लैंग्‍सटन ह्यूज की छह कविताएं Six poems by Langston Hughes

लैंग्‍सटन ह्यूज की छह कविताएं

आज पेश है प्रसिद्ध अश्‍वेत अमेरिकी कवि लैंग्‍सटन ह्यूज की पांच कविताएं। कविताओं के अंत में ह्यूज  का एक संक्षिप्‍त परिचय भी दिया गया है। परिचय सत्‍यम द्वारा लिखा गया है और परिकल्‍पना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्‍तक 'आंखे दुनिया की तरफ देखती है' से लिया गया है 

(1) सपने

सपनों को कसकर पकड़ रखो
क्योंकि अगर सपने मर गये
तो जीवन है टूटे पंखों वाली इक चिड़िया
जो उड़ नहीं सकती।
सपनों को कसकर पकड़ रखो
क्योंकि जो सपने नहीं रहे 
तो जीवन है बर्फ से ढँका
एक बंजर खेत।

(2) इंसा़फ़

इंसा़फ़ एक अन्धी देवी है
इसे हम काले लोग बख़ूबी समझते हैं:
उसकी बँधी हुई पट्टी के पीछे छिपे हैं दो सड़ते घाव
जहाँ शायद कभी हुआ करती थी आँखें।

(3) ज़ुुल्म

सपने
अब नहीं आते
स्वप्नद्रष्टाओं के पास,
न ही गीत आते हैं
गाने वालों के पास।
कुछ देशों में 
काली रात
और सर्द लोहा ही पसरा हुआ है
हर ओर।
लेकिन सपने
वापस लौटेंगे,
और गीत
तोड़ डालेंगे
इनके कैदखानों को। 

(4) भूखे बच्चे से भगवान

भूखे बच्चे!
तुम्हारे लिए नहीं बनायी है
मैंने यह धरती
तुमने तो ख़रीदा ही नहीं है
मेरी रेल कम्पनी का स्टॉक
मेरे कारपोरेशन में
कोई निवेश भी नहीं किया है
स्टैण्डर्ड ऑयल में
कोई शेयर भी तो नहीं है तुम्हारा
इस धरती केा मैंने अमीरों के लिए बनाया है
जो होने वाले अमीर हैं
और जो हमेशा से अमीर हैं
उनके लिए 
तुम्हारे लिये नहीं
भूखे बच्चे

(5) मैं एक सपना देखता हूँ इस धरती का

मैं एक ऐसी धरती का सपना देखता हूँ
जहाँ आदमी आदमी से घृणा नहीं करे
जहाँ धरती प्रेम के आशीर्वाद से पगी हो
और रास्ते शान्ति की अल्पना से सुसज्जित

मैं एक ऐसी धरती का सपना देखता हूँ
जहाँ सभी को आज़ादी की मिठास मिले
जहाँ अन्तरात्मा को लालच मार नहीं सके
जहाँ धन का लोभ हमारे दिनों को नष्ट नहीं कर सके

मैं एक ऐसी धरती का सपना देखता हूँ
जहाँ काले या गोरे चाहे जिस भी नस्ल के तुम रहो
धरती की सम्पदा का तुम्हारा हिस्सा तुम्हें मिले

जहाँ हर आदमी आज़ाद हो
जहाँ सिर झुकाये खड़ी हो दुरावस्था
जहाँ मोतियों-सा अच्छल हो आनन्द
और सबकी ज़रूरतें पूरी हों

ऐसा ही सपना देखता हूँ मैं इस धरती का

(6) एक बार फिर अमेरिका वही अमेरिका बने

एक बार फिर अमेरिका वही अमेरिका बने
वही एक सपना जो वह हुआ करता था
नयी दुनिया का अगुवा
एक ठिकाना खोजता
जहाँ ख़ुद भी आज़ादी से रह सके
अमेरिका मेरे लिए कभी यह अमेरिका रहा ही नहीं
एक बार फिर अमेरिका उन स्वप्नदर्शियों का वही सपना बने
प्यार और मोहब्बत की वही ठोस महान धरती
जहाँ राजा कभी पैदा हुआ ही नहीं
और न आतंककारियों की यह साजिश
कि किसी एक के शासन में दूसरा प्रताड़ित हो
‘‘यह कभी मेरे लिए अमेरिका रहा ही नहीं’‘


जी हाँ, मेरी यह धरती ऐसी धरती बने
जहाँ आज़ादी सम्मानित न हो
झूठी देशभक्ति की मालाओं से
जहाँ सबको अवसर मिले
और जीवन मुक्त हो
और जिस हवा में हम साँस लेते हैं
वह सबके लिए एक-सी बहे


‘’आज़ाद लोगों की इस धरती’‘ पर
कभी आज़ादी या बराबरी मुझे नसीब नहीं हुई
बतलाइये तो, कौन हैं आप इस अँधेरे में छिपते हुए
और कौन हैं आप सितारों से चेहरा छुपाते हुए


