps, seeking and finding, stripped and
mangled, his father and his mother. His mother he especially remembered--only
her face projecting, her body burdened by the weight of dozens of bodies. Again
the rifles of the soldiers of Porfirio Diaz cracked, and again he dropped to
the ground and slunk away like some hunted coyote of the hills.
To his ears came a great roar, as of the sea, and he saw
Danny Ward, leading his retinue of trainers and seconds, coming down the center
aisle. The house was in wild uproar for the popular hero who was bound to win.
Everybody proclaimed him. Everybody was for him. Even Rivera's own seconds
warmed to something akin to cheerfulness when Danny ducked jauntily through the
ropes and entered the ring. His face continually spread to an unending
succession of smiles, and when Danny smiled he smiled in every feature, even to
the laughter-wrinkles of the corners of the eyes and into the depths of the
eyes themselves. Never was there so genial a fighter. His face was a running
advertisement of good feeling, of good fellowship. He knew everybody. He joked,
and laughed, and greeted his friends through the ropes. Those farther away,
unable to suppress their admiration, cried loudly: "Oh, you Danny!"
It was a joyous ovation of affection that lasted a full five minutes.
Rivera was disregarded. For all that the audience noticed,
he did not exist. Spider Lagerty's bloated face bent down close to his.
"No gettin' scared," the Spider warned.
"An' remember instructions. You gotta last. No layin'
down. If you lay down, we got instructions to beat you up in the dressing
rooms. Savve? You just gotta fight."
The house began to applaud. Danny was crossing the ring to
him. Danny bent over, caught Rivera's right hand in both his own and shook it
with impulsive heartiness. Danny's smile-wreathed face was close to his. The
audience yelled its appreciation of Danny's display of sporting spirit. He was
greeting his opponent with the fondness of a brother. Danny's lips moved, and
the audience, interpreting the unheard words to be those of a kindly-natured
sport, yelled again. Only Rivera heard the low words.
"You little Mexican rat," hissed from between
Danny's gaily smiling lips, "I'll fetch the yellow outa you."
Rivera made no move. He did not rise. He merely hated with
his eyes.
"Get up, you dog!" some man yelled through the
ropes from behind.
The crowd began to hiss and boo him for his unsportsmanlike
conduct, but he sat unmoved. Another great outburst of applause was Danny's as
he walked back across the ring.
When Danny stripped, there was ohs! and ahs! of delight. His
body was perfect, alive with easy suppleness and health and strength. The skin
was white as a woman's, and as smooth. All grace, and resilience, and power
resided therein. He had proved it in scores of battles. His photographs were in
all the physical culture magazines.
A groan went up as Spider Hagerty peeled Rivera's sweater
over his head. His body seemed leaner, because of the swarthiness of the skin.
He had muscles, but they made no display like his opponent's. What the audience
neglected to see was the deep chest. Nor could it guess the toughness of the
fiber of the flesh, the instantaneousness of the cell explosions of the
muscles, the fineness of the nerves that wired every part of him into a spendid
fighting mechanism. All the audience saw was a brown-skinned boy of eighteen
with what seemed the body of a boy. With Danny it was different. Danny was a
man of twenty-four, and his body was a man's body. The contrast was still more
striking as they stood together in the center of the ring receiving the
referee's last instructions.
Rivera noticed Roberts sitting directly behind the newspaper
men. He was drunker than usual, and his speech was correspondingly slower.
"Take it easy, Rivera," Roberts drawled.
"He can't kill you, remember that. He'll rush you at
the go-off, but don't get rattled. You just and stall, and clinch. He can't
hurt cover up, much. Just make believe to yourself that he's choppin' out on
you at the trainin' quarters."
Rivera made no sign that he had heard.
"Sullen little devil," Roberts muttered to the man
next to him. "He always was that way."
But Rivera forgot to look his usual hatred. A vision of
countless rifles blinded his eyes. Every face in the aidience, far as he could
see, to the high dollar-seats, was transformed into a rifle. And he saw the
long Mexican border arid and sun-washed and aching, and along it he saw the
ragged bands that delayed only for the guns.
Back in his corner he waited, standing up. His seconds had
crawled out through the ropes, taking the canvas stool with them. Diagonally
across the squared ring, Danny faced him. The gong struck, and the battle was
on. The audience howled its delight. Never had it seen a battle open more
convincingly. The papers were right. It was a grudge fight. Three-quarters of
the distance Danny covered in the rush to get together, his intention to eat up
the Mexican lad plainly advertised. He assailed with not one blow, nor two, nor
a dozen. He was a gyroscope of blows, a whirlwind of destruction. Rivera was
nowhere. He was overwhelmed, buried beneath avalanches of punches delivered
from every angle and position by a past master in the art. He was overborne,
swept back against the ropes, separated by the referee, and swept back against
the ropes again.
