एदुआर्दो गालेआनो की कविता — दुनिया भर में डर Eduardo Galeano's Poem - Global Fear


एदुआर्दो गालेआनो की कविता दुनिया भर में डर

जो लोग काम पर लगे हैं वे भयभीत हैं
कि उनकी नौकरी छूट जायेगी
जो काम पर नहीं लगे वे भयभीत हैं
कि उनको कभी काम नहीं मिलेगा
जिन्हें चिंता नहीं है भूख की
वे भयभीत हैं खाने को लेकर
लोकतंत्र भयभीत है याद दिलाये जाने से और
भाषा भयभीत है बोले जाने को लेकर
आम नागरिक डरते हैं सेना से,
सेना डरती है हथियारों की कमी से
हथियार डरते हैं कि युद्धों की कमी है
यह भय का समय है
स्त्रियाँ डरती हैं हिंसक पुरुषों से और पुरुष
डरते हैं निर्भय स्त्रियों से
चोरों का डर, पुलिस का डर
डर बिना ताले के दरवाज़ों का,
घड़ियों के बिना समय का
बिना टेलीविज़न बच्चों का, डर
नींद की गोली के बिना रात का और दिन
जगने वाली गोली के बिना
भीड़ का भय, एकांत का भय
भय कि क्या था पहले और क्या हो सकता है
मरने का भय, जीने का भय.


Eduardo Galeano's Poem - Global Fear

Those who work are afraid they’ll lose their jobs.
those who don’t are afraid they’ll never find one.
Whoever doesn’t fear hunger is afraid of eating.
Drivers are afraid of walking and pedestrians are afraid of
getting run over.
Democracy is afraid of remembering and language is afraid
of speaking.
Civilians fear the military, the military fears the shortage of
weapons, weapons fear the shortage of wards.
It is the time of fear.
Women’s fear of violent men and men’s fear of fearless
women.
Fear of thieves, fear of the police.
Fear of doors without locks, of time without watches, of children
without television; fear of night without sleeping pills and day
without pills to wake up.
Fear of crowds, fear of solitude, fear of what was and what
could be, fear of dying, fear of living






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