मैं एक गरीब गोरा आदमी हूँ अलगाया हुआ
मैं एक नीग्रो हूँ गुलामी का घाव खाया हुआ
मैं एक लाल आदमी हूँ अपनी ही धरती से
भगाया हुआ
मैं एक प्रवासी हूँ अपनी उम्मीदों की डोर से
बँधा हुआ
और हमें वही पुराना रास्ता मिलता है बेवकूफ़ी का
कि कुत्ता कुत्ते को खाये, कमज़ोर को मज़बूत दबाये


मैं ही वह नौजवान हूँ
ताकत और उम्मीदों से लबरेज़
जकड़ा हुआ उन्हीं पुरानी ज़ंजीरों से
मुनाफ़े की, सत्ता की, स्वार्थ की, ज़मीन हथियाने की
सोना लूट लेने की
ज़रूरतें पूरी करने के उपायों को हड़पने की
काम कराने की और मज़दूरी मार जाने की
अपने लालच के लिए सबका मालिक बनने की
ख़्वाहिशों की


मैं ही वह किसान हूँ ज़मीन का गुलाम
मैं वह मज़दूर हूँ मशीन के हाथ बिका हुआ
मैं ही वह नीग्रो हूँ आप सबका नौकर
मैं ही जनता हूँ विनम्र, भूखी, निम्नस्तरीय
उस सपने के बावजूद आज भी भूखी
ओ नेताओ! आज भी प्रताड़ित
मैं ही वह आदमी हूँ जो कभी बढ़ ही नहीं पाया
सबसे गरीब मज़दूर जिसे वर्षों से भुनाया जाता रहा है
फिर भी मैं ही वह हूँ जो देखता रहा
वही पुराना सपना
पुरानी दुनिया का जब बादशाहों का गुलाम था
और देखा करता था इतना मज़बूत, इतना बहादुर
और इतना सच्चा सपना
जो आज भी अपने उसी दुस्साहस के साथ
गीत बनकर गूँजता है
हर एक ईंट में, पत्थर में
और हर एक हल के फाल में
जिसने अमेरिका की ज़मीन को ऐसा बना दिया है
जैसी आज वह है
सुनो, मैं ही वह आदमी हूँ
जिसने उस शुरुआती दौर में समुद्रों को पार किया था
अपने होने वाली रिहाइश की खोज में
क्योंकि मैं ही वह हूँ
जिसने आयरलैण्ड के अँधेरे तटों को छोड़ा था
और पोलैण्ड की समतल भूमि को
और इंग्लैण्ड के चरागाहों को
और काले अफ्रीका के समुद्री किनारों से बिछुड़ा था
‘’एक आज़ाद दुनिया’‘ बनाने के लिए


आज़ाद?
किसने कहा आज़ाद?
मैं तो नहीं
जी हाँ, मैं तो नहीं
वे लाखों लोग भी नहीं
जो आज भी भीख पर जीते हैं
वे लाखों हड़ताली भी नहीं
जिन्हें गोली मार दी गयी
वे लाखों लोग भी नहीं
जिनके पास कुछ भी नहीं है
हमें देने के लिए
क्योंकि सारे सपने हमने मिलकर देखे थे
और सारे गीत हमने मिलकर गाये थे
और सारी उम्मीदें हमने मिलकर सजायी थीं
और सारे झण्डे हमने मिलकर फहराये थे
और लाखों लोग हैं
जिनके पास कुछ भी नहीं है आज
सिवा उस सपने के जो अब लगभग मर चुका है


एक बार फिर अमेरिका वही अमेरिका बने
जो कि वह अब तक नहीं बन पाया है
और जो कि उसे बनना ही है
एक ऐसी धरती जहाँ हर कोई आज़ाद हो
जो हमारी धरती हो, एक गरीब आदमी की
रेड इण्डियन की, नीग्रो की, मेरी
अमेरिका को किसने बनवाया
किसके ख़ून-पसीने ने
किसके विश्वास और दर्द ने
किसके हाथों ने कारख़ानों में
किसके हल ने बरसात में
हमारे उस मज़बूत सपने को
फिर से जगाना होगा
चाहे जैसी भी गाली दो मुझे
ठीक है तुम चाहे जिस गन्दे नाम से मुझे पुकारो
आज़ादी का वह महान इस्पात झुकता नहीं है उनसे
जो लोगों की जिन्दगी में
जोंक की तरह चिपके रहते हैं
हमें अपनी धरती वापस लेनी ही होगी

 अमेरिका
जी हाँ मैं दो टूक बात करता हूँ
अमेरिका कभी मेरे लिए यह अमेरिका रहा ही नहीं
फिर भी मैं कसम खाता हूँ, वह होगा
गिरोहों की लड़ाइयों में हमारी मौत के बावजूद
बलात्कार, घूसख़ोरी, लूट और झूठ के बावजूद
हम लोग, हम सारे लोग
मुक्त करेंगे इस धरती को
इन खदानों को, इन वनस्पतियों को
नदियों को, पहाड़ों और असीम समतल भूमि को
सबको, इन महान हरित प्रदेशों के सम्पूर्ण विस्तार को
और फिर बनायेंगे अमेरिका को अमेरिका।