It was not a fight. It was a slaughter, a massacre. Any
audience, save a prize fighting one, would have exhausted its emotions in that
first minute. Danny was certainly showing what he could do--a splendid
exhibition. Such was the certainty of the audience, as well as its excitement
and favoritism, that it failed to take notice that the Mexican still stayed on
his feet. It forgot Rivera. It rarely saw him, so closely was he enveloped in
Danny's man-eating attack. A minute of this went by, and two minutes. Then, in
a separation, it caught a clear glimpse of the Mexican. His lip was cut, his
nose was bleeding. As he turned and staggered into a clinch, the welts of
oozing blood, from his contacts with the ropes, showed in red bars. across his
back. But what the audience did not notice was that his chest was not heaving and
that his eyes were coldly burning as ever. Too many aspiring champions, in the
cruel welter of the training camps, had practiced this man-eating attack on
him. He had learned to live through for a compensation of from half a dollar a
go up to fifteen dollars a week--a hard school, and he was schooled hard.
Then happened the amazing thing. The whirling, blurring
mix-up ceased suddenly. Rivera stood alone. Danny, the redoubtable Danny, lay
on his back. His body quivered as consciousness strove to return to it. He had
not staggered and sunk down, nor had he gone over in a long slumping fall. The
right hook of Rivera had dropped him in midair with the abruptness of death.
The referee shoved Rivera back with one hand, and stood over the fallen
gladiator counting the seconds. It is the custom of prize-fighting audiences to
cheer a clean knock-down blow. But this audience did not cheer. The thing had
been too unexpected. It watched the toll of the seconds in tense silence, and
through this silence the voice of Roberts rose exultantly:
"I told you he was a two-handed fighter!"
By the fifth second, Danny was rolling over on his face, and
when seven was counted, he rested on one knee, ready to rise after the count of
nine and before the count of ten. If his knee still touched the floor at
"ten," he was considered "down," and also "out."
The instant his knee left the floor, he was considered "up," and in
that instant it was Rivera's right to try and put him down again. Rivera took
no chances. The moment that knee left the floor he would strike again. He
circled around, but the referee circled in between, and Rivera knew that the
seconds he counted were very slow. All Gringos were against him, even the
referee.
At "nine" the referee gave Rivera a sharp thrust
back. It was unfair, but it enabled Danny to rise, the smile back on his lips.
Doubled partly over, with arms wrapped about face and abdomen, he cleverly
stumbled into a clinch. By all the rules of the game the referee should have
broken it, but he did not, and Danny clung on like a surf-battered barnacle and
moment by moment recuperated. The last minute of the round was going fast. If
he could live to the end, he would have a full minute in his corner to revive.
And live to the end he did, smiling through all desperateness and extremity.
"The smile that won't come off!" somebody yelled,
and the audience laughed loudly in its relief.
"The kick that Greaser's got is something
God-awful," Danny gasped in his corner to his adviser while his handlers
worked frantically over him.
The second and third rounds were tame. Danny, a tricky and
consummate ring general, stalled and blocked and held on, devoting himself to
recovering from that dazing first-round blow. In the fourth round he was
himself again. Jarred and shaken, nevertheless his good condition had enabled
him to regain his vigor. But he tried no man-eating tactics. The Mexican had
proved a tartar. Instead, he brought to bear his best fighting powers. In
tricks and skill and experience he was the master, and though he could land
nothing vital, he proceeded scientifically to chop and wear down his opponent.
He landed three blows to Rivera's one, but they were punishing blows only, and
not deadly. It was the sum of many of them that constituted deadliness. He was
respectful of this two-handed dub with the amazing short-arm kicks in both his
fists.
In defense, Rivera developed a disconcerting straight-left.
Again and again, attack after attack he straight-lefted away from him with
accumulated damage to Danny's mouth and nose. But Danny was protean. That was
why he was the coming champion. He could change from style to style of fighting
at will. He now devoted himself to infighting. In this he was particularly
wicked, and it enabled him to avoid the other's straight-left. Here he set the
house wild repeatedly, capping it with a marvelous lockbreak and lift of an
inside upper-cut that raised the Mexican in the air and dropped him to the mat.
Rivera rested on one knee, making the most of the count, and in the soul of him
he knew the referee was counting short seconds on him.
Again, in the seventh, Danny achieved the diabolical inside
uppercut. He succeeded only in staggering Rivera, but, in the ensuing moment of
defenseless helplessness, he smashed him with another blow through the ropes.
