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Showing posts from July, 2018

अण्णा भाऊ साठे की कहानी - मसान में सोना

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मसान में सोना  अण्णा भाऊ साठे (अनुवाद : रमणिका गुप्ता) पड़ोस के गाँव के एक नामी-गिरामी धनी व्यक्ति की मृत्यु की खबर सुनकर भीमा उत्तेजित हो गया और कल्पना में ही वह कई बार उस धनी व्यक्ति की कब्र को देख आया। नीम के पेड़ के नीचे उसकी प्यारी बिटिया नवदा बैठी हुई अपने आप ही खेल रही थी। अन्दर भीमा की पत्नी खाना बना रही थी और वह सूर्यास्त होने का इंतज़ार कर रहा था। उसने बहुत बेसब्री से बार-बार सूर्य को देखा था, जो उसकी नज़र में तेज़ी से नीचे नहीं जा रहा था। भीमा का शरीर दैत्याकार था। बाहर जाते समय वह प्रायः एक पीली-सी धोती, लाल पगड़ी और मोटे कपड़े की क़मीज़ पहन लेता था। वह एक पहलवान की तरह दिखता था-बड़ी-बड़ी टाँगें, बड़ा-सा सिर, मोटी गर्दन, दाढ़ी-सी भवें, चौड़े मुँह पर बड़ी-बड़ी शानदार मूँछेंं कई गुंडों को भी दब्बू बना देती थीं। वह किसी से नहीं डरता था। भीमा ‘वरना’ नदी के किनारे स्थित एक गाँव में रहता था। उसकी इतनी ताक़त भी अपने ही गाँव में उसे रोजगार दिलाने में मददगार नहीं हो सकी। वो काम की तलाश में मुम्बई तक घूम आया था। उसने नौकरी की तलाश में पूरे शहर का चप्पा-चप्पा छान मारा, प...

गोरख पाण्‍डेय की पन्‍द्रह कविताएं

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गोरख पाण्‍डेय की पन्‍द्रह कविताएं __________ _______________   तटस्थ के प्रति चैन की बाँसुरी बजाइये आप शहर जलता है और गाइये आप हैं तटस्थ या कि आप नीरो हैं असली सूरत ज़रा दिखाइये आप ( रचनाकाल : 1978) _________________________ आँखें देखकर ये आँखें हैं तुम्हारी तकलीफ़ का उमड़ता हुआ समुन्दर इस दुनिया को जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिये. _________________________   सच्चाई मेहनत से मिलती है छिपाई जाती है स्वार्थ से फिर , मेहनत से मिलती है. _________________________ वतन का गीत हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो न हो कोई राजा न हो रंक कोई सभी हों बराबर सभी आदमी हों न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले हमारे दिलों की न सौदागरी हो ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई निगाहों में अपनी नई रोशनी हो न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में कि गंग...

नौजवानी के बारे में कुछ कविताएं व उद्धरण

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नौजवानी के बारे में कुछ कविताएं व उद्धरण स्वतन्त्रता ( शहीद भगतसिंह की जेल नोटबुक से ) वे मृत शरीर नवयुवकों के , वे शहीद जो झूल गये फाँसी के फन्दे से – वे दिल जो छलनी हो गये भूरे सीसे से , सर्द और निष्पन्द जो वे लगते हैं , जीवित हैं और कहीं अबाधित ओज के साथ। वे जीवित हैं अन्य युवा-जन में , ओ राजाओ। वे जीवित हैं अन्य बन्धु-जन में , फिर से तुम्हें चुनौती देने को तैयार। वे पवित्र हो गये मृत्यु से – शिक्षित और समुन्नत। _________________________ ब्रेख्‍त की कविता छात्रों के प्रति तुम वहाँ बैठते हो पढ़ने के लिए। और कितना खून बहा था कि तुम वहाँ बैठ सको। क्या ऐसी कहानियाँ तुम्हें बोर करती हैं ? लेकिन मत भूलो कि पहले दूसरे बैठते थे तुम्हारी जगह जो बैठ जाते थे बाद में जनता की छाती पर। होश में आओ! तुम्हारा विज्ञान व्यर्थ होगा , तुम्हारे लिए और अध्ययन बांझ , अगर पढ़ते रहे बिना समर्पित किए अपनी बुद्धि को लड़ने के लिए सारी मानवता के सारे शत्रुओं के विरुद्ध मत भूलो , कि आहत हुए थे तुम जैसे आदमी कि पढ़ सको तुम यहाँ , न कि दुसरे कोई और अब मत मूंदों अ...