🔴🔴परिचय🔴🔴

अमेरिकी साहित्य की दुनिया में रंगभेद का प्रतिनिधि उदाहरण लैंग्स्टन ह्यूज (1902-1967) के कृतित्व के प्रति वहाँ के आलोचकों और प्रकाशकों का उपेक्षापूर्ण रवैया रहा है।
कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, नाटक, निबन्ध - ह्यूज़ ने इन सभी विधाओं में विपुल मात्रा में लिखा और उनके रचना संसार का वर्णक्रम भी का़फ़ी वैविध्यपूर्ण था, पर अंग्रेज़ी के साहित्य संसार में उसका समुचित मूल्यांकन वस्तुतः कभी नहीं हुआ। इसका कारण महज इतना ही नहीं था कि ह्यूज अश्वेत थे और अश्वेतों के उत्पीड़न के मुखर विरोधी थे। इससे भी अहम कारण यह था कि वह विचारों से वामपंथी थे और इस सच्चाई को उन्होंने कभी छुपाया नहीं। इसका ख़ामियाज़ा उन्हें मैकार्थीकाल में ही नहीं बल्कि उसके बाद भी चुकाना पड़ा।
ह्यूज की मृत्यु 1967 में जब हुई, तब अमेरिका में अश्वेतों का आन्दोलन अपने शीर्ष पर था और मेहनतकशों और युवाओं की भारी आबादी भी सड़कों पर थी। यह समय था जब अफ्रीकी देश प्रचण्ड मुक्ति संघर्ष चलाते हुए एक के बाद एक औपनिवेशिक दासता की जंजीरों को तोड़ते जा रहे थे। उधर चीन में सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति का तू़फ़ान शिखर पर था। ह्यूज की कविताओं के सपनों को धरती पर रिहाइश मिलने की उम्मीदें प्रबल हो उठी थीं। बेशक ह्यूज ने तसल्ली और चैन के साथ यह दुनिया छोड़ी होगी।
लैंग्स्टन ह्यूज की कविता एक अफ्रीकी-अमेरिकी कवि के रूप में अपनी जड़ों की तलाश करती हुई एक ओर जहाँ अफ्रीकी धरती और वहाँ के कवियों तक पहुँचती थी, तो दूसरी ओर अमेरिकी इतिहास में मुक्ति-स्वप्नों का सन्धान करते हुए लिंकन की राजनीति और वाल्ट ह्निटमैन की कविता तक से जुड़ती थी। औपनिवेशिक उत्पीड़न और ऐतिहासिक विस्मृति के विरुद्ध टकराती हुई वह एक ओर पूरे अमेरिकी महाद्वीप की परम्परा से - रुबेन दारियो से लेकर पाब्लो नेरूदा और निकोलस गीयेन तक की कविता से जीवन्त रिश्ता बनाती थी तो दूसरी ओर सर्वहारा के ऐतिहासिक मिशन से जुड़ाव उसे सोवियत संघ और चीन के जीवन से, वहाँ की गौरवशाली क्रान्तियों से और मयाकोव्स्की से लेकर कुओ मो-जो तक की कविताओं से जोड़ता था।
लैंग्स्टन ह्यूज जीवन, संघर्ष और सृजन के सहज प्रवाह के कवि हैं। सादगी और सहज अभिव्यक्ति का सौन्दर्य उनकी कविता की शक्ति है। लैंग्स्टन ह्यूज की कविताओं का हिन्दी में छिटफुट और का़फ़ी कम अनुवाद हुआ है।

लैंग्स्टन ह्यूज हम लोगों के प्रिय साथी, कवि और अनुवादक रामकृष्ण पाण्डेय के पसन्दीदा कवियों में से एक थे। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि लैंग्स्टन ह्यूज की ज़्यादा से ज़्यादा कविताएँ जुटाकर उनका हिन्दी अनुवाद किया जाये। ‘परिकल्पना’ के लिए उन्होंने उपलब्ध कविताओं के अनुवाद पर 2008 में ही काम शुरू कर दिया था। इनमेें से पच्चीस कविताओं के अनुवाद ‘जनपथ’ पत्रिका की ओर से एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित भी हो चुके हैं। इसके बाद पाण्डेय जी ने कुछ और कविताओं के अनुवाद भी किये। उन सबको मिलाकर यह संकलन प्रकाशित किया जा रहा है। 16 नवम्बर 2009 को दिल के गम्भीर दौरे ने पाण्डेय जी को हम सभी से हमेशा के लिए छीन लिया और उन ढेर सारी परियोजनाओं की तरह, जिन पर पत्रकारिता की नौकरी से अवकाश प्राप्ति के बाद पाण्डेय जी ज़ोर-शोर से काम शुरू करना चाहते थे, ह्यूज की कविताओं के अनुवाद की परियोजना भी अधूरी रह गयी। बहरहाल, जितनी कविताओं के अनुवाद पाण्डेय जी छोड़ गये, उन्हें पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है। यह अपने प्रिय साथी और सहकर्मी को हमारी ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि भी है।

सत्यम


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