मानवीय जीवन की सार्थकता के बाबत कुछ उद्धरण व कविताएं


मानवीय जीवन की सार्थकता के बाबत कुछ उद्धरण व कविताएं



आदमी की सबसे प्यारी चीज़ होती है उसकी ज़िन्दगी। उसे जीने के लिए बस एक ही ज़िन्दगी मिलती हैऔर उसे अपनी ज़िन्दगी को इस तरह जीना चाहिए ताकि उसे कभी इस पछतावे की आग में न जलना पड़े कि उसने अपने साल यूँ ही बर्बाद कर दियेताकि उसे एक क्षुद्र और तुच्छ अतीत को लेकर शर्मिन्दा न होना पड़ेउसे इस तरह जीना चाहिए ताकि जब वह मृत्युशैया पर होतो वह कह सके – मैंने अपनी सारी ज़िन्दगीअपनी सारी ताक़त दुनिया के सबसे महान लक्ष्य के लिएइन्सानियत की मुक्ति के लक्ष्य के लिए लगायी है। और इन्सान को अपनी ज़िन्दगी के एक-एक पल का इस्तेमाल करना चाहिएक्योंकि कौन जाने कब अचानक कोई बीमारी या दुर्घटना उसके जीवन की डोर को बीच में ही काट दे।
निकोलाई आस्त्रोवस्की

हर आदमी एक न एक दिन ज़रूर मरता है, लेकिन हर आदमी की मौत की अहमियत अलग–अलग होती है।जनता के लिए प्राण निछावर करना थाई पर्वत से भी ज़्यादा भारी अहमियत रखता है, जबकि फासिस्टों के लिए तथा शोषकों व उत्पीड़कों के लिए जान देना पंख से भी ज़्यादा हल्की अहमियत रखता है। 
माओ त्से तुङ

दूसरों के लिए प्रकाश की एक किरण बनना, दूसरों के जीवन को देदीप्यमान करना, यह सबसे बड़ा सुख है जो मानव प्राप्त कर सकता है। इसके बाद कष्टों अथवा पीड़ा से, दुर्भाग्य अथवा अभाव से मानव नहीं डरता। फिर मृत्यु का भय उसके अन्दर से मिट जाता है, यद्यपि, वास्तव में जीवन को प्यार करना वह तभी सीखता है। और, केवल तभी पृथ्वी पर आँखें खोलकर वह इस तरह चल पाता है कि जिससे कि वह सब कुछ देख, सुन और समझ सके; केवल तभी अपने संकुचित घोंघे से निकलकर वह बाहर प्रकाश में आ सकता है और समस्त मानवजाति के सुखों और दु:खों का अनुभव कर सकता है। और केवल तभी वह वास्तविक मानव बन सकता है।
एफ. ज़र्जि़न्स्की

इतिहास उन्हें ही महान मनुष्य मानता है, जो सामान्य लक्ष्य के लिए काम करके, स्वयं उदात्त बन जाते हैं; अनुभव सर्वाधिक सुखी मनुष्य के रूप में उसी व्यक्ति की स्तुति करता है जिसने लोगों की अधिक से अधिक संख्या के लिए सुख की सृष्टि की है।
कार्ल मार्क्स

हमने यदि ऐसा पेशा चुना है जिसके माध्यम से मानवता की हम अधिक सेवा कर सकते हैं तो उसके नीचे हम दबेंगे नहीं-क्योंकि यह ऐसा होता है जो सबके हित में किया जाता है। ऐसी स्थिति में हमें किसी तुच्छ, सीमित अहम्वादी उल्लास की अनुभूति नहीं होगी, वरन तब हमारा व्यक्तिगत सुख जनगण का भी सुख होगा, हमारे कार्य तब एक शान्तिमय किन्तु सतत् रूप से सक्रिय जीवन का रूप धारण कर लेंगे, और जिस दिन हमारी अर्थी उठेगी, उस दिन भले लोगों की आँखों में हमारे लिए गर्म आँसू होंगे।
युवा कार्ल मार्क्स (‘पेशे का चुनाव करने के सम्बन्ध में एक नौजवान के विचार’ नामक रचना से)

जीने के बजाय लोग अपना समूचा जीवन जीने की तैयारी करने में गँवा देते हैं। और जब इतना सारा समय हाथ से निकल जाने के बाद वे अपने को लुटा हुआ देखते हैंतो भाग्य को कोसने लगते हैं।
बुढ़िया इजरगिल (मक्सिम गोर्की की कहानी ‘बुढ़िया इजरगिल’ की एक पात्र)