Rivera's body bounced on the heads of the newspaper men below, and they boosted
him back to the edge of the platform outside the ropes. Here he rested on one
knee, while the referee raced off the seconds. Inside the ropes, through which
he must duck to enter the ring, Danny waited for him. Nor did the referee
intervene or thrust Danny back.
The house was beside itself with delight.
"Kill'm, Danny, kill'm!" was the cry.
Scores of voices took it up until it was like a war-chant of
wolves.
Danny did his best, but Rivera, at the count of eight,
instead of nine, came unexpectedly through the ropes and safely into a clinch.
Now the referee worked, tearing him away so that he could be hit, giving Danny
every advantage that an unfair referee can give.
But Rivera lived, and the daze cleared from his brain. It
was all of a piece. They were the hated Gringos and they were all unfair. And
in the worst of it visions continued to flash and sparkle in his brain--long
lines of railroad track that simmered across the desert; rurales and American
constables, prisons and calabooses; tramps at water tanks--all the squalid and
painful panorama of his odyssey after Rio Blanca and the strike. And,
resplendent and glorious, he saw the great, red Revolution sweeping across his
land. The guns were there before him. Every hated face was a gun. It was for
the guns he fought. He was the guns. He was the Revolution. He fought for all
Mexico.
The audience began to grow incensed with Rivera. Why didn't
he take the licking that was appointed him? Of course he was going to be
licked, but why should he be so obstinate about it? Very few were interested in
him, and they were the certain, definite percentage of a gambling crowd that
plays long shots. Believing Danny to be the winner, nevertheless the y had put
their money on the Mexican at four to ten and one to three. More than a trifle
was up on the point of how many rounds Rivera could last. Wild money had
appeared at the ringside proclaiming that he could not last seven rounds, or
even six. The winners of this, now that their cash risk was happily settled,
had joined in cheering on the favorite.
Rivera refused to be licked. Through the eighth round his
opponent strove vainly to repeat the uppercut. In the ninth, Rivera stunned the
house again. In the midst of a clinch he broke the lock with a quick, lithe
movement, and in the narrow space between their bodies his right lifted from
the waist. Danny went to the floor and took the safety of the count. The crowd
was appalled. He was being bested at his own game. His famous right-uppercut
had been worked back on him. Rivera made no attempt to catch him as he arose at
"nine." The referee was openly blocking that play, though he stood
clear when the situation was reversed and it was Rivera who desired to rise.
Twice in the tenth, Rivera put through the right-uppercut,
lifted from waist to opponent's chin. Danny grew desperate. The smile never
left his face, but he went back to his man-eating rushes. Whirlwind as he
would, be could not damage Rivera, while Rivera through the blur and whirl,
dropped him to the mat three times in succession. Danny did not recuperate so
quickly now, and by the eleventh round he was in a serious way. But from then
till the fourteenth he put up the gamest exhibition of his career. He stalled
and blocked, fought parsimoniously, and strove to gather strength. Also, he
fought as foully as a successful fighter knows how. Every trick and device he
employed, butting in the clinches with the seeming of accident, pinioning
Rivera's glove between arm and body, heeling his glove on Rivera's mouth to
clog his breathing. Often, in the clinches, through his cut and smiling lips he
snarled insults unspeakable and vile in Rivera's ear. Everybody, from the
referee to the house, was with Danny and was helping Danny. And they knew what
he had in mind. Bested by this surprise-box of an unknown, he was pinning all
on a single punch. He offered himself for punishment, fished, and feinted, and
drew, for that one opening that would enable him to whip a blow through with
all his strength and turn the tide. As another and greater fighter had done
before him, he might do a right and left, to solar plexus and across the jaw.
He could do it, for he was noted for the strength of punch that remained in his
arms as long as he could keep his feet.
Rivera's seconds were not half-caring for him in the
intervals between rounds. Their towels made a showing, but drove little air
into his panting lungs. Spider Hagerty talked advice to him, but Rivera knew it
was wrong advice. Everybody was against him. He was surrounded by treachery. In
the fourteenth round he put Danny down again, and himself stood resting, hands
dropped at side, while the referee counted. In the other corner Rivera had been
noting suspicious whisperings. He saw Michael Kelly make his way to Roberts and
bend and whisper. Rivera's ears were a cat's, desert-trained, and he caught
snatches of what was said. He wanted to hear more, and when his opponent arose
he maneuvered the fight into a clinch over against the ropes.
"Got to," he could hear Michael, while Roberts
nodded. "Danny's got to win--I stand to lose a mint--I've got a ton of
money covered--my own. If he lasts the fifteenth I'm bust--the boy'll mind you.
Put something across."
