नाज़िम हिक़मत की चार कविताएं


नाज़िम हिक़मत की चार कविताएं

अँग्रेज़ी से अनुवाद : पहली कविता का सुरेश सलिल व अन्‍य तीनों कविताओं का चन्द्रबली सिंह


(1) मेरी शायरी

चाँदी की काठी वाला घोड़ा नहीं है मेरे पास सवारी के लिए
नहीं है गुज़ारे के लिए कोई विरासत
ज़र न ज़मीन
कुल जमा शहद की एक हाण्डी है मेरे पास
आग की लपटों जैसे शहद की हाण्डी।
मेरा शहद ही मेरा सब कुछ है
सभी किस्‍म के कीड़े-मकोड़ों से
हिफ़ाजत करता हूं मैं अपने ज़र-ज़मीन की
मेरा मतलब अपनी शहद की हाण्डी की।
ज़रा ठहरो, बिरादर
मेरी हाण्डी में जब तक शहद है
टिम्‍बकटू से भी आएँगी
मधुमक्खियाँ उसके पास।

(2) पाल रोबसन से

वे हमें अपने गीत नहीं गाने देते है, रोबसन,
ओ गायकों के पक्षीराज नीग्रो बन्ध !
वे चाहते हैं कि हम अपने गीत न गा सकें।
डरते है, रोबसन,
वे पौ के फटने से डरते हैं।
देखने,
सुनने,
छूने से
डरते हैं।
वैसा प्रेम करने से डरते हैं
जैसा हमारे फ़रहाद ने प्रेम किया
(निश्चय ही तुम्हारे यहाँ भी तो कोई फ़रहाद हुआ,
रोबसन, नाम तो उसका बताना ज़रा)
उन्हें डर है
बीज से,
पृथ्वी से,
पानी से,
और वे
दोस्त के हाथ की याद से डरते हैं —
जो हाथ कोई रियायत, कमीशन या सूद नहीं माँगता
जो हाथ उनके हाथों में किसी चिड़िया-सा फँसा नहीं।
डरते हैं, नीग्रो बन्धु,
वे हमारे गीतों से डरते हैं, रोबसन!

(3) विदा

विदा,
मेरे दोस्तो,
विदा !
मैं तुम्हें दिल में लिए जाता हूँ
दिल की गहराइयों में —
और अपने संघर्ष को अपने मन में लिए।
विदा,
मेरे दोस्तो,
विदा !
सिन्धु के किनारे पाँत बाँध मत खड़े हो
चित्र-कार्डों में बने विहगों से
अपने रूमाल हिलाते हुए।
यह सब मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए।
मैं सिर से पैर तक
अपने को देखता हूँ दोस्तों की आँखों में।
ओह, दोस्तो,
संघर्ष-सहोदरो,
कर्म-सहोदरो,
साथियो,
विदा, शब्द के बिना।
रात्रि आकर द्वार पर ताला जड़ जाएगी,
वर्ष झरोखों पर अपने जाल बुनेंगे —
और मैं कारा-गीत ऊँचे स्वरों में उठाऊँगा —
उसे संघर्ष का गीत बना गाऊँगा।
हम फिर मिलेंगे,
दोस्तो,
फिर हम मिलेंगे ही।
साथ-साथ सूरज को देखकर हँसेंगे हम,
साथ-साथ जुटेंगे फिर संघर्ष में।
ओह, दोस्तो,
संघर्ष-सहोदरो,
कर्म-सहोदरो,
साथियो,
विदा!

(4) रोशनी के धुले दिन देखेंगे

बच्चो, हम सुन्दर दिन देखेंगे, देखेंगे,
सूरज की रोशनी के धुले दिन देखेंगे, देखेंगे —
खुले हुए सागर में अपनी द्रुतगामी नौकाएँ दौड़ाएँगे।
जगमग करते हुए खुले नीले सिन्धु में नावें दौड़ाएँगे।
सोचो तो पूरी गति से उन्हें कैसा दौड़ाना!
मोटर चलती हुई!
मोटर गरजती हुई!
अहाहा, बच्चो, कौन कह सकता है
कितना अद्भुत्त होगा
चूम लेना नावें जब वे सौ मील की रफ़्तार से दौड़ें!
आज यह सच है
केवल जुमा और इतवार को फूलों के बाग़ों में हम जाते
केवल जुमा के दिन
केवल इतवार के दिन
आज यह सच है
हम आलोकित पथों के भण्डार यों देखा करते हैं,
जैसे परी की कहानी सुन रहे हों
शीशे की दीवारों वाले वे भण्डार
सत्तर मंज़िलों की ऊँचाइयों में ऐसे हैं।
सच है कि जब हम जवाब चाहते हैं तो
डायन-सी पुस्तक खुल जाती है —
कारागार।
चमड़े की पेटियों में हमारी बाँहें बँध जातीं
टूटी हड्डियाँ
ख़ून।
सच है हमारी थालियों में अभी
हफ़्ते में एक दिन ही गोश्त मिल पाता है
और हमारे बच्चे काम के बाद यों लौटा करते हैं
जैसे पीली-पीली ठठरियाँ हों।
सच है अभी —
लेकिन तुम मेरी बात गाँठ बाँध लो
बच्चो, हम सुन्दर दिन देखेंगे, देखेंगे,
सूरज की रोशनी के धुले दिन देखेंगे,
खुले हुए सागर में अपनी द्रुतगामी नौकाएँ दौड़ाएँगे।
जगमग करते हुए खुले नीले सागर में नावें दौड़ाएँगे।



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