शुरूआत, मुक्ति, सपनों के बारे में कुछ कवितांश

शुरूआत, मुक्ति, सपनों के बारे में कुछ कवितांश


1. बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त
हर चीज़ बदलती है।
अपनी हर आख़िरी साँस के साथ
तुम एक ताज़ा शुरुआत कर सकते हो।
लेकिन जो हो चुका, सो हो चुका।
जो पानी एक बार तुम शराब में
उँडेल चुके हो, उसे उलीच कर
बाहर नहीं कर सकते।

2. नाज़िम हिकमत
सबसे खूबसूरत है वह समुद्र
जिसे अब तक देखा नहीं हमने
सबसे खूबसूरत बच्चा
अब तक बड़ा नहीं हुआ
सबसे खूबसूरत हैं वे दिन
जिन्हें अभी तक जिया नहीं हमने
सबसे खूबसूरत हैं वे बातें
जो अभी कही जानी हैं

3. नाज़िम हिकमत
हम खूबसूरत दिन देखेंगे, बच्चो,
हम देखेंगे धूप के उजले दिन
हम दौड़ायेंगे, बच्चो,
अपने तेज़ रफ़्तार नावें खुले समन्दर में
हम दौड़ायेंगे,
उन्हें चमकीले–नीले–खुले समन्दर में–––
ज़रा सोचो तो, पूरी रफ़्तार से जाती
पहलू बदलती हुई मोटर
घरघराती हुई मोटर!

4. शशिप्रकाश
कौवा-उड़ान दूरियाँ तय करके
सम्भव नहीं
इन शिखरों तक पहुँच पाना ।
इन तक पहुँचने की
दुर्गम, कठिन, सर्पिल
चढाव-उतार भरी
राहों को जानना होगा ।
यात्राओं के लम्बे अनुभव
होने चाहिए --
सफल और असफल दोनों ही,
एकदम ज़िन्दगी की तरह
चाहे वह आदमी की हो
या फिर किसी कौम की ।

5. अवतार सिंह 'पाश'
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग के सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली को पसीने नहीं आते
शेल्फ़ों में पड़े
इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलनेवाले दिलों का होना
नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते

6. कात्यायनी
मुक्ति की चाहत को
सपनों की दुनिया से
बाहर लाना होगा।
मुक्ति की चाहत को
बस चाहत ही बने रहने देना
बूढ़ा कर देगा।
मुक्ति की चाहत को
अदम्य लालसा ही नहीं
दुर्निवार ज़रूरत बनाना होगा।
उसे एक आदत में
ढालना होगा।
कविता का लिबास उतारकर
उसे रोज़मर्रे की
ज़रूरत बनाना होगा।
और फिर उसके लिए
वैसा ही उद्यम करना होगा
जैसा कि हम ताउम्र करते हैं
अपनी रोज़मर्रे की ज़रूरतें
पूरी करने के लिए
और
थकते नहीं हैं।

7. शहीद शंकर गुहा नियोगी
सिर्फ वेदनाएँ
दुःख की गाथाएँ
चलती रहेंगी,
अनन्त काल तक
या
हम उठ खड़े होंगे
अंतिम क्षणों में?
अन्त नहीं होगा
जहाँ अन्त होना था,
वहीँ शुरुआत की सुबह
खिल उठेगी!

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