And thereafter Rivera saw no more visions. They were trying
to job him. Once again he dropped Danny and stood resting, his hands at his
slide. Roberts stood up.
"That settled him," he said.
"Go to your corner."
He spoke with authority, as he had often spoken to Rivera at
the training quarters. But Rivera looked hatred at him and waited for Danny to
rise. Back in his corner in the minute interval, Kelly, the promoter, came and
talked to Rivera.
"Throw it, damn you," he rasped in, a harsh low
voice. "You gotta lay down, Rivera. Stick with me and I'll make your
future. I'll let you lick Danny next time. But here's where you lay down."
Rivera showed with his eyes that he heard, but he made
neither sign of assent nor dissent.
"Why don't you speak?" Kelly demanded angrily.
"You lose, anyway," Spider Hagerty supplemented.
"The referee'll take it away from you. Listen to Kelly, and lay down."
"Lay down, kid," Kelly pleaded, "and I'll
help you to the championship."
Rivera did not answer.
"I will, so help me, kid."
At the strike of the gong Rivera sensed something impending.
The house did not. Whatever it was it was there inside the ring with him and
very close. Danny's earlier surety seemed returned to him. The confidence of
his advance frightened Rivera. Some trick was about to be worked. Danny rushed,
but Rivera refused the encounter. He side-stepped away into safety. What the
other wanted was a clinch. It was in some way necessary to the trick. Rivera
backed and circled away, yet he knew, sooner or later, the clinch and the trick
would come. Desperately he resolved to draw it. He made as if to effect the
clinch with Danny's next rush. Instead, at the last instant, just as their
bodies should have come together, Rivera darted nimbly back. And in the same
instant Danny's corner raised a cry of foul. Rivera had fooled them. The
referee paused irresolutely. The decision that trembled on his lips was never
uttered, for a shrill, boy's voice from the gallery piped, "Raw
work!"
Danny cursed Rivera openly, and forced him, while Rivera
danced away. Also, Rivera made up his mind to strike no more blows at the body.
In this he threw away half his chance of winning, but he knew if he was to win
at all it was with the outfighting that remained to him. Given the least
opportunity, they would lie a foul on him. Danny threw all caution to the
winds. For two rounds he tore after and into the boy who dared not meet him at
close quarters. Rivera was struck again and again; he took blows by the dozens
to avoid the perilous clinch. During this supreme final rally of Danny's the
audience rose to its feet and went mad. It did not understand. All it could see
was that its favorite was winning, after all.
"Why don't you fight?" it demanded wrathfully of
Rivera.
"You're yellow! You're yellow!" "Open up, you
cur! Open up!" "Kill'm, Danny! Kill 'm!" "You sure got 'm!
Kill 'm!"
In all the house, bar none, Rivera was the only cold man. By
temperament and blood he was the hottest-passioned there; but he had gone
through such vastly greater heats that this collective passion of ten thousand
throats, rising surge on surge, was to his brain no more than the velvet cool
of a summer twilight.
Into the seventeenth round Danny carried his rally. Rivera,
under a heavy blow, drooped and sagged. His hands dropped helplessly as he
reeled backward. Danny thought it was his chance. The boy was at, his mercy.
Thus Rivera, feigning, caught him off his guard, lashing out a clean drive to
the mouth. Danny went down. When he arose, Rivera felled him with a down-chop
of the right on neck and jaw. Three times he repeated this. It was impossible
for any referee to call these blows foul.
"Oh, Bill! Bill!" Kelly pleaded to the referee.
"I can't," that official lamented back. "He
won't give me a chance."
Danny, battered and heroic, still kept coming up. Kelly and
others near to the ring began to cry out to the police to stop it, though
Danny's corner refused to throw in the towel. Rivera saw the fat police captain
starting awkwardly to climb through the ropes, and was not sure what it meant.
There were so many ways of cheating in this game of the Gringos. Danny, on his
feet, tottered groggily and helplessly before him. The referee and the captain
were both reaching for Rivera when he struck the last blow. There was no need
to stop the fight, for Danny did not rise.
"Count!" Rivera cried hoarsely to the referee.
And when the count was finished, Danny's seconds gathered
him up and carried him to his corner.
"Who wins?" Rivera demanded.
Reluctantly, the referee caught his gloved hand and held it
aloft.
There were no congratulations for Rivera. He walked to his
corner unattended, where his seconds had not yet placed his stool. He leaned
backward on the ropes and looked his hatred at them, swept it on and about him
till the whole ten thousand Gringos were included. His knees trembled under
him, and he was sobbing from exhaustion. Before his eyes the hated faces swayed
back and forth in the giddiness of nausea. Then he remembered they were the
guns. The guns were his. The Revolution could go on.
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