आदमी का हृदय जब वीर कृत्यों के लिए छटपटाता होतो इसके लिए वह सदा अवसर भी ढूँढ लेता है। जीवन में ऐसे अवसरों की कुछ कमी नहीं है और अगर किसी को ऐसे अवसर नहीं मिलतेतो समझ लो कि वह काहिल है या फिर कायर या यह कि वह जीवन को नहीं समझता।
बुढ़िया इजरगिल (मक्सिम गोर्की की कहानी ‘बुढ़िया इजरगिल’ की एक पात्र)

जो लोग अस्थायी सुरक्षा के लिए अपनी बुनियादी आज़ादी गिरवी रखने को तैयार हो जाते हैंवे न सुरक्षा के अधिकारी हैं और न ही आज़ादी के।
बेंजामिन फ्रैंकलिन

अवतार सिंह 'पाश' की कविता 'ज़िन्दगी/मौत'


जीने का एक और भी ढंग होता है

भरी ट्रैफिक के बीचो–बोच लेट जाना और जाम कर देना

वक़्त का बोझिल पहिया।

मरने का एक और भी ढंग होता है

मौत के चेहरे से उलट देना नकाब

और ज़िन्दगी की चार सौ बीसी को

सरेआम बेपर्द कर देना ।


शहीद भगतसिंह की जेल नोटबुक से एक कविता 

दफ़न न होते आज़ादी पर मरने वाले
पैदा करते हैं मुक्ति-बीज, फिर और बीज पैदा करने को।
जिसे ले जाती दूर हवा और फिर बोती है और जिसे
पोषित करते हैं वर्षा जल और हिम।
देहमुक्त जो हुई आत्मा उसे न कर सकते विच्छिन्न
अस्त्र-शस्त्र अत्याचारी के
बल्कि हो अजेय रमती धरती पर, मरमर करती,
बतियाती, चौकस करती।
(वाल्ट हिटमैन)

शशिप्रकाश की कविता - शिखरों तक 
कौवा-उड़ान दूरियाँ तय करके

सम्भव नहीं

इन शिखरों तक पहुँच पाना।


इन तक पहुँचने की

दुर्गमकठिनसर्पिल

चढाव-उतार भरी

राहों को जानना होगा।


यात्राओं के लम्बे अनुभव

होने चाहिए ..

सफल और असफल दोनों ही,

एकदम ज़िन्दगी की तरह 

चाहे वह आदमी की हो

या फिर किसी कौम की।


कार्ल मार्क्स की कविता - जीवन लक्ष्य


कठिनाइयों से रीता जीवन

मेरे लिए नहीं,

नहीं, मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं।

मुझे तो चाहिए एक महान ऊँचा लक्ष्य

और, उसके लिए उम्रभर संघर्षों का अटूट क्रम।

ओ कला! तू खोल

मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार

मेरे लिए खोल!

अपनी प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में

अखिल विश्व को बाँध लूँगा मैं!

आओ,

हम बीहड़ और कठिन सुदूर यात्रा पर चलें

आओ, क्योंकि –

छिछला, निरुद्देश्य जीवन

हमें स्वीकार नहीं।

हम, ऊँघते, कलम घिसते हुए

उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे।

हम – आकांक्षा, आक्रोश, आवेग और

अभिमान में जियेंगे!

असली इन्सान की तरह जियेंगे।


जैक लण्डन की कविता - धूल की जगह राख


धूल की जगह राख होना चाहूँगा मैं

मै चाहूँगा कि एक देदीप्यमान ज्वाला बन जाये

भड़ककर मेरी चिनगारी

बजाय इसके कि सड़े काठ में उसका दम घुट जाये।

एक ऊँघते हुए स्थायी ग्रह के बजाय

मैं होना चाहूँगा एक शानदार उल्का

मेरा प्रत्येक अणु उद्दीप्त हो भव्यता के साथ।

मनुष्य का सही काम है जीना,

न कि सिर्फ जीवित रहना।

अपने दिन मैं बर्बाद नहीं करूँगा

उन्हें लम्बा बनाने की कोशिश में।

मैं अपने समय का इस्तेमाल करूँगा।



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